RE: Gandi Sex kahani भरोसे की कसौटी
कहते हैं की जब मनुष्य कोई बड़ा या गंभीर अपराध या पाप कर बैठता है और फिर उसे छुपाने का भरपूर प्रयास भी करता है, तब उसके चेहरे के हाव भाव, उसका उठना बैठना, उसके शारीरिक गतिविधि इत्यादि सब कुछ उसके बारे में कोई न कोई संकेत देना प्रारंभ कर देते हैं | और फ़िलहाल ऐसा ही कुछ हो रहा था चाची के साथ.. रात में चाचा ने अचानक पूछ ही लिया चाची के स्वास्थ्य के बारे में |
चाचा – “दीप्ति, तुम ठीक हो ना? कुछ दिन से देख रहा हूँ की तुम कुछ खोई खोई सी, उदास सी हो... कोई परेशानी है?”
चाची – “अरे नहीं .... कुछ नहीं... काम करते करते कभी कभी ऐसा हो जाता है... आप फ़िक्र मत कीजिए ... कुछ होगा तो सबसे पहले आपको ही बताउंगी...|” बड़ी ही प्यारी सी स्माइल चेहरे पे ला कर बोली | चाचा शायद पिघल गए चाची की मोहक मुस्कान देख कर ....
चाचा – “ यू श्योर ??... पक्का कुछ नहीं हुआ है?”
इसपर चाची ने चेहरे पर हल्का गुस्सा ला कर चाचा के बहुत करीब जा कर अपने वक्षों को थोड़ा ऊपर कर, चाचा के छाती से हल्का सा सटाती हुई आँखों में आँखें डाल कर बोली, “अच्छा.... तो अब आपका हम पर भरोसा भी नहीं रहा...?”
चाची की इस अदा पर चाचा तो जैसे सब भूल ही बैठे... चाची को उनके कमर से पकड़ कर अपने पास खींच उनके होंटों पर अपने होंठ ज़रा सा टच करते हुए गालों पर किस किया और बड़े प्यार और अपनेपन से कहा, “ तुमपे भरोसा ना करूं ... ऐसा कभी हो सकता है क्या भला....??”
इसके बाद दोनों ने झट से एक दुसरे को गले से लगा लिया और बहुत देर तक वैसे ही रहे | फिर एक दुसरे से अलग होकर अपने अपने काम में लग गए... मैं बहुत दूर से उन्हें देख रहा था... दोनों का आपस में प्यार देख कर मुझे बहुत अच्छा लगा... पर साथ में बुरा भी... बुरा दोनों के लिए लगा... एक तो चाची के लिए... और दूसरा चाचा के लिए, कि उनकी बीवी, उनकी धर्मपत्नी उनके पीठ पीछे क्या गुल खिला रही है |
रात का खाना हम सबने साथ ही खाया.. चाचा अपने धुन में खाना सफ़ाचट कर रहे थे... और चाची बीच बीच में आँखों में उदासी लिए चाचा को देखती और आँखें नीची कर खाना खाती...| मैं सिवाए देखने के और कुछ भी नही कर सकता था... कम से कम इस समय |
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अगले दिन सुबह, रोज़ की तरह ही चाचा ऑफिस चले गए टाइम पे और मैं भी अपने कोचिंग खत्म कर नहा धो कर नाश्ते के लिए बैठ गया | टेबल पर जब चाची खाना सर्व कर रही थी तब मैंने उनके चेहरे को पढ़ने की कोशिश की | हाव भाव से तो वो शांत थी पर चिंता और दुविधा की मार चेहरे पर साफ़ झलक रही थी | वो भी प्रयास कर रही थी की मैं कुछ समझ ना पाऊँ पर अब तक तो बहुत देर हो चुकी थी | कारण ना सही पर किसी संकट का अंदेशा तो मैंने कर ही लिया था और जानने के लिए अपने कमर भी कस चुका था | बस देर थी तो सिर्फ शुरुआत करने की | और शुरुआत को शुरू करने के लिए एक क्लू की ज़रूरत थी जोकि अभी मेरे पास थी नहीं | पर शायद किस्मत जल्द ही मेहरबान होने वाला था मुझ पर |
जैसे ही नाश्ता खत्म कर हाथ मुँह धोने के लिए उठा, मैंने देखा की अन्दर किचेन में, सब्जी बना रही चाची के चेहरे पर उनके सामने वाले खिड़की से एक कागज़ का टुकड़ा आ कर लगा | समझते देर न लगी की किसी ने यह कागज़ चाची पर खिड़की के रास्ते उनपर फेंकी है | जल्दी जा कर कागज़ फेंकने वाले को देख भी नहीं सकता था, इससे चाची को शक हो जाता | चेहरे पर कागज़ का टुकड़ा आ कर लगते ही चाची ने ‘आऊऊ’ से आवाज़ की | खिड़की से झाँक कर देखने की कोशिश भी की कि किसने फेंका है... पर शायद उन्हें भी कोई नहीं दिखा | चाची का अगला कदम मुझे पता था इसलिए पहले ही खुद को एक सेफ जगह में छुपा कर उनपर नज़र रखा | चाची ने टेबल की तरफ़ देखा, मुझे वहाँ ना देख कर थोड़ी निश्चिंत हुई, फिर किचेन से एक कदम बाहर आ कर भी उन्होंने इधर उधर देखा.. मुझे कहीं न पा कर चैन की सांस ली और उस मुड़े हुए कागज़ की टुकड़े को ठीक कर उसे देखने लगी | शायद कुछ लिखा था उसमे | और शायद ज़रूर कुछ ऐसा लिखा था जिसका कदाचित उन्होंने कल्पना तक नहीं की होगी | उन्होंने जल्द ही उस कागज़ को फाड़ कर, अच्छे से छोटे छोटे टुकड़े कर के डस्टबिन में फेंक दिया | फिर कुछ देर वहीँ खड़ी खड़ी अपने मंगलसूत्र से खेलते हुए खिड़की से बाहर देखते हुए कुछ सोचती रही | फिर अपने काम में लग गई | मैं हाथ मुँह धो कर अपने रूम में चला गया |
करीब आधे घंटे बाद चाची ने नीचे से आवाज़ दिया.. मैं गया | जा कर क्या देखता हूँ की चाची ब्लड रेड कलर की साड़ी और मैचिंग ब्लाउज जिसके बाँह के किनारों पे गोल्डन थ्रेड से सिलाई की गई है, पहन कर तैयार खड़ी है | हाथ में एक पर्स है... कम ऊँचाई की हील वाली रेडिश ब्राउन कलर की सेंडल पहनी है | जब मैं उनके सामने पहुँचा तब वो आगे की ओर थोड़ा झुक कर अपने पैरों के पास साड़ी के हिस्से को ठीक कर रही थी | ठीक करते करते कहा, “अभय, सुनो, मुझे थोड़ा बाहर जाना है.. मैंने खाना बना कर रख दिया है.. टाइम पर खा लेना.... ठीक है?” ‘ठीक है’ कहते हुए उन्होंने नज़र उठा कर मेरी और देखा और पाया की मेरी नज़रें उनकी ब्लाउज के अन्दर से झांकते उभारों पर थीं | पर उन्होंने इस पर कोई रिएक्शन नहीं दिया और साड़ी को ठीक करने के बाद एक बार फिर समय पर खा लेने वाली हिदायत दुबारा देते हुए बाहर चली गई | उस साड़ी ब्लाउज में चाची इतनी ज़बरदस्त दिख रही थी की मेरे लंड बाबाजी ने बरमुडा के अन्दर तुरंत फनफनाना शुरू कर दिया | चाची का ब्लाउज आगे और पीछे, दोनों तरफ़ से डीप कट था | क्लीवेज तो दिख ही रही थी, साथ ही मांसल बेदाग साफ़ पीठ का बहुत सा हिस्सा भी दिख रहा था | और इसलिए चाची पीछे से भी ए वन लग रही थी |
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