Gandi kahani कविता भार्गव की अजीब दास्ताँ
11-13-2019, 12:02 PM,
#9
RE: Gandi kahani कविता भार्गव की अजीब दास्ताँ
मनीषा : आपको क्या मालूम मुम्मीजी! आपके बेटे को ऐसी औरतों की तस्वीरें देखना ज़्यादा पसंद है! जी! मैंने खुद उनके ब्राउज़र हिस्ट्री को कहीं बार देखि हैं! अरे वोह शकीला से लेके न जाने किन किन महिलाओं को सर्च करते बैठते हैं l

कविता की धड़कन इतनी तेज़ हो गयी कि उसे लगी जैसे कोई उसकी प्राण शरीर से निकाल रही हो, कुछ अध्बुध सी कशिश छाने लगी उसकी मन्न में, आज मनीषा ने वोह चिंगारी जला दी जो अब पूरे जंगल को जलने वाली थी। बिना झिझक या संकोच के वोह आगे सुनने लगी l

मनीषा : मम्मीजी???? आप है न? (उत्तेजित होक)

कविता : बबबहहहु! ममैं तो रेखा को ही पागल समझ रही थी, तू तो मुझे भी पागल बना रही हैं अब! ककया आ अजय सचमुच ऐसी तस्वीरें???? है भगवन!

मनीषा : (सास के गले लगती हुई) अब सुनिए मेरी बात! मैं चाहती हूँ आप रेखा चची से पहले तीर मार दे! ताकि आप उन्हें कल्पना से नहीं बल्कि तजुर्बे से सलाह देंगी! (कायदे से आँख मारती हैं)

कविता को लगा किसी ने एक कतरा उसकी जांघों के बीच में से टपका दी हो! वोह अब मदहोश हो रही थी बहू के बातों से l यूँ तो वोह एक सुलझी हुई औरत थी लेकिन आज वोह कुछ ज़्यादा ही कामुक हो उठी अपनीत बहु की बातों से, हाँ! बात तो सही की हैं मनीषा ने के अगर तजुरबा होजाये तो सलाह देने में आसानी तो ज़रूर होगी l

कविता की चिंतन देखके मनीषा उसकी गाल सहला देती हैं अपनी हाथों से, जैसे मानो बहुत प्यार हो अपनी सास पे l

कविता बड़ी उत्सुकः थी जानने के लिए के मनीषा के मनसूबे क्या क्या थे l मनीषा की मन्न में कुछ अपने ही लट्टू फूट रहे थे l

मनीषा : मम्मीजी! आप को शायद नै मालुम के आप के पास क्या हैं!

कविता : क्या मतलब?

मनीषा : (सास की कमर पर चिकोटी मारती हुई) यह गद्देदार कमर आपकी उफ्फ्फफ्फ्फ़! हीी!

कविता की धड़कन बार गयी अचानक से

मनीषा : और यह गुलाबी फुले हुए गाल आपके!

कविता सिसक उठी

मनीषा : आपको क्या मालूम मुम्मीजी! आपके बेटे को ऐसी औरतों की तस्वीरें देखना ज़्यादा पसंद है! जी! मैंने खुद उनके ब्राउज़र हिस्ट्री को कहीं बार देखि हैं! अरे वोह शकीला से लेके न जाने किन किन महिलाओं को सर्च करते बैठते हैं l

कविता की धड़कन इतनी तेज़ हो गयी कि उसे लगी जैसे कोई उसकी प्राण शरीर से निकाल रही हो, कुछ अध्बुध सी कशिश छाने लगी उसकी मन्न में l आज मनीषा ने वोह चिंगारी जला दी जो अब पूरे जंगल को जलने वाली थी l बिना झिझक या संकोच के वोह आगे सुनने लगी l

कविता की चिंतन देखके मनीषा उसकी गाल सहला देती हैं अपनी हाथों से, जैसे मानो बहुत प्यार ायी हो अपनी सास पे l

मनीषा : मम्मी जी! आप इसे अपनी मनोविज्ञान की प्रैक्टिस ही समझ के आनंद लीजिये, क्या पता अजय और मेरे रिश्ते में आपके वजह से और रस आजाये!

कविता : (हैरान होके) ययएह टटू कह रही हैं बहु??? क्या ऐसे करने से तेरे और अजय के रिश्ते में फरक नहीं आएगा???

मनीषा : (मुस्कुराती हुई) अरे मुम्मीजी! रिलैक्स!!!! अब वोह बेचारे मुझसे सम्भोग करके भी शकीला जैसी गरदायी जवानी की तस्वीरो पर मूठ मारते हैं! अरे उन्हें क्या पता के एक गदरायी औरत खुद उनके घर पर ही हैं! (फिर से कमर की चिकोटी लेती हैं)

कविता शर्म और उत्तेजना से पानी पानी हो गयी, न जाने वह क्या सिद्धांत लेगी l

.......

वह रेखा अपने घर पे चुपके से ज्योति की कमरे में जाके कुछ निघती वगेरा देख रही थी l कविता की बातें उसे उत्तेजित करने लगी, ख़ास जब उसने अपनी बेटी को उकसाने वाली सलाह मिली थी, तब

रेखा अपनी बहू की एक एक पारदर्शी कपड़ो को देख ही रही थी कि तभी पीछे से एक लड़की कस्स के उसे पकड़ लेती l लड़की कम उम्र की थी, कुछ २० से २१ साल तक, खुले बाल, रसीले होंठ और एक मदमस्त बदन , वोह कोई और नहीं बल्कि राहुल की बहन रेनुका थी l

रेणुका : क्या माँ! भाभी ौत भइआ की कमरे में क्या कर रही हो???

रेखा : अरे कुछ नहीं रेनू! बस ऐसे ही l एक ब्रा खो गयी थी बहुत हफ्तों पहले, सोचा कि शायद यही कहीं होगी l

.
रेणुका : (खिलखिला के) क्या माँ! यह सारे के सारे ब्रा तो भाभी के ही लायक हैं! आप की तो साइज (शर्माके)

रेखा : एक मारूंगी! बहुत बकवास करने लगी है आजकल तू! आने दे भइआ को! फिर देखना!

रेणुका : (नखरे दिखाती हुई) उफ्फ्फ! माफ़ करना प्रिय माते! हमें क्षमा कर दीजिये! परररर माँ!

रेखा : क्या ???

रेणुका : कुछ नहीं! (भाग जाती हैं कमरे में से)

रेखा : ये लड़की पागल करके रहेगी मुझे! लेकिन, इसकी चाल तो ज़रा देखो! ऐसी मोटी मोटी जांगों पे सिर्फ घुटनो तक पंत पहनती हैं! बेशरम कहीं की! यहाँ में अपने छिपे हुए हवस में जल रही हूँ और इसे केवल अपनी सुख सुविधा की पारी है!!

रेखा फिर अपनी काम काज में जुट जाती हैं, बहु की अलमारी में से कुछ यहाँ वहाँ मोइना करती हुई उसे एक बहुत ही सेक्सी किसम की नाइटी नज़र आती हैं l नाइटी की हुलिया तो कुछ ऐसी थी कि मानो मर्दो का मैं भने के लिए जैसे सिलाई की गयी l

देखके ही रेखा की तन बदन में एक आग फड़कने लगी l
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