RE: Maa Sex Kahani चुदासी माँ और गान्डू भाई
मैं बेड पर से खड़ा हो गया और माँ को भी हाथ पकड़कर मेरे सामने खड़ा कर लिया। माँ को मैंने आगोश में ले लिया। माँ की खड़ी-खड़ी चूचियां मेरे सीने में चुभने लगीं। माँ के तपते होंठों पर मैंने अपने होंठ रख दिए। माँ के अमृत भरे होंठों का रसपान करते-करते मैंने पीछे दोनों हथेलियां माँ के उभरे विशाल नितंबों पर जमा दी। माँ के गुदाज चूतड़ों को मसलते हुए में माँ के पेल्विस को अपने पेल्विस पर दबाने लगा।
विजय- “अब इस सौंदर्य की प्रतिमा को अपने हाथों से धीरे-धीरे निर्वस्त्र करूंगा। तुम्हारे नंगे जिश्म को जी भर
के देदूंगा, तुम्हारे काम अंगों को छुऊँगा, उन्हें प्यार करूँगा..." चुंबन के बाद माँ की ठुड्डी को ऊपर उठाते मैंने। कहा और एक-एक करके पहले माँ के गहने उतार दिए। फिर माँ का ब्लाउज़ खोला और उसके बाद उसके घाघरे का नाड़ा खींच दिया। नाड़ा ढीला होते ही भारी घाघरा नीचे गिर पड़ा। अब माँ उसी माडर्न हल्के गुलाबी रंग की पैंटी और ब्रा में थी जो उस दिन मुझे सप्लायर ने दी थी।
5'10" लम्बे और छरहरे शरीर की मालिका श्रीमती राधा देवी, यानी की मेरी पूज्य माताजी पैंटी और ब्रा में खड़ी मंद-मंद मुश्कुरा रही थी। विशाल जांघों ओर पीछे उभरे हुए नितंबों से पैंटी पूरी सटी हुई थी। माँ की फूली चूत का उभार स्पष्ट नजर आ रहा था। सीने पर दो बड़े-बड़े कलश बड़े ही तरीके से रखे हुए थे। मैंने ब्रा के ऊपर से माँ के भरे-भरे चूचों को हल्के से सहलाया और ब्रा के स्ट्रैप खोल दिए और ब्रा भी शरीर से अलग कर दी। माँ के उरोज बिल्कुल शेप में थे। गुलाबी चूचुक तने हुए और काफी बड़े-बड़े थे।
विजय- “हाय मम्मी तुम्हारे अंगूर के दाने तो बड़े मस्त हैं..." यह कहकर मैंने मुँह नीचे करके दाएं चुचुक को
अपने मुँह में भर लिया और चूचुक को चुलभुलने लगा।
तभी माँ मेरे सिर के पीछे हाथ रखकर मेरे सिर को अपनी चूची पर दबाने लगी तथा दूसरे हाथ से अपनी चूची मानो मेरे मुँह में ठूसने लगी। मुझे माँ का यह खुलापन और अदा बहुत ही पसंद आई। कुछ देर चूची चूसने के बाद मैं बेड पर बैठ गया और माँ की पैंटी में उंगलियां डालने लगा। मैंने सिर ऊपर उठाते हुए माँ की आँखों में देखा। माँ ने आँखों के इशारे से हामी भर दी। मैंने वैसे ही माँ की आँखों में देखते-देखते पैंटी नीचे सरका दी और माँ की टाँगों से निकालकर सोफे पर उछाल दी। अब माँ मेरे सामने जन्मजात नंगी खड़ी थी।
मैंने माँ के चेहरे से आँखें हटाकर माँ की चूत पर केंद्रित कर दी। मेरी माँ की चूत बहुत ही फूली हुई और घने काले बालों से भरतीं थी। माँ की झाँट के बाल घंघराले और लम्बे थे। माँ ने शायद ही कभी अपनी झांटों की । सफाई की हो। माँ की जांघे बहुत ही चौड़ी और दूधिया रंगत लिए थीं। मैंने माँ की चिकनी मरमरी जाँघों पर हाथ रख दिया और हल्के-हल्के उसपर फिसलाने लगा। तभी माँ ने टाँगें थोड़ी चौड़ी कर दी और मेरी आँखों के सामने माँ की चूत की लाल फाँक कौंध गई।
राधा- “हाय मेरे विजय राजा, तुझे अपनी माँ की चूत कैसी लगी?” माँ ने हँसते हुए पूछा।
विजय- “हाय क्या प्यारी चूत है। जितनी प्यारी यह तेरी चीज है उतने ही प्यार से इसे मेरे सामने पेश करो। इसे पूरी सजा के पूरी छटा के साथ मुझे सौंपो तब मेरी पसंद नापसंद पूछो। खूब बोल-बोलकर पूरी कामातुर होकर मुझे इसे भोगने के लिए कहो मेरी जान...” यह कहकर में बिस्तर पर लेट गया।
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