RE: Maa Sex Kahani चुदासी माँ और गान्डू भाई
माँ की बात सुनकर मैं माँ के सामने खड़ा हो गया और माँ को जोर से बाँहों में भर लिया। फिर मैं माँ को साथ लेकर बेड पर बैठ गया और मेरी बाँहों में माँ की पीठ अपने सीने पर कस ली। मुझे पक्का विश्वास हो गया की मेरी माँ सज-धज के अपने बेटे से चुदने के लिए आई है, लेकिन यह करने की मुझे जल्दी नहीं थी। यह करने से पहले मैं उसे बिल्कुल खोल लेना चाहता था और पूरी बेशर्म बना देना चाहता था।
मैंने कहा- “लो माँ कल मैंने कहा और आज तुम मेरी सुहागन बनकर आ गई...”
राधा- “तेरी सुहागन? क्या मतलब?” माँ ने मेरी आँखों में आँखें डालकर कहा।
विजय- "मेरा मतलब इस रूप में तुम और तो किसी के सामने जाने से रही, तो केवल मेरी ओर एक्सक्लूसिव्ली मेरी सुहागन हुई की नहीं। बड़ी बात यह है की इस प्रकार सुहागन की तरह-रहने से तुम्हारे मन में विधवा वाली नेगेटिव भावना नहीं रहेगी और जीवन की हर वह खुशी, मौज मस्ती जो तुम पिछले 15 साल से नहीं ले सकी, अब यहाँ बहुत ही एंजाय करते-करते ले सकोगी। जितनी सोच सकारात्मक और खुली हुई होगी जिंदगी जीने का मजा भी उतना ही आता है...” मैंने माँ को इशारों-इशारों में कह दिया की अब सारी लाज शर्म छोड़ दो और अपने सगे बेटे के साथ खुलकर रंगरेलियां मनाओ।
राधा- “यहाँ आने के बाद तुमने तो मेरी पूरी सोच ही बदल दी। गाँव के उस माहौल में में कई बार सोचती थी की कभी मेरे जीवन में भी ऐशो-आराम लिखा है या नहीं?” माँ ने मेरे सीने में मुँह छुपाते हुए कहा।
विजय- “माँ गाँव का वो माहौल अब बहुत पीछे छूट गया। अब मैं तुम्हारे जीवन में खुशियां ही खुशियां भर दूंगा। सबसे बड़ी बात यह है की तुम ऐश करने की, रंगीन जिंदगी जीने की रंगीन और शौकीन तबीयत की औरत हो।। वहीं मैं शुरू से ही बहुत खुले विचारों का हूँ। वैसे मैं हर किसी के साथ कम खुलता हूँ पर जिससे एक बार खुल जाता हूँ उसके साथ अपना सब कुछ खुलकर बॉटता हूँ..."
अब मैंने इस उन्मुक्त बहती गंगा में डुबकी लगाने का फैसला कर लिया। मैंने एक हाथ से माँ की ठुड्डी ऊपर उठा ली और दूसरे हाथ की उंगली माँ के होंठों पर फेरने लगा और साथ ही अपनी जीभ अपने होंठों पर फेरने लगा। माँ ने मेरी ओर देखते हुए मुश्कुराकर आँखें बंद कर ली और मैंने अपना मुँह नीचे करते हुए माँ के यौवन से भरे मदभरे गुलाबी होंठों पर अपने होंठ रख दिए। मैंने माँ के होंठ अपने होंठ में जकड़ लिए और मस्त होकर अपनी मस्त जवान मम्मी के होंठों का रसपान करने लगा। रसपान करते-करते एक हाथ माँ के दाएं पुष्ट स्तन पर रख दिया और उसे हल्के-हल्के दबाने लगा।
विजय- “मम्मी अब तुम मेरी सुहागन हो। सुहागन का मतलब जिसका सुहाग हो और अब बताओ तुम्हारा सुहाग
कौन हुआ?” मैंने मम्मी की चूचियां कस के दबाते हुए कहा।
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