RE: Desi Sex Kahani रंगीला लाला और ठरकी सेवक
सहेलियाँ तो कहती थी, कि प्रथम मिलन में बड़ी तकलीफ़ों का सामना करना पड़ता है, खून ख़राबा तक हो जाता है,
लेकिन यहाँ तो उसके पति ने सीधा उसका लहंगा उपर किया और अपनी लुल्ली अंदर डाल दी, उसे लगा जैसे किसी ने उसकी चूत में उंगली डाल कर 10-15 बार अंदर बाहर की हो,
नयी नवेली मुनिया, शुरू के एक दो बार उसे हल्का सा दर्द फील हुआ, जिसे वो पैर की उंगली में लगी किसी ठोकर समझ कर झेल गयी…
फिर कुच्छ झटकों के बाद जब उसे भी थोड़ा मज़ा सा आना शुरू हुआ ही था कि तब तक उसका पल्लेदार पति, अपना पानी छोड़ कर उसके उपर पड़ा भैंसे की तरह हाँफने लगा…..!
माँ के घर से विदा होते वक़्त रंगीली की माँ और दूसरी बड़ी-बूढ़ी समझदार औरतों ने उसे कुच्छ ज्ञान की बात कहीं थी, मसलन :
पति की आग्या का पालन करना, सास ससुर की सेवा…, पति परमेश्वर होता है, वो जैसा रखे उसी को मान सम्मान देते हुए स्वीकार कर लेना…बल्ला..बल्ला..बल्लाअ..
सौ की एक बात, उन बातों को ध्यान में रखते हुए रंगीली अपने नये परिवार में अपने आप को ढालने की कोशिश करने लगी…
कुच्छ दिन तो उसकी बड़ी ननदे उसके पास रही, जिसकी वजह से उसका दिल एक नयी जगह पर लगा रहा, लेकिन जब वो अपने-अपने घर चली गयी, तो उसे वो घर काटने को दौड़ने लगा…
5 फूटिया 45 किलो का पति, सुवह 5 बजे ही अपनी मेहनत मजूरी के लिए निकल जाता, सारे दिन गधे की तरह रेलवे यार्ड में लदता, देर रात को आख़िरी गाड़ी से लौटता, खाना ख़ाता और 5 मिनिट में ही उसके खर्राटे गूंजने लगते…!
नव-यौवना रंगीली, जो ठीक तरह से ये भी नही जान पाई कि चुदाई होती क्या है, सुहागरात के नाम पर उसके पति परमेश्वर ने उसकी सोई हुई काम-इक्षा से उसका परिचय करा दिया था.
इससे अच्छा तो उसके व्याह से पहले ही थी, कम से कम उसकी मुनिया सिर्फ़ मूतना ही जानती थी,
लेकिन अब उसे उसके असली उपयोग के बारे में भी पता लगवा दिया था…!
बमुश्किल वो उसके उपर हफ्ते दस दिन बाद एक बार ही सवारी करता, वो भी जब तक वो दौड़ने के लिए तैयार होती उससे पहले ही खुद खर्राटे लेते हुए सो जाता, रंगीली बेचारी रात भर जिस्म की आग में तड़पति रहती…
अब बेचारी अपनी दूबिधा कहे तो किससे कहे, बूढ़े सास-ससुर जो वक़्त की मार ने समय से पहले ही उन्हें और बूढ़ा कर दिया था, वो अपनी पुत्र बधू की दूबिधा को भला क्या समझते…
बस कभी कभार नहाते समय, थोड़ा बहुत हाथ से सहला लेती जिससे उसकी काम इच्छा और ज़्यादा भड़कने लगती,
उसको तो अभी तक ये भी पता नही था कि उंगली डालकर भी जिस्म की आग शांत की जा सकती है, उसके दिमाग़ में तो यही था, कि मर्द जब अपना लंड डालता और निकालता है…बस उतना ही है,
असल मज़ा किसे कहते हैं कोई बताने वाला भी तो नही था…
रामू की ज़मीन भी लाला के यहाँ गिरबी पड़ी थी, उसे कोई करने वाला भी नही था, ससुर अपने पागल बेटे को लेकर थोड़ा बहुत लगा रहता…
सेठ का कर्ज़ा बदस्तूर जारी ही था, रामू मेहनत मजूरी करके जो कुच्छ कमाता, उसमें से आधी किस्त ब्याज के नाम पर लाला हड़प लेता…
घर के काम काज, सास ससुर की सेवा ही रंगीली की दिनचर्या बन गयी थी...,
अभी शादी को 2 महीने भी नही बीते थे कि एक दिन लाला आ धम्के उसके घर, मुनीम ने लंबा चौड़ा वही-ख़ाता खोल कर उनके सामने रख दिया,
बेचारे रामू और उसके माँ-बाप की सिट्टी-पिटी गुम, तभी दयालु ह्र्दय लाला ने ही उन्हें एक राह सुझाई….!
रामलाल, क्यों ना अपनी बहू को हमारे घर काम करने के लिए भेज दे, उसकी एबज में हम तुमसे ब्याज नही लिया करेंगे, और रामू की कमाई से तुम्हारा घर अच्छे से चलने लगेगा…
अँधा क्या चाहे – दो आँखें, ये बात फ़ौरन उन तीनो के भेजे में घुस गयी, और उसी शाम उन्होने रंगीली को लाला के यहाँ काम पर जाने के लिए राज़ी कर लिया…!
घूँघट में खड़ी अपने पति के परिवार की व्यथा जानकार उसने अपना सर हिलाकर हामी भर दी, सोचा नयी जगह पर काम करने से कुच्छ तो मन भटकने से बचेगा…
गाओं की नयी-नवेली बहू, गली गलियारे का भी पता नही होगा, लाला का घर कैसे मिलेगा यही सोच कर दूसरे दिन सास खुद अपने साथ लेजा कर उसे लाला की हवेली छोड़ आई….
लाला धरमदास ने अपनी सेठानी को रंगीली के बारे में पहले ही बता दिया था... सो उसके पहुँचते ही उसे काम बता दिए गये,
अब बेचारी पर काम की दोहरी ज़िम्मेदारी पड़ने लगी, पति के काम पर जाने से 1 घंटा पहले उठना यानी 4 बजे… उसके लिए खाने का डिब्बा तैयार करना,
घर का झाड़ू कटका करके 8 बजे तैयार होकर लाला के घर पहुँचना, शाम तक सेठानी उससे ढेरों काम करती, हां लेकिन दूसरे नौकरों की तरह दोपहर का खाना पीना उसका वहाँ हो जाता था…!
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