RE: Antarvasna Sex kahani मायाजाल
वास्तव में कोई योगी कितना ही पहुँच वाला और जानकार क्यों ना हो जाये । प्रकृति के रहस्यों और दैत की मायावी भूमि से पार पाना उसके लिये कभी संभव नहीं है । अब उसका यही विचार पक्का होने लगा था । और अब उसे अपनी मूर्खता पर स्वयं ही हँसी भी आ रही थी । अपनी उलझन के चलते वह एक मामूली सी बात भी नहीं सोच पाया था । क्या थी वह मामूली बात ?
जस्सी और करम कौर के साथ अतीतकाल में जब भी यह घटना घटी होगी । निश्चय ही किसी भी प्रथ्वी पर ही घटी होगी । और उनके विगत मनुष्य जीवन में ही घटी होगी । जिसका कोई न कोई सम्बन्ध उस मछुआरे नाविक से हो सकता है । और सबसे बङी बात यह थी कि जो वह अपनी आदत अनुसार उसकी जङें उच्च लोकों में तलाश रहा था । वे दरअसल किसी नीच लोकों में भी हो सकती थी । बल्कि नीचे लोकों में ही होने की संभावना अधिक थी । क्योंकि ऊँचे लोकों के ऐसे दैवीय अटैक वह आसानी से समझ सकता था । वे उसके तमाम अनुभवों का हिस्सा से थे ।
काले सफ़ेद मटमैले अजीव से बादल मंडरा रहे थे । उनका नियुक्त प्रतिनिधि पुरुष बेहद काला सा था । और सपाट भाव से अपने कार्य में लगा था । उसने प्रसून पर एक उपेक्षित सी निगाह डाली । और ट्रेफ़िक पुलिस की तरह हाथ हिलाता बादलों को नियन्त्रित करने लगा ।
तब प्रसून स्वतः ही उसकी ओर आकर्षित हुआ । और उसके एकदम करीब पहुँच गया । उसकी भंगिमा से ही वह मेघदूत उसके योगत्व को जान गया । उसने प्रसून का औपचारिक अभिवादन किया । और वह उसके लिये क्या कर सकता है । ऐसा उसने आगृह किया । पर प्रसून उससे सिर्फ़ उस स्थान के बारे में जानकारी चाहता था । और आगे किस तरह के लोक थे । वहाँ के निवासी कौन से वर्ग में आते थे । बस यही जानना चाहता था । उसने प्रसून को बहुत कुछ बता दिया । जहाँ तक उसका कार्य क्षेत्र था । उसने बता दिया ।
यह स्थान यमपुरी के निकट था । आगे सजा पाये जीवों के लिये अंधेरे और नीच लोकों का सिलसिला शुरू हो गया था । उससे और आगे नीचाई पर जाने पर नरक और फ़िर महा नरकों का सिलसिला शुरू होता था ।
पर उसे नरकों से कोई वास्ता नहीं था । शायद उसका वास्ता क्षेत्रफ़ल की दृष्टि से बहुत छोटे ही अंधेरे लोकों से था । जस्सी का सम्बन्ध वहीं कहीं से जुङ रहा था । उत्तर दिशा की यह भूमियाँ तामसिक और निकृष्ट साधकों की अधिक होती थी । अतः उसका ज्यादा सरोकार इनसे नहीं रहा था । पर वह शुरूआती दौर में प्रेतों के काफ़ी करीब रहा था । अतः ऐसे लोकों का इतिहास भूगोल अच्छी तरह जानता था । समझ सकता था । यमपुरी के आसपास का एरिया एक तरह से प्रशासनिक क्षेत्र था । और यहाँ साधारण स्वतन्त्र प्रेतों के बजाय नियुक्त गण होते थे । या होने चाहिये । जबकि तान्त्रिक लोक जैसे सिद्ध लोकों का मामला अलग था । वहाँ के प्रेत और विभिन्न भाव रूहें अलग प्रकार की थी ।
वह गुरुत्व बल के योग दायरे में आधार रहित स्थिर खङा विचार मग्न था । बादलों के सफ़ेद बर्फ़ीले टुकङे उसको छूते हुये गुजर रहे थे । पर वह स्थूल देही की भांति कोई ठण्डक अनुभव नहीं कर रहा था ।
- हेऽऽऽ । तभी उसे आश्चर्य मिश्रित चीख सी सुनाई दी - मानव । देख मानव ।
उसने आवाज की तरफ़ देखा । वे दोनों योगिनियाँ थी । और शायद कहीं नियुक्त भी थी । उसे थोङी सी हैरत हुयी । सूक्ष्म शरीर में होने के बाद भी वे उसे मनुष्य स्थिति में महसूस कर सकती थी । और उसकी असलियत से वाकिफ़ थी । ये क्षेत्रिय असर था । इंसान जिस भूमि जिस स्थित जिस भाव से जुङा होता है । उसका असर उस पर निश्चय ही होता है । उसके मूल पर चङा भाव आवरण अपना परिचय दे ही देता है । पर मूल । उसने सोचा । और उनके मूल में स्त्री थी । सदियों से वे स्त्री मूल में थी । और वह स्त्री आज भी उनके अन्दर होगी । एक स्त्री । जो एक पूर्ण पुरुष की निकटता के अहसास से ही भीगने लगती है । उसे जकङने पकङने को संकुचित होने लगती है ।
- कमाल है । वह उनकी प्रशंसा सी करता हुआ बोला - आपने मुझे एकदम ठीक से पहचान लिया । मैं मानव ही हूँ । और मुझे स्वयँ आश्चर्य सा होता है । दूसरे मानव मेरे जैसे क्यों नहीं हैं ? जैसे मैं किसी पक्षी की भांति मुक्त आसमान में घूमता हूँ । पता नहीं मै औरों से अलग ऐसा कैसे कर लेता हूँ ।
उन दोनों ने एक दूसरे की तरफ़ देखा । और रहस्यमय अन्दाज में मुस्कराई ।
फ़िर एक बोली - इसका नाम कनिका और मेरा रक्षा है । कहिये हम आपकी क्या सेवा कर सकती हैं । भले ही आप उसका कोई मूल्य ना चुकाना । दरअसल यहाँ मृत्यु पश्चात तो बहुत मानव आते हैं । रोज ही लाखों जीवात्माओं का लेन देन इधर उधर होना जारी रहता है । पर यूँ स्वतन्त्र रूप से बहुत कम आते हैं ।
वह मोहक भाव से मुस्कराया । जो योगिनियों के दिल में तीर सा लगा । वे बैचेन सी होने लगी । यह किसी दूर देश के अनोखे पर पुरुष का स्वाभाविक चुम्बकीय आकर्षण था । उससे भोग करने की जबरदस्त कामना वाला आकर्षण ।
- जहाँ हम लोग खङे हैं । वह बहुत हल्का सा कटाक्ष करती हुयी बोली - ये प्रेतराज का क्षेत्र है । उसका काम सजा पाये लोगों पर निगाह रखना है । कुछ अंधेरे लोक उसके संचालन में होते हैं । वैसे उसका काम कुछ नहीं होता । पर वह वहाँ से जुङी गतिविधियों पर निगाह रखता है । वहाँ कोई बाहरी हलचल होने पर उसका उपाय करता है । और मामला उसकी शक्ति से बाहर होने पर केन्द्र को सूचित कर देता है ।
- अंधेरे लोक । वह उसके पूछने पर बोली । और उसने उँगली से एक तरफ़ इशारा किया - उनका मार्ग इधर से है । पर आप वहाँ क्यों जाना चाहते हैं ? तो फ़िर बिना प्रेतराज की अनुमति और उसके संज्ञान में लाये बिना आप कैसे जाओगे ? इसी पर निगाह रखना तो उसका काम है ।
अभी वह कुछ जबाब देना चाहता था कि उसे हल्के हल्के ढोल की आवाज सुनाई देने लगी । ढम ढम.. ढम ढमाढम । किसी कुशल संगीतज्ञ की तरह कोई ढोल बादक बङे लयताल से ढोल बजा रहा था । उसे सुर का अच्छा ज्ञान मालूम होता था ।
अभी वह उनसे इस बारे में कुछ पूछना ही चाहता था कि आगे का दृश्य देखकर उसके छक्के ही छूट गये । न सिर्फ़ उसके छक्के छूट गये । योगिनियों ने भी बहुत आश्चर्य से लगभग चीखते हुये उस दृश्य को देखा ।
- जस्सी । प्रसून के मुँह से निकला - ओह गाड । जस्सी । क्या ये मर गयी ?
एक तेज चक्रवाती बवंडर के बेहद ऊँचे गोल दायरे में जस्सी का सूक्ष्म शरीर ऊँचा और ऊँचा उठता हुआ आ रहा था । और वह तेजी से अंधेरे लोक की तरफ़ जा रही थी । अब कुछ पूछने बताने का समय नहीं था । वह तेजी से उधर ही जाने लगा । यहाँ बवंडर की गति अधिक नहीं थी । और अगर होती भी । तो वह योगी की गति से ज्यादा कभी नहीं हो सकती थी ।
अब उसके दिमाग में तुरन्त दो ख्याल आये । पहला । तुरन्त जस्सी को उस बवंडर से मुक्त कराकर उसकी असलियत पता करना । वह मर गयी । या जीवित थी । दूसरा । शायद इस बवंडर का सम्बन्ध उसकी कारण समस्या से जुङा हो । तब उसका हस्तक्षेप पूरे मामले को बिगाङ सकता था । और वह जो शायद स्वतः ही रहस्य की तह में जा रही थी । वो रास्ता बन्द हो सकता था । दूसरी बात अधिक उचित थी ।
वह सावधानी से उसके पीछे जाता हुआ देखने लगा ।
इसी को कहते हैं । मारने वाले से बचाने वाला बङा । हर समस्या का समाधान निश्चित होता है । हर रोग का इलाज निश्चित होता है । हर घटना का सटीक कारण होता है । और ये सब हो रहा है । केवल अज्ञान भृमवश अहम मूल से बने जीव को ऐसा भासता है कि वह इसका कर्ता है । आज जो प्रयोग उसके जीवन में घटा था । वह अदभुत ही था । अल्ला बेबी के मेल से लेकर उसके यहाँ तक पहुँचने और अब जस्सी के यकायक हैरत अंगेज तरीके से वहाँ बवंडर में होने के पीछे की सारी बातें उसके सामने रील की तरह घूम गयी । और वह कैसे और क्यों इस घटना में निमित्त था । यह सारी बात स्पष्ट हो गयी । अगर वह न होता । तो वह लङकी एकदम असहाय ही थी । पर अब वह एक मजबूत सहारे की तरह उसके साथ था । कितनी अजीब है । ये प्रभु की लीला भी । कौन इसका पार पा सकता है । वह उसका पूरक बना था । और वह उसकी पूरक बनी थी । और प्रकृति का कार्य भी चल रहा था । एक सीख रहा था । एक प्रयोग वस्तु था । और सृष्टि का कार्य भी हो रहा था । अदभुत । अदभुत खेल ।
वह काफ़ी आगे निकल आया था । कई सौ योजन की दूरी तय हो चुकी थी । जस्सी किसी उमेठे गये तार में फ़ँसी खिलौना गुङिया की भांति चक्रवाती बवंडर में ऊपर नीचे जा रही थी । और फ़िर वह एक जगह रुक गयी । बवंडर मानों वहीं थमकर खङा हो गया । अब ढोल की आवाज काफ़ी तेज हो गयी थी । पर वह जैसे कहीं बहुत नीचे से आ रही थी । अब क्या करना चाहिये । उसने सोचा । उसने नीचे की तरफ़ दृष्टि डाली । काला गहन अंधेरा । अंधेरा ही अंधेरा । अंधेरे के सिवाय कुछ नहीं था । वह नीचे उतरने लगा ।
ये आप क्या कह रहे हो । वह बेहद हैरत से बोला - मुझे बिलकुल भी विश्वास ही नहीं हो रहा ।
- मुझे भी नहीं होता । प्रसून भावहीन स्वर में बोला - पर कभी कभी अजीव बातों पर भी विश्वास करना ही पङता है । तुम्हारी ये ढोलक क्या गजब ढा रही है । शायद कोई भी इस पर यकीन न करे । एक मासूम लङकी तुम्हारी वजह से कटी पतंग की तरह बिना लक्ष्य भटकती हुयी यहाँ तक आ पहुँची है । और निराधार अंतरिक्ष में लटकी हुयी है । बल्कि लटकी कहना भी गलत है । वह तूफ़ानी बवंडर में कैद है । अभी मैं ये भी नहीं कह सकता कि वो जीती है । या मर चुकी है ।
उस बूङे के चेहरे पर गहरे अफ़सोस के भाव थे । वह मानों रो पङना चाहता था । उसकी वजह से किसी को घोर कष्ट हुआ था । यह सोच उसको मारे ही डाल रही थी । प्रसून को कम से कम अब इस बात की तो तसल्ली हो चुकी थी कि जो भी क्रिया हो रही थी । या अनजाने में की जा रही थी । उसका लक्ष्य जस्सी को कोई नुकसान पहुँचाना नहीं था ।
गोल बवंडर शून्य 0 स्थान में जस का तस थमा हुआ था । और अब उसकी मुश्किल और भी दुगनी हो गयी थी । जब जिसकी वजह से वह सब क्रिया हो रही थी । उसे ही कुछ मालूम नहीं था । तब फ़िर उसका कोई इलाज उसके पास क्या होता ।
- दाता ! उसने आह भरी - तेरा अन्त न जाणा कोय ।
अब सब कुछ संभालना उसका ही काम था । अगर कोई छोटी बङी शक्ति के स्वयँ जान में ये घटना हो रही थी । तब बात एकदम अलग थी । और अब बात एकदम अलग । उसने अन्दाजा लगाया । प्रथ्वी पर सुबह हो चुकी होगी । तब जस्सी को लेकर बराङ परिवार में क्या भूचाल मचा होगा । जस्सी मरी पङी होगी । वह भी मरा पङा होगा । कहीं ऐसा ना हो । वे उन दोनों का अन्तिम संस्कार ही कर दें । यहाँ से वापिसी भी कब होगी । कुछ पता नहीं था । और अब तो ये भी पता नहीं था कि वापिसी होगी भी या नहीं । यदि उनके शरीर नष्ट कर दिये गये । तो उनकी पहचान हमेशा के लिये खो जायेगी ।
तब क्या उसे यूँ ही वापिस लौटकर सारी स्थिति को देखना संभालना चाहिये । अचानक उसके पीछे क्या बात हुयी थी । वह न तो उन वर्तमान परिस्थितियों में अभी पता लगा सकता था । न ही उसके पास इतना समय था ।
उसने इतने अलौकिक स्थानों की यात्रायें की थी कि उसे याद भी नहीं था । पर ये अंधेरे नीच लोक अजीव ही थे । चमकता सूर्य और खिली धूप का क्या मतलब होता है । यहाँ के निवासी शायद जानते ही नहीं थे । हर समय धुंध सी फ़ैली रहती थी । और बहुत पीला सा मटमैला प्रकाश फ़ैला रहता था ।
सृष्टि नियम में काले पानी की सजा जैसा ये अजीव ही विधान था । लगता था । सृष्टि अपनी प्रारम्भिक अवस्था में थी । अलग अलग जगह अलग अलग लोकों में जीवन की कितनी अजीव परिस्थितियाँ विकसित थी ।
उसने बूङे को गौर से देखा । एक अजीव सा सूनापन उसकी आँखों में समाया हुआ था । वह जैसे ठहरा हुआ समय था । उसके पास ढोल रखा हुआ था । और शायद वही उसका अब साथी भी था । वह भारत के किसी पिछङे गाँव की तरह एक कच्चे से मकान में रहता था । जिसमें सिर्फ़ एक कमरा था । और बाहर बहुत सी खुली जगह थी । उसका ही घर क्या । अधिकतर बहाँ की आवादी ऐसी ही हालत में थी । उसके कमरे में पाँच छह पुरुष और तीन स्त्रियाँ बैठी हुयी थी । उन सबको उसको लेकर बहुत आश्चर्य था । वे बार बार उस पवित्र आत्मा को देख रहे थे । जो स्वेच्छा से यहाँ तक आ गया था । और उसकी दिव्य आभा से वहाँ एक अजीव सा प्रकाश फ़ैला हुआ था ।
पर उसकी हालत खुद अजीव हो रही थी । उसका अगला कदम अब क्या हो ? उसे ही ये तय करना मुश्किल हो रहा
था । तब उसकी निगाह उस ढोल पर गयी । सारा रहस्य शायद इस ढोल में ही छुपा हुआ था । पहले उसने सोचा कि वह बूङे से उसके बारे में पूछे । उसका दिमाग कैप्चर कर ले । और समस्या को बारीकी से देखे । और वह यही करने वाला था ।
तब हठात ही उसे दूसरी बात सूझी । जो अधिक उचित थी । दरअसल वह जब तक यहाँ पहुँचा था । ढोल कृमशः मद्धिम होता हुआ रुक गया था । और वह इसी ध्वनि के सहारे यहाँ तक आया था । आज उसने योग का एक अजीव अनुभव किया था । उस ढोल की ध्वनि के साथ अजीव तरंगे आकार ले रही थी । और उनमें मानवीय आकार और जमीनी दृश्य किसी ग्राफ़िक विजुअलाइजेशन की तरह हौले हौले आकार ले रहे थे । जैसे किसी आडियों फ़ाइल को प्ले करने पर ध्वनि के आधार पर तरंगो की तीवृता और क्षीणता के आरोह अवरोह पर डिजायन बनती है ।
खास बात ये थी कि इसमें जस्सी करम कौर एक युवा नाविक मछुआरा एक बूङा और कुछ नटगीरी के करतब उसे नजर आये थे । लेकिन जैसे जैसे वह करीव आता गया । इन सब शरीरों की रूप आकृतियाँ बदलने लगीं । यही बङा अदभुत बिज्ञान उसने देखा था । वह इसे जानता तो था । पर ऐसा प्रत्यक्ष रूप पहली बार देखा था । उसने सोचा । किसी टीवी सेट इंटरनेट आदि में दृश्य ध्वनि का प्रसारण और रिसीविंग के मध्य कुछ कुछ ऐसा ही होता होगा ।
तब सारा रहस्य इसी बात में छुपा था । और वह बारबार इसी को सोच रहा था । वह जब उधर से आ रहा था । तब जस्सी और करम कौर की आवृतियाँ उनके वर्तमान स्वरूप की बन रही थी । लेकिन बीच रास्ते में उसने उतनी ही संख्या में दूसरी अपरिचित आवृतियाँ देखीं । जो इस नीच लोक की तरफ़ से उसी पथ पर जा रही थी । और इसका चित्रण इस तरह से बनता था । जैसे जस्सी करम कौर और अन्य एक रास्ते पर आ रहे हों । और उतनी ही संख्या में वैसे ही लिंगी इधर से जा रहे हों । तब एक बिन्दु पर वे शरीर मिले । और जस्सी उस अपरिचित लङकी में समा गयी । करम कौर एक औरत में समा गयी । इधर का दृश्य उधर के दृश्य से मिल गया । और मामला ठहर गया । फ़िर ये वीडियो क्लिप जैसा चित्र पाज होकर स्टिल चित्र में बदल गया । ये उसने देखा था ।
बूङा सूनी आँखों से उसी की तरफ़ देखता हुआ कुछ बोलने की प्रतीक्षा कर रहा था । पर क्या बोले वह ? वह खुद चाहता था कि वह बोले ।
- बाबा ! तब वह ही बोला - मैं आपके इस ढोल को बजते हुये सुनना चाहता हूँ । मेरा मतलब जैसा आप हमेशा से करते आये । जिन भावों से । जिन वजह से आप ढोल बजाते रहे । ठीक सब कुछ वैसा ही देखना सुनना चाहता हूँ । लेकिन मनोरंजन के लिये नहीं । इसमें किसी की जिन्दगी मौत का सवाल छुपा है । और शायद मेरी जिन्दगी मौत का सवाल भी ।
सबने चौंककर उसकी तरफ़ देखा । एक ढोल बजने से किसी की जिन्दगी मौत का क्या लेना देना । ये उनकी समझ में नहीं आ रहा था । बूङे ने बङे असहाय भाव से इंकार में सिर हिलाया । उसकी बूङी आँखों में दुख का सागर लहरा रहा था । उसके इंकार पर प्रसून को बङी हैरत सी हुयी । उसका आगे का पूरा कार्यकृम ही उसके ढोल बजने पर निर्भर था ।
- ये सब । वह कमजोर आवाज में बोला - खुद होता है । मैं वैसा ढोल हमेशा नहीं बजा सकता । बल्कि ये मान लो । वह खुद ब खुद बजने लगता है । और ये यहाँ । उसने छाती पर हाथ रखा - यहाँ हूक उठने पर होता है । अभी मैं बहुत देर से ढोल बजाता रहा हूँ । इसलिये मेरा दर्द शान्त हो चुका है । भावनाओं का ज्वार शान्त हो चुका है ।
ये भावना हमेशा पूरे जोर पर नहीं होती । बल्कि कभी कभी ही होती है । तब मैं ढोल बजाने लगता हूँ । और गाता हूँ । अपना दुख व्यक्त करता हूँ । ये सब मैं यकायक करता हूँ । तब ये लोग । उसने कमरे में मौजूद लोगों पर दृष्टि डाली - खिंचे से चले आते हैं । ये भी अपने वाध्य यन्त्र बजाते हैं । और गाने में मेरा साथ देते हैं । तब एक अजीव सा तरंगित माहौल बन जाता है । और मैं पूरी तरह डूबा हुआ अपने अतीत में लौट जाता हूँ ।
प्रसून के चेहरे पर रहस्यमय मुस्कराहट आयी । उसका ख्याल एकदम सही था । पर उससे क्या होना था । उसका ढोल बजना बहुत जरूरी था । उसी बात पर उसकी और जस्सी की जिन्दगी निर्भर करती थी । जस्सी जो चक्रवाती बवंडर में यहाँ से दूर निराधार लटकी हुयी थी ।
मगर बूङा भी अपनी जगह सही कह रहा था । सुख और दुख का असली भाव कृतिम रूप से पैदा करना संभव ही नहीं था । वो भी तब जब अभी अभी वह उस स्थिति से उबरा हो । उसने एक निगाह खुले आसमान की तरफ़ डाली । क्या टाइम हो रहा था । इसका भी अन्दाज नही हो पा रहा था । कितनी देर हो चुकी थी । इस बात को लेकर भी वह असमंजस में था । उसे जल्दी ही कोई निर्णय लेना था । और अब इसके लिये एक ही उपाय बचा था ।
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