RE: Kamvasna दोहरी ज़िंदगी
पहले-पहले ही दिन एक मज़हिया वाक़्या हुआ। मैं अलिफ़ नंगी हालत में हस्बे-आदत सिर्फ़ ऊँची पेन्सिल हील के सैंडल पहने अस्तबल में कुल्दीप और अनिल के साथ मौजूद थी। शराब और हवस के नशे में मैं काफ़ी देर से एक घोड़े का मुश्तैल लौड़ा सहलाते और चाटते हुए और उसकी इखराज़ होती मज़ी के मुनफ़रिद ज़ायक़े का मज़ा लेने में मशगूल थी कि अचानक उसके लौड़े ने झटका मारा और ग़ैर-मुतवक्का उस काले अज़ीम लौड़े ने मनी की तेज़ धार मेरे चेहरे ज़ोर से दाग दी और मेरा तमाम जिस्म घोड़े की मनी से सन गया। दोनों लड़के हंस-हंस के पागल हो गये लेकिन मुझे इसमें बेहद मज़ा आया क्योंकि घोड़े की मनी की मुख्तलीफ़ खुश्बू और ज़ायका बेहद ज़बरदस्त और लज़ीज़ थे।
खैर कुछ ही दिनों में मैंने उन लड़कों की मदद से एक छोटे से गद्देदार बेंच का इंतज़ाम कर लिया जिसपे उन घोड़ों के नीचे लेट कर मैं उनके लौड़ों को चूत में ठूँस कर चुदाई का बे-इंतेहा मज़ा लेती हूँ। हालाँकी घोड़ों का लंड फैल कर डेढ़-पौने दो फुट लंबा हो जाता है लेकिन मैं उसकी करीब तीन इंच मोटाई की वजह से मुश्किल से आधा लंड ही चूत में ले पाती हूँ और चूसते वक़्त मुँह में भी उसका महज़ सिरा ही ले पाती हूँ। घोड़े के लंड की जसामत के अलावा घोड़े से चुदाई की खास बात है कि उसके लौड़े से मनी इखराज़ होने के ठीक पहले उसका सुपाड़ा चूत में घंटे की तरह फैल जाता है और फिर मनी का इखराज़ इस कदर ज़बरदस्त प्रेशर से सैलाब की तरह होता है कि ऐसा महसूस होता है कि मनी मेरे हलक़ तक पहुँच कर मेरी मस्ती भरी चींखों के साथ मेरे मुँह से बाहर निकल जायेगी।
घोड़ों से चुदाई का सिलसिला शुरू होने के कुछ ही दिनों में मैंने गधों से भी चुदना शुरू कर दिया। हुआ यूँ कि एक शाम को मैं सन्जय के खेत पे उसके और सुरिंदर के साथ ऐयाशी कर रही थी कि मुझे घोड़े से चुदाने की बेहद तलब होने लगी। वैसे तो पहले भी दो-तीन दफ़ा कुल्दीप की ना-मौजूदगी में उसे फोन करके उसके फार्म-हाऊज़ के नौकर को दो-तीन घंटों के लिये वहाँ से फ़ारिग करवा कर घोड़ों से चुदने के मक़्सद से बाकी तीनों लड़कों में से किसी भी एक के साथ जा चुकी थी लेकिन उस दिन फार्म-हाऊज़ पे कुल्दीप के घर के लोगों की मौजूदगी की वजह से ये मुमकिन नहीं था। अल्लाह़ तआला को शायद मुझ पे तरस आ गया और नसीब से खेत में ही एक तरफ़ मुझे एक आवारा गधा नज़र आया। मैंने दोनों लड़कों से अपनी हसरत ज़ाहिर की तो वो दोनों उस गधे को फुसला कर ले आये और कमरे के बाहर मोटर के करीब बाँध दिया। एहतियात के तौर पे उसकी पिछली टाँगें भी बाँध दीं ताकि वो उछले नहीं। गधे ने ज़रा भी मुश्किल पेश नहीं की और मेरे सहलाने और चूमने-चाटने से फौरन उसका लौड़ा मुश्तैल होकर बड़ा होते हुए करीब ज़मीन तक लटक गया।
गौर तलब बात ये थी कि घोड़े से आधे कद का जानवर होने के बावजूद गधे का लौड़ा घोड़े के लौड़े से ज्यादा मोटा और कमज़ कम आधा फूट ज्यादा लंबा था। इतना ही नहीं बल्कि गधे के टट्टे तो घोड़े के टट्टों के निस्बतन बेहद बड़े थे। खैर गधे का लंड अपनी चूत में लेने के लिये मुझे किसी बेंच की जरूरत नहीं पड़ी। भूसे के बंडल पे उसके नीचे आसानी बैठ कर से मैंने उसका लंड अपनी चूत में घुसा लिया। शराब और शहूत की बेखुदी में महज हाइ पेंसिल हील के सैंडल पहने मैं फ़क़त नंगी उस खेत में खुले आसमान के नीचे बिल्कुल मस्त होकर अपने चूतड़ आगे-पीछे ठेलते हुए वहशियाना चुदाई का मज़ा लेने लगी। जैसे-जैसे मेरी शहूत परवान चढ़ने लगी तो मैंने गधे का करीब आधा लौड़ा अपनी चूत के आखिर तक घुसेड़ लिया और जल्द ही मेरी चूत पानी छोड़ने लगी।
सिसकते हुए मैंने अपनी चूत उसके मोटे लौड़े पे जितना मुमकिन था उतनी तेज़ी से ठेलनी ज़ारी रखी। गधे का लौड़ा भी पहले से ज्यादा सख्त और फुला हुआ महसूस होने लगा था और इस दौरान मैं जोर-जोर कराहते और चींखते हुए तीन-चार दफ़ा ज़बरदस्त तरीके से झड़ी। फिर गधे के लंड का सुपाड़ा मेरी चूत के अंदर अचानक घंटे की तरह फूल गया तो घोड़ों के साथ चुदाई के तजुर्बे से मैं समझ गयी कि अब वो गधा अपनी मनी से मेरी चूत भरने के करीब है। मैंने अपनी सैंडल के तलवे और ऊँची पतली हील ज़ोर से ज़मीन में गड़ाते हुए गधे के लंड को जोर से अपने हाथों में कस लिया ताकि उसकी मनी की पिचकारी के धक्के से पीछे छूट कर ना गिर पड़ूँ। उसका लौड़ा पहले ही मेरी चूत के आखिर तक घुसा हुआ था और अब मनी की ज़ोरदार पिचकारियाँ छूटने के सबब से चूत में प्रेशर और भी ज्यादा बढ़ने लगा और मनी की बड़ी मिक़दार के लिये मेरी चूत और फैल गयी। मैं भी अपनी बच्चे-दानी पे मनी की ज़ोरदार पिचकारियाँ सहती हुई लुत्फ़-अंदोज़ी में ज़ोर से चींखते हुए पुर-जोर झड़ने लगी। मेरी लबालब भरी चूत में से उसका लौड़ा बाहर निकलते ही चूत में से मनी भी ज़ोर-ज़ोर से फूट-फूट कर बाहर बहने लगी और मेरी दोनों टाँगों और पैर और सैंडल गधे की मनी से बुरी तरह तरबतर हो गये। मैं भी इस दौरान ज़ायके के लिये उसकी मनी अपने चुल्लू में भर कर लज़्ज़त से पी गयी।
हालाँकी गधे और घोड़े की चुदाई में कोई खास फ़र्क़ तो नहीं था लेकिन मुझे इस बात की बेहद खुशी थी कि उस दिन मेरी बदकारियों और बेराहरवियों में एक और नये जानवर के लंड से चुदवाने का हसीन तमगा जुड़ गया था। मुस्तकबिल में भी उस गधे के साथ चुदाई के मज़े ले सकूँ इसलिये मेरे कहने पर उस आवारा गधे को संजय़ ने अपने खेत पे ही रख लिया जहाँ खेत पे काम करने वाले मजदूर उसकी थोड़ी देखभाल के साथ-साथ खाने के लिये चारा वगैरह भी डाल देते हैं। मेरा जब भी दिल करता है तो हफ़्ते दो-हफ़्ते में ज़रूर वहाँ जा कर गधे से चुदाई का मज़ा ले लेती हूँ।
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