RE: Desi Porn Kahani अनोखा सफर
रात को काफी देर तक मैं बिस्तर पे उतल्था पुतल्था रहा पर नींद आँखों से कोसो दूर थी | मैंने उठ कर कुटिया की सारी मशालें बुझा दी जिससे कुटिया में अँधेरा हो गया बस बाहर जल रही मशालो की रोशिनी से कुटिया में हल्का हल्का दिखाई पड रहा था | मैं अब अँधेरे में सोने की कोशिश करने लगा कुछ देर बाद मेरी आँखे नींद से बोझिल होने लगी तभी मुझे लगा कि जैसे किसी ने कुटिया में प्रवेश किया हो | मैं सतर्क हो गया तभी एक साया मेरे पास आया और मेरे बिस्तर पे पैर के पास बैठ गया | मैंने भी कोई हरकत नहीं की और उसकी अगली हरकत का इंतज़ार करने लगा | मुझे लगा की कुछ देर तक उस साए ने ये अंदाजा लगाने की कोशिश की की मैं जाग रहा हूँ या सो रहा हु पर शायद अँधेरे के कारण उसे कुछ पता नहीं चल पाया | फिर वो आगे बढ़ा और मेरी कमर पे बंधा वस्त्र खोलने लगा |अब मुझे यकीन हो गया की ये रूपवती हैं जो शयद अपनी चूत की खुजली शांत करने यहाँ पे आई हैं | मैंने अभी भी उसे ये एहसास नहीं होने दिया की मैं जाग रहा हु और उसे आगे बढ़ने दिया | वो अब मेरे लंड को अपने हाँथ में लेके सहलाने लगी | मेरा लंड भी उसके सहलाने के कारण खड़ा होने लगा | फिर रूपवती ने मेरा लंड अपने मुह में ले लिया और चूसने लगी | उसने एक झटके में पूरा सुपाड़ा मुह में ले लिया और चुप्पे लगाने लगी | उसकी इस हरकत से मेरी सिसकी निकल गयी और वो हडबडा के मुझसे दूर होने लगी | मैंने उसका हाँथ पकड़ लिया और उससे बोला " रूपवती जी डरिये मत आगे बढिए, मैंने तो पहले ही कहा था की ज़रूरत पड़े तो याद करियेगा |"
वो अब भी शायद थोड़ा झिझक रही थी तो मैने उसे अपने ऊपर खींच लिया और उसके अधरों को अपने मुह में लेके चूसने लगा | उसके बड़े बड़े वक्ष मेरे सीने से रगड़ने लगे और मेरे लंड में उफान पैदा करने लगे | मैं उसकी एक चुचक को अपनी उंगलियों से मसलने लगा | रूपवती मेरी इस बात से पूरी तरह मचल गयी और मेरे होंठो पे टूट पड़ी | अब हम दोनों काम खुमारी में एकदम खो गए और एक दुसरे के अंगों को चूमने काटने लगे | कुछ ही देर में मुझे लगा की अब बर्दाश्त नहीं होगा तो मैं अपना लंड उसकी चूत में घुसाने की कोशिश करने लगा पर मेरा लंड बार बार उसकी गीली चूत से फिसल रहा था | रूपवती ने अपने हाथ से पकडके मेरा लंड अपनी चूत पे रखा और उसपे बैठती चली गयी | मेरा लंड उसकी गीली चूत में फिसलता चला गया और कुछ ही देर में मेरा लंड उसकी चूत की गहरायिओं में गोते लगाने लगा| रूपवती अपनी गांड उठा के मेरे लंड पे उठक बैठक करने लगी और मैं भी उसकी बड़ी बड़ी गांड को अपने हाथो में पकड़ के मसलने लगा | कुछ ही देर में पूरी कुटिया में हमारी सिस्कारिया और लंड चूत की फच फच गूंजने लगी |
थोड़ी देर तक ऐसे ही चुदाई होती रही फिर मैंने उसे घोड़ी बना दिया | उसके पीछे आके मैनेअपना लंड उसकी चूत पे लगाया और एक ही झटके में घुसा दिया | रूपवती केमुह से आह निकल गयी और मैं अपनी पूरी ताकत लगा के लंड उसकी चूत में अन्दर बाहर करने लगा | उसकी थिरकती हुयी गांड मेरे ह्रदय और अंडकोषो में भी थिरकन पैदा करने लगी | कुछ ही देर में मेरे वीर्य ने रूपवती की चूत को भर दिया|
हम दोनों निढाल होके बिस्तर पे लेट गए | कुछ देर बाद रूपवती उठके वहां से जाने लगी | मैंने उससे कहा " रूपवती जी यहीं रुक जाइये "
उसने कहा " मैं रूपवती नहीं हूँ |"
अब मैं चौंक के बिस्तर पे उठ बैठा और उसका चेहरा पहचानने की कोशिश करने लगा पर अँधेरे में कुछ दिखाई नहीं पड़ा | मैंने उससे पुछा " तब आप कौन हैं?"
उसने कहा " महराज आप मुझे बस अपना शुभचिंतक समझिये ,सही समय आने पर आपको पता चल जाएगा की मैं कौन हूँ | बस आप सतर्क रहिये और कपाला और चरक पर विश्वास मत करियेगा | अब मैं चलती हूँ |"
ये कहकर वो कुटिया से चली गयी | मैं बिस्तर पे लेटा ये सोचता रहा की आखिर वो कौन थी और पता नहीं कब मुझे नींद आ गयी |
कुछ दिन तक कपाला और चरक काबिले में नहीं दिखाई दिए शयद वो विशाला की सेना पर गुर्रिल्ला युद्ध की तैयारी में व्यस्त थे | मेरे जख्म भी अब ठीक हो चले थे मैं अब अपने सारे काम खुद ही कर पा रहा था |मेरे पास भी कुछ करने को था नहीं था तो मैं भी आस पास के जंगलो में घुमने निकल जाया करता था | ऐसे ही एक दिन मैं जंगलों में घुमने निकला था चलते चलते मैं काबिले से काफी दूर निकल आया था मैंने एक चट्टान बे बैठ कर कुछ देर सुस्ताने की सोची | मैं चट्टान पे बैठ कर अपनी हालत के बारे में सोचने लगा | मुझे यहाँ आये हुए पता नहीं कितने दिन हो गए थे मैं एक सैनिक से कबीलेवाला बन चुका था | मेरी दुनिया में पता नहीं क्या हो रहा था पर यहाँ पर बहुत कुछ हो रहा था | पहला की विशाला विशाखा और त्रिशाला की माँ रजनी मेरे पीछे पड़ी हुई थी और इधर कपाला और चरक भी अपना काम निकलने का इंतज़ार कर रहे थे उसके बाद वो मुझे ठिकाने लगा देते | मेरे लिए आगे कुआँ पीछे खायी वाली स्थिति थी और मुझे इस में से निकलने का रास्ता नहीं सूझ रहा था | तभी मुझे पीछे सुखी टहनियां टूटने की आवाज़ सुने दी मैं चौंक के पीछे घूमा तो देखा कपाला की बेटी रूपम खड़ी थी | मेरे हाथ में कटार थी और चेहरे पे आक्रामक भाव थे जिसे देखके रूपम सहम सी गयी|
मैंने खुद को संयमित करते हुए पुछा " तुम यहाँ क्या कर रही हो ?"
वो भी थोड़ा सामान्य होते हुए बोली "क्षमा करे महाराज मेरा इरादा आपको चौंकाने का नहीं था बस मैं आपसे कुछ बताना चाह्ती थी तो आपके पीछे पीछे यहाँ चली आई |"
मैंने उससे कड़े स्वर में पुछा " ऐसा क्या था जो तुम मुझे कबीले में नहीं बता सकती थी ?"
रूपम " महाराज बात ही कुछ ऐसी थी जो मैं कबीले में आपसे नहीं कर सकती थी |"
मैंने उससे पुछा " ऐसी कौनसी बात थी ?"
रूपम " महराज मैं आपके लिए किसी का सन्देश लेके आई हूँ "
मैंने अब उससे कौतुहल से पुछा " कौन सा सन्देश और कैसा सन्देश ?"
रूपम " महराज आपका कोई शुभचिंतक आपसे मिलना चाहता है "
मैं अब बिलकुल भी नहीं समझ पा रहा था मैंने फिर भी पुछा " कौन शुभचिन्तक ?"
रूपम " महराज ये आपको आज रात पता चलेगा आज रात यहीं आप अपने शुभचिन्तक का इंतज़ार करियेगा | अब मैं चलती हु प्रणाम |"
ये कह के रूपम वहां से चली गयी | मैं अब ये सोचने लगा की अब मेरा कौन शुभचिन्तक हो गया | बहुत देर तक दिमाग पे जोर देने के बाद जब कुछ समझ नहीं आया तो मैंने इंतज़ार करने का सोचा | थोड़ी ही देर में शाम ढलने वाली थी और रात होने वाली थी मैं वही बैठ कर अपने शुभचिंतक का इंतज़ार करने लगा |
धीरे धीरे रात भी घिर आयी पूरे जंगल में घुप अँधेरा और शांति छाई हुई थी । बस सहारे के लिए चाँद की मद्धम रोशिनी और कभी कभार आती झींगुर की आवाज ही थी। मेरे दिल में इस बात की जिज्ञासा हिलोरे मार रही थी की आखिर ये मेरा शुभचिंतक कौन हो सकता है। इसी उधेड़बुन में समय बीत रहा था |
कुछ देर बाद थोड़ी दूर से एक रोशिनी मेरे तरफ बढ़ती दिखाई दी। मैं भी अपनी कटार निकाल सतर्क हो गया और उसके पास आने का इंतज़ार करने लगा। धीरे धीरे वो रोशिनी मशाल में तब्दील हो गयी जिसकी ओट में कोई महिला मेरे पास आ रही थी। अब मैं और उत्सुक्ता से उसका इंतज़ार करने लगा। जब वो मेरे पास पहूँची तो मैं ये देख के स्तब्ध रह गया की ये देवबाला थी। उसे देख के पुरानी सारी यादें ताज़ा हो गयी की कैसे उसने देवसेना का वध किया था और कैसे मुझे त्रिशाला से बचाया था। मेरे ह्रदय में भावनाओं का एक द्वन्द उठ खड़ा हुआ एक तरफ मैं उसपे गुस्सा था की उसने देवसेना का वध किया दूसरी तरफ मैं कृतज्ञ था कि उसने मेरी जान बचायी थी । वो मेरे चेहरे पे उमड़ते भावनायों को समझ गयी और बोली " महाराज मुझे पता है कि आपके ह्रदय में मेरे लिए बहुत से सवाल होंगे इसीलिए मैं आपसे मिलने चाहती थी ।"
ये कह कर वो एक चट्टान से टेक लगा के बैठ गयी उसके पेट में अब उभार आना शुरू हो गया था । वो बोली " महाराज आप ये जानना चाहते होंगे की मैंने देवसेना को क्यु मारा ?"
मैंने बिना कुछ कहे हाँ में सर हिला दिया ।
देवबाला " महाराज आपकी कृपा से मैं और देवसेना एक साथ ही माँ बन गयी थी पर पुजारन देवसेना को इससे डर लग गया । उन्हें लगा की हो सकता है इससे उनके देवी बनने में मैं बाधा बन जाऊं इसलिए वो चुपके से मुझे रास्ते से हटवाना चाहती थी । ये बात मुझे पता चल गयी तो मेरे पास उनको अपने रास्ते से हटाने के अलावा कोई और रास्ता नहीं था "
मैंने उससे कहा " ये बात कैसे साबित हो सकती है जबकि पुजारन देवसेना अपना पक्ष रखने को जीवित ही नहीं हैं । पर तुमने मुझे क्यों बचाया ?"
देवबाला " महाराज आप माने या न माने पर यही सच है । खैर जब मुझे विशाला और त्रिशाला ने अपनी योजना बतायी की वो आपको ख़त्म करके खुद कबीलों का सरदार बनना चाहती हैं तो मैं भी उनकी इस अयोजन में शामिल हो गयी क्योंकि मैं आपको उनसे बचाना चाहती थी।"
मैंने उससे पूछा " आखिर क्यों तुमने मुझे क्यों बचाया ?"
देवबाला " महाराज आपने मुझे वो सुख दिया है जिसकी मैं कल्पना भी नहीं कर सकती थी । आपने मुझे मातृत्व सुख प्रदान किया है जिसके लिए मैं आपकी जीवन भर आभारी रहूंगी ।"
मैंने उससे पूछा " अब तुम मुझसे क्या चाहती हो ?"
देवबाला " आपके जीवन की सुरक्षा ।"
मैंने चौंकते हुए पूछा " मतलब ?"
देवबाला " महाराज मेरी जानकारी के अनुसार कपाला ने विशाला की सेना पर हमले करना शुरू कर दिया है जिसमे उसे काफी जान और माल का नुक्सान हुआ है। विशाला ने कल कपाला को संधि वार्ता के लिए बुलाया है । मुझे अंदेशा है कि कल की संधि वार्ता में कपाला और विशाला में संधि हो जायेगी और उसके बाद आपकी जान खतरे में होगी ।"
मैंने देवबाला से पूछा " तुम इतने यकीन से कैसे कह सकती हो की संधि वार्ता हो जायेगी ?"
देवबाला " महाराज आप कपाला की स्थिति तो देख ही रहे हैं कि वो विशाला की सेना से सीधे युद्ध की स्थिति ने नहीं है और विशाला की सेना भी कपाला के हमलों से पहले की तुलना में काफी कम हो गयी है। अब विशाला अपना और नुक्सान नहीं नहीं चाहेगी इसलिए वो कपाला को ये प्रस्ताव देगी की कपाला उसे कबीलो का सरदार मान ले जिसके बदले वो कपाला को अपनी संयुक्त सेना का सेनापति बन देगी। मुझे लगता है कि कपाला को ये प्रस्ताव मंजूर होगा। उसके बाद मुझे लगता है कि विशाला फिर आपको जीवित नहीं छोड़ेगी।"
मैंने देवबाला से पूछा " तुमको ये सब बातें कैसे पता हैं ?"
देवबाला ने हँसते हुए कहा " क्योंकि विशाला को ऐसा करने का सुझाव मैंने ही दिया है ।"
मेरे चौंकते हुए पूछा " तुमने आखिर क्यों ?"
देवबाला " महाराज मुझे उनका पूरी योजना जाननी थी ताकि मैं आपको बचा सकू ।"
मैंने पूछा " अब मुझे क्या करना है "
देवबाला " महाराज आप क्या करना चाहते हैं ?"
मैं " मुझे अब सिर्फ बदला लेना है विशाखा विशाला और कपाला से ।"
देवबाला " कपाला से भी ?"
मैं " हाँ क्योंकि उसने मेरी सुरक्षा का वचन दिया था पर अब वो मुझे धोखा दे रहा है ।"
देवबाला " महाराज आप जैसा चाहते हैं वैसा ही होगा "
मैं " पर कैसे विशाला और कपाला की संयुक्त सेना को मैं कैसे हरा पाउँगा ।"
देवबाला " महाराज कुछ अन्य कबीलों के सरदार मेरे संपर्क में हैं और वो कपाला और विशाला को हराने में हमारी मदद करेंगे । पर एक शर्त है।"
मैंने पूछा " क्या शर्त ?"
देवबाला " आपको अपना कबीलों के सरदार का पद छोड़ना होगा ।"
मैं " मुझे पद से कोई मतलब नहीं है बस मेरा बदला पूरा होना चाहिए।"
देवबाला " फिर ठीक है महाराज कल मैं आपको संपर्क करुँगी रूपम आपके पास आएगी आप उसके साथ क़बीले से निकल आईएगा। मैं बाकी कबीलों की सेना के साथ आपका इंतज़ार करुँगी। जब कपाला और विशाला की सेना लौटेगी तो हम उनका इंतेज़ार करेंगे।"
मैंने देवबाला से पूछा " रूपम पे तुम्हे विश्वास है वो कपाला की बेटी है "
देवबाला हँसते हुए " महाराज आप ये बात कह रहे हैं आपतो उसे अच्छे से जानते हैं "
मैंने चौंकते हुए पूछा " वो कैसे "
देवबाला " उस रात जिसे आप रूपवती समझ रहे थे वो रूपम ही थी। पर आपको घबराने की कोई जरुरत नहीं है वो भी कपाला से बहुत नफरत करती है इसलिए उसपर हम विश्वास कर सकते हैं।ठीक है अब मैं चलती हूँ आप कल रूपम का इंतज़ार करियेगा। प्रणाम महाराज"
ये कहकर देवबाला वहां से चली गयी और मैं भी क़बीले को लौट आया।
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