RE: Desi Sex Kahani दिल दोस्ती और दारू
लंच के टाइम, कॅंटीन मे हम लोग बैठकर टेबल तोड़ रहे थे कि लौन्डे अचानक किसी कार्ड गेम की बात करने लगे और आपस मे एक दूसरे से लड़ने लगे....मेरा मूड कुच्छ डाउन था इसलिए मैने उनकी लड़ाई मे इंटर्फियर नही किया और मन मे सोचा कि"लड़ने-मरने दो ,सालो को...एक-दो टपक जाएँगे तब बीच मे बोलूँगा..."
लेकिन एक-दो के मरने से पहले ही मुझे उनकी बीच की लड़ाई मे कूदना पड़ा, जिसका रीज़न ये था कि वो साले जानवरो की तरह एक-दूसरे पर चिल्लाने लगे थे.....
"सबको मालूम है कि तुम लोग इंसान नही जानवर हो,लेकिन फिर भी थोड़ी शांति बनाए रखो...."
"लवडा तू ही बता अरमान कि, टेक्सस होल्ड'एम गेम कैसे खेलते है..."सुलभ ने ज़ोर से सबके सामने कहा...
अब तो बीसी इज़्ज़त पर बन गयी ,क्यूंकी अब कॅंटीन मे मौज़ूद लगभग हर लड़का-लड़की मेरे तरफ देखने लगे थे....
"अबे ये...ये तो वही गेम है, जो कसीनो राइल मे जेम्ज़ बॉन्ड ने खेला था...बहुत ही ईज़ी है, रूम मे पत्ते लेकर आना, दो मिनिट मे सिखा दूँगा...."
"तुझे आता है वो गेम"अरुण ने पुछा...
"बेटा,समझ के क्या रखा है....लास वेगास मे पैदा हुआ हूँ मैं और जब तू दूध की बोतल मुँह से लगाता था ना तब मैं एक हाथ मे पत्ते और मुँह मे बीड़ी दबाए लास वेगास के कसीनोस पर राज़ किया करता था....जिसके बाद वहाँ के लोग मुझसे इतने ज़्यादा प्रभावित हुए कि मुझे नोबल प्राइज़ देने लगे थे...वो तो मेरा मूड नही था नोबल प्राइज़ लेने का ,इसलिए अपुन ने मना कर दिया...."
"चलो बे, चलो यहाँ से...वरना कुच्छ देर और यहाँ रुके तो ये फिर बोलेगा कि ग्रॅविटी की खोज इसी ने किया था...."अरुण ने सबको उठाया और वहाँ से चलता बना....
.
अरुण और बाकी सबके जाने के बाद मैं कुच्छ देर तक वैसे ही टेबल पर चुप-चाप बैठा रहा कि कही ये लोग वापस ना आ जाए और जब मुझे कन्फर्म हो गया कि वो लोग अब इस जनम मे वापस नही आने वाले तो मैने कॅंटीन वाले की तरफ हाथ दिखाकर कहा...
"चार समोसे भेजवा दे इधर..."
.
"हाई, हाउ आर यू..."समोसे और मेरे बीच के स्ट्रॉंग बॉन्ड को तोड़ते हुए एक आवाज़ मेरे कान मे गूँजी और मैने एक दम से उपर देखा....
"एश....क्या लेने आई है, बाहर तो बहुत भाव खा रही थी...मुझे देखा तक नही..."
"कब...कहाँ और कैसे...."
"अब ज़्यादा मत बन..."
"एक मिनिट,मुझे याद करने दो..."बोलते हुए एश अपने दिमाग़ मे ज़ोर डालने लगी....
और उसकी इस हरकत से मैं खुद हैरान रह गया कि 'क्या सच मे इसने मुझे नही देखा था ,या फिर मेरे सामने नाटक कर रही है....'
"मुझे तो कुच्छ भी याद नही,अरमान..."
"रुक...समोसा खा लूँ,फिर तुझे फ्लॅशबॅक मे ले चलता हूँ...तुझे पता नही होगा,पर मैं एक इंजिनियर होने के साथ-साथ एक साइकिट्रिस्ट भी हूँ....."
"हां,याद आ गया...आज सुबह तुम मुझे कॉलेज के बाहर दिखे थे...उस वक़्त मेरा मूड खराब था और मैं किसी से बात नही करना चाहती थी..."
"तो फिर ,इस वक़्त मेरा मूड खराब है और मैं किसी से बात नही करना चाहता."(एल.एच.स.=आर.एच.स. -हेन्स प्रूव्ड)
"कामन अरमान, आइ लव यू...."
"हे भगवान,क्यूँ हूँ मैं इतना दयालु....क्यूँ..."उपर कॅंटीन की छत पर भगवान को ढूंढते हुए मैं एश से बोला"जा माफ़ किया, लेकिन अगली बार से मुझे कभी ऐसे इग्नोर मत करना...क्यूंकी ये हरकत सीधे मेरे दिल मे लगती है, वैसे ये बता इतने दिनो से तू किधर मयाऊ-मयाऊ कर रही थी..."
"वो सब छोड़ो, आइ हॅव आ गुड न्यूज़ फॉर यू....गौतम डाइड..."खुशी से एश बोली.
ये सुनते ही जैसे मेरे शरीर से मेरी निकल गयी और मैं एक बेजान सा प्राणी हूँ....मुझे ऐसा लगा,क्यूंकी मैं जिस पोज़िशन मे पहले था उसी मे किसी स्टॅच्यू की तरह बैठा बिना पालक झपकाए एश की तरफ देखे जा रहा था....
"दिल पे मत लो, आइ वाज़ जस्ट किडिंग..."
"ये जोक था क्या ,कुच्छ तो लिहाज किया कर.ऐसे जोक तो मैं भी नही मारता...."
"ओके..."अचानक से सीरीयस होते हुए एश पीछे मूडी और दो कोल्ड ड्रिंक का ऑर्डर दिया....
"दो कोल्ड ड्रिंक कौन पिएगा..."एश के ऑर्डर देने के तुरंत बाद ही मैं बोला....
"एक मेरे लिए और एक मेरे भूत के लिए....अरे कुच्छ तो दिमाग़ लगाया करो,जब दो कोल्ड ड्रिंक ऑर्डर किए है तो एक तुम्हारे लिए होगा और एक मेरे लिए ही होगा ना...तुम ना,मुझसे ऐसे सिल्ली क्वेस्चन मत पुछा करो...."
"मैं कोल्ड ड्रिंक नही पीता, कोल्ड ड्रिंक पीने से सेहत खराब होती है.तू भी मत पिया कर..."
"अच्छा तो फिर इतने सारे लोग जो यहाँ बैठकर कोल्ड ड्रिंक पी रहे है ,वो बेवकूफ़ है क्या..."मुझपर आँख गढ़ाते हुए एश ने पुछा...
"ये सब है ही बेवकूफ़...इनमे से तू किसी एक को भी ,जो मेरी तरह होशियार हो...बता दे...."मैं कहाँ पीछे हटने वालो मे से था ,मैने भी आँख गढ़ाते हुए कहा...
"सो तो है...तुम्हारे जैसा इनमे कोई है...."
"अरे गजब,पहली बार मेरे सिवा किसी दूसरे ने मेरी तारीफ की है इसलिए तुझे एक अड्वाइज़ दे रहा हूँ...तू ना ये कोल्ड-ड्रिंक..वोल्ड-ड्रिंक मत पिया कर....दारू पिया कर...हेल्त एक दम सॉलिड बनी रहती है...अब मुझे ही देख ले"अपने बाइसेप्स की तरफ इशारा करते हुए मैने कहा"तू कहे तो जुगाड़ करू...हो जाए दो-दो पेग..."
"कर दो जुगाड़..."
"सच बोल,जैसे फिर चखने का जुगाड़ करूँ "
"मैं कभी झूठ नही बोलती..."
"मेरे साथ रहने का असर तुझपर होने लगा है....और बता कहाँ थी इतने दिन..."
मेरे ये पुछने तक कॅंटीन वाले ने स्ट्रॉ डालकर दो कोल्ड ड्रिंक की बॉटल टेबल पर रख दिया था और दोनो बॉटल मे एक-एक स्ट्रॉ देखकर शुरू मे मेरा दिल किया कि हम दोनो थोड़ा रोमॅंटिक बनते हुए एक ही कोल्ड ड्रिंक की बॉटल मे स्ट्रॉ डालकर पीते है...लेकिन फिर मुझे ये महा-बोरिंग लगा और मैने ये ख़याल अपने दिल से निकाल दिया.....
"वो एक रिलेटिव के यहाँ शादी थी तो वही गयी थी और अनफॉर्चुनेट्ली मेरा मोबाइल घर मे ही छूट गया था...इसलिए तुम्हारे किसी भी कॉल या मेस्सेज का रिप्लाइ नही कर पाई...."
"तो आने के बाद रिप्लाइ कर देती,मैं कौन सा तेरे सर पर बंदूक ताने खड़ा था...."(जब मोबाइल घर पर छूट गया था तो 9-10 दिन तक कैसे ऑन रह सकता है...झूठी )
"यू नो, ये सब मुझे बहुत बोरिंग लगता है कि कही भी जाओ तो बताकर जाओ और फिर जब वापस आ जाओ ,तब भी बताओ....आइ...आइ हेट दिस..."
"तू तो सच मच मेरे टाइप की होते जा रही है...."
"मैं जानती हूँ कि तुम इस वक़्त क्या सोच रहे होगे....कहो तो बताओ.आज कल मेरा सिक्स्त सेन्स भी काम करने लगा है..."
"अच्छा....तू तो झटके पे झटके दिए जा रही है..चल बता..."
"तुम ये सोच रहे हो कि मैं तुमसे सच मे प्यार करती हूँ या नही...."कोल्ड ड्रिंक पीना बंद करके मुझे फिर से घूरते हुए एश बोली....
"हां...मेरा मतलब ना...मतलब हां.....एक मिनिट,मुझे पहले सोचने दो कि कुच्छ देर पहले मैं क्या सोच रहा था....."थोड़े देर चुप्पी धारण करने के बाद मैने कहा"एक दम करेक्ट है, मैं यहिच सोच रेला था...तेरा सिक्स्त सेन्स तो एक दम फाडू काम करता है बीड़ू..."
"मतलब तुम्हे शक़ है मुझपर..."
"हल्का-हल्का....मतलब एक दम थोड़ा सा शक़ है, नेग्लिजिबल के बराबर..."
"आइ लव यू सो मच, अरमान...."मेरी आँखो मे आँखे डालते हुए एश बोली....
" "मेरे गाल लाल हो गये और ज़ुबान बंद हो गयी...
वैसे तो मैं कोई शर्मिला लौंडा नही था ,लेकिन एश के मामले मे मालूम नही दुनिया के किस कोने से शरमीला पन मेरे अंदर घुस जाता था...मतलब ऐसे सिचुयेशन मे मेरी सारी अकड़,मेरा सारा जोश धरा का धरा रह जाता था.अब इसी सिचुयेशन को ले लो...मेरा बहुत दिल कर रहा था कि एश को स्मूच कर लू या फिर कॉम्प्लेमेंट्री मे एक चुम्मि के लिए उसे कहूँ...लेकिन मेरी हिम्मत ही नही हुई ये सब कहने की....लवडा ,उस वक़्त मैं इतना घबरा रहा था जितना की मैं तब ना घबराऊ जब मैं बाइ चान्स अर्त की ऑरबिट से नीचे गिरु....
.
एश और मेरे बीच मे सब कुच्छ बढ़िया ही चल रहा था,लेकिन फिर भी हम दोनो एक आम कपल की तरह नही थे....हम दोनो एक-दूसरे से सिर्फ़ कॉलेज मे मिलते और फिर अचानक ही किसी टॉपिक पर बहस करने लगते....जीतता तो हर बार मैं ही था,लेकिन कभी-कभार मैं जान-बूझकर हार भी जाता था और मुझे हराने के बाद एश खुशी से ऐसे उच्छलती जैसे ओलिंपिक मे 10-12 गोल्ड मेडल जीत लिए हो....एश से ना तो मैने कभी बाहर चलने के लिए पुछा और ना ही कभी उसने मुझे कहा...ये काम हम दोनो को ही बोरिंग लगता था.हमारे कॉलेज से कुछ किलोमेटेर की दूरी पर एक धांसु पार्क था,वैसे पार्क तो नॉर्मल ही था,लेकिन वहाँ का महॉल धांसु रहता था...धांसु महॉल मतलब वहाँ जब भी जाओ दो दर्जन प्रेमी जोड़े लीप-लॉक...चूत,दूध,गान्ड दबाते हुए दिख ही जाते थे और ताज़्ज़ूब की बात ये है कि इन्हे आज तक किसी ने रोका भी नही था और उपर से पार्क वालो ने दो-तीन गार्ड वहाँ उनकी हरकत मे कोई रुकावट ना डाले ,इसलिए लगा रखे थे....मतलब कि कोई आपको आकर कहे की"तू बेफिकर होकर सार्वजनिक रूप से इसको चोद,दूध दबा...गान्ड मसल डाल इसकी...मैं देखता हूँ तुझे कौन डिस्टर्ब करता है...."
यही सब वजह थी कि मेरा एश के साथ कही जाने का मूड नही होता था और एश को कुच्छ किलोमेटेर दूर किसी पार्क मे ले जाना तो दूर की बात मैं कभी उसके साथ कॉलेज के गार्डन तक मे नही बैठा और वैसे भी किसी पहुँचे हुए व्यंगकार ने कहा है कि "प्यार दर्शन का विषय है प्रदर्शन का नही" उपर से जहाँ दिव्या जैसी चुगलखोर लौंडिया हो,वहाँ थोड़ा दब कर ही रहना पड़ता है...
एश मेरे कॉलेज लाइफ का एकलौता ऐसा सब्जेक्ट था ,जिसके बारे मे मैने ज़्यादा फ्यूचर प्लान नही बनाए...एश के मुझे प्रपोज़ करने के बाद ही मुझे ये हवा तो लग चुकी थी, इसका अंत इतना सरल तो नही होगा.लेकिन फिर मैने एश के मामले को किस्मत पर छोड़ दिया की जो होगा बाद मे देखा जाएगा और अभी जैसा चल रहा है उसे वैसा ही चलने दिया जाए.....
मेरे उस 8थ सेमेस्टर मे सबसे भयानक पहलू जो था वो ना तो एश थी और ना ही यशवंत-महंत का गुप्त रूप से साथ-गत ..8थ सेमेस्टर का सबसे भयानक पहलू वो था ,जिसे मैं शुरुआत से ही बाए हाथ का खेल समझ रहा था यानी कि आराधना....
" अरमान सुन ना बे...एक काम था तुझसे...."
"चल हट टाइम नही है मेरे पास.तेरी माल आराधना से मिलने जा रहा हूँ..."अरुण की परवाह किए बिना मैं जिस स्पीड से सीढ़िया उतर रहा था ,उसी स्पीड से सीढ़िया उतर कर हॉस्टिल के मेन गेट की तरफ बढ़ा....
"अबे रुक..."मेरी तरफ दौड़ते हुए अरुण ने मुझे आवाज़ दी...
वैसे तो मुझे एक दोस्त होने के नाते रुक जाना चाहिए था,लेकिन पता नही मेरा क्या मूड हुआ जो मैं अचानक से दौड़ने लगा और मेरे पीछे अरुण भी दौड़ने लगा.....
"आजा लवडे, गान्ड मे दम है तो छु के दिखा...."आगे-आगे भागते हुए मैने कहा....
"तू बेटा ,रुक जा...नही तो जहाँ पाकडूँगा ना वही लंड थमाउन्गा...."
"आजा....फिर..."बोलकर मैं और तेज़ी से भागने लगा.....
उस दिन मैने अरुण को बहुत दौड़ाया...कभी हॉस्टिल के सामने वाली रोड पर तो कभी हॉस्टिल के पीछे वाली रोड पर और फिर झाड़ियो के बीच घुसकर कॉलेज के पीछे वाले गेट की तरफ मैं भागा....जहाँ से फर्स्ट एअर के लौन्डे रॅगिंग से बचने के लिए कॉलेज जाते थे...कॉलेज के उस पीछे वाले गेट के पास पहूचकर मैं रुका और एक जगह जहाँ अक्सर विभा खड़ी होकर फर्स्ट एअर के लड़को की गान्ड लाल करती थी,मैं वहाँ देखने लगा और मुझे वो सीन याद आया,जब मैने विभा की यहाँ पर घोर बेज़्ज़ती की थी. उस टाइम लवडा किसको पता था कि एक सीधा-साधा पढ़ने वाला लौंडा इतना कुच्छ कर सकता है....ठीक उसी तरह जैसे आज मुझे यकीन नही होता कि ,एक जमाने मे मैं भी शरीफ हुआ करता था....ये वही जगह थी ,जहाँ मैने विभा को अपना स्पर्म, बर्नूली के ईकूशन मे घोंट कर पिलाया था.मैं पक्का यकीन के साथ कह सकता हूँ कि यदि उस वक़्त वरुण और उसके चूतिए दोस्तो को ये मालूम होता कि मेरी रॅगिंग बाद मैं उनकी माँ-बहन एक कर दूँगा तो कसम से वो मुझे कभी छेड़ते ही नही....उस वक़्त ना जाने क्यूँ मैं वहाँ खड़ा होकर अतीत के पन्नो को उलट रहा था और उसी वक़्त मेरे अंदर एक ख़याल आया कि यदि मेरी रॅगिंग ना हुई होती और मैं इन सब मार-पीट मे इन्वॉल्व ना हुआ होता तो मेरी लाइफ कैसे होती....
"वेल...जहाँ तक मेरा अंदाज़ा जाता है..."खुद ही से बात करते हुए मैने कहा"उसके हिसाब से मैं जितना आज हाइलाइट हूँ ,उसका शायद 1 % भी नही रहता...मुझे सिर्फ़ मेरे क्लास के लोग जानते और दीपिका मॅम के साथ मेरी चुदाई तो दूर की बात मैं उसे छु तक नही पाता....और तो और बीसी मैं हर सेमेस्टर मे टॉप मारता ...बीसी मालूम ही नही चला कि कॉलेज के दिन कैसे गुज़र गये...."
"अभी मैं तेरे मुँह मे लंड डालूँगा ना तो तुझे सब मालूम चल जाएगा कि ये दिन कैसे बीत गये...."झाड़ियो के पीछे से हान्फते हुए अरुण मेरे सामने आया और बोला"गान्ड फट गयी बे....हूओ...हाा..."
"एक....दो...."
"नही...अब जान नही बची है,भाई...अब मत दौड़ना...प्लीज़..."
"तीन,...."बोलकर मैं फिर से वहाँ से भाग निकला और भागते-भागते कॉलेज के ग्राउंड की तरफ भागा(प्ले ग्राउंड...ना कि खूनी ग्राउंड ).ग्राउंड की तरफ भागते हुए मैने सोचा कि अब अरुण मेरे पीछे नही आएगा...लेकिन पता नही लवडे को मुझसे क्या ज़रूरी काम था जो मेरे पीछे कछुए की चाल मे दौड़ते हुए आने लगा....
"क्या कााअँ हाईईइ बे...."आख़िर कर मैं रुका और अरुण को आवाज़ दी....
"तू बोसे ड्के...आज हॉस्टिल मत आना...वरना जैसे उस दिन महंत को भरा था, आज तुझे भरुन्गा...."अरुण मुझसे थोड़ी दूर मे रुका और वॉर्निंग देकर जाने लगा...
"ओये चूतिए रुक...वो काम तो बता जा..जिसके लिए इतना दौड़ाया मुझे..."
"बोसे ड्के, तूने मुझे इतना दौड़ाया कि मैं भूल ही गया...आज के बाद यदि तू मेरे सामने भी आया ना बेटा, तो तू मर गया समझ....साले साँस लेते नही बन रहा है,लगता है कि कलेजा मुँह से बाहर निकल जाएगा....."
"यही तो प्यार है पगले..."
"लाड प्यार है ये...ये गे-यापा है तेरा...फले लंड-लवर...."बोलकर अरुण वहाँ से चला गया....
.
अरुण के वहाँ से जाने के बाद मैने ग्राउंड के चारो तरफ नज़र डाली तो पाया कि काफ़ी लोग ,ग्राउंड मे मौज़ूद थे....फिर मैने बॅस्केटबॉल कोर्ट के तरफ नज़रें घमायी ,वहाँ भी मेल-फीमेल का सॉलिड कॉंबिनेशन बॅस्केटबॉल की प्रॅक्टीस मे लगा हुआ था.....
"जाता हूँ,थोड़ा रोला जमाकर आता हूँ..."बॅस्केटबॉल कोर्ट की तरफ देखकर मैने सोचा....
"नही, पहले जिस काम के लिए निकला हूँ...वो काम कर के वापस आता हूँ....आराधना डार्लिंग अपनी चूत खुली रखना....आइ'म कमिंग/कुमिंग "
.
ग्राउंड से निकल कर मैं हॉस्टिल को हाइवे से कनेक्ट करने वाली सड़क पर आया और गर्ल्स हॉस्टिल के पास पहूचकर रुक गया....
"अभी तो 6:30 बजे है, 7 बजे तक लड़कियो को बाहर रहने की पर्मिशन होती है..."
मैने मोबाइल निकाला और तुरंत ही आराधना को कॉल करके बाहर आने के लिए कहा....
आराधना को अब अपनी गर्ल फ्रेंड बोलने मे मुझे कुच्छ खास अच्छा नही लगता था .एक तो वो आवरेज लड़की थी,उपर से मैं उसको कयि बार दोस्तो के रूम मे लेजा कर चोद चुका था...इसलिए अब उसपर मुझे कोई खास इंटेरेस्ट नही था ,हालाँकि उसकी बड़ी-बड़ी गान्ड मे अब भी इतना दम था कि वो मेरा लवडा खड़ा कर दे...लेकिन अब साला मूड नही होता था ,आराधना के साथ वो सब करने को....और वैसे भी जिसकी गर्ल फ्रेंड एश जैसी लड़की बन जाए तो फिर आराधना जैसी एक आवरेज गाँव की लड़की के साथ रिलेशन्षिप बनाकर कौन अपनी दुर्गति कराए....इसलिए मैं उस वक़्त आराधना से मिलने गया था....हालाकी उस वक़्त मुझे आराधना से सहानुभूति तो हो रही थी की उसको बुरा लगेगा...लेकिन मैं कर भी क्या सकता था...मैं नही चाहता था कि मैं किसी दिन कॉलेज मे एश के साथ कही घूम रहा हूँ और आराधना वहाँ आकर बोले कि"कल रात की चुदाई का असर अभी तक है,ऐसा मत चोदा करो...." इसलिए मैं आज इधर सब कुच्छ ख़तम करने आया था.
|