RE: Kamvasna कलियुग की सीता
मैं अब्दुल जी के ठीक सामने पहुच गयी और उनके दोनो हाथ पकड़कर अपनी ब्लाउस के उपर चूचियों पर रख दिया.फिर कहा,नवाब साहेब,ये है आपका प्रसाद और इन ही से चरना-अमृत निकाल कर आपको पीना है.अब्दुल ख़ान जी ने मेरी ब्लाउस मे क़ैद कबूतरों को इतनी ज़ोर से मसल दिया जैसे पूरा हिन्दुस्तान उनकी मुट्ठी मे आ गया हो.मैं दर्द से चीख उठी और छिटक कर अलग खड़ी हो गयी.
खाना खाकर हम अपने डेलक्स रूम मे आ गये….पातिदेव पूजा की थाल लेने चले गये,हर जुम्मे को पतिदेव मेरी पूजा करते थे रात मे और फिर रात भर मेरे पैरो तले बैठ कर सेवा करते थे कि शायद किसी दिन मेरा दिल उन पर रहम खाए और मैं अपने बदन के उतार चढ़ाव को छूने दूं…पतिदेव की बदक़िस्मती कि मैने रात भर तड़पने के डर से कभी हाथ भी ना लगाने दिया.
अब्दुल ख़ान रूम मे पहुच के नमाज़ पढ़ने लगे.मैने भी सोचा अब तो मैं भी मुस्लिम ही हो चुकी हूँ सो उनके बगल मे बैठ कर मैं भी नमाज़ पढ़ने लगी…ख़त्म हुआ तो देखा पतिदेव बगल मे पूजा की थाल लेकर खड़े हैं…अब्दुल ख़ान मेरी चूत के खून से भींगी अपनी लूँगी बिछा कर नमाज़ पढ़ रहे थे…मैने पतिदेव से कहा,आप नीचे बैठ जाइए,पूजा कुछ देर बाद सुरू होगी,पहले मुझे अब्दुल भाई जान की खिदमत करनी है….बिना जवाब सुने मैं अपने भारी चूतड़ पतिदेव के सामने लहराते हुए अब्दुल जी के पास चली गयी जो अभी अभी नमाज़ पढ़ कर उठे थे.पतिदेव का नूनी और चेहरा दोनो झुक गये.अब्दुल ख़ान ने पास आते ही मेरे मदमस्त चूतडो पर हाथ रखके उठा लिया और मेरे गालो पर एक ज़ोर की पप्प्प्पी जड़ दी…मैने अब्दुल भाई जान के लिए स्पेशल मेकप किया था खाने के बाद,और सोने की एक नथनी भी पहन ली थी…एक तो मेरे गाल ऐसे माखन की तरह चिकने उस पर पाउडर ने उसे पेरिस की सड़कों की तरह चिकना कर दिया था..अब्दुल ख़ान लगातार मेरे गालो पे पप्प्पी लिए जा रहे थे,लेकिन मुझे लग रहा था जैसे वो मेरी चूत पे पप्प्पी ले रहे हैं…अचानक वो मेरे होंठो को चूसने लगे…मैं मचलने लगी तो अब्दुल जी ने मुझे नीचे उतार दिया और कहा;
अब्दुल-सीता डार्लिंग,अब तो मेरा प्रसाद दे दो,मुझे चरना-अमृत भी पीना है
मैने इतराते हुए भौं मटकाई और कमर को झटका देते हुए चूतड़ मटकाए और कहा;
मैं(सीता)-नवाब जी,ये प्रसाद तो ज़िंदगी भर आपका है,जब चाहे तब डब्बे से निकाल के खा सकते हैं
सुनते ही अब्दुल जी का लंड हिनहिनाने लगा..वो तुर्रंत आगे बढ़े और कंधे से मेरी साड़ी का आँचल नीचे गिरा दिया…मेरी चूचियाँ इतनी ओवरसाइज़ हैं कि ब्लाउस मे कसी हुई थी ,मेरी चूचियों का बहुत सा पार्ट बाहर झाँक रहा था,साँस के उतार चढ़ाव के साथ मेरी चूचियाँ भी अप-डाउन हो रही थी,लग रहा था जैसे हिमालय के तो पहाड़ सीना ताने खड़े हैं और उनकी चोटियाँ इतनी नोकिली जैसे किसी ने वहाँ परचम गाढ दिया हो.अब्दुल ख़ान ने मेरे पीछे आकर दोनो हाथो से मेरी चूचियों को गिरफ़्त मे लिया और ऐसे मसल्ने लगे जैसे संतरा मसल रहे हो…मेरी चूत सनसना गयी..मैं अलग हुई तो वो अपने पाजामे का ज़ारबंद खोलते हुए सारे कपड़े उतार दिए…अब अब्दुल जी मेरे सामने जन्मजात खड़े थे और उनका खूटे जैसा तना हुआ लंड सलामी दे रहा था…मैने अपने होंठो पर ज़ुबान फेरी तो अब्दुल जी हाथ पीछे कर के मेरे ब्लाउस के बटन चटकाने लगे .नीचे मैने ग्रीन कलर की ब्रा पहनी थी..अब्दुल ख़ान ने मेरी ब्रा का हुक तोड़ दिया…लगा जैसे किसी पिंजड़े का दरवाज़ा तोड़ दिया हो.घंटो क़ैद मे फँसे मेरे दोनो कबूतर फर्फरा के उड़ना चाहे लेकिन अब्दुल ख़ान के हाथों मे फँस गये…मेरी नंगी चूचियों को छूते ही नवाब साहेब जोश मे आ गये..बाई चूची के निपल को चुटकी मे दबा कर सहलाते रहे और दाई चूची को ज़ोर से मसल दिए,
मेरी चूत मे जैसे करेंट लगा…मेरी हालत देखकर अब्दुल ख़ान ने बाई निपल को भी पकड़ कर ज़ोर से मसल दिया….मैं सिसक उठी,’उईईईईई मुंम्मी’मेरी चूची से दूध की एक मोटी धार निकल के ज़मीन पर गिर पड़ी…मैं ख़ुसी से पागल हो उठी,ख़ान साहेब ने महज़ 10 दिनो मे कमाल कर दिखाया था..मैने अपनी चूचियों को अब्दुल ख़ान के हाथो मे फ्री छोड़ दिया.फिर तो नवाब जी ने मेरी चूचियों का मंथन ही करना सुरू कर दिया..अब्दुल ख़ान से अपनी चूचियाँ मसलवा कर मेरी जाँघो के बीच की सहेली गीली हो गयी थी.
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