Kamvasna कलियुग की सीता
08-07-2019, 12:41 PM,
#6
RE: Kamvasna कलियुग की सीता
मैने अब्दुल ख़ान को गले मे लटकी मन्गल्सुत्र की ओर इशारा करते हुए कहा:ख़ान साहेब,आज करवा चौथ है,मुझे पति के लिए पूजा करनी है.चलती हूँ…लेकिन अब्दुल ख़ान मेरा मन्गल्सुत्र कहाँ देख रहे थे ,वो तो मेरे मन्गल्सुत्र के दोनो तरफ तनी तनी चूचियो पर नज़र टिकाए हुए थे.अब्दुल ख़ान ने चूतड़ पर हाथ फिराते हुए फिर से मेरे गालो पे पप्पी ले ली और कहा:सीता डार्लिंग,कितने दिनो बाद तो मिली हो,आते ही पूजा पूजा,पहले चुद तो लो.मेरी चूत के होंठो पे लाली आ गयी करवाचौथ मे किसी गैरमर्द से चुदने की बात सुनकर…इस से पहले कि मैं इनकार करती, अब्दुल ख़ान ने मेरे गले मे हाथ डाल दिया और मुझे लेकर चल पड़े.मेरी चूचियो के सामने उनका हाथ झूल रहा था जिसे लोगो की नज़रो से बचाकर वो मसल देते थे…सामने लटका मन्गल्सुत्र चूचियों की मीस्साई मे दिक्कत कर रहा था…मैने उसे दूसरी चूची के ब्लाउस मे डाल कर अंदर कर दिया….पता नही कौन से खंडहर मे ले जाके अब्दुल ख़ान ने मेरी दो बार चुदाई की…चुदाई के बाद मेरी चूत और गालो दोनो मे रंगत आ गयी थी….फिर मैं खंडहर से निकल कर मंदिर गयी और पूजा करके वापस घर आ गयी.


सारे मुसल-मान भाइयो और हिंदू भाइयो को फिर से सीता देवी की तरफ से आदाब….आप सोच रहे होंगे कि मैं आदाब क्यो बोल रही हूँ…..तो जब से मैं ट्रेन मे नॉवब साहेब से चुद्कर आई हू,मेरे मन मे मुस्लिम तहज़ीबों के सीखने की ललक आ गयी है.10 दिन हो गये थे नवाब जी से मिले हुए लेकिन रोज रात को सपने मे आकर मुझ पर चढ़ जाते थे.पतिदेव से पैर और तलवे चटवा कर थक चुकी थी,अब चाहती थी कि ब्लाउस फाड़ कर बाहर आने को बेताब चूचियों को दाब कर अंदर करे.

खैर अब मैं उस हसीन हादसे के बारे मे बात करूँ जिसने मेरी ज़िंदगी मे ख़ुसीयों की किल्कारी ला दी.उस दिन रक्षाबन्धन था.मैं सुबह सुबह नाहकर तैयार हुई मंदिर जाने के लिए,वापस आकर मुझे अपने भाई बबलू को राखी बांधनी थी.मैने ब्लॅक कलर की सिफ्फोन की साड़ी पहनी थी.बाल खुले हुए थे और कमर तक आ रहे थे.बदन गदरा जाने के कारण बॉडी से चिपक सी गयी थी और एक एक उतार चढ़ाव बयान कर रही थी.हाथ मे पूजा की थाली लेकर मैं आगे बढ़ी तो साड़ी की क़ैद मे फँसे मेरे मतवाले चूतड़ सिहर गये और आपस मे लड़ गये.मेरे चूतड़ के दोनो पाट एक दूसरे को थप्पड़ मारते हुए आगे बढ़े तो हाथ मे पूजा की थाली भी थरथरा गयी.नीचे सड़क पर आई तो महसूस किया कि जो जहाँ है, वहीं से मेरे मदमस्त चूतडो के डॅन्स का मज़ा ले रहा है.हो भी क्यों ना जबकि इन्ही चूतडो की बस कुछ थिरकन देख कर पतिदेव अपनी नूनी लिए हाथ मे ही झाड़ जाते थे.

कुछ दूर आगे बढ़ी तो एक मस्ज़िद के पास से गुज़र रही थी,अचानक मैने मस्ज़िद की दीवार पर देखा तो चौंक गयी…वहाँ वोही अब्दुल ख़ान वाली जैसी कोई लूँगी सूखने के लिए पसारी हुई थी,मेरी चूत मे एक हुक सी उठी.मन हुआ कि जा के देखु कि ये वोही लूँगी है या नही.लेकिन कोई देख लेगा ये सोच कर नही गयी और सोचा कि अब जब ख़ान साहेब मेरी चूत फाड़ ही चुके हैं तो ये फाडी हुई लूँगी ले कर मैं करूँगी भी क्या…

पूजा की थाली मे देखा तो दिए की लौ फक फक कर रही थी.मैने सोचा लेट ना हो जाउ,सो तेज़ी से आगे बढ़ गयी.मंदिर की पहली सीढ़ी पर पाँव रखते ही मेरे पैर लड़खड़ा गये.मैं गिर ही जाती अगर किसी ने पीछे से आकर मेरी कमर को थाम ना लिया होता..उसकी हाथों के दम पर मेरे चूतड़ और मैं अटकी हुई थी.देखा तो अब्दुल ख़ान साहेब थे.अपने चूतडो को अब्दुल जी के पंजो से छुड़ाते हुए मैं पूजा की थाल लेने आगे बढ़ी जो नीचे गिर गयी थी.पूजा की थाल उठा कर मैं पीछे मूडी तो ख़ान साहेब के हाथ मे वोही खूनी लूँगी थी..पाँव थोड़ा मुचक जाने के कारण मैं ठीक से चल नही पा रही थी..अब्दुल जी ने लूँगी बाए हाथ मे लेकर दाए हाथ से मुझे सहारा दिया.

मैने एक हाथ मे पूजा की थाली ले ली और दूसरा हाथ अब्दुल जी के कंधे पर रखा और अब्दुल जी ने मेरी कमर पर हाथ रख दिया..हम मंदिर की सीढ़ियाँ चढ़ने लगे और अब्दुल जी का हाथ फिसल कर मेरे मदमस्त चूतडो पर आ गया था.एक तो साड़ी इतनी पतली और मेरा गदराया हुआ ज़िस्म उसपर साड़ी इतनी टाइट.लग रही थी जैसे ख़ान साहेब मेरे नंगे चूतडो को दबा रहे हैं.मेरी चूत मे खलबली मच गयी और इधर ख़ान जी इतने शैतान कि जैसे मंदिर मे ही मेरी चूतडो की मालिश कर देंगे.नवाब जी मेरे चूतडो को भगवान की मूर्ति सामने आने के बाद ही पंजे से आज़ाद किए और फिर पीछे जाकर खड़े हो गये.मैं पूजा की थाल लेकर नीचे झुकी और पूजा करके पीछे मूडी तो देखा अब्दुल जी की नज़रे बदस्तूर मेरे चूतडो पर थी…मैं पूजा की थाल लेकर आगे बढ़ी तो मेरी साड़ी का पल्लू नीचे लहरा गया और दोनो बड़ी बड़ी चूचियाँ कारगिल पर तैनात सिपाही की तरह तन गयी.अब्दुल जी ने मेरा पल्लू उठाया और मेरी चूचियों को हाथ से रगड़ते हुए पल्लू मेरे कंधे पर रख दिया. शैतान इतने अब्दुल जी कि हाथ को लौटते वक़्त मेरी चूचियों को ज़ोर से मसलना नही भूले.मैं सिसकी तो ख़ान साहेब ने सहारा देते हुए मेरे चूतडो पर हाथ रख दिया और हम मंदिर से बाहर की तरफ निकले.ख़ान साहेब जाना चाहते थे,लेकिन मैने ज़िद्द करके कहा,नही भाईजान,आज से आप मेरे भाई हैं बिना राखी बाँधे मैं आपको जाने नही दूँगी.घर आने तक रास्ते भर अब्दुल जी ने मेरी चूतडो की मालिश की.बीच बीच मे वो मेरे चूतडो पर ऐसी चपत लगा देते कि पूजा की थाली डोलने लगती.
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