RE: Maa Sex Kahani माँ-बेटा:-एक सच्ची घटना
अपडेट 76
मैं जानता हु माँ यही सोच रही होगी बरसों रेगिस्तान में रहने के बाद आज फूलों से वास्ता पड़ा है,
मुझे भी कुछ ऐसा लग रहा था जैसे बरसों से वीरान जंगल में चलते हुए आज अपने पड़ाव पे पहुंचा हु,
क्यूँकि आज मेरी माँ मेरी बाँहों में थि, मेरी पत्नी का रूप लेकर.
इस चुम्बन से शुरुवात होनि थी हमारे वैवाहिक जीवन कि,
कितने सपने सजा लिए होंगे माँ ने, और में तो अपनी माँ की खुशबु को अपने अंदर समेटता चला जा रहा था
हम दोनों के होंठ चिपके हुये थे, शायद माँ के अंदर अब भी एक युद्ध चल रहा था अपने बेटे को पति का रूप दे चुकी थी पर उस बेटे को अपना जिस्म सोंपना इतना आसान नहीं था
मै माँ के दिल की हालत समझ रहा था जो इस वक़्त बहुत जोर से धड़क रहा था
मंजिल मेरी बाँहों में थी और धीरे धीरे मुझे ही माँ की झिझझक दूर करनी थी.
मैने माँ के होठो पे अपनी जुबान फेरनी शुरू कर दी
और थोड़ी देर बाद मुझे लगा जैसे माँ के होंठ खुल रहे है,
वो मेरे प्रेम को स्वीकार कर रही है,
और में माँ के नीचले होंठो को अपने होठो में दबा लिया.
मुझे जैसे स्वर्ग के रास्ते की पहली सीढ़ी मिल गई
माँ के होंठो को चुसते हुए ऐसा लग रहा था जैसे गुलाब का रस चुस रहा हु.
मेरा जिस्म झनझना रहा था और मेरा पेनिस इतना सख्त हो चुका था की उसमे उठता दर्द बर्दाश्त नहीं हो रहा था
मेरे पेनिस की चुबन से माँ भी अछुती न रेह पाई होगी.
मैने माँ को अपनी बाँहों में और कस लिया और अपने होठो का दबाव और बड़ा दिया.
माँ की आँखें बंद थि, वो अपनी दुनिया में थि, शायद बरसों बाद हो रहे इस चुम्बन के अहसास को महसुस करने की कोशिश कर रही होगी.
आज बरसों बाद कोई माँ के होठो का चुम्बन ले रहा था, और वो कोई और नहीं उनका बेटा था
जो उनके पति का रूप ले चुका था
माँ का जिस्म अब जोर से काँपने लगा था
और वो मुझ से लिपटति चलि जा रही थी जैसे अभी हम दो जिस्म एक जान बन जाएंगे.
मैने जोर जोर से माँ के होठो को चुसना शुरू कर दिया और मुझे लग रहा था जैसे वो पिघलती जा रही है
उसकी बंद आँखों के कोर से मुझे दो ऑंसू मोती बन के निकलते दिखाइ पड़े
हमारी साँस भी उखडने लगी थी
मजबुरन मैंने माँ के होठो से अपने होंठ अलग कर दिये. वो तेज तेज हाँफने लगी.
‘मुझ से रहा न गया और में पूछ बेठा.
‘ये आंसू…?’
‘माँ ने अपनी नशीली आँखें खोली मुझे देखा और चेहरा झुका लिया
शर्म के मारे उनके मुंह से कोई बोल नहीं निकल रहा था
मै फिर पूछ बैठा
‘बोलो न’
“मुझ से कोई ग़लती हो गई क्या? ‘मैंने कोई दुःख दे दिया क्या?’
माँ ने तड़प के मेरे होठो पे अपना हाथ रख दिया.ओर बहुत धीमे स्वर में बोली
‘ये तो ख़ुशी के ऑंसू हैं’
ओर मैंने तड़प के फिर माँ को अपने बाँहों में भर लिया और हम दोनों के होंठ फिर जुड़ गए इस बार माँ भी चुम्बन में मेरा साथ दे रही थी मैं उनका नीचला होंठ चूसता तो मेरा उपरवाला.
मेरे हाथ माँ की पीठ को सहलाने लगे और माँ के हाथ मेरे सर को.
दिल कर रहा था वक़्त यहीं रुक जाए और हम अपनी नयी दुनिया के आरम्भिक शण में खोते चले जाए.
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