RE: Maa Sex Kahani माँ-बेटा:-एक सच्ची घटना
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पहले से किये हुये प्लान के मुताबिक नाना नानी अभी अहमदाबाद चले जाएंगे. और में माँ को लेकर एमपी चला जाऊंगा. टिकट भी ऐसे ही बुक किया था मैने. इस्स लिए शादी के बाद हम सब लंच करके अपने अपने कॉटेज में पहुच गये थे. हमे शादी का जोड़ा वगेरा खोल के तैयार होना था. माँ नानीजी के रूम में ही चले गई. उनके सारा सामान वहि रखा हुआ था. और में नानाजी के रूम में आगया था मैं आपनी शेरवानी खोल के बाथरूम में जाकर मुह हाथ पैर धोने लगा. सर पे घी चंदन और गुलाल की लगी हुई सारी तिलक को साबून से साफ़ करके फ्रेश होने लगा. फिर आके मेरे सूटकेस से एक जीन्स और पोलो टी शर्ट निकाल के पहन लिया. मैंने सोचा की सूटकेस में रखा एक नया कुरता और पाजामा है तोह वह पहन लू. पर फिर लगा की वह पहन ने में एक दम नया दूल्हा टाइप लगुंगा. और शर्म अने लगी. तब मैंने यह जीन्स पहन के क्यजुअल होने की कोशिश करने लगा. माँ और मेरी शादी हो गई. फिर भी दोनों के अंदर नाना नानी के सामने एक शर्म अभी भी है. मैं मेरे बाकि कपड़े और सामान पैक करने लगा. नानाजी रूम में आये और वह भी अपने कपड़े बदल ने के लिए बाथरूम में चलेगये हम दो लोग तो फ़टाफ़ट तैयार हो गये पर वहां दूसरे कॉटेज में वह दो लोग हमारे जैसे नार्मल बन्ने में टाइम लेगी. नानीजी तो बस अपने साड़ी चेंज कर लेंगी पर माँ दुल्हन का लेहेंगा चोली चेंज करेंगी, फिर अपने चेहरे से सारा मेक अप साफ़ करके मांग में भरी सिन्दूर को ठीक तरीके से लगाएगी उसमे टाइम तो जाएगा ऐसे करके पूरा दो घंटा लग गया और फिर जब हम अपने अपने कॉटेज से अपना सामान लेकर निकले तब में माँ को इसी ड्रेस और इसी रूप में तब पहली बार देखा था. उनके हाथ की मेहंदी, हाथों का बँगलेस देख के सब समझ जायेंगे की उनकी नयी नयी शादी हुई है.उनको इस रूप में देख कर, मेरे अंदर ही अंदर उनके लिए एक तीब्र चाहत होने लगी और में बहुत हॉर्नी फील करने लगा. मेरे शरीर के अंदर एक अनुभुति दौड रहा है. मैं माँ की तरफ जब भी देख रहा हु, तभी उनके जिस्म के हर कोने कोने में मेरे प्यार भरे गरम होठो का स्पर्श देकर उनको प्यार करने के लिए मेरा मन पागल हो रहा था. वह मेरी माँ है. मैं उनको बहुत ज़ादा प्यार करता हु. उनको दिल से चाहता हु. वह अब मेरी बीवी है. मेरी जीवन साथि है. उनके साथ ज़िन्दगी का हर पल जीना चाहता हु. ज़िन्दगी का हर सांस उनके साथ ही लेना चाहता हु. मेरे प्यार से उनकी ज़िन्दगी का अब तक का सारा ग़म, सारा कष्ट, सारी क़ुर्बानि, बहुत सारी चीज़ें न पाने का दुःख --सब सब कुछ भुला देना चाहता हु और ज़िन्दगी भर बहुत सारी ख़ुशी और आनंद के साथ उनको मेरे बाँहों में भरके संभालके रखना चाहता हु.
माँ ने कॉटेज से निकल नेके बाद से अब तक एक भी बार मुझे नहीं देखा है. मैं बहुत बार कोशिश कर रहा हु. पर नज़र नहीं मिला. वह और नानी बस एक साथ एकदूसरे को पकड़के सारे रास्ते टैक्सी में आई. आज सब थोड़ा अपने अपने में मग्न थे. ज़ादा बात नहीं कर रहे थे. नाना नानी अपने बेटि, जो आज तक उनके साथ ही रहती थी उसको अब जाने देना पड़ रहा है. उसी ग़म में सब कम बोल रहे थे. फिर भी बात चित होने लगी. और बीच बीच में कोई मज़ाकिया बातों से सब हस रहे थे. पर फिर भी वह पहले दिन जैसे नहीं रहे. बात कम होने के कारन में बार बार पीछे मुड नहीं पा रहा था और माँ को देख नहीं पा रहा था. फिर भी इतना नज़्दीक रहकर , में उनको मेरे दिल के अंदर और शरीर में मेहसुस कर पा रहा था. मेरी इसी तरह की फीलिंग्स के लिए मेरा पेनिस बार बार सख्त होता रहां. वह अब केवल सुहागरात के इंतज़ार में ही है. फिर भी में अभी भी माँ को देख रहा हु, हर बार उनकी खुबसुरती और सुंदरता देखके में खुद को भाग्यवाण समझ रहा था. ऐसी एक प्यारी लड़की मेरी बीवी बनेगी में सोचा नहीं था. पर आज वैसे ही एक लडकि, जो मेरी माँ है, आज मेरी पत्नी बन गयी है. जो अब मेरे नाम का सिन्दूर लगा के मेरे सामने, उनके मम्मी पापा के साथ बैठि हुई है.
नाना नानी ट्रैन में चड़ने से पहले मुझे और माँ को बार बार गले लगा ते रहे. मैं और माँ एक साथ झुक के पति पत्नी का कपल बन के नाना और नानी का पैर छू के उनके अशीर्वाद लेने लगे. नानाजी मुझे एक बार अलग से गले लगाये और कुछ टाइम पकड़ के रखा. वह जैसे की यह कह रहे है की मेरे घर की लक्ष्मी में तुमको दिया बेटा. अब तुम ही इसका ध्यान रखो फिर नानाजी माँ को गले लगाके चेहरे पे एक मायूसीपन लेकर एक स्माइल दिया. नानी माँ को फिर से गले लगायी और उनके चेहरा दोनों हाथ से थामकर उनकी आँखों में देखि और उनकी गीली आँखों से स्माइल करके माँ को बोली" सदा सुहागन रहो बेटि". नाना नानी के आँखों में साफ़ साफ़ दिख रहा है जैसे की वह लोग अपने बेटी को विदाई दे रहे है. इस समय में और माँ एकसाथ रहकर केवल उनलोगों को ठीक से , अपना ख़याल ठीक से रखने के लिए कहने लगे.
आज तक माँ थी साथ मे. पर अब वह दोनों बिलकुल अकेले हो जाएंगे. यह सोचके मेरा मन थोड़ा भारी भी हो गया था. पर क्या करे. ज़िन्दगी का असली रंग ही ऐसा है.मै और माँ एक साथ आस पास प्लेटफार्म पे खड़े है. ट्रेन चलने लगी. नाना नानी खिड़की से हमे देख के हाथ हिलाई. और दोनों ही परम ममता और प्यार से हमे एक स्माइल देकर अपनापन जताने लगे. ट्रेन रफ़्तार पकड़ने लगी और माँ की आँख गिला होने लगी. ट्रेन धीरे धीरे प्लेटफार्म छोड़कर दूर जाने लगी. और तभी में मेहसुस किया की मेरे एकदम नजदीक खड़ी माँ उनके दोनों हाथ उठाके मेरा बाजु पकड़ रही है. मैं घूमके उनको देखा. वह तभी भी जाते हुई ट्रैन की तरफ नज़र रख के गीली आँखों से उसी तरफ देखे जा रही है.
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