Maa Sex Kahani माँ-बेटा:-एक सच्ची घटना
08-03-2019, 02:53 PM,
#51
RE: Maa Sex Kahani माँ-बेटा:-एक सच्ची घटना
अपडेट 51


मैं ख़ुशी और थोड़ी शर्म से नानी जी को देखा. वह बस मुस्कुराके उनके मन की ख़ुशी ज़ाहिर कर रही है. तभी नाना जीने मेरी पीठ पे हाथ रखा. मैं उनकी तरफ देखते ही वह ममतामई नजर से मुझे आस्वासन देणे लगे. सब के सामने, पूजा और मंत्र के बीच, पवित्र अग्नि के सामने में और माँ एक दूसरे को वरमाला पहनाकर इस पवित्र रिश्ते में हम दोनों की सम्मति जताया. पण्डितजी हमे बैठने को कहा. मैं मेरे आसन में बैठ गया. माँ धीरे धीरे मेरी बगल में रखे हुये आसन पे बैठने के लिए मेरे पास आयी. मैं बैठे बैठे उनकी तरफ थोड़ा नीचे मेरी नज़र घुमाया. वह बस बैठने के लिए अपने कदम बढायी और तभी मुझे उनके लेहेंगा के नीचे से उनकी मेहँदी किया हुआ सुन्दर मुलायम छोटी छोटी सेक्सी गुलाबी पैर नज़र आया. उनके पैर में भी रेड नेल पोलिश लगी हुई है. जिससे उनके पैर और सेक्सी लगने लगे और मुझे बस वहि झुक के उनके वह पैरों को अपने होठो से चूमने का मन करने लगा. फिर मुझे नज़र आया की वह आज उनके पैरों में पायल भी पहनी हुई है. मैं उनके वह सुन्दर गोल गोल पैर में पायल पहनाने के लिए एक पायल खरीद के अलमारी में रख के आया. पर वह मेरे मन की मुराद पूरी करके आज दुल्हन के भेष के साथ पायल भी पहनली. मैं मेहसुस करने लगा की बस यह सुन्दर, खूबसूरत सेक्सी लड़की बस आज से मेरी ही हो गयी. मेरा मन एक गेहराई में डूबने लगा और अंदर से उनको पाने की चाहत बढ़ते गया.
और सब कुछ मिलके एक सिरसिरानी अनुभुति मेरे स्पाइन कपड़े के नीचे की तरफ जाने लगा और मेरे कुर्ते के अंदर पेनिस में उसका असर पड़ रहा है. मेरा पेनिस सख्त होने लगा. मैं बस इस माहोल में मेरे ओर्गिनेस्स को दबा रखकर बाकि चीज़ों में ध्यान देणे लगा. नानाजी जाकर माँ के पास आसन में बैठे और नानीजी आकर मेरे पास वाले आसन में बैठि. पण्डितजी पूजा शुरू किया फिर से. शादी की रसम अब चालू होगई. नानाजी पण्डितजी के साथ मिलकर मंत्र पढकर सारे रस्म और रीवाज़ के अनुसार अपना कर्त्तव्य करने लगे. वह उनकी बेटी का कन्या दान करने लगे. माँ वहां बैठकर सर झुका के रखी है नयी दुल्हन की तरह. नज़र नीचे करके रखी है. मैं सब कुछ के बीच रहकर भी एक एक बार माँ को चुराके देखने लगा दुल्हन के पिता का फ़र्ज़ नानाजी पालन कर रहे है. वह शाश्त्र सम्मत तरीकेसे उनकी बेटी को उनके होनेवाले दामाद के पास कन्या दान करके उनके घर की लक्ष्मी को उनके दामाद के पास सोंप दी. इस्स बीच में नानाजी मेरी तरफ एक बार देखे. मैं उनके साथ नज़र मिलाकर उनको देखा. उनकी आँखों में उनकी बेटी रुपी घर की लक्ष्मी को मेरे पास समर्पण करके, उनकी बेटी को प्यार से सम्भालके रखने की बिनती साफ़ झलक आई. मैं भी अपनी आँखों की भाषा और होठो की स्माइल से उनको वह भरोसा दिया की में उनकी बेटी को ज़िन्दगी भर बहुत सारा प्यार और ख़ुशी देकर संभालके रखुंगा.
तभी पण्डितजी का एक आदमी आके मेरी शेरवानी के स्कार्फ़ के साथ माँ के दुपट्टे का कोना बांध दिये. और साथ साथ पण्डितजी मंत्र पढ़कर पूजा कर रहे है. वहाँ के सारे लोग उस मंत्र उच्चारण के बीच मेरे और माँ के ऊपर गुलाब की पंखुड़िया और राइस की वर्षाव करके अपना अशीर्वाद और शुभकामनायें देते रहे. फिर पण्डितजी हमे ऐसे ही दोनों का कपडा बंदा रख के वहां शादी स्थल में उस अग्नि के चारो तरफ परिक्रमा लगाने को कहे. मैं खड़ा होने लगा तो देखा की में अगर पहले जल्दी से खड़ा हो जाउँगा तो माँ की चुनरी उनके सर के घूँघट को हिला देगि, इस लिए में झुक के धीरे धीरे खड़ा होते गया , ताकि माँ को वक़्त मिले मेरे साथ एक साथ खड़ा होने को. मैं ऐसे झुक के थोड़ा टाइम रहा और फिर माँ खडी हो गयी. इस्स बीच में हमारी यह अनकंफर्टबिलिटी को देख के वहां की सारी लेडीज हस पडी और आपस में बातें करने लगी. मैं और माँ दोनों अब खडे हो गये. पण्डितजी मंत्र पड़ते रहे और हम चक्कर लगाने के लिए कदम उठाये. उस अग्नि के चारो तरफ चक्कर लगाके हम अपनी आगे के जीवन को एक साथ जीने की सारी कसम खानी सुरु कि. तभी फिर से चारों तरफ से गुलाब की पंखुड़ियों और राइस की बारिश फिर से होने लगी मेरे और माँ के उपर. मैं आगे आगे चलने लगा और माँ मेरे पीछे धीरे धीरे मुझे फॉलो करती रहि. ऐसे फूलों की और राइस की बारिश के अंदर हम उस पवित्र अग्नि परिक्रमा करते रहे. मुझे माँ का चेहरा दिखाइ नहीं दे रहा है. वह बस सर झुकाके मुझे फॉलो करती जा रही है. मुझे अपना पति मानकर मन और तन सोंप के मुझे पति का अधिकार देकर ज़िन्दगी ख़ुशी और आनंद से जीने की कसम खाते रहि. मेरी नाना और नानी से एक बार नज़र मिली. वह लोग बस अपनी एक लौती प्यारी बेटी को मुझे सौंप कर एक चैन की नज़र से हमारी जोड़ी को देख रहे है और अशीर्वाद दे रहे है हमारे ऊपर फूल और राइस फ़ेक के.
अग्नि परिक्रमा ख़तम होते ही पण्डितजी का कहा मान के में और माँ फिर से अपनेअपने आसन के ऊपर बैठ गये. हमारे कपड़े बंधे होने के कारन अब मुझे और माँ को एक दूसरे का साथ देके चलना पड़ रहा है, जिस तरह अब से हमे एक दूसरे का साथ देके ज़िन्दगी की राहों में चलना पडेगा. एक दूसरे की ज़िन्दगी का ख्याल रख के हर पल एक साथ रहना है. पण्डितजी का पूजा और हवन अभी भी चल रहा है. तभी उन्होंने नानीजी से धीरे से कुछ पूछा तो नानी जी उनको जबाब दिया बहुत धीरे से. पण्डितजी वहां पूजा के पास रखी हुई एक थाली से मंगलसूत्र उठाये और मुझे देदिये. मैं अपना हाथ निकाल के उनसे वह लिया. अब मंगल सूत्र पकड़ के भी मेरा हाथ थोड़ा थोड़ा काँप ना सुरु किया. मन के अंदर की खुशी, एक्ससिटेमेंट और न जाने क्या एक अद्भुत अनुभुति से मेरा मन पागल होने लगा. मैं माँ की तरफ देखा. वह बस अपने होटों पे मुस्कराहट बरक़रार रख़कर, अपनी नज़र झुका के बैठि है. पण्डितजीने मंत्र पड़ना सुरु किया और मुझे अपनी हाथ के इशारे से वह मंगलसूत्र दुल्हन के गले में बाँधने को कहे. मैं थोड़ा घूम के माँ के तरफ हो गया. मैं धीरे धीरे अपने दोनों हाथ में पकड़ी हुई मंगलसूत्र को माँ की गले के पास लेकर गया. मैं बस और कहीं न देख के केवल माँ को देख रहा हु. मेरे हाथ उनकी गले के पास जाते ही वह समझ गयी और वह अपनी झुकि हुई नज़र के साथ अपनी सर को मेरे तरफ थोड़ा घुमायी, मुझे मंगलसूत्र बाँधने में असां हो इस लिये. मैं धीरे धीरे उनके गले में मंगलसूत्र डालकर पीछे दोनों हाथ ले गया बाँधने के लिये. तभी एक लेडी माँ का दुपट्टा को थोड़ा गर्दन के पास से उठाके मुझे उनकी गले में मंगलसूत्र पहनाने में मदत करने लगी. मैं मेरा हाथ माँ की गर्दन के पास एक साथ होने के बाद धीरे धीरे बाँधने लगा. मेरा हाथ थोड़ा थोड़ा उनको टच कर रहा है. मेरी बॉडी एकदम उनके बॉडी के पास है. मेरे मन में अब जो अनुभुति खेल रहा है, शायद माँ के मन में भी शेम अनुभुति दौड रहा होगा. मंत्र पड़ने के बीच में मंगलसूत्र बांध के मेरा हाथ खीच लिया, और में फिर से सीधा बैठ गया. माँ भी अपने सर को घुमाके पहले जैसे बैठ गयी.उनके गले में मंगलसूत्र कैसे लगता है, यह पहली बार देख रहा हु. उनको साइड से देखते देखते उनकी लिए मेरे अंदर एक प्यार जागने लगा.
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