RE: Desi Sex Kahani निदा के कारनामे
बाबाजी ने अपने दोनों हाथों की उंगलियों से मेरी चूत के लबों को चीरा और अपनी जुबान मेरी चूत के अंदर तक डाल दी। उनकी जुबान थोड़ी सख्त हो गई थी। बाबाजी की जुबान भी उनके लण्ड की तरह काफी लंबी थी और अब वो अपनी जुबान को मेरी चूत के अंदर बाहर कर रहे थे। ये मेरी जिंदगी का अलग तजुर्बा था और आज तक किसी ने मेरे साथ ऐसा नहीं किया था। खैर अब तक मुझे सिर्फ 5 लोगों ने चोदा था पर किसी ने आज तक मुझे ये मजा नहीं दिया था। बाबाजी की जुबान काफी सख़्त थी और वो मुझे किसी लण्ड की तरह अपनी चूत में महसूस हो रही थी।
बाबाजी काफी तेजी से अपनी जुबान को मेरी चूत के अंदर बाहर कर रहे थे जिसकी वजह से मैं फिर से अपनी मंजिल तक पहुँच गई और एक तेज सिसकारी के साथ मैं दोबारा से झड़ गई और मेरी चूत से पानी निकलना शुरू हो गया जो की बाबाजी ने चाटना शुरू कर दिया। बाबाजी मुझे चोदे बगैर ही मुझे दो बार फारिग कर चुके थे। फिर उन्होंने मुझे उल्टा करके लिटा दिया और दो तकिये मेरी चूत के नीचे रख दिए जिसकी वजह से मेरे । कूल्हे ऊपर को उठ गये। फिर बाबाजी ने मेरी टाँगों को चीर दिया। मैं समझी की वो मेरी चुदाई की शुरुवात मेरी गाण्ड से करेंगे पर उन्होंने झुक कर मेरी गाण्ड से मुँह लगा दिया।
जब उनकी गीली-गीली जुबान मेरी गाण्ड के सुराख से टकराई तो एकदम से मेरे पूरे जिम में सनसनी सी दौड़ गई और मजे की शिद्दत से मेरे मुँह से सिसकारियां निकलने लगीं। अब तक जिसने भी मुझे चोदा था उन्होंने मेरी चूत तो चाटी थी पर मेरी गाण्ड किसी ने आज तक नहीं चाटी थी। ये मेरे लिए एक नया तजुर्बा था जिसका मैं बहुत मज़ा ले रही थी। वाकई एक बूढ़े आदमी ने मुझे चोदे बगैर ही मुझे वो मजा दिया था जो आज तक कोई नहीं दे पाया था।
मुझे अपनी चूत से ज्यादा अपनी गाण्ड चटवा कर मजा आ रहा था। फिर जब बाबाजी ने मेरी चूत की तरह मेरी गाण्ड में भी अपनी जुबान डालनी चाही तो मैं मजे की शिद्दत से पागल होने लगी और अपना सिर जमीन पर मारने लगी।
थोड़ी सी कोशिश के बाद बाबाजी ने अपनी जुबान मेरी गाण्ड के सुराख में हाल ही दी। अब वो कभी अपनी जुबान मेरी गाण्ड में अंदर बाहर करते, कभी वो अपनी जुबान से किसी नदीदे कुत्ते की तरह मेरी गाण्ड को चाटते। उन्होंने ये अमल मेरे साथ 10 मिनट तक किया और फिर वो लेट गये और मुझे अपना लण्ड चूसने को बोला।
मैं उठकर बैठ गई, मैंने देखा की बाबाजी का लण्ड एकदम सीधा खड़ा था और अपनी फतह का जशन मना रहा था, मुझे बाबाजी के लण्ड पर बड़ा प्यार आया और मैंने बड़ी मुहब्बत से बाबाजी का लण्ड पकड़ लिया। मैंने झुक कर अपने होंठ बाबाजी के टोपे से मिला दिए और उनके टोपे का किस लेने लगी, फिर मैंने अपनी जुबान बाहर निकाली और बाबाजी का लण्ड चारों तरफ से खूब चाटने लगी। मैं एक साइड से उनके लण्ड को चाटती हुई। उनके टोपे तक आती और फिर चाटते हुये दूसरी तरफ से वापिस नीचे चली जाती। मैंने ये अमल काफी देर तक उनके लण्ड के साथ किया।
फिर मैंने अपना पूरा मुँह खोला और बाबाजी का लण्ड अपने मुँह में ले लिया, बाबाजी का लण्ड चंद इंच तक ही मेरे मुँह में गया। मैं अब उनके लण्ड को अपने मुँह में लेकर चूसने लगी। मेरी कोशिश थी की उनका लण्ड । ज्यादा से ज्यादा अपने मुँह में ले लँ पर उनका लण्ड बहुत बड़ा था और वो 4 या 5 इंच ही मेरे मुँह में जा रहा था। बाबाजी मेरी ये कोशिश देख रहे थे। उन्होंने एकदम से मेरा सिर पकड़ा और अपने लण्ड पर दबा दिया। बाबाजी का लण्ड एक झटके से पूरा का पूरा मेरे हलाक के अंदर तक घुस गया। मेरी आँखें एकदम से बाहर को निकल आई और मुझे एकदम से फंदा सा लग गया। मैंने फौरन ही उनका लण्ड अपने मुँह से निकाला और खांसने लगी। बाबाजी हँसने लगे, जबकी मैं उनको नाराजगी की नजरों से देखने लगी।
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