RE: Kamukta Kahani अहसान
अपडेट-51
ये मेरे लिए एक ऑर बड़ा झटका था क्योंकि उसी को तो मैं यहाँ मारने आया था.
मैं : क्य्ाआ...
हीना : मैं उस बेगैरत इंसान से शादी नही करना चाहती नीर क्योंकि मैं तुमसे प्यार करती हूँ उस कमीने ने मेरे अब्बू को भी पता नही कैसे शादी के लिए राज़ी कर लिया है जानते हो जिस कमीने पर तुम अपने परिवार की ज़िम्मेदारी छोड़ कर गये थे उसने एक बार भी आके ये नही देखा कि वो लोग ज़िंदा है या मर गये. बस डॉक्टर रिज़वाना कभी-कभी आती थी जो नाज़ी ऑर फ़िज़ा को कुछ पैसे दे जाया करती थी घर खर्च के लिए उसके बाद उसने भी आना बंद कर दिया सुना है उसकी किसी कार आक्सिडेंट मे मौत हो गई थी. मुझे वो इंसान बिल्कुल पसंद नही है जो इंसान अपनी ज़िम्मेदारी ठीक से नही संभाल सकता क्या गारंटी है कि वो मेरा ख़याल रख लेगा.
मैं : तुम मुझसे प्यार करती हो हीना...??
हीना : (मुस्कुरा कर नज़रें नीचे करके हाँ मे सिर हिलाते हुए) हमम्म... क्या तुम्हारी जिंदगी मे कोई ऑर लड़की है.
मैं : (मुझे कुछ भी समझ नही आ रहा था कि मैं क्या जवाब दूं लेकिन हीना का मुझ पर अहसान था इसलिए मैने बिना कुछ सोचे समझा उसको हाँ कहने का फ़ैसला कर लिया) नही यार ऐसी कोई बात नही है मुझे भी तुम बहुत पसंद हो. लेकिन तुम मेरी जिंदगी के बारे मे कुछ नही जानती एक बार मेरा सच सुन लो उसके बाद जो तुम्हारा फ़ैसला होगा मुझे मंज़ूर होगा.
हीना : मुझे कुछ नही पता मुझे सिर्फ़ इतना पता है कि मैं तुमसे बहुत प्यार करती हूँ तुम मुझे जिस हाल मे भी रखोगे मैं रह लूँगी ऑर बहुत खुश रहूंगी तुम्हारे साथ.
मैं : लेकिन मैं एक गॅंग्स्टर हूँ ऑर मेरा नाम नीर नही शेरा है.
हीना : तो क्या हुआ गॅंग्स्टर शादी नही करते क्या. मुझे उससे कोई फरक नही पड़ता मैं बस तुमसे प्यार करती हूँ इससे ज़्यादा मुझे कुछ नही पता अब बोलो मुझसे शादी करोगे या नही.
मैं : (बिना कुछ बोले हीना का चेहरा पकड़ कर उसके होंठ चूमते हुए) मिल गया जवाब.
हीना : (आँखें फाड़-फाड़ कर मुझे देखते हुए) हाँ....
तभी किसी ने दरवाज़ा खट-खाटाया तो हम लोग दूर होके बैठ गये. हीना ने मुझे दुबारा पर्दे के पिछे छुप जाने का इशारा किया ऑर खुद दरवाज़ा खोलने चली गई. उसके बाद मुझे 2 आवाज़े सुनाई देने लगी क्योंकि मैं पर्दे के पिछे था इसलिए कुछ भी देख नही पा रहा था इनमे से एक आवाज़ हीना की थी ऑर दूसरी नाज़ी की थी.
नाज़ी : अपने मुझे बुलाया छोटी मालकिन.
हीना : कहाँ थी इतनी देर चल अंदर आ तेरे लिए एक तोहफा है मेरे पास.
नाज़ी : कौनसा तोहफा मालकिन?
हीना : पहले तू अंदर तो आ फिर दिखाती हूँ ऑर आते हुए दरवाज़ा बंद कर देना अंदर से.
नाज़ी : अच्छा.
उसके बाद कुछ देर कमरे मे खामोशी छा गई फिर मैं बाहर निकलने का इंतज़ार करने लगा कि कब हीना मुझे आवाज़ दे ऑर मैं बाहर निकलु.
नाज़ी : बंद कर दिया दरवाज़ा छोटी मालकिन.
हीना : तुझे एक जादू दिखाऊ.
नाज़ी : कौनसा जादू.
हीना : शर्त लगा ले तेरी आँखें बाहर आने को हो जाएँगी मेरा जादू देख कर.
नाज़ी : मैं कुछ समझी नही मालकिन.
हीना : समझती हूँ रुक... अब देख मेरा जादू... 1.... 2.... 3.....
3 कहने के साथ ही झटके से हीना ने मेरे सामने आया हुआ परदा हटा दिया. नाज़ी मुझे आँखें फाड़-फाड़ कर देखने लगी ऑर मैं भी इतने वक़्त के बाद नाज़ी को देख रहा था इसलिए उसी जगह पर किसी पत्थर की तरह खड़ा उसको देखने लगा. नाज़ी पहले से बहुत कमज़ोर हो गई थी ऑर शायद रो-रो कर उसके आँखो के नीचे काले दाग पड़ गये थे. हम दोनो की ही आँखों मे आँसू थे ऑर बिना पलक झपकाए एक दूसरे को देख रहे थे. नाज़ी बिना कुछ सोचे समझे भाग कर मेरे पास आई ऑर मेरे गले से लग कर ज़ोर-ज़ोर से रोने लगी. मैं भी उसके सिर पर हाथ फेर कर उसको चुप करवाने लगा मुझे समझ नही आ रहा था कि उसको क्या कहूँ ऑर कहाँ से बात शुरू करू. वो किसी छोटे बच्चे की तरह लगातार सिसक-सिसक कर मुझसे लिपट कर रो रही थी. मैने हीना को इशारा से पानी लाने को कहा तो वो भागती हुई बेड के पास पड़ा आधा ग्लास पानी ही उठा लाई मैने वो पानी नाज़ी को पिलाया ऑर चुप करवाया ऑर उसको पकड़ कर बेड तक ले आया ऑर उसको बेड पर बिठा दिया ऑर खुद भी उसके साथ बैठ गया. काफ़ी देर रोने के बाद नाज़ी का मन हल्का हो गया था इसलिए अब वो बेहतर लग रही थी.
नाज़ी : तुम कहाँ थे इतने दिन नीर तुम नही जानते तुम्हारे पिछे हमारे साथ क्या-क्या हो गया बाबा ऑर फ़िज़ा भाभी... (उसने फिर से रोना शुरू कर दिया)
मैं : मैं सब जान गया हूँ नाज़ी मुझे हीना ने सब बता दिया है. फिकर मत करो मैं अब आ गया हूँ ना तुम्हारे साथ जो बुरा होना था हो गया अब रोने की उनकी बारी है जिन्होने हमारे परिवार को इतना रुलाया है.
हीना : नाज़ी अकेली आई हो नीर कहाँ है.
मैं : तुम्हारे सामने तो बैठा हूँ.
हीना : (हँसते हुए) तुम नही हमारा छोटा नीर .
मैं : (सवालिया नज़रों से हीना को ऑर नाज़ी को देखते हुए) छोटा नीर ...???
हीना : फ़िज़ा के बेटे का नाम भी हमने नीर ही रखा है क्योंकि ये नाम हमने नही बल्कि खुद फ़िज़ा ने ही रखा है वो चाहती थी कि उसका बेटा बड़ा होके तुम जैसा बने.
नाज़ी : (अपने आँसू सॉफ करते हुए) मैं अभी लेके आती हूँ.
हीना : यहाँ मत लेके आना उसको... तुम ऐसा करो हवेली के पिछे वाले रास्ते पर पहुँचो हम दोनो अभी वही आ रहे हैं.
मैं : अभी नही शाम को जाएँगे.
हीना : पागल हो गये हो शाम को ख़ान ऑर उसके लोग यहाँ आ जाएँगे तब निकलना ना-मुमकिन होगा.
मैं : कुछ नही होगा मुझ पर भरोसा रखो आज ख़ान को मारे बिना मैं भी यहाँ से जाने वाला नही हूँ.
हीना : वो पोलीस वाला है उसको मारोगे तो सारे पोलीस वाले हमारे पिछे पड़ जाएँगे.
मैं : वो पोलीस वाला है तो अब मैं भी कोई मामूली आदमी नही हूँ पोलीस के हर रेकॉर्ड मे हमारा नाम शान से मोस्ट वांटेड की लिस्ट मे टॉप पर लिखा जाता है (मुस्कुरा कर) अब चाहे कुछ भी हो जाए उसको मारे बिना मुझे चैन नही आएगा या तो मर जाउन्गा या उस हरामखोर को मार दूँगा. हीना मैने मेरे परिवार के 2 अज़ीज़ लोग खोए हैं ऑर वो सब उस कमीने की वजह से क्योंकि मैं जाने से पहले अपने परिवार की ज़िम्मेदारी उसको देके गया था. वैसे भी उसके साथ मेरा कुछ पुराना हिसाब भी है वो नुकसान तो मैं उसको माफ़ भी कर देता अगर उसने मेरे परिवार का ख़याल रखा होता. लेकिन यहाँ आके जो मुझे पता चला है उसके बाद अगर मैने उसको ज़िंदा छोड़ दिया तो लानत है मुझ जैसे बेटे पर जो अपने बाप की मौत का बदला भी नही ले सका.
हीना : मैं हमेशा तुम्हारे साथ हूँ.
नाज़ी : नीर तुमको क्या लगता है सिर्फ़ ख़ान ही दोषी है बाबा की ऑर फ़िज़ा भाभी की मौत का.... तुम नही जानते क़ासिम ने भी हम पर कम ज़ुल्म नही किए आज अगर फ़िज़ा भाभी हमारे बीच नही है तो वो सिर्फ़ उस कमीने की वजह से नही है.
मैं : (नाज़ी का हाथ पकड़कर उसको खड़ा करते हुए) चलो पहले ये हिसाब ही बराबर कर लेते हैं.
हीना : अब तुम कहाँ जा रहे हो.
मैं : मैं ज़रा क़ासिम से मिल कर आता हूँ... तब तक तुम किसी से कुछ मत कहना बस शादी के लिए तेयार हो जाओ.
हीना : ठीक है लेकिन शाम तक तुम आ जाओगे ना.
मैं : (हाँ मे सिर हिलाते हुए) हमम्म... फिकर मत करो.
हीना : (हाँ मे सिर हिलाते हुए) ठीक है जैसे तुम कहो.
मैं : नाज़ी तुम नीचे जाओ ऑर छोटे नीर को लेके तुम मुझे हवेली के पिछे वाले गेट पर मिलो.
नाज़ी : अच्छा...
उसके बाद नाज़ी ऑर मैं हीना के कमरे से बाहर निकल आए. नाज़ी वापिस तेज कदमो के साथ सीढ़ियो से नीचे उतर गई ऑर मैं उस दरबान के साथ दूसरी सीढ़िया उतरता हुआ हवेली के दरवाज़े के पिछे के रास्ते पर आ गया.
दरबान : क्या भाई कितनी देर लगा दी तुमने मेरी तो जान निकल रही थी डर से.
मैं : तुम्हारा बहुत-बहुत शुक्रिया तुमने मेरी बहुत मदद की है ( अपनी जेब से कुछ ऑर पैसे निकालते हुए) ये लो रखो.
दरबान : नही भाई तुमने पहले ही काफ़ी पैसे दे दिए हैं
मैं : अर्रे रख ले यार तेरे काम आएँगे.
दरबान : (नज़रे नीचे करके मुस्कुराते हुए) शुक्रिया... ऑर कोई काम हो तो याद कर लेना.
मैं : फिकर मत करो शाम को ही तुमसे एक ऑर काम है मुझे.
दरबान : अच्छा...
उसके बाद हम दोनो पिच्चे के रास्ते से हवेली के बाहर निकल गये ऑर वापिस हवेली के सामने वाले दरवाज़े पर आ गये वहाँ से मैं अपनी गाड़ी मे बैठ गया ऑर वो दरबान अपनी जगह पर जाके बैठ गया. मैने गाड़ी स्टार्ट की ऑर वापिस हवेली के पिछे के दरवाज़े की तरफ ले गया वहाँ नाज़ी पहले से खड़ी मेरा इंतज़ार कर रही थी उसने एक छोटे से बच्चे को भी पकड़ रखा था. मैने जल्दी से गाड़ी का दरवाज़ा खोला ऑर उसको अंदर आने का इशारा किया वो बिना कुछ बोले मुस्कुरा कर गाड़ी के अंदर बैठ गई.
नाज़ी : (मुस्कुराते हुए) ये देखो हमारा छोटा नीर ... सुंदर है ना
मैं बिना कुछ बोले उस बच्चे को अपने गोद मे उठाया ऑर उसको देखने लगा बहुत ही मासूम ऑर खूबसूरत था उसका नाक एक दम फ़िज़ा जैसा था ऑर आँखें एक दम मेरे जैसी. आख़िर था भी तो मेरा खून उसको मैं जी भर के देखता रहा ऑर खुशी से मेरी आँखो मे आँसू आ गये मैने उसको अपने चेहरे के करीब किया ऑर उसका माथा चूम लिया ऑर वापिस नाज़ी को पकड़ा दिया. उसके बाद मैने गाड़ी को अपने पुराने घर की तरफ वापिस घुमा दिया जहाँ अब क़ासिम रहता था.
नाज़ी : हम कहाँ जा रहे हैं नीर .
मैं : हम क़ासिम से मिलने जा रहे है.
नाज़ी : नही मैं वहाँ कभी नही जाउन्गी उस ज़लील इंसान का मैं मुँह भी नही देखना चाहती.
मैं : तुम्हारे सामने ही सारा हिसाब बराबर करके जाउन्गा मैं.
नाज़ी बिना कुछ बोले नज़रे झुका कर बैठ गई. कुछ ही देर मे मैने घर के सामने गाड़ी को रोक दिया.
मैं : नाज़ी तुम यही बैठो मैं अभी आता हूँ.
नाज़ी : (हाँ मे सिर हिलाते हुए ) अच्छा.
उसके बाद मैं गाड़ी से उतरा ऑर जाके घर के दरवाज़े के सामने खड़ा हो गया. मैने 1-2 बार दरवाज़ा खट-खाटाया जब किसी ने दरवाज़ा नही खोला तो मैने एक जोरदार लात दरवाज़े पर मारी जिससे झटके से दरवाज़े का एक हिस्सा टूट गया ऑर हवा मे लटकने लगा दरवाज़ा खुल गया था मैं बिना कुछ बोले अंदर चला गया ऑर चारो तरफ देखने लगा पूरा घर वैसे का वैसा था लेकिन समान काफ़ी बदल गया था टूटी-फूटी चीज़ो की जगह नयी ऑर महँगी चीज़े आ गई थी. अभी मैं घर को देख ही रहा था कि एक औरत मेरी तरफ भाग कर आई.
औरत : कौन है तू ऑर इस तरह मेरे घर मे घुसने की तेरी हिम्मत कैसे हुई.
मैं : (उस औरत को गर्दन से पकड़ कर उपर हवा मे उठाते हुए) जिस घर को तू अपना कह रही है वो मेरा घर है मेरे बाबा का घर जिस पर तू ऑर तेरे मादरचोद शोहार ने क़ब्ज़ा किया है अब या तो तू उसको बाहर निकाल नही तो मैं तेरी जान ले लूँगा.
औरत : (हवा मे पैर चलाते हुए ऑर उंगली से बाबा के कमरे की तरफ इशारा करते हुए) उधर... उधहाअ...उधाअरररर....
मैं : (बिना कुछ बोले उस औरत को छोड़ते हुए) क़ास्स्सिईइम्म्म्म..... बाहर निकल.
मेरे ज़ोर से उसका नाम पुकारने पर क़ासिम शराब के नशे मे धुत्त लड़-खडाता हुआ बाहर आया उसके हाथ मे अब भी शराब की बोतल थी.
क़ासिम : कौन है ओये... नीर तू यहानाअ....
मैं : मेरे घरवाले कहाँ है क़ासिम.
क़ासिम : क्या बताऊ यार सब मर गये मैने उनको बचाने की बहुत कोशिश की बाबा तो मेरे आने से पहले ही गुज़र चुके थे फ़िज़ा ऑर नाज़ी भी एक दिन मर गई.
मैं : (गुस्से मे तेज़ कदमो के साथ क़ासिम के पास जाके उसके मुँह पर थप्पड़ मारते हुए) मादरचोद झूठ बोलता है तूने मारा है मेरी फ़िज़ा को तूने घर से निकाला नाज़ी को दर-दर की ठोकर खाने के लिए साले शरम आती है कि तू उस फरिश्ते जैसे इंसान का बेटा है.
क़ासिम : मैं... मैं... मैं क्या करता मुझे नबीला से प्यार जो था ऑर वैसे भी फ़िज़ा बहुत गिरी हुई लड़की थी साली मेरे जैल जाने के बाद दूसरो के साथ सोती थी हरामजादी.
मैं : भेन्चोद एक बार ऑर तूने फ़िज़ा को गाली निकली तो यही गाढ दूँगा तुझे.
क़ासिम : साली बाज़ारु को बाज़ारु ही कहूँगा ना पता नही किसका पाप मेरे गले डाल रही थी कमीनी.... अच्छा हुआ मर गई. (हँसते हुए)
मैं : (बिना कुछ बोले अपनी गन निकाली ऑर उसके सिर मे 2 फाइयर कर दिए) मादरचोद.... अब बोल... बोल हरामख़ोर फ़िज़ा के बारे मे क्या बोलेगा तू.... (क़ासिम की लाश को लात मारते हुए) ऐसे ही लात मारी थी ना फ़िज़ा को अब मार लात दिखा कितनी ताक़त है तुझ मे दिखा मुझे.
मैं गुस्से मे पागल हो चुका था ऑर लगातार उसके पेट मे ठोकर मार रहा था मुझे इस बात की भी परवाह नही थी कि वो मर चुका है. तभी मुझे नाज़ी की आवाज़ सुनाई दी...
नाज़ी : (रोते हुए) बस करो नीर वो मर चुका है.
मैं : हरामख़ोर फ़िज़ा को बाज़ारु बोलता है.
नाज़ी : चलो यहाँ से तुमको मेरी कसम है चलो.
मैं बिना कुछ बोले हाथ मे गन पकड़े वहाँ से चलने लगा तभी मेरी नज़र उस औरत पर पड़ी जो ज़मीन पर गिरी पड़ी थी मुझे देखते ही वो रेंगते हुए मेरे पास आ गई ऑर मेरे पैर पकड़ लिए.
औरत : मुझे माफ़ कर दो मुझे जाने दो मैने तो कुछ नही किया.
नाज़ी : (उस औरत को लात मारते हुए) क़ासिम को इंसान से जानवर बनाने वाली तू ही है कमीनी.
मैं : (बिना कुछ बोले अपनी गन को दुबारा लोड करते हुए ) चलो नाज़ी... (ये बोलते ही मैने 1 गोली उस औरत के सिर मे भी मार दी ऑर नाज़ी को लेके घर से बाहर निकल आया)
उसके बाद हम दोनो गाड़ी मे आके बैठ गये ऑर नाज़ी ने बच्चे को अपनी गोदी मे रख लिया ऑर फिर से मेरे कंधे पर सिर रख कर रोने लगी.
मैं : चुप हो जाओ नाज़ी सब ठीक हो जाएगा मैं हूँ ना.
नाज़ी : मुझे समझ नही आ रहा मैं क्या कहूँ नीर एक तुम हो जो गैर होके भी हमारे अपने से बढ़कर निकले ऑर एक ये क़ासिम था जो मेरा सगा भाई होके भी इतना बेगैरत निकला.
मैं : (नाज़ी के आँसू सॉफ करते हुए) चलो चुप हो जाओ ऑर मुझे बाबा ऑर फ़िज़ा के पास ले चलो उनको मिट्टी देना तो मेरे नसीब मे नही था कम से कम एक बार उनको देख कर आना चाहता हूँ.
नाज़ी : (चुप होते हुए) चलो गाँव के पुराने कब्रस्तान की तरफ गाड़ी घुमा लो.
उसके बाद हम दोनो पुराने कब्रिस्तान की तरफ चले गये वहाँ बाबा ऑर फ़िज़ा की कब्र के पास बैठ कर मैं काफ़ी देर तक रोता रहा. कुछ देर जी भर के रो लेने के बाद अब काफ़ी बेहतर महसूस कर रहे था मैने उनके लिए खरीदे हुए कपड़े उनकी क़ब्र पर ही रख दिए ऑर नाज़ी के पास वापिस आ गया. नाज़ी गाड़ी के पास खड़ी थी ऑर बच्चे को चुप करवा रही थी क्योंकि शायद बच्चा गोली की आवाज़ से डर गया था ऑर लगातार रो रहा था.
नाज़ी : नीर बहुत भूखा है काफ़ी देर से इसको दूध नही मिला है इसलिए.
मैं : तो अब क्या करे.
नाज़ी : हमें हवेली वापिस जाना होगा वहाँ मेरे कमरे मे इसकी दूध की बोतल है.
मैं : ठीक है हम पहले हवेली ही चलते हैं.
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