Kamukta Kahani अहसान
07-30-2019, 01:22 PM,
#41
RE: Kamukta Kahani अहसान
अपडेट-39

पूरे रास्ते मैं अपनी गाव की लाइफ ऑर गाव वालों के बारे मे रिज़वाना को बताता रहा. कुछ ही घंटे मे हम मेरे गाव मे आ चुके थे आज इतने दिन बाद अपने गाव मे आके मुझे बहुत खुशी हो रही थी. वैसे तो ये गाव मेरा नही था लेकिन जाने क्यो अब इस गाव से भी प्यार हो गया था इसकी मिट्टी की खुश्बू मुझे एक अजीब सा सुकून देती थी. कुछ ही देर मे मैने मेरे घर के सामने गाड़ी रोकदी जहाँ नाज़ी घर के बाहर बँधे पशुओ को चारा डालने मे मसरूफ़ थी. मैने जल्दी से कार बंद की ऑर एक मुस्कुराहट के साथ गाड़ी का दरवाज़ा खोला. पहले तो नाज़ी मुझे गौर से देखती रही ऑर जब उससे यक़ीन हो गया कि ये मैं ही हूँ तो वो चारे का टोकरा वही फेंक कर मेरी तरफ भागने लगी ऑर आके मुझे गले से लगा लिया. नाज़ी को गले लगाके मैं भी ये भूल गया कि मैं नाज़ी से नाराज़ था. आज तो बस दिल खोलकर सबसे मिलना चाहता था.

नाज़ी : तुम कहाँ से टपक पड़े.....इतने दिन बाद कहाँ से याद आ गई हमारी.

मैं : अर्रे पागल लड़की आस-पास भी देख लिया कर.

नाज़ी : (रिज़वाना को देखकर जल्दी से मुझसे अलग होती हुई) ओह्ह्ह माफ़ कीजिए डॉक्टरनी जी.... मैने आपको देखा नही.
रिज़वाना : (हँसते हुए) कोई बात नई...जब कोई अपना बहुत दिन बाद मिलता है तो काबू नही रहता खुद पर मैं समझ सकती हूँ.

मैं : अब सारी बातें यही करनी है या अंदर भी जाने दोगि.

नाज़ी : (अपने सिर पर हाथ मारते हुए) ओह्ह मैं तो भूल ही गई चलो अंदर आओ.

उसके बाद हम तीनो घर के अंदर आ गये ऑर नाज़ी का शोर सुनकर सबसे पहले फ़िज़ा बाहर आई तो उसकी भी हालत कुछ नाज़ी जैसी ही थी. मुझे देखते ही उसका चेहरा खुशी से खिल उठा जैसे ही वो मेरे पास आने लगी तो मेरे साथ खड़ी रिज़वाना को देखकर उसने अपने कदम वही रोक लिए ऑर डोर से ही मुझे ओर रिज़वाना को सलाम किया. हम-दोनो ने भी फ़िज़ा को अदब से सलाम किया ऑर इतना मे नाज़ी कमरे के अंदर भाग गई जहाँ बाबा होते थे. मैने भी जल्दी से नाज़ी के पीछे-पीछे ही कमरे मे चला गया बाबा से मिलने के लिए. मुझे देखते ही बाबा का चेहरा भी खुशी से खिल उठा मैं अब उनके पास जाके बैठ गया ऑर अदब से उनको सलाम किया उन्होने ने भी मेरे माथे को चूम लिया.

मैं : कैसे हैं आप बाबा.

बाबा : बेटा अब तुम आ गये हो तो अब तंदुरुस्त हो गया हूँ. तुम क्या आ गये ऐसा लगता है घर मे रौनक आ गई. हमने तुमको बहुत याद किया बेटा.

मैं : (मुस्कुराते हुए) इस घर की रौनक तो आप से है बाबा. मैने भी आप सब को बहुत याद किया. ऐसा एक भी दिन नही गया जब आपकी याद ना आई हो.

बाबा : बेटा हमारा तो घर ही सूना हो गया था तुम्हारे जाने के बाद. वो पगली नाज़ी तो दरवाज़ा नही बंद करने देती थी कि नीर ही ना आ जाए.

नाज़ी : क्या बात है आते ही बाबा के पास बैठ गये हो बाहर नही आना क्या जनाब... हम भी आपके इंतज़ार मे हैं.

मैं : हां बस... बाबा को मिलकर आता हूँ.

बाबा : चलो बेटा मैं भी तुम्हारे साथ बाहर ही चलता हूँ.

मैं : जी बाबा चलिए (बाबा को उठाते हुए)

बाबा : क्या बात है बेटा काम बहुत जल्दी ख़तम हो गया तुम्हारा. ख़ान साहब भी आए हैं क्या.

मैं : जी नही बाबा ख़ान साहब नही आए. ऑर वो इतने दिन तो मैं ट्रैनिंग के लिए गया हुआ था. कल मुझे मेरे असल काम पर भेजा जा रहा था तो मैने सोचा जाने से पहले आप सब से मिलकर जाउ. वैसे भी आप - सब की बहुत याद आ रही थी.

बाबा : (उदास होते हुए) अच्छा किया बेटा जो मिलने आ गये.... कल फिर से जा रहे हो बेटा.

मैं : जी बाबा

जब मैं बाबा को लेके बाहर आया तो शायद रिज़वाना ने मेरे जाने के बारे मे फ़िज़ा ऑर नाज़ी को पहले ही बता दिया था इसलिए उनका खुश-हाल चेहरा फिर से उदास हुआ पड़ा था.

मैं : अर्रे क्या हुआ आप सबने मुँह क्यो लटका लिया.

फ़िज़ा : कल तुम फिर से जा रहे हो हमने तो सोचा था कि सारा काम ख़तम करके ही आए हो.

मैं : (कुर्सी पर बाबा को बैठते हुए) हंजी कल निकलना है ओर काम भी जल्दी ही ख़तम कर दूँगा फिकर मत करो.

नाज़ी : वापिस कितने दिन मे आओगे

मैं : पता नही कुछ दिन लग सकते हैं इसलिए मैने सोचा की जाने से पहले सबसे मिलता हुआ चलूं. अच्छा बाबा ये डॉक्टर रिज़वाना है जिनके पास मैं शहर मे रहता हूँ.

रिज़वाना : (बाबा को अदब से सलाम करते हुए)

मैं : बाबा ये भी आज मेरे साथ यही रुक जाए तो आपको कोई ऐतराज़ तो नही बिचारी इतनी दूर से मुझे छोड़ने आई हैं.

बाबा : नही नही बेटा कैसी बातें कर रहे हो भला मुझे क्या ऐतराज़ होगा ये भी तो हमारी नाज़ी जैसी ही है ऑर ये तुम्हारा अपना घर है बेटा रहो जितने दिन तुम चाहो.

रिज़वाना : जी शुक्रिया बाबा जी मैं बस कल नीर के साथ ही चली जाउन्गी.

नाज़ी : वैसे बाबा नीर पहले से काफ़ी बदला हुआ नही लग रहा.

बाबा : नही बेटा ये तो पहले जैसा ही है

नाज़ी : उउउहहुउऊ....कपड़े तो देखो ना नीर के बाबा (मुस्कुराते हुए) गुंडा लग रहा है ना.

फ़िज़ा : (मुस्कुरा कर) चुप कर पागल इतना अच्छा तो लग रहा है वैसे भी शहर मे रहने का कुछ तो असर आएगा.

उसके बाद सारा दिन ऐसे ही गुज़रा रात को बाबा अपनी आदत के मुताबिक़ जल्दी सो गये लेकिन नाज़ी,फ़िज़ा ऑर रिज़वाना को चैन कहाँ था वो तीनो मुझे पूरी रात घेरकर बैठी रही ऑर मेरे गुज़रे 15 दिनो के बारे मे मुझसे पूछती रही ऐसे ही सारी रात बातों का सिल-सिला चलता रहा. तीनो आज खुश भी थी ऑर उदास भी थी. लेकिन मैं मजबूर था ना उनको मुकम्मल खुशी दे सकता था ना ही उनकी उदासी को दूर कर सकता था. बातें करते हुए जाने कब सुबह हो गई पता ही नही चला अब मुझे अपने वादे के मुताबिक़ जाना था. मेरा बिल्कुल जाने दिल नही था ऑर ना ही घर मे किसी को मुझे भेजने का दिल था लेकिन फिर भी बाबा की दी हुई ज़ुबान को मुझे पूरा करने के लिए जाना था. सुबह बाबा भी जल्दी उठ गये ऑर उठ ते ही मुझे अपने कमरे मे बुला लिया मेरे पिछे-पिछे नाज़ी, फ़िज़ा ऑर रिज़वाना भी उसी कमरे मे आ गई.

मैं : जी बाबा आपने मुझे बुलाया था.

बाबा : (हाँ मे सिर हिलाते हुए) बेटा अब तुम थोड़ी देर मे चले जाओगे इसलिए वहाँ जाके अपना ख़याल रखना.

मैं : जी बाबा... आप सब लोग भी अपना ख्याल रखना

रिज़वाना : (पिछे से मेरे कंधे पर हाथ रखते हुए) नीर तुम फिकर मत करो मैं हूँ ना तुम्हारी गैर मोजूद्गी मे मैं यहाँ आती रहूंगी ऑर इनको किसी चीज़ की कमी नही होगी ये मेरा तुमसे वादा है.

मैं : (मुस्कुरकर) शुक्रिया बस अब मैं चैन से जा सकता हूँ.

फ़िज़ा : बाबा मुझे डर लग रहा है. पता नही वो लोग कैसे होंगे.... आप एक बार ख़ान साहब से बात करके देखिए ना उन्हे कह दीजिए कि हमे नही नीर को नही भेजना.

मैं : बच्चों जैसी बात मत करो फ़िज़ा तुम जानती हो बाबा ने वादा किया था ऑर वैसे भी ख़ान की मदद करके मैं भी तो हमेशा के लिए आज़ाद हो जाउन्गा फिर तो हमेशा के लिए यहाँ ही रहूँगा ऑर रही मेरी बात तो उपर वाले का करम से मैं अकेला भी पूरी फ़ौज़ पर भारी हूँ.

नाज़ी : बस-बस....जब देखो लड़ने पर आमादा रहते हो. वहाँ जाके अपना खाने पीने का ख्याल रखना ऑर हो सके तो हमे फोन करते रहना ऑर अपनी खैर-खबर देते रहना.

मैं : (ना मे सिर हिलाते हुए) नही नाज़ी मैं फोन नही कर पाउन्गा.

नाज़ी : (आँखें दिखाते हुए) क्यो... वहाँ फोन नही है क्या....

मैं : ख़ान साहब ने बोला था कि वहाँ जाके जब तक मेरा मिशन पूरा नही हो जाता मैं किसी को नही जानता ऑर मेरा कोई नही.

फ़िज़ा : क्यो कोई नही हम हैं ना....

मैं : (अपने सिर पर हाथ रखते हुए) अर्रे उन लोगो को मैं अपनी कोई कमज़ोरी नही दिखा सकता उनकी नज़र मे तो मैं शेरा ही हूँ ना जिसका आगे-पिछे कोई नही.

बाबा : (अपने दोनो हाथ हवा मे उठाते हुए) मालिक मेरे बेटे की हिफ़ाज़त करना.... नाज़ी बेटा वो मैं जो ताबीज़ लेके आया था नीर के लिए वो ले आओ ज़रा.

नाज़ी : अभी लाई बाबा

मैं : कौनसा ताबीज़ बाबा

बाबा : बेटा ये बहुत मुबारक ताबीज़ है बहुत दुआ के साथ बनाया गया है ये तुम्हारी हर बुरी बला से हिफ़ाज़त करेगा.

नाज़ी : (तेज़ कदमो के साथ कमरे मे आके बाबा को ताबीज़ देते हुए) ये लो बाबा.

बाबा : (मेरे गले मे ताबीज़ बाँध कर मेरा माथा चूमते हुए) खुश रहो बेटा. अब तुम तेयार हो जाओ तुम्हारे जाने का वक़्त हो गया.

मैं : जी बाबा.

उसके बाद मैं ऑर रिज़वाना जल्दी से तेयार होने मे लग गये ऑर नाज़ी ऑर फ़िज़ा मेरे ऑर रिज़वाना के लिए नाश्ता बनाने लग गई. तेयार होके हम सब ने साथ मे नाश्ता किया ऑर उसके बाद फिर वही ढेर सारे आँसू ऑर बेश-कीमत दुवाओ के साथ मुझे विदा किया गया. कार मे रिज़वाना भी खुद को रोने से रोक नही पाई ऑर तमाम रास्ते वो भी मेरे कंधे पर सिर रख कर रोती रही. यक़ीनन इन सब के दिल मे जो मेरे लिए प्यार था वही मेरा जाना मुश्किल कर रहा था मेरा दिल चाह रहा था कि मैं ना कर दूं ऑर मैं ना जाउ. लेकिन मैं ऐसा चाह कर भी नही कर सकता था इसलिए अपने दिल को मज़बूत करके मैने कार की रफ़्तार बढ़ा दी अब मैं जल्दी से जल्दी शहर पहुँचना चाहता था. सब घरवाले ऑर रिज़वाना के बारे मे सोचते हुए जल्दी ही मैने कार को शहर तक पहुँचा दिया.

मैं : रिज़वाना हम शहर आ गये हैं अब बताओ तुम भी मेरे साथ हेड-क्वॉर्टर चलोगि या तुमको घर चोद दूँ.

रिज़वाना : (अपने आँसू पोन्छ्ते हुए) मैं भी तुम्हारे साथ ही चलती हूँ ना घर मे कौन है जिसके पास जाउ.

मैं : ठीक है.

उसके बाद हम हेड-क़्वार्टेर पहुँच गये जहाँ ख़ान ओर राणा ह्मारा पहले से इंतज़ार कर रहे थे मैने रिज़वाना को उसके कॅबिन मे जाने का इशारा किया लेकिन वो फिर भी मेरे पिछे-पिछे ख़ान के कॅबिन मे ही आ गई. मेरे कमरे मे घुसते ही ख़ान ने तालियो के साथ मे मेरा स्वागत किया.

ख़ान : (ताली बजाते हुए) वाह भाई वा क्या ज़ुबान का पक्का आदमी है देख राणा तुझे बोला था ना ये सुबह आ जाएगा.

राणा : साहब आपको पक्का यक़ीन है ये शेरा ही है.

ख़ान : मेरा दिमाग़ मत खराब कर तुझे जो बोला वो कर फालतू मे अपना दिमाग़ मत चला समझा.

राणा : जी माफ़ कर दीजिए ग़लती हो गई.

रिज़वाना : ख़ान तुम नीर को कहाँ भेज रहे हो.

ख़ान : सॉरी मेडम ये सीक्रेट है आपको नही बता सकता.

रिज़वाना : (मुझे देखते हुए) अपना ख्याल रखना ऑर जाते हुए मुझे मिलकर जाना.

मैं : (हाँ मे सिर हिलाते हुए) अच्छा.

उसके बाद रिज़वाना कमरे से बाहर चली गई ऑर मैं राणा के साथ वाली कुर्सी पर आके बैठ गया. ख़ान अपनी कुर्सी से खड़ा हुआ ऑर जल्दी से तेज़ कदमो के साथ कमरे के बाहर खड़े गार्ड की तरफ गया ऑर उससे दूर जाके खड़े होने का बोल दिया ऑर फिर वापिस अपनी कुर्सी पर आके बैठ गया. मैं ऑर राणा दोनो ख़ान को बड़े गौर से देख रहे थे. ख़ान ने मुझे एक मुस्कान के साथ देखा ऑर बोला...

ख़ान : हाँ तो नीर मिल आए घरवालो से.
मैं : जी मिल आया.

ख़ान : अब मेरे काम के लिए तेयार हो.

मैं : हंजी एक दम तेयार हूँ

ख़ान : बहुत खुंब... तो ठीक है फिर अभी थोड़ी देर मे निकलना है उससे पहले मेरे साथ आओ... राणा तुम यही बैठो ऑर हो सके तो अपने लिए चाय कॉफी मंगवा लेना यार.

राणा : जी कोई बात नही मैं ठीक हूँ आप अपना काम ख़तम कर ले.
ख़ान : (मेरे कंधे पर हाथ मरते हुए ) चलो मेरे साथ आओ.

मैं बिना कोई जवाब दिए अपनी कुर्सी से खड़ा हुआ ऑर सवालिया नज़रों के साथ ख़ान के पिछे-पिछे चलने लगा. ख़ान मुझे एक कमरे मे ले गया जहाँ सिर्फ़ एक टेबल ऑर दो कुर्सियाँ लगी हुई थी.

ख़ान : तुम अंदर बैठो मैं अभी आता हूँ.

मैं : जी अच्छा.

कुछ देर इंतज़ार करने के बाद ख़ान एक बॅग के साथ कमरे मे आ गया ऑर बॅग को टेबल पर मेरे सामने रख दिया ऑर मेरे देखते ही देखते बॅग खोल कर उसमे से समान निकालना शुरू किया.

ख़ान : अपने जूते उतारो ऑर ये जूते पहन लो.

मैं : क्यो... इनमे क्या खराबी है अभी नये ही लिए हैं.

ख़ान : जो मैं जूते तुमको दे रहा हूँ ये फॅशन के लिए नही बल्कि इनमे ट्रांसमेटेर लगा है इससे मुझे पता चलता रहेगा की तुम कहाँ हो.

मैं : (अपने जूते उतारते हुए) अच्छा पहन लेता हूँ.

ख़ान : (टेबल पर एक हॅंड पिस्टल रखते हुए) ये गन है तुम्हारी सेफ्टी के लिए ज़रूरत पड़े तो ही चलाना लेकिन याद रखना अब तुम नीर हो ऑर नीर पेशावॉर क़ातिल नही है.

मैं : (गन उठाते हुए) जी अच्छा.

ख़ान : (एक लॉकेट निकालते हुए) ये देखने मे लॉकेट जैसा है लेकिन असल मे कॅमरा है इससे पहन लो... तुम उन लोगो के साथ जहाँ भी जाओ अपने लॉकेट से खेलने के बहाने उनकी ऑर नये लोगो की तस्वीरे लेते रहना.

मैं : ठीक है.

ख़ान : जो तुमको ट्रैनिंग मे सिखाया था वो सब याद है ना.

मैं : जी सब याद भी है ऑर मैं अब सब डिवाइस इस्तेमाल भी कर सकता हूँ.

ख़ान : ठीक है.

मैं: लेकिन ख़ान साहब वो तस्वीरें मैं आप तक पहुन्चाउन्गा कैसे.

ख़ान : मैं तुमको हर हफ्ते तुम्हारे फाइट क्लब पर मिलूँगा वहाँ हर बार तुम अपना लॉकेट इस दूसरे लॉकेट से बदल देना ताकि तुम्हारे लॉकेट से तस्वीरे लेकर मैं उनको डवलप करवा सकूँ ऑर तुम दूसरे लॉकेट से ऑर नयी तस्वीर ले सको.

मैं : जी अच्छा.... लेकिन मुझे कैसे पता चलेगा कि आप मुझे कब ऑर कहाँ मिलोगे.

ख़ान : तुम बस अपने फाइट क्लब मे आ जया करना वहाँ तुमको मेरा कोई ना कोई आदमी मिल जाएगा जो तुमको मेरा मिलने का वक़्त ऑर जगह बता देगा.

मैं : ठीक है.

ख़ान : वहाँ जाके लड़की ऑर ताक़त के नशे मे मत डूब जाना ऑर जब भी मोक़ा मिले सबूत इकट्ठे करते रहना ताकि मैं उन लोगो को सज़ा दिलवा सकूँ.

मैं : (हां मे सिर हिलाते हुए) जी अच्छा.

ख़ान: अब तुम राणा के साथ जाओ वो तुमको तुम्हारी मंज़िल तक पहुँच देगा ऑर एक ज़रूरी बात तुम मेरे लिए काम करते हो ये बात कभी ग़लती से भी किसी को मत बताना नही तो वो लोग तुमको वही ख़तम कर देंगे.

मैं: हमम्म

ख़ान : अब तुम राणा के साथ जाओ ओर उसके साथ जाके डील करो याद रखना तुमको वहाँ जाके लड़ाई करनी है किसी भी बहाने से समझ गये.

मैं : हाँ सब समझ गया.

ख़ान : कुछ भी समझ नही आया तो फिर से पूछ लो लेकिन वहाँ जाके कोई गड़बड़ मत करना तुम नही जानते तुम पर मैं कितना बड़ा दाव खेल रहा हूँ अगर तुमने कोई ग़लती की तो मेरी जान भी ख़तरे मे आ जाएगी क्योंकि उन लोगो की पहुँच का तुमको अंदाज़ा नही है यहाँ मेरे स्टाफ मे भी उन लोगो ने अपने कुछ कुत्ते पल रखे हैं इसलिए मैने तुम्हारी ट्रैनिंग को एक दम टॉप सीक्रेट ऑर सिर्फ़ अपने भरोसे के आदमियो के साथ पूरा करवाया है.

मैं : आप फिकर ना करें सब वैसे ही होगा जैसा आप चाहते हैं मुझे पर भरोसा किया है तो भरोसा रखिए ऑर मेरे पिछे से मेरे घरवालो को कोई तक़लीफ़ नही होनी चाहिए.

ख़ान : उनकी फिकर तुम मत करो मैं खुद उनका ख्याल रखूँगा ऑर देखूँगा कि उनको किसी भी चीज़ की कमी ना हो.

मैं : जी शुक्रिया.

उसके बाद मैं ओर ख़ान वापिस ख़ान के कॅबिन मे चले गये जहाँ राणा मेरा इंतज़ार कर रहा था.

मैं: ख़ान साहब मैं एक मिंट आया जाने से पहले एक बार डॉक्टर साहिबा से मिल आउ.

ख़ान : जाओ लेकिन जल्दी आना.

उसके बाद मैं रिज़वाना के कॅबिन मे चला गया जहाँ वो शायद मेरा ही इंतज़ार कर रही थी मेरे कॅबिन मे आते ही उसने दरवाज़ा अंदर से बंद किया ऑर मुझे गले लगा लिया.

रिज़वाना : जा रहे हो.

मैं : हमम्म बस तुमको मिलने के लिए ही आया था.

रिज़वाना : कहाँ जा रहे हो.

मैं : पता नही ख़ान ने मुझे भी नही बताया बस इतना पता है राणा के साथ जाना है.

रिज़वाना : ठीक है कोई बात नही. वहाँ अपना ख़याल रखना ऑर अगर मुमकिन हो तो मुझे फोन कर लेना जब भी मोक़ा मिले.

मैं : अच्छा... ठीक है अब मैं जाउ.

रिज़वाना : हम्म जाओ

मैं : मुझे छोड़ॉगी तो जाउन्गा

रिज़वाना : रुक जाओ 2 मिंट ढंग से गले भी नही लगाने देते....(कुछ देर मुझे गले से लगा कर) हमम्म अब ठीक है अब जाओ (मेरे होंठ चूमते हुए)

मैं : तुम भी अपना ख्याल रखना ऑर रोना मत.

रिज़वाना : (मुस्कुरा कर हाँ मे सिर हिलाते हुए) हमम्म
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Kamukta Kahani अहसान - by sexstories - 07-30-2019, 12:53 PM
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