Kamukta Kahani अहसान
07-30-2019, 12:58 PM,
#21
RE: Kamukta Kahani अहसान
अपडेट-19

बाबा : बेटा तुम कार चलानी जानते हो?
मैं : जी बाबा वो जिस दिन मैं शहर गया था तब रास्ते मे सरपंच की बेटी की कार खराब हो गई थी तो मैने उसकी कार ठीक कर दी थी फिर काफ़ी दूर तक चला कर भी दी थी शायद इसलिए वो मुझसे कार सीखना चाहती है (मैं ये सब फ़िज़ा को सुनाने के लिए कह रहा था)

बाबा : ओह्हो मैं क्या पूछ रहा हूँ तुम क्या जवाब दे रहे हो... मैने पूछा तुमको कार चलानी कहाँ से आई?

मैं : पता नही बाबा याद नही

बाबा : अच्छा चलो कोई बात नही... अब तुम आराम करो थके हुए होगे मैं भी ज़रा बाहर सैर कर लूँ....खाना बन जाए तो आवाज़ लगा देना मैं पड़ोस मे हैदर साब के साथ ज़रा सैर कर रहा हूँ यही पास मे.

मैं : अच्छा बाबा.


बाबा के घर से निकलते ही फ़िज़ा ऑर नाज़ी दोनो मेरे पास आके खड़ी हो गई ऑर गुस्से से मुझे घूर्ने लगी.

फ़िज़ा : अच्छा तो इसलिए जल्दी आ गये थे उस दिन शहर से.

मैं : अर्रे क्या हुआ क्यो गुस्सा कर रही हो बेकार मे

फ़िज़ा : मुझे बताया क्यो नही कि हीना के साथ आए थे तुम

मैं : यार मैं आना नही चाहता था लेकिन वो ज़बरदस्ती साथ ले आई (मैने फ़िज़ा को ये नही बताया कि मैं गया भी हीना के साथ ही था)

फ़िज़ा : मैने सोचा नही था कि तुम मुझसे भी झूठ बोल सकते हो

मैं : बेकार मे झगड़ा ना करो छोटी सी बात थी नही बताया तो क्या हुआ यार

नाज़ी : हाँ भाभी आज दिन मे भी वो चुड़ैल मिलने आई थी

मैं : तो मैने तो उसको मना किया ही था ना यार अब मुझे क्या पता था वो अपने बाप को भेज देगी. ठीक है अगर तुमको नही पसंद तो नही सिखाउन्गा उसको कार चलानी....अब तो खुश हो दोनो.

फ़िज़ा : अब बाबा ने हाँ बोल दिया है तो सिखा देना (मुँह दूसरी तरफ करके बोलती हुई)


ऐसे ही हम तीनो काफ़ी देर लड़ाई करते रहे फिर वो दोनो रसोई मे चली गई ऑर मैं कुर्सी पर बैठा दिन भर के बारे मे सोचने लगा जाने क्यो मुझे बार-बार अपने हाथो मे हीना का वही कोमल अहसास बार-बार हो रहा था. थोड़ी देर बाद फ़िज़ा ऑर नाज़ी ने खाना बना लिया ऑर बाबा को बुलाने के लिए बाहर आ गई. लेकिन अब वो मेरी तरफ देख भी नही रही थी जबकि मैं उसके पास ही खड़ा था.

मैं : अब तक नाराज़ हो.

फ़िज़ा : मैं कौन होती हूँ नाराज़ होने वाली जो तुम्हारा दिल करे वो करो

मैं : ऐसे क्यो बात कर रही हो यार आगे कोई काम बिना तुमसे पुच्छे कभी किया है जो अब करूँगा. यकीन करो मैं सच मे नही जानता था कि वो सरपंच को घर भेज देगी आज दिन मे भी मैने उसको मना कर दिया था.

फ़िज़ा बिना मेरी बात का जवाब दिए बाबा को 2-3 बार आवाज़ लगाके अंदर चली गई. मुझे उसका इस तरह का बर्ताव मेरे साथ बहुत बुरा लगा. लेकिन मैं चुप रहा पर उसको मनाने के लिए कोई ऑर तरीका सोचने लगा.

रात को हमने तीनो ने मिलकर ही खाना खाया लेकिन दोनो आज एक दम खामोश थी ऑर चुप-चाप खाना खा रही थी मैं जानता था कि दोनो मुझसे नाराज़ है इसलिए मुझसे बात नही कर रही है. मैने फ़िज़ा को मनाने के लिए खाना खाते हुए ही एक तरीका सोचा मैने जान-बूझकर चम्मच नीचे गिरा दिया ऑर टेबल से नीचे झुक गया ऑर चम्मच उठाने के बहाने फ़िज़ा की जाँघो पर हाथ रख दिए ऑर सहलाने लगा उसने अपना घुटना झटक दिया मैने फिर से उसके घुटने पर हाथ रख दिया ऑर फिर से अपना हाथ फेरने लगा उसने फिर से मेरा हाथ झटकने के लिए अपनी टाँग हिलाई लेकिन इस बार मैने अपना हाथ झटकने नही दिया बल्कि सीधा हाथ उसकी चूत पर रख दिया उसने दोनो टांगे एक दम से बंद कर ली ऑर मेरा हाथ अपनी टाँगो के बीच मे दबा लिया. अब मैं अपना हाथ हिला भी नही पा रहा था तभी मुझे फ़िज़ा की आवाज़ आई नीचे जाके सो गये हो क्या उपर आओ जाने दो दूसरा चम्मच लेलो ऑर उसने अपनी टांगे खोल दी ताकि मैं अपना हाथ बाहर निकाल सकूँ लेकिन मैने हाथ निकलने से पहले अपनी उंगलियो से उसकी चूत को अच्छे से मरोड़ दिया ऑर फिर उपर आके अपनी कुर्सी पर बैठ गया. जब उपर आया तो मेरे चेहरे पर एक मुस्कान थी ऑर उसके चेहरे पर मुस्कान ऑर दर्द दोनो थे जैसे वो इशारे से कह रही हो कि मुझे नीचे दर्द हो रहा है.


मैने उसकी तरफ मुस्कुरा कर देखा ऑर फिर से खाना खाने लग गया हालाकी उस वक़्त हमारे साथ नाज़ी भी बैठी थी लेकिन मैने अभी फ़िज़ा के साथ क्या किया ये सिर्फ़ मैं ओर फ़िज़ा ही जानते थे नाज़ी को इस बारे मे कोई खबर नही थी क्योंकि वो तो मज़े से अपना खाना खा रही थी.थोड़ी देर बाद मैने नीचे से पैर लंबा किया ऑर उसके पैर पर रख दिया उसने एक पल के लिए मेरी तरफ देखा ऑर फिर खामोशी से खाना खाने लगी मैने थोड़ी देर अपने पैर से उसके पैर को सहलाया ऑर फिर अपना पैर उपर की तरफ ले जाने लगा वो मुझे इशारे से नही कहने लगी लेकिन मेरा पैर धीरे-धीरे उपर की तरफ जा रहा था ऑर उसकी टाँगो के बीच मे ले जाके मैने अपना पैर रोक दिया अब मेरे पैर के अंगूठे का निशाना उसकी चूत पर था मैं धीरे-धीरे खाना भी खा रहा था ऑर साथ मे पैर के अंगूठे से उसकी चूत को मस्सल रहा था. फ़िज़ा की ना चाहते हुए भी मज़े से बार-बार आँखें बंद हो रही थी ऑर वो मुझे बार-बार सिर नही मे हिलाकर ना का इशारा कर रही थी ऑर मैं बस उसको देखता हुआ मुस्कुरा रहा था. उसकी चूत अब पानी छोड़ने लगी थी जिससे उसकी सलवार भी गीली होने लगी थी ऑर मुझे भी उसकी चूत का गीलापन अपने पैर के अंगूठे पर महसूस हो रहा था. मैं लगातार उसकी चूत के दाने को मसलता जा रहा था अब फ़िज़ा ने भी अपनी दोनो टांगे पूरी तरह से खोल दी थी.

कुछ देर की रगड़ाई के बाद वो फारिग हो गई जिससे उसके मुँह से एक ज़ोर से सस्सिईईईईई की आवाज़ निकल गई. मैने जल्दी से अपना पैर हटा लिया ऑर नीचे रख लिया ताकि मेरे पैर पर नाज़ी की नज़र ना पड़ जाए.

नाज़ी : क्या हुआ भाभी ठीक तो हो.

फ़िज़ा : हाँ ठीक हूँ वो बस मिर्ची खा ली थी तो मुँह जल रहा है

नाज़ी : अच्छा... लो पानी पी लो.

मैं : (मुस्कुराते हुए) पानी नही इनको कुछ मीठा खिलाओ ताकि मीठा बोल सकें

फ़िज़ा : मुझे तो आपका ही मीठा पसंद है आप ने मुँह मीठा नही करवाया इसलिए पानी से काम चलना पड़ रहा है(मुस्कुरा कर देखते हुए)

मैं : खाने के बाद मीठा खाना अच्छा होता है मुँह से कड़वाहट निकल जाती है.

फ़िज़ा : आज तो खाने के बाद मुँह मीठा कर ही लूँगी (शरारती हँसी के साथ)

नाज़ी : तुम दोनो ये क्या मीठा-मीठा कर रहे हो मुझे तो कुछ समझ नही आ रहा चलो दोनो चुप-चाप खाना खाओ

मैं : अच्छा ठीक है.

फिर हम तीनो ने मिलकर खाना खाया ऑर खाने खाते हुए फ़िज़ा मुझे बार-बार बस मुस्कुरा कर देखती रही मुझे यक़ीन ही नही हो रहा था कि जो फ़िज़ा थोड़ी देर पहले मुझे ढंग से देख भी नही रही थी वो अब मुझे बार-बार मुस्कुरा कर पहले की तरह बड़े प्यार से देख रही है अब उसकी आँखो मे मेरे लिए प्यार ही प्यार था. खाने के बाद मैं बाबा के पैर दबाने चला गया ऑर फ़िज़ा ऑर नाज़ी रसोई के कामों मे लग गई थोड़ी देर बाद नाज़ी मेरा बिस्तर करने आ गई तो मैने अच्छा मोक़ा देखकर फ़िज़ा के पास जाने का सोचा ऑर मैं तेज़ कदमो के साथ फ़िज़ा के पास चला गया.

मैं : हंजी अब भी नाराज़ हो.

फ़िज़ा : (पलट कर) नीर मैं तुमको बहुत मारूँगी फिर से ऐसा किया तो.

मैं : (हँसते हुए) क्या किया मैने

फ़िज़ा : अच्छा बताऊ क्या किया (मेरे लंड को पकड़ते हुए)

मैं : आहह दर्द हो रहा है छोड़ो ना (हँसते हुए)

फ़िज़ा : (लंड को छोड़कर मेरे गले मे अपनी दोनो बाहे हार की तरह डालकर ) नही छोड़ती क्या कर लोगे

मैं : नाज़ी आ जाएगी (मुस्कुराते हुए)

फ़िज़ा : नही आएगी मैने ही उसको तुम्हारा बिस्तर करने भेजा है.

मैं : अच्छा... फिर एक पप्पी दो ना...

फ़िज़ा : (मुस्कुराते हुए) ना दूं तो....

मैं : (सलवार के उपर से ही उसकी चूत पर हाथ रखते हुए) ले तो मैं ये भी लूँगा ऑर तुम मुझे रोक नही सकती जानती हो ना

फ़िज़ा : सस्सस्स जान ना करो ना हाथ हटाओ पहले वहाँ से फिर जो मर्ज़ी ले लेना

मैं : (हाथ को चूत पर ही रखे हुए) ये भी ले सकता हूँ

फ़िज़ा : क्या बात है आज जनाब की नियत ठीक नही लग रही (मुस्कुराते हुए)

मैं : तुमको देखते ही नियत खराब हो जाती है क्या करू.

फ़िज़ा : एम्म्म ठीक है आज फिर करे?

मैं : लेकिन कैसे नाज़ी साथ होगी ना तुम्हारे

फ़िज़ा : उसकी फिकर तुम ना करो तुम बस रात को कोठरी मे आ जाना ऑर सो मत जाना ठीक है

मैं : ठीक है आ जाउन्गा लेकिन तुम वहाँ आओगी कैसे

फ़िज़ा : उसकी फिकर तुम ना करो मैं आ जाउन्गी उसके सो जाने के बाद वैसे भी वो बहुत गहरी नींद मे सोती है तो सुबह से पहले नही उठेगी

मैं : हमम्म्म चलो ठीक है फिर अब जल्दी से पप्पी दो.

फ़िज़ा : मैं भी तुम्हारी मेरा सब कुछ तुम्हारा जहाँ चाहे वहाँ पप्पी ले लो मैने मना थोड़ी किया है.

मैं : नही आज तुम करो पहले फिर मैं करूँगा

फ़िज़ा : ठीक है थोड़ा नीचे तो झुको

मैं : नही आज एक नये तरीके से करेंगे

फ़िज़ा : कैसे?

मैं : (फ़िज़ा की कमर को दोनो बाजुओ से पकड़कर हवा मे उठाते हुए) ऐसे.... अब देखो तुम्हारा चेहरा मेरे चेहरे के बराबर हो गया है

फ़िज़ा : हमम्म (ऑर फिर फ़िज़ा ने खुद ही अपने रसीले होंठ मेरे होंठों पर रख दिए ऑर अपनी आँखें बंद कर ली)

थोड़ी देर मैं ऑर फ़िज़ा एक दूसरे के होंठ चूस्ते रहे फिर मैने फ़िज़ा को नीचे उतरा तो उसकी साँस बहुत तेज़-तेज़ चल रही थी शायद वो गरम हो गई थी फिर उसने मुझे बाहर जाने को कहा ऑर खुद रसोई के बाकी कामो मे लग गई. मैं बाहर खुली हवा मे बैठा खुले आसमान मे टिम-टिमाते तारो निहारने लगा थोड़ी देर मे नाज़ी भी कमरे से बाहर आ गई ऑर सीधा रसोई मे फ़िज़ा के पास चली गई फिर मैं भी अपने कमरे मे आके बिस्तर पर लेटा सबके सो जाने का इंतज़ार करता रहा कि कब रात हो ऑर कब मैं फ़िज़ा के साथ मज़े की वादियो की सैर करूँ नींद तो मेरी आँखो से क़ोस्सो दूर थी लेकिन फिर भी नाज़ी को दिखाने के लिए मैं बस चुप-चाप आँखें बंद किए हुए अपने बिस्तर पर पड़ा रहा. कुछ देर बाद फ़िज़ा ऑर नाज़ी भी अपने कमरे मे सोने के लिए चली गई ऑर मैं आधी रात का इंतज़ार करने लगा.

मुझे इंतज़ार करते हुए काफ़ी देर हो गई थी इसलिए मैं बस अपने बिस्तर पर पड़ा फ़िज़ा के आने का इंतज़ार कर रहा था क्योंकि उसकी आदत थी वो हमेशा मुझे खुद बुलाने आती थी. मेरी नज़र दरवाज़े पर टिकी हुई थी लेकिन ज़हन मे बार-बार हीना का ख्याल आ रहा था. मैं अपने आप से ही कई सवाल पूछ रहा था ऑर फिर खुद से ही जवाब तलाशने की कोशिश कर रहा था. इस वक़्त मुझे फ़िज़ा के बारे मे सोचना चाहिए था लेकिन जाने क्यो मुझे हीना याद आ रही थी. इस वक़्त मैं दो तरफ़ा सोच मे फँसा हुआ था आँखें बाहर दरवाज़े पर फ़िज़ा को तलाश रही थी ऑर ज़हन हीना को.

अभी मैं अपनी सोचो मे ही गुम था कि दरवाज़े पर मुझे एक साया नज़र आया अंधेरा होने की वजह से मैं चेहरा ठीक से देख नही पा रहा था. मैं बस दरवाजे की तरफ नज़र टिकाए उस साए को ही देख रहा था कि कब वो मुझे बुलाए ऑर मैं उसके पास जाउ. लेकिन एक अजीब बात हुई उस लड़की ने पहले सिर घूमके दाए-बाए देखा फिर कमरे के अंदर आ गई जबकि फ़िज़ा कभी भी अंदर नही आती थी वो तो बाहर खड़ी हुई ही इशारा करके मुझे बुलाती थी. ये जानने के लिए कि ये कौन है ऑर यहाँ इस वक़्त क्यो आई है मैने फॉरन उसको अपने पास आता देखकर अपनी आँखें बंद कर ली जैसे मैं गहरी नींद मे सो रहा हूँ. जब वो लड़की थोड़ा ऑर करीब आई तो मुझे हल्का-हल्का चेहरा नज़र आने लगा ये तो नाज़ी थी. मैं सोच मे पड़ गया कि इस वक़्त ये यहाँ कैसे आ गई ओर फ़िज़ा ने तो मुझे कहा था कि वो इसके सो जाने के बाद आ जाएगी. अब मैं ये सोचकर परेशान था कि कही इस वक़्त फ़िज़ा यहाँ आ गई ऑर उसने नाज़ी को यहाँ देख लिया तो वो क्या सोचेगी मेरे बारे मे. लेकिन फिर भी मैं सोने का नाटक करते हुए वहाँ पड़ा रहा. कुछ देर नाज़ी ने बाबा को देखा जो गहरी नींद मे सो रहे थे ऑर खर्राटे मार रहे थे फिर वो पलट कर गई ऑर धीरे से दरवाज़ा बंद कर दिया ऑर कुण्डी लगाके मेरी तरफ आई ऑर मुझे गौर से देखने लगी मैं आँखें बंद किए हुए लेटा रहा फिर वो धीरे से मेरे बिस्तर पर बैठ गई ऑर कुछ देर मुझे देखती रही फिर जो साइड मे थोड़ी सी जगह थी वहाँ मेरे साथ ही करवट लेके लेट गई क्योंकि उसके जगह कम थी ऑर अब उसके होते हुए मैं थोड़ा पिछे सरक कर जगह भी नही बना सकता था.

कुछ देर वो ऐसे ही लेटी थी ऑर फिर अपना एक हाथ मेरी छाती पर रख लिया ऑर दूसरे हाथ की उंगलियो से मेरे गाल सहलाने लगी फिर धीरे से अपनी एक टाँग मेरी जाँघ के उपर रख ली ऑर अपनी बाजू को मेरे पेट से गुज़ार लिया जैसे वो लेटे हुए को ही मुझे साइड से गले लगा रही हो. इससे उसके मम्मे मुझे अपने कंधो पर महसूस होने लगे. मैं फिर भी वैसे ही लेटा रहा असल मे मैं ये देखना चाहता था कि जो मुझसे अंधेरे मे ग़लती हुई थी उसका उस पर क्या असर हुआ है ऑर वो किस हद तक जाती है.
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Kamukta Kahani अहसान - by sexstories - 07-30-2019, 12:53 PM
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