Kamukta Kahani अहसान
07-30-2019, 12:58 PM,
#20
RE: Kamukta Kahani अहसान
अपडेट-18

फिर हम तीनो रसोई से अपने-अपने कमरो मे चले गये ऑर कमरे मे जाते हुए फ़िज़ा बार-बार मुझे पलटकर देखती रही ऑर मैं बस उसको देखकर मुस्कुराता रहा. फिर मैं भी अपने कमरे मे आके अपने बिस्तर पर लेट गया उस रात चुदाई वाला काम तो हो नही सकता था इसलिए मैं भी करवट बदलता हुआ आख़िर सो ही गया. सुबह मैं ऑर नाज़ी तेयार होके खेत चले गये ऑर अपने-अपने कामो मे फ़िज़ा वाले काम भी शामिल करके अपना काम बाँट लिया. दोपहर को मैं ऑर नाज़ी खाना खा रहे थे तभी हीना भी वहाँ आ गई.


हीना : सलाम जनाब....लगता है मैं ग़लत वक़्त पर आ गई (मुस्कुराते हुए)

मैं : वालेकुम.सलाम छोटी मालकिन (खाने से उठते हुए)

हीना : अर्रे उठो मत बैठे रहो खाना खाते हुए उठना नही चाहिए पहले खाना खा लो मैं बाहर इंतज़ार कर रही हूँ

मैं : बाहर क्यो यहीं आ जाइए....आप भी आइए ना हमारे साथ ही खाना खा लीजिए.

हीना : नही शुक्रिया मैं खा कर आई हूँ आप लोग खाओ

मैं हीना की वजह से जल्दी-जल्दी खाना ख़तम करने लगा कि तभी नाज़ी मुझे धीमी आवाज़ मे बोली....

नाज़ी : ये चुड़ैल यहाँ क्यो आई है.

मैं : मुझे क्या पता मैने थोड़ी बुलाया है तुम्हारे सामने तो बात हुई है अभी जाके देखते हूँ

नाज़ी : मुझे इसकी शक़ल पसंद नही है जल्दी दफ्फा करो इसे यहाँ से चैन से खाना भी नही खाने देती (मुँह बनाते हुए)

मैं : अर्रे तो क्या हो गया अब आ गई है तो उसको धक्का मारकर तो नही निकाल सकते ना.

नाज़ी : (हवा मे सिर झटकते हुए) हहुूहह...

मैं खाना खाने के बाद बाहर चला गया ऑर बाहर आके सामने देखने लगा तो मुझे हीना नज़र नही आई तभी मुझे बाई ऑर से किसी ने पुकारा तो मेरा ध्यान उस तरफ गया जब मैने देखा तो हीना पानी के नाले के पास मे बैठी हुई दूर से मुझे हाथ हिला रही थी. मैं भी उस तरफ ही चला गया. जब जाके देखा तो वो अपनी सलवार घुटनो तक उपर किए हुए ठंडे पानी मे पैर डूबाए बैठी थी ऑर मुझे देखकर मुस्कुरा रही थी. मैं भी उसके पास ही चला गया.

हीना : हंजी हो गया आपका खाना.

मैं : मालिक के करम से हो ही गया जी आप बताओ यहाँ कैसे आना हुआ कोई काम था तो मुझे बुला लेती.

हीना : जैसे मेरे बुलाने से तुम आ जाओगे ना (मुस्कुराते हुए)

मैं : (अपना सिर खुजाते हुए) अब एक बार मशरूफ था तो इसका मतलब ये थोड़ी कि हर बार मसरूफ़ रहूँगा. फरमाइए क्या कर सकता हूँ मैं आपके लिए.

हीना : पहले ये बताओ दवाई ली या नही.

मैं : कौनसी दवाई

हीना : अर्रे बाबा जो कल तुमको डॉक्टर ने दी थी वो वाली दवाई ऑर कौनसी तुम भी ना....

मैं : अच्छा वो तो मैं भूल ही गया (मुस्कुरा कर नज़रें नीचे करते हुए)

हीना : बहुत खूब शाबाश.... फिर मेरा यहाँ रुकना ही बेकार है मैं चलती हूँ फिर.

मैं : अर्रे नाराज़ क्यो होती हो मैं आज से ही दवाई लेनी शुरू कर दूँगा पक्का.

हीना : (अपना हाथ आगे करते हुए) वादा करो.

मैं : वादा (सिर हाँ मे हिलाते हुए)

हीना : ऐसे नही मेरे हाथ पर अपना हाथ रखो फिर पक्का वाला वादा करो तब मानूँगी.

मैं : अच्छा ये लो अब ठीक है (उसके हाथ पर अपना हाथ रखते हुए)

हीना : हमम्म अब ठीक है. (मुस्कुराते हुए)


उसका हाथ जैसे ही मैने अपने हाथ मे लिया दिल मे एक अजीब सी झुरजुरी सी पैदा हो गई. उसका हाथ बेहद कोमल ऑर मुलायम था जबकि मेरे हाथ खेत मे काम करने की वजह से कुछ सख़्त हो गये थे उन चन्द पलों मे जब मैने उससे छुड़वाया तो दिल मे ख्याल आया कि इसका हाथ इतना नाज़ुक है काश कि मैं इससे एक बार गले से लगा सकता. अभी मैं अपनी सोचो मे ही गुम था कि हीना ने मुझे दूसरे हाथ से कंधे से पकड़कर हिलाया.....

हीना : कहाँ खो गये जनाब.

मैं : कहीं नही वो मैं बस ऐसे ही....

हीना : लगता है मेरा हाथ आपको काफ़ी पसंद आया है (शरारती हँसी के साथ)

मैं : जी.... मैं समझा नही.

हीना : नही मैं देख रही हूँ काफ़ी देर से हाथ छुड़ाने की कोशिश कर रही हूँ आप छोड़ ही नही रहे.... हाहहहहहहाहा

मैं : (शर्मिंदा होते हुए) ओह्ह माफ़ करना मुझे ख्याल ही नही रहा

हीना : कोई बात नही... अच्छा मुझे आपसे एक काम था

मैं : हंजी बोलिए क्या कर सकता हूँ मैं आपके लिए

हीना : वो मुझे भी गाड़ी सीखनी थी अगर आपको कोई तक़लीफ़ ना हो तो सिखा देंगे मैं पैसे भी देने को तेयार हूँ.

मैं : बात पैसे की नही है हीना जी.... लेकिन मैं ही क्यो आपके अब्बू के पास तो बहुत सारे लोग है जो आपको कार चलानी सिखा सकते हैं आप मुझसे ही क्यो सीखना चाहती है.

हीना : अब्बू के लोग मुझे गाड़ी चलानी सिखा सकते हैं लेकिन मुझे चलानी नही उड़ानी सीखनी है उस दिन जैसे.

मैं : देखिए सिखाने मे मुझे कोई तक़लीफ़ नही लेकिन वो बाबा ने सारे खेत की ज़िम्मेदारी मुझे दे रखी है तो ऐसे मैं काम छोड़कर आपको गाड़ी चलानी कैसे सीखा सकता हूँ देखिए बुरा मत मानियेगा लेकिन मैं बाबा के हुकुम की ना-फरमानी नही कर सकता.

हीना : एम्म्म (कुछ सोचते हुए) तो फिर आप मुझे शाम को सिखा सकते हैं खेत के काम से फारिग होने के बाद.

मैं : सिखा तो सकता हूँ लेकिन बाबा से पुच्छना पड़ेगा.

हीना : (चिड़ते हुए) क्या तुम भी... 20-20 लोगो को एक झटके मे गिरा देते हो 5-5 आदमियो का काम अकेले कर लेते हो लेकिन अभी भी हर काम बाबा से पूछ-पूछ के करते हो तुम अब बड़े हो गये हो बच्चे थोड़ी ना हो.

मैं : वो बात नही है लेकिन मुझे अच्छा लगता है बाबा से ऑर फ़िज़ा जी ऑर नाज़ी से हर काम पूछ कर करना. (मुस्कुराते हुए)

हीना : ठीक है जैसे तुम्हारी मर्ज़ी..... अच्छा फिर मैं चलती हूँ

मैं : (मुझे भी समझ नही आ रहा था क्या कहूँ उसको) हमम्म...

हीना : दवाई वक़्त पर लेते रहना ऑर अगले हफ्ते एक बार फिर मेरे साथ तुमको शहर चलना है भूलना मत ठीक है.

मैं: नही हीना जी यहाँ खेतो मे बहुत काम है मैं ऐसे शहर नही जा पाउन्गा मैं तो बस अगर कुछ समान लेना हो या फिर कोई काम हो तभी जाता हूँ

हीना : हाँ तो मैं कौनसा तुमको घुमाने लेके जा रही हूँ तुमको डॉक्टर के पास ही लेके जाना है बस ऑर कुछ नही फिर वापिस आ जाएँगे.

मैं : अच्छा फिर मैं आपको सोच कर बताउन्गा

हीना : ठीक है अच्छा अब काफ़ी वक़्त हो गया मैं चलती हूँ घर मे किसी को बोलकर भी नही आई.

मैं : अकेली आई हो तो मैं घर तक छोड़ आउ..?

हीना : नही रहने दो आप अपना काम करो मैं चली जाउन्गी. कोई सॉफ कपड़ा मिलेगा पैर पोंच्छने है.

मैं : ये लो (मैने अपने गले का साफ़ा उसको दे दिया)

हीना : अर्रे ये नही कोई ओर कपड़ा दो इस कपड़े से तुम अपना मुँह सॉफ करते हो मैं इससे अपने पैर थोड़ी ना सॉफ करूँगी

मैं : कोई बात नही वैसे भी आपके पैर सॉफ है इससे पोंछ लीजिए ऑर कोई कपड़ा इस वक़्त है नही मेरे पास.

हीना : (मुस्कुरा कर मेरे हाथ से साफ़ा लेते हुए) शुक्रिया.

फिर उसको मैं खेत के फाटक तक छोड़ आया ऑर पिछे नाज़ी खड़ी हम दोनो को घूर-घूर कर देखती रही जब उसको मैं छोड़कर वापिस आया तब भी नाज़ी मुझे घूर-घूर कर देख रही थी लेकिन बोल कुछ नही रही थी अचानक मेरी उस पर नज़र पड़ी....

मैं: क्या हुआ मुझे ऐसे खा जाने वाली नज़रों से क्यो देख रही हो.

नाज़ी : तुम इस सरपंच की लड़की पर कुछ ज़्यादा ही मेहरबान नही हो रहे

मैं : अर्रे क्या हुआ मिलने आई थी तो साथ बैठकर बात करने से कौनसा गुनाह हो गया मुझसे.

नाज़ी : अपना साफा क्यो दिया उसको (गुस्से से मुझे देखते हुए)

मैं : उसके पैर गीले हो गये थे इसलिए पोंच्छने के लिए

नाज़ी : मुझे तो कभी अपना रुमाल भी नही दिया उसके लिए गले का साफा उतारके दे दिया...वैसे पैर गीले क्यो हो गये थे महारानी के?

मैं : वो नाले मे पैर डालकर बैठी थी इसलिए....

नाज़ी : (गुस्से से) पैर नही इसका गला डुबोना चाहिए था पानी मे.

मैं : (हँसते हुए) तुम इससे इतना जलती क्यों हो.

नाज़ी : जले मेरी जुत्ति....मैं क्यो जलने लगी बस मुझे ये ऐसे ही पसंद नही. वैसे ये क्या काम से आई थी यहाँ मैं भी तो सुनू.

मैं : (सोचते हुए) कुछ नही वो बस कह रही थी कि मैं उसको कार चलानी सिखाऊ ऑर कुछ नही.

नाज़ी : तुमने क्या कहा.... ऑर तुमने कार चलानी कब सीख ली ऑर जो उसको सीख़ाओगे?

मैं : (परेशान होते हुए) अर्रे उस दिन शहर गया था ना रास्ते मे ये मिली थी इसकी कार खराब हो गई थी तो मैने ठीक करदी थी (मैने नाज़ी को हीना के साथ जाने वाली बात नही बताई) इसलिए वो साथ मे शुक्रिया करने आई थी ऑर बोल रही थी कि मैं उसको भी कार चलानी सिखाऊ लेकिन मैने मना कर दिया.

नाज़ी : अच्छा किया जो मना कर दिया इसका कोई भरोसा नही. (खुश होते हुए)

मैं : अच्छा चलो अब काम कर लेते हैं बाते घर जाके कर लेंगे.

नाज़ी : ठीक है


फिर हम दोनो दिन भर खेतो के काम निबटाने मे लगे रहे शाम को जब घर आए तो सरपंच के कुछ लोग घर के बाहर खड़े थे. जिन्हे मैने ऑर नाज़ी दोनो ने दूर से ही देख लिया था

नाज़ी : ये तो सरपंच के लोग है यहाँ क्या कर रहे हैं.

मैं : क्या पता चलो चलकर देखते हैं अब ये यहाँ क्या लेने आया है.

मैं ऑर नाज़ी तेज़ कदमो के साथ घर आ गये अंदर देखा तो बाबा ऑर सरपंच बैठे बाते कर रहे थे. मैने दोनो को जाके सलाम किया जबकि नाज़ी सीधा रसोई मे फ़िज़ा के पास चली गई ऑर मैं भी बाबा के पास ही कुर्सी पर बैठ गया.

बाबा : आ गये बेटा

मैं : जी बाबा

बाबा : बेटा सरपंच साब तुमसे कुछ बात करना चाहते हैं.

मैं : जी फरमाइए.... क्या कर सकता हूँ मैं

सरपंच : बेटा तुमसे एक काम था वो मेरी बेटी चाहती है कि तुम उसको गाड़ी चलाना सिख़ाओ.

मैं : जी... मैं ही क्यो आपके पास तो इतने सारे लोग है किसी को भी बोल दीजिए वैसे भी मेरे पास इतना वक़्त नही है मुझे खेत भी संभालना होता है.

सरपंच : मैने तो बहुत समझाया अपनी बच्ची को लेकिन वो बचपन से थोड़ी ज़िद्दी है एक बार कुछ फरमाइश कर दे फिर सुनती नही है किसी की. मैं तुम्हारा क़र्ज़ माफ़ करने को तेयार हूँ बस तुम उसको कार चलानी सीखा दो

मैं : (बाबा की तरफ सवालिया नज़रों से देखते हुए) जी आप बाबा से पुछिये

बाबा : बेटा मैं क्या कहूँ तुम देख लो अगर तुम्हारे पास फारिग वक़्त होता है तो सिखा देना

सरपंच : ये हुई ना बात बहुत अच्छे तो फिर मैं अगले हफ्ते ही मेरी बेटी को नयी कार खरीद दूँगा तब तक तुम मेरी कार पर ही उसको कार चलानी सिखा देना फिर कल से सिखा दोगे ना.

मैं : दिन-भर तो मैं खेत मे उलझा रहता हूँ शाम को ही वक़्त निकाल पाउन्गा उससे पहले नही

सरपंच : ठीक है मुझे कोई ऐतराज़ नही. ये कुछ पैसे हैं तुम्हारा मेहनताना (1 नोटो का बंडल टेबल पर रखते हुए)

बाबा : सरपंच साब इसकी कोई ज़रूरत नही आपने क़ासिम का क़र्ज़ माफ़ कर दिया यही बहुत है ये पैसे हमें नही चाहिए आप वापिस रख लीजिए.

सरपंच : ठीक है तो फिर मैं चलता हूँ (पैसे जेब मे वापिस डालते हुए).


फिर सरपंच वहाँ से चला गया ऑर फ़िज़ा ऑर नाज़ी दोनो मुझे रसोई से घूर-घूर कर देखे जा रही थी लेकिन बाबा के पास बैठे होने की वजह से दोनो ना तो रसोई से बाहर आई ना ही मुझसे कोई बात की मैं भी चुप-चाप नज़ारे झुकाए बैठा रहा.
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