Kamukta Kahani अहसान
07-30-2019, 12:55 PM,
#8
RE: Kamukta Kahani अहसान
अपडेट-7

मैं: बाबा जी आप मुझे ऐसा बोलकर शर्मिंदा ना करे मेरी एक-एक साँस आप सबकी कर्ज़दार है आज मैं ज़िंदा हूँ तो आप सबकी मेहरबानी से हूँ अगर मैं आप लोगो के कुछ काम आ सकूँ तो ये मेरे लिए बड़ी खुशी की बात है मैं कल से रोज़ इनके साथ खेतों पर चला जाया करूँगा.

बाबा: जीते रहो बेटा अल्लाह तुम्हे लंबी उम्र दे... मुझे तुमसे यही उम्मीद थी आज से तुम भी मेरे बेटे हो (मेरे सिर पर हाथ फेरते हुए)

मैं: लेकिन बाबा क़ासिम भाई से आप क्या कहोगे कि मैं कौन हूँ कहाँ से आया

बाबा: बेटा मैं अब भी इस घर का मालिक हूँ मुझे किसी को कुछ कहने की ज़रूरत नही है

(इतने मे नाज़ी बीच मे बोलते हुए)
नाज़ी: उसकी फिकर आप लोग ना करे मैं हूँ ना मैं संभाल लूँगी क़ासिम भाई को वो कुछ नही कहेंगे

मैं: ठीक है

बाबा: बेटी इनका बिस्तर भी मेरे कमरे मे लगा दो आज से ये भी इस घर का बेटा है अब इसको क़ासिम से छुप कर रहने की कोई ज़रूरत नही है आज से ये भी मेरे साथ मेरे कमरे मे ही सोएगा. तुम्हे कोई ऐतराज़ तो नही नीर बेटा..???

मैंSadना मे सिर हिलाते) नही मुझे क्या ऐतराज़ हो सकता है

ऐसे ही सारा दिन निकल गया ऑर शाम को मैं बाबा के कमरे मे बैठा उनके पैर दबा रहा था कि क़ासिम घर आ गया. पहले तो वो मुझे देखकर थोड़ा हैरान हुआ फिर बाबा से पूछा कि कौन है तो बाबा ने उससे झूठ बोला कि जब तू जैल मे था तब मेरी तबीयत खराब हो गई थी इस नौजवान ने मेरी बहुत देख-भाल की थी ऑर मुझे संभाला था इस बिचारे का दुनिया मे कोई नही था ये नौकरी की तलाश मे था इसलिए मैं इसको भी अपने घर मे ले आया. क़ासिम ये बात सुनकर आग-बाबूला हो गया ओर कहने लगा कि आप कैसे किसी अजनबी को घर मे उठा के ला सकते हो. वो मेरे सामने ही बाबा से झगड़ा करने लगा मैं वहाँ बस खामोश बैठा सब सुनता रहा. अंत मे बाबा ने ये कहकर बात ख़तम करदी कि मैं अब भी इस घर का मालिक हूँ मुझे किसी से इजाज़त लेने की ज़रूरत नही कि मेरे घर मे कौन रहेगा कौन नही जिसको मेरा फ़ैसला मंजूर नही वो ये घर छोड़ कर जा सकता है. क़ासिम की ये बात सुनकर गुस्से से आँखें लाल हो गई थी लेकिन फिर भी वो खुद को बे-बस सा महसूस करके पैर पटकता हुआ घर से बाहर निकल गया ऑर रात भर घर नही आया.

रात को मैं अपने बिस्तर पर पड़ा आने वाले दिन के बारे मे सोच रहा था ऑर बहुत खुश था कि कल सुबह मुझे भी घर से बाहर निकलने का मोक़ा मिल रहा है क्योंकि इतने महीनो से मैं बस एक खिड़की से ही सारी दुनिया देखा करता था. वैसे तो मैं यहाँ कई महीनो से था लेकिन आज पहली बार मैं इस घर से बाहर निकल रहा था बाहर की दुनिया से मैं एक दम अंजान था. ये सब बाते मुझे एक अजीब सी खुशी दे रही थी. इन्ही सोचो के साथ मैं कब सो गया मुझे पता ही नही चला. लेकिन आधा रात को फिर मेरी नींद खुल गई. फिर वही अजीब सा अहसास मुझे महसूस होने लगा पाजामे के अंदर मेरा लंड फिर से सख़्त हुआ पड़ा था ऑर मुझे बेचैन सा कर रहा था लेकिन आज मुझे मज़े की वादियो मे ले जाने वाली फ़िज़ा साथ नही थी. आज कोई मेरे बदन को चूम नही रहा था. खुद मे एक अजीब सा ख़ालीपन सा महसूस कर रहा था. आज मुझे फिर उसी नाज़ुक बदन की ज़रूरत थी जिसने कल रात मेरे बदन के हर हिस्से के साथ खेला था ऑर एक अजीब सा मज़ा मुझे दिया था. एक पल के लिए मेरे दिल मे आया कि आज अगर फ़िज़ा नही आई तो मैं उसके कमरे मे चला जाउ ऑर फिर उन्ही मज़े की वादियो मे खो जाउ लेकिन मेरी उसके कमरे मे जाने की हिम्मत नही हुई इसलिए बिस्तर पड़ा फ़िज़ा का इंतज़ार करता रहा. लेकिन फ़िज़ा नही आई ऑर मैं फिर से उन्ही नींद की वादियो मे खो गया.

सुबह जब मेरी आँख खुली तो खुद को बहुत खुश महसूस कर रहा था क्योंकि आज मैं बाहर की दुनिया देखने वाला था. मैं जल्दी से बिस्तर से उठा ओर तैयार होने लग गया लेकिन पहन ने के लिए मेरे पास कपड़े नही थे. इसलिए मैं उदास होके वापिस कमरे मे आके बैठ गया. तभी नाज़ी कमरे मे आई ओर मुझे कंधे से हिलाके बोली...

नाज़ी: जाना नही है क्या खेत मे....कल तो इतना बोल रहे थे आज आराम से बैठे हो क्या हुआ?

मैं: कैसे जाउ मेरे पास पहन ने के लिए कपड़े ही नही है

नाज़ी: (हँसती हुई) भाभी ने कल ही क़ासिम भाईजान के कुछ कपड़े निकाल दिए थे आपके लिए. वो जो सामने अलमारी है उसमे सब कपड़े आपके ही है बस पूरे आ जाए आपका क़द कौनसा कम है (हँसते हुए)

मैं: कोई बात नही मैं पहन लूँगा हँसो मत

नाज़ी: ठीक है जल्दी से कपड़े पहन लो फिर खेत में चलेंगे हम आपका बाहर इंतज़ार कर रही है

मैं: (हाँ मे सिर हिलाते हुए) ठीक है अब जाओ तो मैं कपड़े पहनु.

नाज़ी: अच्छा जा रही हूँ लम्बूऊऊऊऊ (हस्ती हुई ज़ीभ दिखा कर भाग गई)

फिर मैं जल्दी से कपड़े पहन कर तैयार हो गया. कमीज़ मुझे काफ़ी तंग थी इसलिए मैने कमीज़ के बटन खोलकर ही कमीज़ पहन ली ऑर पाजामा मुझे पैरो से काफ़ी उँचा था मैं ऐसे ही कपड़े पहनकर बाहर निकल आया जब मुझे फ़िज़ा ऑर नाज़ी ने देखा तो ज़ोर-ज़ोर से हँसने लग गई मैने वजह पूछी तो दोनो ने कुछ नही मे सिर हिला दिया. उसके बाद मैं भी सिर झटक कर नाज़ी ऑर फ़िज़ा के साथ खेत के लिए निकल गया. आज मैं बहुत खुश था ऑर हर तरफ नज़र घुमा के देख रहा था. गाँव के सब लोग मुझे अजीब सी नज़रों से घूर-घूर कर देख रहे थे ऑर हँस रहे थे उसकी वजह शायद मेरा पहनावा थी. लेकिन गाँव वालो के इस तरह मुझ पर हँसने से नाज़ी ऑर फ़िज़ा को बुरा लगा था इसलिए दोनो का चेहरा उतरा हुआ था ऑर चेहरा ज़मीन की तरफ झुका हुआ था. कुछ देर मे हम खेत पहुँच गये वहाँ सरसो के लहलहाते पीले फूल, गेहू की फसल ऑर उसका सुनेहरा रंग ऑर ये खुला आसमान देख कर मेरी खुशी का ठिकाना ही नही था मैं किसी छोटे बच्चे की तरह दोनो बाहें फेलाए खेतो मे भाग रहा था क्योंकि मेरे लिए ये सब नज़ारा नया था. कुछ देर मैं इस क़ुदरत की सुंदरता को निहारता रहा फिर मेरा ध्यान नाज़ी ऑर फ़िज़ा पर गया जो कि खेतो मे काम करने मे लगी थी ऑर मुझे देख कर मुस्कुरा रही थी.


मुझे खुद पर थोड़ी शर्मिंदगी हुई कि मैं यहाँ इनके साथ कम करवाने आया था ऑर यहाँ मस्ती करने लग गया. इसलिए मैं वापिस उनके पास आ गया ऑर उनसे काम के लिए पुच्छने लगा उन्होने जो सरसो ऑर गेहू की फसल काट ली थी ऑर उसकी गठरी सी बना ली थी. जिसको मुझे उठाकर एक जगह जमा करना था ऑर बाद मे सॉफ करके बोरियो मे भरना था. ऐसे ही सारा दिन मैं उनके साथ काम करता रहा. शाम को जब हम घर आ रहे थे तब नाज़ी फ़िज़ा के कान मे कुछ बोल कर कही चली गई ऑर मुझे फ़िज़ा के साथ घर जाने का बोल गई मुझे कुछ समझ नही आया कि नाज़ी कहाँ गई है लेकिन फिर भी मैं ऑर फ़िज़ा घर के लिए चल पड़े. काफ़ी दूर तक हम दोनो खामोशी से चलते रहे अब हम दोनो मे उस रात के बाद एक झिझक थी ऑर अब भी मेरे दिमाग़ मे वही रात वाला सीन था मैं फ़िज़ा से पुछ्ना चाहता था कि उसने ऐसा क्यो किया. लेकिन इससे पहले कि मैं कुछ बोल पता फ़िज़ा खुद ही बोल पड़ी.

फ़िज़ा: नीर उस रात के लिए मुझे माफ़ कर दो मैं जज़्बात मे बह गई थी ऑर खुद पर काबू नही रख पाई

मैं: कोई बात नही लेकिन मुझे तो वो अहसास बहुत अच्छा लगा था

फ़िज़ा: (चोन्कते हुए) नही ये गुनाह है हम वो सब नही कर सकते क्योंकि मैं शादीशुदा हूँ ऑर उस दिन जो हमारे बीच हुआ वो सिर्फ़ एक शोहार ऑर उसकी बीवी के बीच ही हो सकता है किसी ऑर के साथ ये सब करना गुनाह होता है समझे बुद्धू....

मैं: ठीक है मैं समझ गया

फ़िज़ा: उस रात जो हुआ वो आप भी भुला दीजिए ऑर हो सके तो मुझे माफ़ कर देना मुझसे बहुत बड़ा गुनाह हो गया था क़ासिम की मार ने मुझे अंदर से तोड़ दिया था लेकिन आपके प्यार के 2 मीठे बोल ने मुझे बहका दिया था. लेकिन आगे से हम ऐसा कुछ नही करेंगे ठीक है

मैं: ठीक है


ऐसे ही बाते करते हुए हम घर आ गये ऑर हमारे घर आने के कुछ देर बाद नाज़ी भी आ गई उसके हाथ मे एक थेला था जिसको उसने छुपा लिया ऑर भागती हुई अपने कमरे मे चली गई मुझे कुछ समझ नही आया कि ये क्या लेके आई है फिर भी चुप रहा ऑर आके बिस्तर पर लेट गया फ़िज़ा रसोई मे चली गई रात खाना बनाने के लिए. इतने मे नाज़ी मेरे पास आ गई एक फीता लेकर ऑर उसने मेरा माप लिया. मुझे कुछ भी समझ नही आ रहा था कि नाज़ी क्या कर रही है इसलिए हाथ पैर फेलाए खड़ा रहा जैसे वो खड़ा होने को कहती हो रहा था लेकिन वो बस अपने काम किए जा रही थी लेकिन मेरे कोई भी सवाल का जवाब नही दे रही थी. माप लेकर नाज़ी वापिस अपने कमरे मे चली गई ऑर मैं वापिस बिस्तर पर लेट गया.आज मेरा पूरा बदन दर्द से टूट रहा था. रात के खाने के बाद मुझे बिस्तर पर पड़ते ही नींद आ गई. शायद किसी ने सच ही कहा है कि जो मज़ा मेहनत करके रोटी खाने मे है वो हराम की रोटी खाने मे नही आ सकता.
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Kamukta Kahani अहसान - by sexstories - 07-30-2019, 12:53 PM
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