Kamukta Kahani अहसान
07-30-2019, 12:53 PM,
#2
RE: Kamukta Kahani अहसान
फ़िज़ा: अब कैसे हो?
मैं: ठीक हूँ....आपने जो मेरे लिए किया उसका बोहोत-बोहोत शुक्रिया.
फ़िज़ा: कैसी बात कर रहे हो...यह तो मेरा फ़र्ज़ था...लेकिन मुझे बाबा ने बताया कि आपको कुछ भी याद नही?
मैं: (नही मे गर्दन हिलाते हुए)जी नही.
फ़िज़ा: कोई बात नही आप फिकर ना करो आप जल्द ही अच्छे हो जाओगे
मैं: आपका नाम क्या है?
फ़िज़ा: (अपना दुपट्टा सर पर ठीक करते हुए)मेरा नाम फ़िज़ा है मैं बाबा की बहू हूँ
मैं: अच्छा.....आपके पति कहाँ है?
फ़िज़ा : वो तो शहर मे एक मिल मे काम करते हैं इसलिए साल मे 1-2 बार ही आ पाते हैं.(फ़िज़ा ने मुझसे झूठ बोला)
मैं: क्या मैं बाहर जा सकता हूँ?
फ़िज़ा: हिला तो जा नही रहा बाहर जाओगे कोई ज़रूरत नही चुप करके यही पड़े रहो ओर फिर जाओगे भी कहाँ अभी तो आपने कहा कि कुछ भी याद नही है कुछ दिन आराम करो इस बीच क्या पता आपको कुछ याद ही आ जाए तो हम आपके घरवालो को आपकी खबर पहुँचा सके.
मैं : ठीक है.
फ़िज़ा: भूख लगी हो तो कुछ खाने को लाउ?
मैं : नही मैं ठीक हूँ.
फ़िज़ा: ठीक है फिर आप आराम करो कुछ चाहिए हो तो मुझे आवाज़ लगा लेना.

इस तरह वो कमरे से बाहर चली गई ऑर मैं पीछे से उसको देखता रहा. मैं हालाकी चल नही सकता था लेकिन फिर भी मैने हिम्मत करके उठने की कोशिश की ऑर बेड पर बैठ गया ऑर खिड़की से बाहर देखने लगा ऑर ठंडी हवा का मज़ा लेने लगा. बाहर की हसीन वादियाँ उँचे पहाड़ ऑर उन पर सफेद चादर की तरह फैली हुई बर्फ ऑर उन पहाड़ो के बीच डूबता हुआ सूरज किसी का भी दिल मोह लेने के लिए काफ़ी थे मेरी आँखें बस इसी हसीन मंज़र को मन ही मन निहार रही थी. मैं काफ़ी देर बाहर क़ुदरत की सुंदरता को देखता रहा ऑर फिर धीरे-धीरे सूरज को पहाड़ो ने अपनी आगोश मे ले लिया ऑर नीले सॉफ आसमान मे छोटे-छोटे मोतियो जैसे तारे टिम-तिमाने लगे. मैं यह तो नही जानता कि मैं कौन हूँ ऑर कहाँ से आया हूँ लेकिन दिल मे अभी भी यही आस थी कि कैसे भी मुझे मेरी जिंदगी का कुछ तो याद आए ताकि मैं भी मेरे परिवार मेरे अपनो के पास जा सकूँ. जाने उनका मेरा बिना क्या हाल हो रहा होगा. मैं अपनी इन्ही सोचो मे गुम था कि किसी ने मेरे कंधे पर हाथ रख कर मुझे चोंका दिया.

फ़िज़ा: खाना तैयार है अगर भूख लगी हो तो खाना लेकर आउ

मैं: नही मुझे भूख नही है

फ़िज़ा: हाए अल्लाह!!!! आपने इतने दिन से कुछ नही खाया है खुद को देखो ज़रा कितने ज़ख़्मी ऑर कमज़ोर हो अगर खाना नही खाओगे तो ठीक कैसे होगे बोलो...

मैं: लेकिन मुझे भूख नही है आप लोग खा लो...

फ़िज़ा: ऐसे कैसे नही खाएँगे अगर आप खाना नही खाओगे तो हम भी नही खाएँगे हमारे यहाँ मेहमान भूखा नही सो सकता

मैं: अच्छा ऐसा है क्या.... ठीक है फिर आप मेरा खाना डालकर रख दो मुझे जब भूख होगी मैं खा लूँगा

फ़िज़ा: (अपनी कमर पर हाथ रखकर) जी नही!!!! मैं अभी खाना डाल कर ला रही हूँ आप अभी मेरे सामने खाना खाएँगे उसके बाद आपको लेप भी लगाना है.

मैं: ठीक है जी जैसे आपकी मर्ज़ी.(कुछ सोचते हुए) सुनिए ज़रा!!!!

फ़िज़ा : हंजी(पलटकर मुझे देखते हुए) अब क्या हुआ?

मैं: कुछ नही यह लेप कॉन्सा लगाएँगी आप मेरे

फ़िज़ा : (मुस्कुराते हुए) आपके जो यह ज़ख़्म है इन पर दवा लगाने की बात कर रही थी मैं.
मैं: अच्छा (ऑर मेरी नज़रे फ़िज़ा को कमरे से बाहर जाते हुए देखती रही)

कुछ ही देर मे फ़िज़ा खाना ले आई ओर मैने आज जाने कितने दिन बाद पेट भर खाना खाया था. कुछ देर बाद नाज़ी खाने की थाली ले गई ऑर फ़िज़ा ऑर नाज़ी दोनो कमरे मे आ गई एक कटोरा हाथ मे लिए.

फ़िज़ा: अर्रे आप अभी तक लेटे नही...खाना खा लिया ना

मैं : (हाँ मे सिर हिलाते हुए) हंजी खाना खा लिया बोहोत अच्छा बनाया था खाना

फ़िज़ा :शुक्रिया!!! अब चलिए लेट जाइए ताकि हम दोनो आपके लेप लगा सकें (ऑर फ़िज़ा ऑर नाज़ी ने मुझे मिलकर लिटा दिया)

मैं : जब मैं बेहोश था तब भी आप दोनो ही मुझे दवाई लगाती थी?

नाज़ी: जी हाँ ओर कौन है यहाँ

मैं : मेरा मतलब है कोई आदमी नही लगाता था मुझे

नाज़ी: जी नही बाबा तो अब खुद ही बड़ी मुश्किल से चल-फिर पाते हैं ऑर भाई जान बाहर ही रहते हैं घर कम ही आते हैं ज़्यादातर इसलिए हम दोनो ही आपको दवाई लगाती थी ऑर.....

मैं: ऑर क्या?

नाज़ी: कपड़े भी हम ही आपके बदलती थी(नज़रें झुकाते हुए)

मैं: अच्छा

फ़िज़ा : अच्छा छोड़ो यह सब वो वाली बात तो करो ना इनसे

मैं: कोन्सि बात?

फ़िज़ा: वो हमें आपका असल नाम तो पता नही है इसलिए हम दोनो ने आपका एक नाम सोचा है अगर आपको अच्छा लगे तो....

मैं: क्या नाम बताइए?

फ़िज़ा: "नीर" नाम कैसा लगा आपको?

मैं: जो आपको अच्छा लगे रख लीजिए मुझे तो कोई भी नाम याद नही वैसे यह नाम रखने कोई खास वजह?

फ़िज़ा : आप मौत को मात देकर फिर से इस दुनिया मे लौटे हो ओर हमें पानी मे बहते हुए मिले थे इसलिए हम ने सोचा कि आपका नाम भी हम "नीर" ही रख दे.

मैं: मौत को मात से क्या मतलब है आपका?

नाज़ी : अर्रे कुछ नही भाभी तो बस कही भी शुरू हो जाती है आप बताइए आपको नाम कैसा लगा?

मैं: अगर आप लोगो पसंद है तो मुझे क्या ऐतराज़ हो सकता है

फ़िज़ा: तो फिर ठीक है.... आज से जब तक आपको अपना असल नाम याद नही आ जाता हम सब के लिए आप "नीर" हो.

मैं: जैसी आपकी मर्ज़ी (हल्की सी मुस्कुराहट के साथ)

फ़िज़ा: नाज़ी कल याद करवाना मुझे इनकी दाढ़ी ऑर बाल भी काटेंगे इतने महीनो से यह बेहोश थे तो देखो इनकी दाढ़ी ऑर बाल कितने बड़े हो गये हैं बुरा मत मानना लेकिन अभी आप किसी जोगी-बाबा से कम नही लग रहे हो कोई अजनबी देखे तो डर ही जाए (दोनो आपस मे ही हँसने लगी)

नाज़ी: कोई बात नही भाभी यह काम मैं कर दूँगी बाबा की दाढ़ी बनाते ऑर बाल काट ते हुए मैं अब माहिर हो गई हूँ इस काम मे

मैं : ( मैने दोनो का चेहरा देख कर सिर्फ़ हाँ मे सिर हिलाते हुए) ठीक है

नाज़ी: चलो "नीर" जी कपड़े उतारो

मैं: (चोन्क्ते हुए) क्यो कपड़े क्यो उतारू?

नाज़ी: दवाई नही लगवानी आपने?

मैं: अर्रे हाँ मैं तो भूल ही गया (ऑर अपनी कमीज़ के बटन खोलने की कोशिश करने लगा)

फ़िज़ा: आप रहने दीजिए रोज़ हम खुद ही यह सब काम कर लेती थी आज भी कर लेंगी आप अपने हाथ-पैर ज़्यादा हिलाइए मत नही तो दर्द होगा.

मैं: (खामोशी से सिर्फ़ हाँ में सिर हिलाते हुए)

नाज़ी: फिकर मत कीजिए हम रोज़ आप चद्दर डाल देते थे दवाई लगाने से पहले (उसके चेहरे पर यह बात कहते हुए मुस्कुराहट ऑर शरम दोनो थी)

दोनो ने मेरी कमीज़ उतारी ऑर पाजामा भी उतार दिया जो मेरे पैर से थोड़ा उँचा था शायद फ़िज़ा के पति का होगा या फिर बाबा का होगा ओर मेरी टाँगो पर एक चद्दर डाल दी. मैं दवाई लगवाते हुए भी अपनी पिच्छली जिंदगी के बारे मे सोच रहा था लेकिन मुझे कोशिश करने पर भी कुछ याद नही आ रहा था......मैं बस अपनी ही सोचो मे गुम था कि अचानक मुझे एक कोमल हाथ अपने सिर पर ऑर आँखो पर घूमता महसूस हुआ साथ ही (एक आवाज़ आई कि अब आँखें मत खोलना) फिर दूसरा हाथ अपनी बाजू पर ऑर 2 हाथ एक साथ चद्दर के अंदर आते हुए मेरी टाँगो से रेंगते हुए जाँघो पर महसूस हुए मेरी आँखें बंद थी फिर भी मैं सॉफ महसूस कर रहा था कि जब 2 हाथ मेरी जाँघो पर चल रहे थे तो मेरे लंड मे कुछ हरकत हुई जो कि अकड़ रहा था ऑर इस हरकत के बाद जो हाथ मेरी जाँघो पर दवाई लगा रहे थे उनमे एक अजीब सी कंपन मैने महसूस की.....मुझे उस वक़्त नही पता था कि यह अहसास क्या है लेकिन मुझे उससे सुकून भी मिल रहा था ऑर एक अजीब सी बेचैनी भी हो रही थी...इस मिले-जुले अहसास को शायद मैं समझ नही पा रहा था कि यह मेरे साथ क्या अजीब सी बात हुई ऑर चन्द सेकेंड्स मे मेरा लंड पूरी तरफ खड़ा होके छत को सलामी दे रहा था ऑर लंड महाराज ने चद्दर मे एक तंबू बना दिया था. अचानक एक हाथ मेरे लंड से टकराया कुछ पल के लिए उसने मेरे लंड को पकड़ा ऑर फिर एक दम से छोड़ दिया साथ ही एक मीठी सी आवाज़ मेरे कानो से टकराई. भाभी बाकी लेप आप ही लगा दो मैने नीचे तो लगा दिया है अब मैं सोने जा रही हूँ. शायद यह आवाज़ नाज़ी की थी. उसके बाद मुझे नीचे वो अजीब से मज़े वाला अहसास नही महसूस हुआ मैं वैसे ही आज बिना किसी कपड़े के सिर्फ़ चादर मे लिपटा हुआ सो रहा था

फ़िज़ा जाते हुए 2 कंबल भी मेरे उपेर डाल गई यह कहकर कि यहाँ रात मे अक्सर ठंड हो जाती है. फ़िज़ा ने भी मुझे कपड़े नही पहनाए ऑर ऐसे ही खिड़की बंद करके चली गई शायद उसकी नज़र भी मेरे खड़े हुए लंड पर पड़ गई थी मेरी उस वक़्त आँखें तो बंद थी लेकिन पैरो की दूर होती हुई आवाज़ से मैने अंदाज़ा लगा लिया था कि शायद अब कमरे मे कोई नही सिवाए मेरे ऑर मेरी तन्हाई के.रात को मुझे नींद ने कब अपनी आगोश मे ले लिया मैं नही जानता.सुबह मुझे नाश्ता करवाने के बाद फ़िज़ा ऑर नाज़ी ने मेरी शेव भी की ऑर बाल भी काट दिए. शीशे मे अपना यह नया रूप देखकर मुझे खुशी भी हो रही थी ऑर बेचैनी भी हुई. लेकिन दिल मे अब यही सवाल बार-बार आके मुझे बेचैन कर देता था कि मैं कौन हूँ....आख़िर कौन हूँ मैं.
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