Kamukta Kahani अहसान
07-30-2019, 12:53 PM,
#1
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अहसान


दोस्तो काफ़ी दिनों से मैं यहाँ कहानिया पढ़ता आ रहा हूँ . मैने राजशर्मास्टॉरीज पर एक से बढ़ कर एक कहानियाँ पढ़ी है
तो मैने सोचा मैं भी एक कहानी पोस्ट कर ही दूं क्या पता मेरी ये कोशिस आप सब को पसंद आए

दोस्तो सबसे पहले मैं इस कहानी के मेन कॅरक्टर्स का थोड़ा सा इंट्रोडक्षन देना चाहूँगा ताकि सब लोगो को कहानी ऑर उनके कॅरक्टर्स अच्छे से समझ मे आ जाए....

नीर (शेरा) :- एज- 26 साल, हाइट - 6.1" (मेन हीरो)
हैदर अली (बाबा) :- एज 65 साल, दुबला ओर पतला (बूढ़ा साइड रोल मे ही रहेगा)
नाज़ (नाज़ी) :- एज- 22 साल, हाइट- 5.6" फिगर- 34-28-36 (बाबा की बेटी)
क़ासिम :- एज- 31 साल, हाइट- 5.8" (बाबा का बेटा एक शराबी ऑर लोंड़िया बाज़ जो अब उनके साथ नही रहता )
फ़िज़ा :- एज-29 साल, हाइट- 5.2" फिगर- 36-30-38 (बाबा की बहू)


(बाकी ऑर भी कॅरक्टर्स इस कहानी मे आएँगे उनका इंट्रो मैं उनके रोल के साथ-साथ देता रहूँगा. मेरी पहली कोशिश आपकी खिदमत मे हाजिर है.)

बात आज से कुछ साल पुरानी है. रात का वक़्त था ओर पहाड़ी रास्ता था वारिस बोहोत तेज़ हो रही थी. सुनसान सड़क पर मैं तेज़ रफ़्तार से अपनी कार भगा रहा था. पोलीस मेरा पीछा कर रही थी ऑर मेरी गाड़ी पर गोलियो की बोछार हो रही थी मेरी पीठ पर ऑर कंधे पर भी 2 गोली लगी हुई थी लेकिन मैं फिर भी बोहोत तेज़ रफ़्तार से कार चला रहा था कि अचानक किसी पोलीस वाले की गोली मेरी कार के टाइयर पर लगी ऑर मेरी गाड़ी जो कि तेज़ रफ़्तार मे थी जाके एक पहाड़ी से ढलान की तरफ नीचे बढ़ने लगी ऑर एक पेड़ के सहारे मेरी कार हवा मे लटक गई अब मैं ऑर मेरी कार एक गहरी खाई की ओर एक कमज़ोर से पेड़ पर लटक रहे थे मैने बोहोत कोशिश करके कार को पिछे की तरफ रिवर्स किया ऑर गाड़ी को खाई मे जाने से बचा लिया लेकिन इससे पहले कि मैं कार से बाहर निकलता पोलीस की जीप खाई के पास आके रुक गई ऑर तभी मेरी आँखो के सामने भी अंधेरा छाने लगा उसके कुछ पल बाद जब मुझे होश आया तो मुझे अपने सीने मे तेज़ दर्द हो रहा था ऑर मेरी पूरी कमीज़ खून से भीग गई थी शायद उन पोलीस वालों ने मुझे कार से उतारकर गोली मार दी थी ऑर फिर मुझे वापिस कार मे बिठा कर ढलान की तरफ कार को धक्का दे रहे थे.

मैं उस वक़्त आधा बेहोश था और आधा होश मे था फिर भी खुद को बचाने की पूरी कोशिश कर रहा था. मैने कार को संभालने की बोहोत कोशिश की लेकिन संभाल नही पा रहा था ब्रेक पर अपने पाओ का पूरा दबाव देने के बावजूद भी गाड़ी घिसट कर पहाड़ी से नीचे जा गिरी ऑर धदाम की आवाज़ के साथ पानी मे गिर गई ऑर कार का स्टारिंग मेरे सिर मे लगा ऑर बेहोशी ने मुझे अपनी आगोश मे पूरी तरह ले लिया उसके बाद क्या हुआ क्या नही मुझे कुछ नही याद. मैं नही जानता मैं कब तक उस पानी मे रहा ऑर पानी का तेज़ बहाव मुझे ऑर मेरी गाड़ी को कहाँ तक बहा कर ले गया. जब आँख खुली तो खुद को एक छोटे से कमरे मे पाया लेकिन जब मैने चारपाई से उठने की कोशिश की तो मेरे हाथ-पैर मेरा साथ नही दे रहे थे ऑर ज़ोर लगाने पर पूरे शरीर मे दर्द की एक लहर दौड़ गई. इतने मे अचानक एक बूढ़ा आदमी मेरे पास जल्दी से आया ऑर मेरे कंधे पर हाथ रखकर मुझे लेटने का इशारा किया.

बाबा: बेटा तुम कौन हो क्या नाम है तुम्हारा?
मैं: (मुझे कुछ भी याद नही था कि मैं कौन हूँ बोहोत याद करने पर भी कुछ याद नही आ रहा था कि मेरी पिच्छली जिंदगी क्या थी ऑर मैं कौन हूँ.इसलिए बस उस बूढ़े आदमी को ऑर इस जगह को देख रहा था कि अचानक एक आवाज़ मेरे कानो से टकराई)
बाबा: क्या हुआ बेटा बताओ ना कौन हो तुम कहाँ से आए हो?
मैं: मुझे कुछ याद नही है कि मैं कौन हूँ.....(अपने सिर पर हाथ रखकर) यह जगह कोन्सि है
बाबा: बेटा हम ने तुम्हे पानी से निकाला है मेरी बेटी अक्सर नदी किनारे जाती है वहाँ उसको किनारे पर पड़े तुम मिले. जब तुम उनको मिले तो बोहोत बुरी तरह ज़ख़्मी ओर बेहोश थे वो ऑर मेरी बहू तुम्हे यहाँ ले आई.
मैं: अच्छा!!!!!! बाबा मैं यहाँ कितने दिन से हूँ?
बाबा: बेटा तुमको यहाँ 3 महीने से ज़्यादा होने वाले हैं तुम इतने दिन यहाँ बेहोश पड़े थे. जितना हो सका मेरी बेटी ऑर बहू ने तुम्हारा इलाज किया हम ग़रीबो से जितना हो सका हम ने तुम्हारी खिदमत की.
मैं: ऐसा मत कहिए बाबा आपने जो मेरे लिए किया आप सबका बोहोत-बोहोत शुक्रिया. लेकिन मुझे कुछ भी याद क्यो नही है.
बाबा: बेटा तुम्हारे सिर मे बोहोत गहरी चोट थी जिसको भरने मे बोहोत वक़्त लग गया मुमकिन है उस घाव की वजह से तुम्हारी याददाश्त चली गई हो.


इतने मे एक लड़की की आवाज़ सुनाई दी....बाबा अकेले-अकेले किससे बात कर रहे हो....सठिया गये हो क्या ऑर कमरे मे आ गई. (मेरी नज़र उस पर पड़ी तो मैने सिर से पैर तक उसको देखा ऑर उसका पूरा जायेज़ा लिया) दिखने मे पतली सी लेकिन लंबी, काले बाल, बड़ी-बड़ी आँखें, गोरा रंग, काले रंग का सलवार कमीज़ जिसपर छोटे-छोटे फूल बने थे ऑर कंधे से कमर पर बँधा हुआ दुपट्टा चाल मे अज़ीब सा बे-ढांगापन.

बाबा :- देख बेटी इनको होश आ गया (खुश होते हुए)
नाज़ी :- अर्रे!!! आपको होश आ गया अब कैसे हो...क्या नाम है आपका....कहाँ से आए हो आप (एक साथ कई सवाल)
बाबा : बेटी ज़रा साँस तो ले इतने सारे सवाल एक साथ पुछ लिए पहले पूरी बात तो सुना कर.
नाज़ी :- (मूह बनाकर) अच्छा बोलो क्या है?
बाबा :- बेटी इनको होश तो आ गया है लेकिन इनको याद कुछ भी नही है यह सब अपना पिच्छला भूल चुके हैं.
नाज़ी :- (अपने मूह पर हाथ रखते हुए) हाए! अब इनके घरवालो को कैसे ढूंढ़ेंगे?

इतने मे बाबा मेरी तरफ देखते हुए.

बाबा:- बेटा तुम अभी ठीक नही हो ऑर बोहोत कमजोर हो इसलिए आराम करो यह मेरी बेटी है नाज़ी यह तुम्हारी अच्छे से देख-भाल करेगी ऑर तुम फिकर ना करो सब ठीक हो जाएगा. हम सब तुम्हारे लिए दुआ करेंगे.(ऑर दोनो बाप बेटी कमरे से बाहर चले गये)

यह बात मेरे लिए किसी झटके से कम नही थी कि ना तो मुझे यह पता था कि मैं कौन हूँ ऑर नही कुछ मुझे मेरा पिच्छला कुछ याद था उपर से मैं 3 महीने से यहाँ पड़ा हुआ था. एक ही सवाल मेरे दिमाग़ मे बार-बार आ रहा था कि मैं कौन हूँ....आख़िर कौन हूँ मैं अचानक मेरे सिर मे दर्द होने लगा इसलिए मैने अपनी पुरानी ज़िंदगी के बारे मे ज़्यादा नही सोचा ऑर अपने ज़ख़्मो को देखने लगा मेरी बॉडी की काफ़ी जगह पर पट्टी बँधी हुई थी. मैं इस परिवार के बारे मे सोच रहा था कि कितने नेक़ लोग है जिन्होने यह जानते हुए कि मैं एक अजनबी हूँ ना सिर्फ़ मुझे बचाया बल्कि इतने महीने तक मुझे संभाला भी ऑर मेरी देख-भाल भी की.मैं अपनी सोचो मे ही गुम्म था कि अचानक मुझे किसी के क़दमो की आवाज़ सुनाई दी. मैने सिर उठाके देखा तो एक लड़की कमरे मे आती हुई नज़र आई यह कोई दूसरी लड़की थी बाबा के साथ जो आई थी वो नही थी वो शायद भागकर आई थी इसलिए उसका साँस चढ़ा हुआ था...यह फ़िज़ा थी जो यह सुनकर भागती हुई आई थी कि मुझे होश आ गया है.

मैने नज़र भरके उसे देखा....दिखने मे ना ज़्यादा लंबी ना ज़्यादा छोटी, रंग गोरा, नशीली सी आँखें, पीले रंग का सलवार कमीज़ ऑर सिर पर सलीके से दुपट्टा ओढ़े हुए लेकिन वो दुपट्टा भी उसकी छातियों की बनावट को छुपाने मे नाकाम था) मैं अभी उसके रूप रंग ही गोर से देख रहा था की अचानक एक आवाज़ ने मुझे चोंका दिया.
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