non veg kahani आखिर वो दिन आ ही गया
07-29-2019, 11:57 AM,
#15
RE: non veg kahani आखिर वो दिन आ ही गया
मैं बोला-“और दीदी बच्चा हो गया तो फिर हम क्या करेंगे…”

दीदी बोलीं-“प्रेम हर औरत की तरह हमारी भी ख्वाहिश है की हमारा भी एक बच्चा हो। जिससे हम खेलें, उससे प्यार करें। लेकिन प्रेम अब यह मुमकिन नहीं। यहाँ तुम्हारे सिवा कोई मर्द नहीं जो हमसे बच्चा पैदा कर सके…”

मैंने कामिनी की तरफ देखा, फिर दीदी से बोला-“दीदी कामिनी भी बच्चा पैदा करेगी…”

दीदी बोलीं-“अभी नहीं… पहले मैं फिर कामिनी। ताकि कामिनी हर चीज को देखकर उससे सीख सके…”

मैं बोला-“अच्छा दीदी हम यह कब करेंगे। यानी आप की चूत में लंड कब डालूंगा मैं…”

दीदी बोलीं-“आज रात को तुम मेरी चूत पहली बार खोलोगे। मैं तुम्हें हर बात सीखा दूँगी। हाँ उससे पहले हम दोनों कामिनी को फारिग करवा कर उसकी मनी चूसकर बिठा देंगे ताकि हमारी हालात देखकर वह बेचैन ना हो जाए…”

मैं बोला-“क्यों दीदी हमारी हालात क्या हो जाएगी?”

दीदी बोलीं-“प्रेम सोचो जब तुम्हारा लंड पहली बार मेरे मुँह में गया था तो तुम्हारी क्या हालात हुई थी। और अब तो वह अपनी असल जगह जाएगा तो तुम कितना लुफ्त उठाओगे खुद ही सोच लो…”

और यह हक़ीकत थी। मैं आने वाले लम्हात के बारे में सोचने लगा। हम दोनों मुख्तलिफ सवालात करने लगे दीदी से।
दीदी ने कहा-“अब जब तुम मेरी चुदाई करोगे यानी चूत में लंड डालोगे तब सारे जवाब तुम दोनों को खुद ही मिल जायेंगे…”

फिर हम खाना बनाने लगे ताकि रात में बाहर बैठकर खाना ना तैयार करना पड़े। बाहर बड़ी सर्दी हो जाती थी। इसलिए अभी से तैयार कर लिया था की रात को सिर्फ़ खाना हो हमें। आख़िर रात आ ही गई। मेरी बहन राधा का अरमानों भरी रात। जो हर लड़की की जिंदगी में एक बार ज़रूर आती है। आज मेरी बहन की जिंदगी में वोही रात थी। वोही रात जब कोई लड़की पहली दफा अपनी टांगों के बीच का खजाना किसी मर्द के लिए खोलती है। वोही रात जब उसका जिस्म किसी मर्द के गरम आगोश में सिसकता है, तड़पता है। आज मेरी बहन की जिंदगी में भी वोही रात थी। लेकिन कितनी जुदा, कितनी अलग।

हमने रात का खाना खाया। वोही भुनी हुई मछली, चंद जंगली फ्रूट, उबली हुई एक झाड़ी जिसका जायका बिल्कुल मेथी की तरह था। यह था हमारा खाना। जो आप जानिए बेहद सेहत बख़्श था। फिर दीदी जहाज के सामान के बचे हुये संदूक से एक शराब की बोतल निकाल लाईं-“आज प्रेम तुम भी मेरे साथ पीओगे। हम दोनों शराब पीन के बाद शुरू करेंगे। क्योंकी तुम जानो… शराब से तुम मेरी चूत में काफी देर में अपनी मनी छोड़ोगे…”

“लेकिन दीदी देर से क्यों छोड़ूं मैं…”

दीदी बोलीं-“तुम जितनी देर में अपनी मनी मेरी चूत में छोड़ागे, मैं और तुम उतना ही मजा करेंगे और अगर तुमने फौरन ही छोड़ दी तो मेरी मनी छूटी ही ना होगी और तुम फारिग होकर लेटे होगे…” दीदी ने बोतल खोली और मैं और दीदी उसको घूंट घूंट पीने लगे।

दीदी कभी कभी पीती थीं। या जब हम बहुत बीमार हो जाते थे तो हमको दर्द कम करने की दवा के तौर पर कभी पिला देतीं थीं। अब भी हमारे पास काफी सारी बाटल्स बाकी थीं। मैंने तो चंद घूंट ही पिये होंगे की मेरा सिर चकराने लगा। दीदी ने भी दो घूंट और भर कर बोतल का कैप मजबूती से बंद कर दिया और बिस्तर पर जाकर लेट गईं। और टांगें खोलकर मुझे आकर अपनी टांगों के बीच में बैठने को कहा।

कामिनी भी उठकर दीदी की चूत के पास बैठ चुकी थी। और उसकी नजरें भी दीदी की खुली हुई चूत के अन्द्रुनी गुलाबी सुराख पर थीं।

दीदी मुझसे बोलीं-“प्रेम आओ पहले कामिनी की मनी निकलवा दें ताकि इसकी हालात ना खराब हो। और यह मनी क़तरा क़तरा बहाती हमें देखकर तड़पती रहे। यह कहते हुये दीदी ने कामिनी की रानों के बीच हाथ डालकर उसे खोला और अपना मुँह कामिनी की चूत से चिपका दिया।

कामिनी ने मेरा लंड पकड़ा और अपने मुँह में भर कर चूसने लगी। इससे मुझे पता चला की वह काफी देर से मेरा लंड चूसना चाह रही थी।

कुछ देर बाद दीदी उठीं और उन्होंने मेरा लंड खींचकर कामिनी के मुँह से निकाला और बोलीं-“अब बस प्रेम तुम कामिनी की चूत चूसकर उसकी मनी चूसो जब तक मैं अपनी चूत कामिनी से चुसवाती हूँ, इससे यह गीली भी हो जाएगी और तुम्हें डालने में आसानी होगी। वरना तेल वगैरह तो है नहीं हमारे पास कोकनट ओयल से और भी जाम हो जायेगी चूत…”

मैं कामिनी की रानें खोलकर उसकी गरम गरम चूत चूसने लगा जो पहले ही दीदी के थूक से गीली हो रही थी। दीदी कामिनी के मुँह पर बैठी अंदर तक उससे चुसवा रहीं थीं। और फिर कामिनी की मनी से मेरा मुँह भरने लगा। हम उतर आए कामिनी पर से। अब दीदी फिर बिस्तर पर लेट चुकी थीं और उनकी टांगें खुलीं थीं। जिनसे अब भी कामिनी का थूक टपक रहा था। मैं दीदी की टांगों के दरम्यान बैठ गया। मेरा लंड दीदी की खुली चूत से चंद इंच के फासले पर था और हल्के हल्के झटके मार रहा था।

दीदी बोलीं-“देखो प्रेम यह मेरा मुँह नहीं है। यह चूत है जो पहली बार खुलेगी। मेरी चीखों की परवाह नहीं करना। लेकिन जिस तरह मेरे मुँह में दीवानों की तरह झटके मारते हो मनी छोड़ते वक्त चूत में आहिस्ता आहिस्ता करना। फिकर ना करो यह कुछ ही दिनों की बात है फिर जैसा चाहे करना। मैं नहीं रोकूंगी तुम्हें। मेरी चूत से खून निकलते देखकर घबराना नहीं… यह होता है। और इससे कोई नुकसान नहीं होता। अच्छा अब तैयार हो जाओ…”

मैंने अपना लंड हाथ से सीधा किया और उसका ऊपरी सिरा, यानी उसकी टोपी दीदी की चूत पर रख दी। आहह… आप जानिए दोस्तों। एक अजीब सी लहर मेरे जिस्म में दौड़ती चली गई। क्या गर्मी थी वहाँ। ऐसा लगता था की बाहर के सर्द मौसम का चूत के अन्द्रुनी मौसम पर कोई फ़र्क नहीं पड़ा था। सिर्फ़ टोपी ही उस नरम हल्की सी भीगी लेकिन बहुत गरम चूत पर रखने से मेरा हाल बुरा होने लगा था। अभी तो आगे बहुत मंज़िलें तय करनी थीं।
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RE: non veg kahani आखिर वो दिन आ ही गया - by sexstories - 07-29-2019, 11:57 AM

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