RE: non veg kahani आखिर वो दिन आ ही गया
मैं और मेरी बहनें जो कुछ कर रहे थे वो शायद मजहबी, मशरती और इख्लकी तौर पर सही ना था लेकिन जहाँ हम थे वहाँ कुछ ना था सिवाए तीन इंसानों के और वह तीनों आम इन्सान थे। फितरत के गुलाम । और हम जो कर रहे थे वह आम फितरत थी इंसान की। हम अपने जिस्मों की प्यास एक दूसरे से बुझा रहे थे। और इसी तरह वक्त चलता चला गया। हम बहन भाई एक दूसरे के जिस्मों से खेलते रहे। अपनी खुराक का बेहद खयाल रखते। एक दूसरे को खूब खूब मजा देते। हमारा प्यार बढ़ता जा रहा था किसी को अगर मामूली सी चोट या जख़्म लग जाता तो हम सब यूँ महसूस करते जैसे वह तकलीफ हमारे वजूद में हो। मैं अपनी दोनों बहनों के मम्मे चुसता। उनकी निपल्स के रेशमी मसरों को मुँह में लिए रहता। उनकी नरम गरम चूतों का पानी चुसता। और उनकी मनी निकलवाता।
और वह दोनों मेरे लंड को चुसती अपने सीने पर रगड़ती, और खूब मजा करतीं। दिन यूँ ही गुज़रते गये। और मेरी बहनें दिन-बा-दिन निखरती चली गईं। मुझे याद है सही तरह तो नहीं। आप जानिए अब इस उमर में याददाश्त भी कुछ ज्यादा काबिल-ए-भरोसा नहीं रह पाती लेकिन मैं याद करने की कोशिस करता हूँ। यह शायद 1947 का आख़िर या 1948 का शुरू था। सर्दियाँ जोरों पर थी, हमें यहाँ आए हुये तकरीबन 10 साल हो चुके थे। अब तो हम दुनियाँ को भूल चुके थे। खास तौर पर कामिनी तो कुछ जानती ही ना थी की असली दुनियाँ क्या होती है। उसके लिए तो यह जज़ीरा ही उसकी दुनियाँ थी जहाँ वह अपने भाई से प्यार करती और बड़ी बहन से लिपट कर अपनी जिस्म की आग बुझाती।
अब मैं तकरीबन 19 साल का हो चुका हूँ एक भरपूर जवान, की अपनी दोनों बहनों की चूत पर अपने होंठों को लगाकर अपने मजबूत बाजुओं से जब मैं उनकी गान्ड को जकड़ता था तो वह मनी छोड़ते वक्त कितना ही तड़पती रहे लेकिन अपनी चूत मेरे मुँह से हटा नहीं पातीं थीं। उनके मम्मे जब मेरे बड़े बड़े हाथों में दबते तो मैं उनको निचोड़ कर लाल गुलाबी कर डालता था। जब उनको अपनी बाहों में जकड़ लेता तो वो अपने आपको छुड़ा नहीं पातीं थीं।
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मेरी बहन राधा-25 साल की हो चुकी थी या होने वाली थी उसके मम्मे बिल्कुल गोल, निप्पल्स डार्क ब्राउन, कमर पतली और रंग साँवलाया हुआ, गान्ड बाहर को निकली हुई और गोल, रानों के बीच से झाँकती खूबसूरत चूत, बीलशुब्बा बहुत हसीन थी। कोमल किनारे चूत के। और जब इन नरम लबों को खोलें तो… अंदर से गरम गुलाबी रेशम का घिलाफ जिसको बस मुँह में रखें और चूसें जहाँ से बेहद मजेदार रस निकलता था। जिसको चूसना शायद हर मर्द की आरजू हो।
मेरी बहन कामिनी-जिसको मैंने ही चूसकर जवान कर दिया था अब वह ** साल की हो चुकी थी। उसके मम्मे मेरे हाथों से मसल मसल कर काफी उभर आए थे और जब वह भागती थी तो बहुत हसीन तरीके से हिलते थे। और उनका अजीब हुश्न यह था के वह ऊपर की जानिब उठे हुये थे। उनकी निप्पल गुलाबी थीं। और मेरे चूसने की वजह से काफी बाहर को निकली हुई। गान्ड ज्यादा बड़ी ना थी लेकिन बहुत ही चंचल है। कमर बेहद पतली और नाजुक, और चूत… उस चूत का क्या कहना। बस मेरे लिए दुनियाँ का खजाना था। वहाँ मैं जब उसपर मुँह लगा देता तो बस फिर तीन बाज दफा 4 बार उसकी मनी छुड़वा कर ही दम लेता और वह निढाल हो जाती थी। बहुत ही खूबसूरत और कमसिन चूत थी मेरी बहन कामिनी की। तो अब मैं बाकिया वाकियात की तरफ आता हूँ अपनी दास्तान के।
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मैं कह चुका हूँ की सर्दियाँ अपने जोरों पर थीं।
हम बहन भाई या तो सारा दिन आग जलाए बैठे रहते। या एक दूसरे के जिस्मों से सर्दी कम करते। एक दिन हम लोग बैठे थे। दिन का सूरज अपनी अब-ओटाब से चमक रहा था। 30
दीदी बोलीं-“कहो अब खेल से दिल भर गया है क्या…”
मैं बोला-“नहीं दीदी बहुत मजा आता है हमें तो… हम सब इतने प्यार से मजा करते हैं…”
दीदी बोलीं-“प्रेम तुम्हारा दिल नहीं चाहता की तुम कुछ और करो। अपने लंड से…”
मैंने हैरत से कहा-“क्या दीदी…”
दीदी मुश्कुराते हुये-“तुम दोनों को याद है जब मैंने तुम दोनों को चूत और लंड के बारे में कुछ सालों पहले बताया था। तो यह कहकर आगे नहीं बताया था की तुम अभी छोटे हो…”
मैंने चौंक कर कहा-“हाँ… दीदी शायद आपने कहा था…”
दीदी बोलीं-“प्रेम अब वक्त आ गया है की मैं फितरत के हसीन राज तुम दोनों पर खोल दूं…”
हम दोनों उठकर दीदी के पास आ बैठे। और हम खामोश हो गये। हमारे लिए कुछ नई राहें खोलने वालीं थीं हमारी दीदी। और हमें उनके हर खेल में एक नया लुफ्त आता था। इन बिसात की चंद और नई दुनियाँ से लुफ्तअंदोज होने का मोका मिलता था। शुरूर की चंद और मंज़िल िय कर लेते थे। तो हम यानी मैं और कामिनी भी बेताब थे आगे जानने के लिए।
दीदी हमसे कहने लगी-“प्रेम और कामिनी। हमें यहाँ आए दस साल से ज्यादा होने वाले हैं। नहीं मालूम हम कभी वापिस अपनी दुनियाँ में पहुँच पाएँगे या नहीं। इसलिए क्यों ना हम अपनी दुनियाँ यहीं बना लें। अब किसी का इंतजार फुजूल है। आज से प्रेम हम तुम्हारी बहनें नहीं…”
मैं हैरत से दंग हो गया।
दीदी बोलीं-“प्रेम आज से हम तुम्हारी बीवियाँ हैं और तुम जानो बीवी का क्या करते हैं… बीवी को चोदते हैं, उससे बच्चा पैदा करते हैं, और अपनी नेश्ल आगे बढ़ाते हैं…”
मैंने हैरत से दोहराया-“चोदते हैं, बच्चा पैदा करते हैं…”
दीदी बोलीं-“हाँ… प्रेम… लड़की से सिर्फ़ इतना ही नहीं करते जो तुम कई सालों से हम दोनों के साथ करते चले आए हो। यानी उसकी सिर्फ़ चूत चूसने और चाटने के लिए नहीं होती। उसके मम्मे चूसने के लिए नहीं होते। लंड सिर्फ़ चूसने के लिए नहीं होता मनी सिर्फ़ पीने के लिए नहीं होती…”
मैं और कामिनी हैरान थे। यानी हम इतने सालों से जो कुछ करते आए थे वह कुछ भी नहीं था।
दीदी बोलीं-“प्रेम तुम दोनों ठीक सोच रहे थे हमने तो अब तक कुछ भी नहीं किया। पर अब मैं तुम दोनों को एक एक राज बता दूँगी…”
दीदी फिर बोलीं-“प्रेम यह जो तुम मेरी और कामिनी की चूत देख रहे हो। इधर आओ…” दीदी ने मुझे अपनी टांगें खोलते हुये पास बुलाया।
मैं दीदी की खुली हुई टांगों के बीच जाकर बैठ गया।
दीदी ने टांगें खोलीं और उंगलियों से अपनी चूत खोलते हुये बोली-“प्रेम यह चूत है जैसी की मेरी और कामिनी की। हम दोनों की चूत में थोड़ा बहुत फ़र्क है जाहिर है उसकी चूत अभी बहुत कमसिन है। मेरी चूत उभरी हुई है और बड़ी है। यह सुराख देखकर तुमको क्या खयाल आता है…”
मैं चुप रहा।
दीदी बोलीं-“इसी चूत को तुम इतने अरसे से चुसते आए और इसी सुराख से निकलती मनी और पेशाब तुम पीते आए हो। अब तुम अपने लंड को देखो जो हम दोनों अपने मुँह में लेकर चुसती हैं…”
मैंने अपने लंड को हाथ से पकड़ लिया जो लम्हा-बा-लम्हा तनता जा रहा था।
दीदी बोलीं-“प्रेम सोचो अगर यह लंड अगर हमारे मुँह के सुराख के बजाए हमारी चूत के सुराख में हो तो तुम्हें कितना मजा आए…”
मैं यह सुनकर हैरान रह गया।
“दीदी इतना बड़ा लंड इतने से सुराख में जाएगा कैसे…” कामिनी ने हैरत से पूछा।
दीदी बोलीं-“नहीं कामिनी अभी यह सुराख छोटा है लेकिन जैसे जैसे इसमें लंड जाता रहेगा यह खुलता जाएगा। और इस खुलने में यह और भी मजा देगा…”
फिर बोलीं-“हाँ… जब यह पहली बार खुलेगी तो थोड़ी तकलीफ होगी। थोड़ा खून भी निकलेगा। लेकिन फिर बस यह एक बार ही होगा…”
वो फिर बोलीं-“दुनियाँ का हर मर्द हर औरत के साथ यही करता है। वह उसकी चूत में अपना लंड डालता है और फिर उसकी चूत में अपनी मनी भर देता है। जिस तरह मैं और कामिनी तुम्हारी मनी पिया करते थे प्रेम। बिल्कुल वैसे ही हमारी चूतें यह मनी पीकर उसे चूसकर हमारी बच्चेदानी में पहुँचा देंगी। वहाँ यह हमारी चूत की मनी से मिलेगी और फिर बच्चा पैदा होगा…”
मैंने हैरत से पूछा-“और दीदी गान्ड का सुराख। क्या वहाँ से भी बच्चा पैदा होता है…”
दीदी हँसते हुये बोलीं-“अरे नहीं… हाँ चाहो तो तुम हम दोनों की गान्ड के सुराख में भी डाल सकते हो। लेकिन पहले तुम हमारी चूतों के मजे चख लो। फिर गान्ड के सुराख खोलना। क्योंकी गान्ड का सुराख खुलते हुये बहुत ज्यादा तकलीफ होती है…”
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