RE: non veg kahani आखिर वो दिन आ ही गया
आप सब जानते हैं अब हमारी जिंदगी बेहद हसीन थी। हम यानी मेरी दीदी राधा, मेरी छोटी बहन कामिनी और मैं प्रेम। जिंदगी का शायद हसीन तरीन वक्त गुजार रहे थे। उस दिन मैंने अपनी दोनों बहनों की चूतें चूसी, उनका रस पिया। उन दोनों ने मेरा लंड चूसा और आख़िर में मैंने और कामिनी ने एक दूसरे का पेशाब पिया।
अब हम तीनों इसी तरह दिन-ओ-रात गुज़ारते। दीदी रात में कामिनी को सामने बिठाकर मुझसे मजे लेतीं और मेरी मनी चूसकर सो जातीं और जाहिर है मेरी उमर इतनी ज्यादा ना थी की मैं अपनी दोनों बहनों की गर्मी दूर कर पाता।
फिर सुबह उठकर मैं नदी पर कामिनी के साथ वक्त गुज़ारता और उसके वजूद में सुलगती आग को उसकी चूत का रस पीकर बुझाता और हम दोनों हँसते मुश्कुराते नहा कर नदी से वापिस आ जाते। यूँ ही शब-ओ-रोज गुजरने लगे।
यह सर्दियों के दिन थे, मुझे याद है। यानी डिसेंबर था शायद और साल था 1945। इस हिसाब से यहाँ आए हमें 8 साल होने को थे। काफी अरसा हो गया था हमें यहाँ आए। मेरा जिस्म अब मजबूत होता जा रहा था। और फिर अब यह चूत चूसना और लंड चुसवाना यानी जिस्म की जिन्सी ज़रूरतें भी बहुत खूबी से पूरी हो रहीं थीं।
और फिर उम्दा और अच्छी खुराक, खुली और सेहतबख़्श फ़िज़ा और फिर तन आसानी। कोई खास काम काज तो था नहीं सारा दिन बस फ़ुर्सत ही फ़ुर्सत। इन्हीं चीजों ने मुझको अपनी उमर से बड़ा बना दिया था शायद और मैं जो **** साल का होने को था अपनी उमर से कई गुना बड़ा 20 साल का लगता था। और मेरी दीदी राधा अब 23 साल की हो रही थी। और उसी हिसाबसे भरपूर जवान और उमंगों भरी थी। मेरी छोटी बहन कामिनी की उमर *** की होने वाली थी लेकिन अब उसका जिस्म तेज़ी से खूबसूरत होने लगा था। पिछले 8 या 9 महीनों से हम जो खेल खेल रहे थे यानी एक दूसरे की चूत और लंड चूसने का वो अपना रंग दिखा रहा था। मेरी दीदी राधा का जिस्म भरपूर और बहुत हसीन था, गान्ड भारी बिल्कुल गोल और टाइट थी। और चलते सेमय बेहद मधुर तरीके से हिलती थी।
मम्मे गोल और टाइट, उनके निप्पल जो पहले बिल्कुल गुलाबी थे अब मेरे मुस्तकिल चूसने से वो थोड़े ब्राउनिश हो गये थे। और मम्मों का झुकाव बहुत ही खूबसूरत था। इतने हसीन मम्मों के नीचे पतली कमर जो चलते हुये बल खा जाती थी। हल्का सांवला रंग जिसको धूप ने झुलसा कर बेहद हसीन बना दिया था। और खोबसूरत रानों के बीच वो हसीन तरीन, नरम गरम जगह जिस पर मरता था मैं, जहाँ से मुँह को सुकून मिलता था, जिसको प्यार से चूमता था चुसता था मैं। हाँ… मेरी दीदी की चूत जो मेरे चूसने की वजह से अब कुछ बाहर निकल आई थी। जिसके लबों के दरमिया से अब चूत का अन्द्रुनी हिस्सा झाकने लगा था। एक मुकम्मल और जवान चूत, भरपूर, मस्ती भरी रसभरी बेहद खूबसूरत।
|