non veg kahani आखिर वो दिन आ ही गया
07-29-2019, 11:56 AM,
#8
RE: non veg kahani आखिर वो दिन आ ही गया
वो मखमौर लहजे में बोलीं-“अब प्रेम तुम मेरा सीना और यह चुचियाँ, चूसो खूब अच्छी तरह से…” यह कहकर दीदी लेट गईं।

मैं दीदी के सीने पर झुक कर उसकी एक चुची पर अपने होंठ रख दिए। दीदी की एक सिसकारी की आवाज आई। दीदी का जिस्म तप रहा था, आग की तरह और शायद मेरा भी दोनों जानिब आग लगी थी।
और आग से आग कभी बुझी है भला। लेकिन शायद यह ही इस खेल का निराला अंदाज था की इस खेल में आग को सिर्फ़ आग ही बुझाती थी। मैं आहिस्ता आहिस्ता एक चुची चुसता रहा मेरी सांसें गरमाने लगीं और मेरा एक हाथ दीदी के दूसरे मम्मे को दबा चुका था। मैं मसल रहा था निप्पलो को चूस रहा था, काट रहा था और दीदी…
दीदी तड़प तड़प कर बेहाल थी। काफी देर मैं दीदी के मम्मे चुसता रहा। वो बिल्कुल गोल होने की वजह से और दीदी के लेटे होने की वजह से या शायद दीदी की गर्मी की वजह से बेहद तन गये थे। हर बार मेरा हाथ फिसल फिसल जाता था। अब वो मेरे थूक में लिथड गये थे। चुचियाँ और भी गुलाबी हो गई थीं, और कड़ी थीं। आख़िर दीदी काँपती हुई आवाज में बोलीं-“प्रेम मजा आ रहा है…”

मैं हान्फते हुये बोला-“हाँ दीदी बहुत…” और अगर मैं सच कह दूँ तो आप पर मेरा बस नहीं चल रहा था की मैं यह मम्मे किस तरह अपने मुँह में भर लूँ, खा जाऊूँ इनको। लेकिन ऐसा मुमकिन ही ना था वो काफी बड़े थे। समझ नहीं पा रहा था की मैं क्या करूँ… ना जाने किस चीज की कमी थी।

दीदी फिर बोलीं-“चल प्रेम अब चूत चाट ले मेरी, चूस जा इसे। पी जा मेरे रस को। एक क़तरा ना छोड़ना…”

मैं दीदी की रानों की तरफ चला वहाँ तो अजीब ही नजारा था। दीदी की टांगें खुली थीं और उसमें से एक लेसदार पानी बह रहा था। मेरे दिमाग़ ने फौरन कहा-“मनी…” और मैंने अपनी दीदी की चूत से मुँह लगा दिया दीदी की चूत का घेरा इतना ही था जितना मेरा मुँह का। मैं दीदी की चूत के हर उभरे हुये हिस्से को होंठों में दबाकर चूसने लगा। अब दीदी सिसक रही थी, उसकी आवाजें बेहद बुलंद थीं। लेकिन उन आवाजों में जो लुफ्त, जो खुशी और जो सुकून था वो बस कुछ यूँ था। जैसे कई सदियों का कोई प्यासा किसी ठंडे और मीठे पानी के चश्मे से मुँह लगाए बैठा हो।

मैं चूत को चुसता रहा और वहां तो वाकई रस की कोई कमी ना थी, निकलता ही चला आ रहा था। मैं जबान अंदर डालकर चूत से निकला रस अपने हलक से उतारता ही था की वो दोबारा तर हो जाती। मैंचुसता जा रहा था। दीदी ने सच ही कहा था नमकीन…शुरूप्प…शुरूप्प… अब कैसे बताऊूँ उस रस का जायका। बस यूँ समझ लें की (आपने भी किसी ना किसी चूत का रस ज़रूर पिया होगा) वो एक ऐसी लड़की की जवानी का रस था जिसको किसी मर्द ने नहीं चूसा था, जिसकी चूत को कभी किसी मर्द ने नहीं छुआ था। मैं उस रस को चख रहा था, मैं उस चूत को चूस रहा था।

दीदी बेइखतियार हो चुकी थी। उसने मेरा सिर पीछे से पकड़ कर अपनी चूत में घुसा लिया था। मेरा मुँह उनकी चूत से चिपका हुआ था की मेरी जबान उनकी चूत की गहराइयों में लपलपा रही थी और हर बार उस मस्त जवानी भरे रस की अच्छी खासी मिकदार मेरे हलक तक पहुँचा रही थी, तो दूसरी तरफ मेरी नाक दीदी की चूत के उपरी हिस्से से जुड़ी एक मधुर महक का एहसास मेरी सांसों में पहुँचा रही थी। आह्ह क्या समा था, क्या मंजर था, आप सोचकर देखें।

और फिर कुछ हुआ, ऐसा लगा जैसे दीदी की चूत ने एक झटका लिया और अंदर की तरफ सांस खींची। मैं इसलिए चूत को सांस लेते महसूस कर सकता था क्योंकी दीदी की चूत मेरे मुँह में थी। और फिर मेरा मुँह पानी से भर गया क्योंकी मेरे मुस्तकिल चूसने की वजह से एक स्पेस या खालीपन पैदा हो गया था। दीदी की चूत में तो उसके प्रेसरे की वजह से दीदी की चूत की गहराइयों में मौजूद मनी का क़तरा क़तरा तक खिंचकर मेरे मुँह में भर गया और दीदी एकदम शांत हो गई। और मेरा मुँह जैसे ही चूत से अलग हुआ एक हल्के से पटाखे जैसी आवाज आई।

यह उस एयरस्पेस की वजह से थी जो मैंने चूस कर दीदी की चूत में पैदा कर दिया था। मनी की मिकदार इतनी थी की मेरे मुँह से बह रही थी, बेहद मजेदार।

दीदी उठीं, उसके चेहरे पर एक लाजवाल सुकून था। एक अनकही कहानी थी। एक मुहब्बत थी। एक दर्द था। और ना जाने क्या कुछ था। जो मैं अभी समझ नहीं पा रहा था अब मेरी नजर कामिनी पर पड़ी तो मैं हैरान रह गया। कामिनी अपनी रानें भींचे और एक हाथ से अपनी चूत दबाए एकटक हमें देख रही थी।

दीदी उसको यूँ देखकर मुस्कुराने लगी, और मैंने सोचा शायद बेचारी को बहुत जोरों का पेशाब आया हुआ है। मेरा लंड अब तक तना हुआ था हाँ उसमें से लेसदार पानी के कतरे निकलकर दीदी की रानों पर ज़रूर लगे थे लेकिन रात वाली बात और मजा नही आया था। मेरा लंड बेहद तना हुआ। गरम और झटके खा रहा था।

मैंने दीदी से कहा-दीदी मेरे लंड का तो कुछ करो।

दीदी ने कहा-कुछ नहीं बस पकड़ कर मुझको लिटाया और मेरा पूरा लंड मेरी दीदी के कोमल लबों में फँसा हुआ उनके मुँह में गायब हो गया उसने कुछ देर उसको मुँह की गहराइयों में ही रखा। शायद उसपर लगा लेसदार पानी चूस रहीं थीं दीदी। फिर उन्होंने उसको चूसना शुरू किया। लंड चुसते हुये वो अपने होंठ कभी लंड के ऊपरी हिस्से यानी उसकी टोपी तक लाती और दूसरे ही लम्हे लंड फिसलता हुवा उनके मुँह में गायब हो जाता। मैं तो दीवाना हुआ जा रहा था। बस नहीं चल रहा था की क्या करूँ। मैंने दीदी के मम्मे जोर जोर से दबाने शुरू कर दिए।

अब दीदी मेरे लंड का निचला हिस्सा जहाँ दो गेंदें लटक रहीं थीं, उनको मुँह में लिए चूस रहीं थीं और मैं मजे के मारे बस मरा जा रहा था। दीदी ने मेरी बेचैनी देखते हुये। अपनी चूत का मुँह मेरे मुँह की तरफ कर दिया और मैं सदियों के भूखे की तरह उस गीली और रस छोड़ती चूत से चिपक गया और मजे से उसे चूसने लगा। कुछ ही देर बाद दीदी की चूत फिर से गरम हो चुकी थी। और उसने मेरे मुँह में झटका देना शुरू किया। यह देखकर मैंने भी अपने लंड को धक्के देने शुरू कर दिए। यह महसूस करके दीदी ने अपना मुँह बस एक खास अंदाज में खोल लिया और मेरा लंड एक झटके से उनके मुँह से बाहर आता थूक से लिथड़ा हुआ और अगले ही लम्हे “शराअप” की आवाज से दोबारा उनके हलक तक चला जाता।
मुझको एक नया ही मजा आने लगा और फिर मेरा मुँह दोबारा दीदी की मनी से भरने लगा लेकिन इसके साथ ही मेरी आँख शिद्दत-ए-लुफ्त से बंद हो गईं और मैंने पूरी कुवि से दीदी के मुँह में अपना लंड घुसा दिया। दीदी ने देखते ही अपना मुँह सख्ती से बंद करते हुये गोया मेरे लंड को जकड़ लिया और हाथों से मेरी गान्ड को सहलाने लगीं। और मुझे महसूस हुआ की मेरी जान मेरे लंड के रास्ते निकलती जा रही है। जी हाँ दीदी का मुँह मेरी मनी से भरने लगा और कुछ ही देर बाद बस सुकून और सांसों की आवाजें ही रह गईं वहां या तो मैं था निढाल पड़ा हुआ या दीदी थीं जिसके मुँह से बहकर मेरी मनी पूरे चेहरे पर फैली हुई थी और जमी जमी सी थी। कुछ देर बाद हम उठ बैठे।

दीदी ने कहा-“मजा आया प्रेम?”

मैंने कहा-“बहुत दीदी…”

दीदी मुश्कुराती हुई बोली-“एक मजेदार चीज दिखाऊूँ तुमको?”

मैं बोला-“क्या दीदी?”

वो अचानक उठी और खामोश बैठी कामिनी के पास पहुँच कर उसकी टांगें खोल दीं, उसकी चिपकी हुई चूत हल्की सी खुल गई। मैंने देखा के मेरी कामिनी बहन की चूत भी गीली थी, उसका गुलाबी हिस्सा मनी से भीगा हुआ था और कुछ मनी बहकर वो जहाँ बैठी थी वहाँ और उसकी टांगों के दरम्यान फैली हुई थी…”

दीदी हँसती हुई-“कहो कामिनी मजा आया?”

फिर मुझसे बोलीं-“देखा प्रेम अपनी छोटी बहन को वो तुमको देखकर ही अपनी मनी छोड़ बैठी। अब तुम दोनों कल यह खेल खेल लेना। अब तो मैं थक गई हूं। तुम दोनों बाहर जाओ और चाहो तो यह खेल खेल लेना लेकिन देखो सिर्फ़ एक बार। प्रेम एक बार तुम अपनी मनी छोड़ चुके हो ठीक है। अब जाओ…”

मैं और कामिनी बाहर आ गये।

मैं हँसते हुये-“तुझको क्या हुआ कामिनी तेरी चूत ने क्यों पानी छोड़ दिया?”

वो बोली-“पता नहीं भाई तुम दोनों इतने मजे में थे मेरा भी दिल कर रहा था यह खेल खेलने को फिर मेरी चूत से पानी बहने लगा…”

यह सुनकर मैं हँसने लगा और हम दोनों नदी की तरफ जाने लगे ताकि नहा सकें। जिस्म में एक थकावट सी थी जो शायद ताजे पानी से दूर हो सके।
दोस्तों इस दास्तान के बहुत से पहलुओं में से एक पहलू यह भी है की आप इसमें फितरत के बदलते हुये उसूल देखेंगे। किस तरह फितरत अपना रास्ता खुद ढूँढती है और कैसे बढ़ती है यह महसूस करेंगे। अब मेरी दास्तान बहुत तवील होती जा रही है। अब मुझको इजाज़त दें दास्तान के बाकी राज मैं कल उजागर करूँगा
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