RE: Bahu ki Chudai बहुरानी की प्रेम कहानी
इतना सोच के मैंने कम्मो की सलवार नीचे सरकाने की फिर से कोशिश की पर उसे दोनों हाथों से ताकत से पकड़ रखी थी. फिर मैंने दूसरी तरकीब की; उसकी सलवार को पकड़े पकड़े ही मैंने अपने बीच की उंगली से सलवार के ऊपर से ही उसकी चूत को कुरेदना शुरू किया. दूसरे हाथ से उसके स्तन दबा रहा था. मुझे पता था कि अभी मेरी उंगली इसकी चूत में हाय तौबा मचाएगी तो ये अपनी सलवार क्या अपनी पैंटी भी खुद उतार के देगी मुझे; आखिर अपनी चूत की खुजली कब तक सहन कर सकेगी.
जैसा कि होना ही था. कामदेव ने अपना पुष्पबाण चला ही दिया और कम्मो अपनी एड़ियाँ रगड़ने लगी. उसकी आँखों में अनुनय विनय का भाव आ गया और सलवार पर उसकी पकड़ स्वयमेव ढीली पड़ गयी और उसने सलवार छोड़ कर अपने हाथ ऊपर कर दिए. सलवार ढीली पड़ते ही मेरी उंगली अब और आराम से उसकी चूत का जायजा लेने लगी. उसके मम्मे कड़क हो गये थे और चूचुकों ने अपना सिर उठा लिया था और वे मेरी छाती के नीचे पिसने को मचलने लगे थे. नीचे उसकी चूत भी पक्का प्रेमाश्रु बहा रही होगी.
“अंकल जी देर हो रही है देखो बारात पहुँचने वाली होगी!” उसने कमजोर सी आवाज में कहा उसकी आवाज में वो दृढ़ता वो आत्मविश्वास नहीं था अब. उसकी बात मैंने अनसुनी की और अपनी उंगली की रफ़्तार और तेज कर दी; उसकी चूत की चिपचिपाहट और गीलापन अब मुझे अच्छे से महसूस होने लगा था.
“अंकल जी क्यों सताते हो मुझे. अच्छा लो कर लो जैसे आपको करना हो!” उसने हथियार डाल दिए.
मैं अब उसके ऊपर लेट गया और फिर से उसके होंठ चूसने लगा; वो मेरी पीठ बेसब्री से जल्दी जल्दी सहलाने लगी फिर वो अपने हाथ नीचे की तरफ ऐ गयी और अपनी सलवार उसने खुद और नीचे सरका दी.
“लो अंकल जी, देख लो जो देखना है कर लो अपने मन की जी भर के. मुझे पूरी बेशर्म बना देना आप तो!” कम्मो समर्पित भाव से बोली.
“कम्मो, कितनी प्यारी प्यारी है न तू. मुझे पता था कि तू मेरा दिल नहीं तोड़ेगी.” मैंने प्यार से उसे चूमते हुए कहा; मैं नहीं चाहता था खुद को हारी हुई समझे. उसके स्त्रीत्व का नारीत्व का, उसकी गरिमा का आदर सम्मान बनाए रखना मेरी जिम्मेवारी थी. जबकि मैं जानता था कि वो अपनी चूती हुई चूत से हार कर अपनी सलवार नीचे खिसकाए पड़ी थी.
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“कम्मो बेटा एक बात और मान ले जल्दी से!” मैंने कहा तो उसने प्रश्नवाचक दृष्टि से मुझे देखा.
“ये कुर्ता और उतार दे. बाकी तो मैं कर लूंगा.” मैंने उसे अत्यंत प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरते हुए कहा.
“अच्छा ये लो, आज आप मुझे पूरा बेशर्म बना कर ही छोड़ना.” वो बोली और अपने हाथ ऊपर उठा दिए.
मैंने झट से कुर्ता नीचे से पकड़ा और उसे निकालने लगा. मेरे हाथ उसके सीने की गोलाइयों से रगड़ खाते हुए ऊपर चले गये और उसका कुर्ता उतार लिया और उसे तह करके वहीं साइड में रख दिया.
शमीज तो उसने पहनी ही नहीं थी. मेरी गिफ्ट की हुई ब्रा में उसके मांसल दूध जैसे मेरी ही राह तक रहे थे. उसके सुडौल कंधों पर ब्रा के स्ट्रेप्स बहुत अच्छे लग रहे थे. ब्रा के दोनों कप जैसे किसी स्तूप की तरह शान से खड़े थे.
“कम्मो ये ब्रा भी उतार दो अब”
“क्यों, क्या मुझपे अच्छी नहीं लगी ये?”
“अरे बेटा, वो बात नहीं है. तू तो इसमें बहुत सुन्दर लग रही है पर इसे उतारना तो है ही ना नहीं तो मैं दूध कैसे पियूंगा ?”
“तो अभी तक दूध पीते बच्चे हो आप, क्यों?”
“हां… और भूख भी लगी है मुझे!”
“हम्म्म्म तो ये लो पी लो!” कम्मो ने कहा और अपने हाथ पीछे ले जाकर ब्रा का हुक खोल दिया.
हुक खुलते ही ब्रा के स्ट्रेप्स तेजी से उछल गये. और उसके पके तोतापरी आम जैसे विशाल गुलाबी मम्में मेरे सामने उजागर हो गये. मैंने बिना देरी किये उन्हें दबोच लिया और बारी बारी से चूसने लगा. उधर कम्मो मेरे सिर को थपकी दे दे के ममत्व भाव से सहलाने लगी.
वासना की आग में मैं भी जलने लगा था अब मैंने कम्मो का गला, कान की लौ, गाल सब के सब चूम डाले और नीचे की ओर होकर उसके सपाट सुतवां पेट को चूमते चूमते उसकी नाभि में अपनी जीभ घुमाने लगा. मेरा ऐसे करते ही कम्मो को गुदगुदी हुई और उसकी हंसी छूट गयी; बिल्कुल बच्चों जैसी निश्छल, उल्लासपूर्ण खिलखिलाहट उसके मुंह से फूट पड़ी और उसके मोतियों से चमकते दांत ट्यूबलाइट की तेज रोशनी में दमक उठे.
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उसकी सलवार का नाड़ा तो खुला ही पड़ा था सो मैंने सलवार उतारने का उपक्रम किया तो कम्मो ने तुरंत अपनी कमर उठा दी और उसका सफ़ेद चूड़ीदार मैंने निकाल कर फिर उसे अच्छे से तह करके बगल में रख दिया; आखिर उसे अभी इसे ही तो पहन कर शादी में जाना था. अब मैंने उसके दोनों अमृत कलश के चूचुकों को चिकोटी से हौले हौले दबाते हुए उसकी जांघें पूरी तन्मयता से चाटने लगा.
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