RE: Bahu ki Chudai बहुरानी की प्रेम कहानी
मेरी पिछली कहानी में मैंने बताया था कि मैं और बहूरानी अदिति उसके चचेरे भाई की शादी में शामिल होने के लिए दिल्ली पहुंच चुके थे; निजामुद्दीन स्टेशन पर ही अदिति के मायके वाले हमें रिसीव करने आ पहुंचे थे. हम मेहमानों के रुकने का इंतजाम एक धर्मशाला में किया गया था जो अच्छी, आधुनिक किस्म की सर्व सुविधाओं से युक्त होटल टाइप की धर्मशाला थी.
हम लोग धर्मशाला में पहुंचे तो अदिति को तो पहुँचते ही रिश्तेदारों ने घेर लिया और उनके हंसी ठहाके लगने लगे. शादी ब्याह में इन्ही छोरियों और नवयौवनाओं से ही तो रौनक होती है. वहां मुझे अन्य सीनियर लोगों के साथ एक बड़े से हाल में एडजस्ट होना पड़ा.जिस दिन हम लोग दिल्ली पहुंचे शादी उसके अगले दिन थी.
लड़की वालों ने अपना मैरिज गार्डन बुक किया हुआ था जो हमारी धर्मशाला से को डेढ़ दो किलोमीटर के फासले पर था.
धर्मशाला के सामने बगीचे में एक बड़ा सा पंडाल लगाया हुआ था जिसमें कुक, शेफ यानि हलवाई द्वारा चाय, काफी, नाश्ता, लंच, डिनर इत्यादि सब बनवाने की व्यवस्था थी. जिसे जो खाना हो उनसे बनवा लो और एन्जॉय करो. कुल मिलाकर बढ़िया व्यवस्था की गई थी.
मैंने पहुंच कर इन्हीं सब बातों का जायजा लिया और तैयार होकर बड़े हाल में जा बैठा. अब करने को तो कुछ था नहीं. सबसे मिलना जुलना और चाय नाश्ता चल रहा था, साथ में नयी उमर की लड़कियों, विवाहिताओं और नवयौवनाओं को देख देख के अपनी आंखें सेंकता जा रहा था, साथ में चक्षु चोदन भी चल रहा था.
सजी धजी परियां अपना अपना मोबाइल पकड़े हंसी मजाक कर रहीं थीं. मोबाइल से फोटो शूट और सेल्फी लेने की जैसे होड़ मची थी. कुछ लड़कियों के ग्रुप दूर कहीं कोने में किसी मोबाइल पर नजरें गड़ाये मजे ले रहे थे; हंसना मुस्कुराना, कोहनी मार के हंस देना … यह सब देख कर सहज ही अंदाज लगाया जा सकता था कि उनके मोबाइल में क्या चल रहा होगा. अब इन खिलती कलियों और बबुओं के फोन में पोर्न वीडियो होना तो एक साधारण सी बात रह गयी है.
चूत लंड, मम्में, लंड चूसना, चूत चाटना, चुदाई … ये सब पोर्न फ़िल्में अब तो सहज ही सबको उपलब्ध हैं. आजकल की नयी पीढ़ी इन मामलों में बड़ी खुशकिस्मत है. इन्हें सेक्स मटीरियल भरपूर बेरोकटोक उपलब्ध है और आज वे बड़े आराम से आपसी सहमति से सेक्स सम्बन्ध स्थापित कर लेते हैं. लड़कियां शादी होने तक अपना कौमार्य बचाये रखना पुरानी और दकियानूसी सोच समझने लगीं हैं. यह सच भी है आज के युग के हिसाब से.आजकल लड़कियां ग्रेजुएशन के बाद कोई और प्रोफेशनल कोर्स जरूर करती हैं फिर जॉब और फिर इन सबके बाद शादी. इतना होते होते लड़की की उम्र सत्ताईस अट्ठाईस हो जाना मामूली से बात है और उतनी उम्र तक बिना चुदे रहना किसी तपस्या से कम नहीं. अब ऐसी तपस्या करना सबके बस का तो है नहीं तो बिंदास लाइफ आजकल का ट्रेंड बन चुकी है.
यूं तो आमतौर पर लड़की की पंद्रह वर्ष की उमर के बाद सोलहवां साल लगते ही उसकी चूत भीगने लगती है, उसमें सुरसुरी उठने लगती है और उसे सेक्स की चाह या चुदने की इच्छा सताने लगती है, उनकी चूत का दाना रह रह के करेन्ट मारने लगता है. यह तो प्राकृतिक नियम है जो सब पे समान रूप से लागू होता है. पहले के जमाने में लड़की रजस्वला या पीरियड्स के शुरू होने के बाद जल्द से जल्द उसकी शादी कर दी जाती थी और उसे लीगल चुदाई का सुख नियमित रूप से मिलने लगता था.
आज के जमाने में लड़की को प्राकृतिक रूप से वयस्क हो जाने के बाद और दस बारह वर्ष तक जब तक शादी न हो जाय अपनी चूत की खुजली पर कंट्रोल रखना पड़ता है. अब ऐसे में जिस्म की इस नैतिक डिमांड को दबाये रखना अपने ऊपर जुल्म करने जैसा ही तो है. अतः लड़कियां जैसे बने तैसे अपनी जवानी के मजे लूटने लगती हैं, इसमें कोई बुराई भी नहीं. जब शादी ब्याह जैसा उन्मुक्त माहौल मिले तो तमन्नाएं कुछ ज्यादा ही मचलने लगतीं हैं. तो ऐसे ही उन्मुक्त माहौल का मज़ा वो छोरे छोरियां उठा रहे थे.
एक हमारा ज़माना था अपनी वाली की सूरत देखने तक को तरस जाते थे. दिन में कई कई चक्कर महबूबा की गली के लगाने पड़ते थे तब कहीं जाकर उनकी एक झलक मिलती थी देखने को. तब न तो मोबाइल फोन थे न इन्टरनेट और न ही लड़कियां यूं कोचिंग जाती थीं. किसी लड़की को पटा लेना या दिल की बातें कर लेना आसमान से तारे तोड़ लाने जैसा मुश्किल काम था और उसके साथ चुदाई कर लेना तो एवरेस्ट फतह से भी बढ़ कर कठिन हुआ करता था.
हमारे उन दिनों सेक्स मेटीरियल के नाम पर कोकशास्त्र ग्रन्थ हुआ करता था या वात्स्यायन का कामसूत्र था, इनके अलावा कुछ पत्रिकाएं जैसे आज़ाद लोक, अंगड़ाई और मस्तराम लिखित चुदाई की कहानियों की छोटी सी बुकलेट बाज़ार में मिलती थी जिसे दुकानदार बड़ी मिन्नतें करवा कर, मनमाने पैसे लेकर बेचता था और जिसे हम बड़े शान से दोस्तों के साथ कम्पनी बाग़ के किसी एकांत कोने में छुप कर पढ़ा करते थे और कभीकभी सामूहिक रूप से मुठ भी मार लिया करते थे.
फिर समय बीतने के साथ विदेशी पत्रिकाएं आने लगीं जिनमें चिकने कागज़ पर चुदाई की रंगीन तस्वीरें हुआ करती थीं. इसी दौर में ऑडियो कैसेट्स भी मिलते थे जिन्हें कैसेट प्लेयर में चला कर लड़की लड़के की चुदाई की आवाजें और बातचीत सुन लेते थे. इसके बाद सेक्स की वीडियो कैसेट का ज़माना आ गया और अब तो जो है सो सबके पास है.
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