Bahu ki Chudai बहुरानी की प्रेम कहानी
07-26-2019, 02:05 PM,
#51
RE: Bahu ki Chudai बहुरानी की प्रेम कहानी
हम दोनों को ही मिसमिसी छूट रही थी लेकिन खुद पे काबू किये हुए जैसे तैसे एक दूसरे की हथेलियों में हथेली फंसाए होंठों को चूस रहे थे.ये सब कोई आधा घंटा चलता रहा.
“पापा जी… अब नहीं रहा जाता, नहीं सहा जाता मुझसे… मेरी चूत में चीटियाँ सी रेंग रहीं है बहुत देर से!”“तो क्या करूं बता?” मैंने उसका गाल काटते हुए कहा.“अब तो आप मुझे जल्दी से चोद डालो पापा!”“अभी तो तू कह रही थी कि चुपचाप पड़े रहना है… अब क्या हुआ?”“पापा, मेरी चूत में बहुत तेज खुजली मच रही है… ये आपके लंड से ही मिट सकती है… फक मी हार्ड पापा डार्लिंग!” बहूरानी अधीरता से अपनी चूत ऊपर उचकाते हुए बोली.
लंड तो मेरा भी कब से तड़प रहा था उसकी चूत में उछलने के लिए तो मैंने पहले बहूरानी के निप्पल जो सख्त हो चुके थे, उन्हें मसल कर बारी बारी से चूसा, साथ में अपनी कमर को उसकी चूत के दाने पर घिसा.“हाय राजा… मार ही डालो आज तो!” बहू रानी के मुंह से आनन्द भरी किलकारी सी निकली.“ये लो मेरी रानी…” मैंने भी कहा और लंड को बाहर तक निकाल कर पूरी दम से पेल दिया चूत में!“हाय राजा जी… ऐसे ही चोदो अपनी बहूरानी को!” बहूरानी कामुक स्वर में बोली और मेरे धक्के का जवाब उसने अपनी चूत को उछाल कर दिया.
“हाय… कितनी मस्त कसी हुई टाइट चूत है मेरी अदिति बिटिया की!” मैंने जोश में बोला और फुल स्पीड से अपनी बहू को चोदने लगा.“हां पापा.‍ऽऽऽ… ऐसे ही… अपनी अदिति बिटिया की चूत बेदर्दी से चोदो, इस राजधानी से भी तेज तेज चोदिये… आःह! कितना मस्त लंड है आपका… पापा खोद डालो मेरी चूत… अब आप ही मालिक हो इस चूत के!” बहूरानी जी ऐसे ही वासना के नशे में बोलती चली जा रही थी.
मैं भी अपने पूरे दम से लंड चला रहा था बहूरानी की चूत में; उसकी चूत से आती चुदाई की आवाजें पूरे कूपे में गूँज रहीं थीं. चूत की फचफच और ट्रेन चलने की आवाज एक दूसरे में मिल कर मस्त समां बांध रहीं थीं.
“पापा जी अब डॉगी पोज में चोद दो मुझे अच्छे से!” बहूरानी ने फरमाइश की.“ओके बेटा जी… चल डॉगी बन जा जल्दी से!” मैं बोला और उसके ऊपर से हट गया.
बहूरानी ने बर्थ से उतर कर कूपे की लाइट जला दी; रोशनी में उसका किसी चुदासी औरत जैसा रूप लिए उसका हुस्न दमक उठा… कन्धों पर बिखरे बाल… गुलाबी प्यासी आँखें… तनी हुई चूचियाँ… चूचियों की घुन्डियाँ फूल कर अंगूर जैसी हो रहीं थीं और उसकी चूत से बहता रस जांघों को भिगोता हुआ घुटनों तक बह रहा था.
फिर बहूरानी शीशे के सामने जा खड़ी हुयी, कुछ पलों के लिये उसने खुद को शीशे में निहारा, फिर झुक गयीं और सामान रखने वाले काउंटर का सहारा लेकर डॉगी बन गयी. उसके गीले चमकते हुए गोल गुलाबी नितम्बों का जोड़ा मेरे सामने था जिनके बीच बसी चूत का छेद किसी अंधेरी गुफा के प्रवेश द्वार की तरह लग रहा था.
मैंने नेपकिन से अपने लंड को पौंछा, फिर उसकी चूत और जांघें पौंछ डाली और लंड को चूत के छेद पर टिका के सुपारा भीतर धकेल दिया. उसकी चूत अभी भी भीतर से बहुत गीली थी जिससे समूचा लंड एक ही बार में सरसराता हुआ घुस गया और मैंने नीचे हाथ ले जाकर दोनों मम्में पकड़ लिए और चूत में धक्के मारने लगा.
“लव यू पापा… यू फक सो वेल!” बहूरानी चुदाई से आनन्दित होती हुई चहकी.
“या अदिति बेटा… यू आर आल्सो ए रियल जेम… सच ए नाईस टाइट कंट यू हैव इन बिटवीन योर थाइस!” मैं भी मस्ती में था.“सब कुछ आपके लिए ही है पापा… आप जैसे चाहो वैसे भोगो मेरे जवान जिस्म को!” बहूरानी समर्पित भाव से बोली.
अब मैंने उसके सिर के बाल पकड़ कर अपने हाथों में लपेट कर खींच लिए जिससे उसका चेहरा ऊपर उठ गया और मैं इसी तरह उसकी चूत मारने लगा; बीच बीच में मैं उसके नितम्बों पर चांटे मारता हुआ उसे बेरहमी से चोदने लगा. बहूरानी भी पूरे आनन्द से अपनी चूत आगे पीछे करते हुए लंड का मजा लूटने लगी. हमारी जांघें आपस में टकरा टकरा के पट पट आवाजें करने लगी.
और चुदाई का यह सनातन खेल कोई दस बारह मिनट और चला और फिर मेरा लंड फूलने लगा झड़ने के करीब हो गया.“बहूरानी, अब मैं झड़ने वाला हूं तुम्हारी चूत में!”“झड़ जाइए पापा जी; मेरा तो दो बार हो भी चुका और तीसरी बार भी बस होने ही वाला है…”

फिर मैंने आखिरी पंद्रह बीस धक्के और मारे, फिर बहू की पीठ पर झुक गया और मम्मे थाम लिये. मेरे लंड से रस की फुहारें छूट छूट कर बहूरानी की चूत को तृप्त करने लगीं. उसकी चूत भी संकुचित हो हो कर मेरे लंड से वीर्य निचोड़ने लगी.अंत में मेरा लंड वीरगति को प्राप्त होता हुआ चूत से बाहर निकल आया और उसकी चूत से मेरे वीर्य और उसके रज का मिश्रण बह बह कर टपकने लगा.
जब हम अलग हुए हुए तो सवा बारह बजने ही वाले थे.“चल बेटा अब सोते हैं, छह बजे ट्रेन निजामुद्दीन पहुंच जायेगी. हमें पांच सवा पांच तक उठना पड़ेगा.”
“ओके पापा जी!” बहूरानी बोली और उसने अपनी ब्रा पैंटी पहन ली और बर्थ पर जा लेटी. मैं भी अपने पूरे कपड़े पहन कर बत्ती बुझा कर उसके बगल में जा पहुंचा.“गुड नाईट पापा जी!” बहूरानी मेरी तरफ करवट लेकर बोली और अपना एक पैर मेरे ऊपर रख लिया.“गुड नाईट बेटा जी!” मैंने भी कहा और उसका सिर अपने सीने से सटा लिया और उसे थपकी देने लगा जैसे किसी छोटे बच्चे को सुलाते हैं.
सुबह पांच बजकर दस मिनट पर हम उठ गये. तैयार होकर बहूरानी ने वही साड़ी पहन ली जो वो बंगलौर से पहन कर निकली थी और एक संस्कारवान बहू की तरह अपना सिर ढक आंचल से ढक लिया.
ट्रेन हजरत निजामुद्दीन समय से पहुंच गयी. बहूरानी के मायके वाले हमें रिसीव करने आये थे, सब लोगों से बड़ी आत्मीयता से हाय हेलो हुई और हम लोग अपने ठहरने की जगह की ओर निकल लिए.
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