RE: Bahu ki Chudai बहुरानी की प्रेम कहानी
मैंने भी उसकी चुनौती स्वीकार की और उसको दबोच लिया, उसको मीड़ने गूंथने लगा… अंगूरों को चुटकियों में भर के उमेठने लगा, नीम्बू की तरह निचोड़ने लगा… प्यार से हौले हौले. बहूरानी कामुक सिसकारियाँ लेने लगीं और मुझे अपने से लिपटाने लगी.
फिर उसने मेरी शर्ट के बटन जल्दी से खोल दिए जिसे मैंने खुद ही बनियान सहित उतार के फेंक दिया और बहूरानी के नंगे जिस्म को पूरी ताकत से भींच लिया.“आह… पापा जी. धीरे धीरे… मेरी पसलियाँ टूट जायेंगी इतनी ताकत से तो!” बहूरानी अत्यंत कामुक स्वर में बोली और उसने मेरे चौड़े सीने में अपना मुंह छुपा लिया और वहीं चूमने लगी.
फिर उसका एक हाथ नीचे मेरे लोअर के ऊपर से ही मेरे लंड को टटोलने लगा. उसने मेरे लोअर में हाथ घुसा के लंड को पकड़ लिया उसके ऐसे करते ही मेरा लंड और तमतमाने लगा.
मैंने अपना लोअर और अंडरवियर नीचे खिसका के निकाल फेंका. अब मेरा फनफनाता लंड पूरी तरह से आजाद होकर हवा में लहराया और फिर उसने एक हाई जम्प लगा कर बहूरानी को जैसे सलाम ठोका, बहूरानी ने भी इस अभिवादन को स्वीकार करते हुए इसे प्यार से अपनी चूत पर टच किया और फिर पकड़ कर इसकी फोर-स्किन को पीछे करके टोपा को दबाने मसलने लगी, फिरलंड को जड़ के पास से पकड़ कर दबाया सहलाया साथ में अण्डों को भी दुलारा.
रात धीरे धीरे गुजर रही थी और राजधानी अपने पूरे दम से दिल्ली की ओर भाग रही थी जिसके किसी डिब्बे में भीतर ससुर बहू के नंगे जिस्म सनातन यौन सुख का रसपान करते हुए एक दूसरे में समा जाने को मचल रहे थे. हमारे जिस्मों की ताप पर ऐ सी की कूलिंग भी कोई असर नहीं डाल पा रही थी.
फिर जो प्रतीक्षित था बहूरानी ने वही किया; वो नीचे झुकी और पंजों के बल बैठ कर मेरे लंड को तन्मयता से चाटने चूमने लगी. फिर उसने अपना मुख खोल दिया और मेरा लंड स्वतः ही उसकी मुख गुहा में प्रवेष कर गया और फिर बहूरानी के होंठ और जीभ मेरे लंड पर क़यामत ढाने लगे.मेरे लिए एक तरह से यह यौन सुख की पराकाष्ठा ही थी. जो सुख मुझे मेरी सगी बीवी, मेरे बेटे की माँ नहीं दे सकी थी वो सुख उसकी बीवी, मेरी पुत्रवधू… कुलवधू मुझे दे रही थी.
बहूरानी के लंड चूसने चाटने का तरीका भी कमाल का था… खूब चटखारे ले ले कर, अपनेपन और पूरे समर्पण भाव से बिना किसी हिचकिचाहट के लंड पर अपना प्यार उड़ेलती और उसके यूं लंड को पुचकारने चूमने से निकलती, पुच पुच की आवाज मुझे मस्त करने लगी.
“अदिति बेटा, शाबाश, ऐसे ही… हां… आह मेरी जान बहूरानी जी तू तो कमाल कर रही है आज!” मैंने मुग्ध होकर कहा.“पापा जी, आज पूरे डेढ़ साल बाद ये मेरे हाथ आया है. इसे तो मैं जी भर के प्यार करूंगी.” बहूरानी मेरी तरफ देख के बोली और फिर से लंड को चाटने चूसने में मगन हो गयी.
कुछ ही देर बाद :“बस मेरी जान रहने दे. अब तू बर्थ पर बैठ जा.” मैंने बहूरानी के सिर को सहलाते हुए कहा.“ठीक है पापा जी!” बहूरानी बोली और लंड को छोड़ के बर्थ पर जा बैठी.
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