RE: Bahu ki Chudai बहुरानी की प्रेम कहानी
“जानू, अब सब्र नहीं होता… समा जाओ मुझमें! अब और मत सताओ राजा!’ बहूरानी की शहद सी मीठी कामुक थरथराती हुई आवाज मेरे कानों में गूंजी.
पर मैं तो अपनी ही धुन में मग्न था, मैं उसे पेट पर से चूमते हुए उसकी नाभि में जीभ से हलचल मचाते हुए उसकी चूत को अपनी मुट्ठी में ले लिया.
बहू की पाव रोटी सी फूली गुदाज, नर्म चूत पर हल्की हल्की झांटें थीं और चूत से जैसे रस का झरना सा धीरे धीरे बह रहा था.
मुझसे भी सब्र नहीं हुआ और मैं चोदने की मुद्रा में उसकी टांगों के बीच बैठ गया.
अदिति ने तुरन्त अपनी टाँगें उठा कर अपने हाथों में पकड़ लीं, कोठरी के उस अँधेरे में दिख तो कुछ रहा नहीं था, मैंने अंदाज से अपने लंड को उसकी चूत से भिड़ाया और उसकी रसीली दरार में ऊपर से नीचे तक रगड़ने लगा.
‘अब घुसा भी दो जल्दी से… क्यों पागल बना रहे हो मुझे?’ बहू मिसमिसाती हुई सी बोली.
मैंने उस अँधेरे में बहूरानी की चूत का छेद अपनी उंगली से तलाशा और फिर सुपाड़े को की चूत के छेद पर टिकाया और फिर धकेल दिया आगे की तरफ!
चूत की चिकनाई की वजह से सुपारा गप्प से समा गया उसकी चूत में!
‘उई माँ… धीरे से डालो, कितना मोटा लग रहा है यह आपका आज!’ बहूरानी थोड़े दर्द भरे स्वर में विचलित होकर बोली.
लेकिन मैंने उसके दर्द की परवाह किये बगैर लंड को थोड़ा और आगे हांक दिया.
‘उफ्फ जानू, आपका यह लल्लू कितना मोटा लग रहा है आज! मेरी पिंकी की नसें खिंच गईं पूरी!’ बहूरानी बोली और फिर अपने हाथ चूत पे ले जाकर टटोलने लगी.
अभी मेरा सिर्फ सुपारा और जरा सा और ही घुसा था उसकी चूत में, अभी भी कोई सात आठ अंगुल बाहर था चूत से!
मैं इसी स्थिति में कुछ देर रुका रहा, फिर जब बहूरानी की चूत ने मेरा लंड ठीक से एडजस्ट कर लिया तो मैंने लंड को जरा सा पीछे खींच कर एक करार शॉट लगा दिया.
पूरा लंड फचाक से उसकी चूत में समा गया और मेरी झांटें बहूरानी की झांटों से जा मिलीं.
‘हाय राम… लगता है फट गई! उफ्फ.. आज पहली बार इतनी चौड़ी कर दी आपने! भीतर की नसें टूट सी गईं हैं.’ बहू कराहते हुए बोली.
मैं चुपचाप रहा और शांत लेटा रहा उसके ऊपर!
मेरा लंड बहूरानी की चूत में फंस सा गया था, जैसे किसी ने ताकत से मुट्ठी में जकड़ रखा हो.
मैंने एक बार लंड को पीछे खींचना चाहा तो लंड के साथ चूत भी खिंचती सी लगी मुझे!
मैं रुक गया, फिर मुझे लगा कि बहूरानी अपनी चूत को ढीला और शिथिल करने का प्रयास कर रही थी.
उस रात कोई पच्चीस छब्बीस साल बाद मेरे लंड को कसी हुई जवान चूत नसीब हुई थी. मुझे ठीक वैसा ही अनुभव हो रहा था जैसा कि मेरी शादी की शुरू के दिनों में मेरी पत्नी रानी की चूत देती थी.
कुछ ही देर बाद बहूरानी ने गहरी सुख की सांस ली और मेरी पीठ को सहलाते हुए अपनी कमर को हल्के से उचकाया जैसे उलाहना दे रही थी कि अब चोदो भी या ऐसे ही पड़े रहोगे?
बहूरानी का संकेत पाकर मैंने लंड को पीछे लिया और फिर से धकेल दिया गहराई तक!
बदले में बहूरानी के नाखून मेरी पीठ में गड़ गये और उसने अपनी चूत को उछाल कर जवाबी कार्यवाही की.
फिर तो यह सिलसिला चल पड़ा.. तेज और तेज! मैं लंड को खींच खींच कर फिर फिर उसकी चूत में पेलता और बहूरानी पूरी लय ताल के साथ साथ निभाती हुई अपनी कमर उठा उठा के अपनी चूत देती जाती!
जब मैंने अपनी झांटों से बहूरानी के भागंकुर को रगड़ना शुरू किया तो जैसे वो उत्तेजना के मारे पगला सी गई और किलकारी मार कर मेरे कंधे में अपने दांत जोर से गड़ा दिए और मेरे बाल अपनी मुट्ठियों में कस लिए और किसी हिस्टीरिया के मरीज की तरह पगला के अपनी चूत उछाल उछाल के मेरा लंड सटासट लीलने लगी अपनी चूत में… और उसकी चूत से रस का झरना सा बहते हुए मेरी झांटों को भिगोने लगा.
मैंने भी अपने धक्कों की स्पीड और बढ़ा दी, अब उस अँधेरी कोठरी में चुदाई की फचफच और बहूरानी की कामुक कराहें और किलकारियां गूँज रही थी-‘राजा, बहुत मज़ा आ रहा आज तो और जोर से करो न …फाड़ डालो इसे आज!
बहूरानी सटासट चलते लंड का मज़ा लेती हुई मुग्ध स्वर में बोली.
मेरी उत्तेजना भी अब चरम पर थी, मैं झड़ने की कगार पर था, मैंने बहूरानी के दोनों मम्मे कस के अपनी मुट्ठियों में जकड़ लिए और पूरी बेरहमी से उसकी चूत चुदाई करने लगा.
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