Hindi Kamuk Kahani वो शाम कुछ अजीब थी
07-20-2019, 10:01 PM,
RE: Hindi Kamuk Kahani वो शाम कुछ अजीब थी
सवी को अपनी ग़लती का अहसास हो गया अंजाने में उसने रूबी के घाव हरे कर दिए थे.

सवी : उफ्फ सॉरी जान बस ऐसे ही मुँह से निकल गया भूल गयी थी कि तेरी माँ भी हूँ, नये रिश्ते ने कुछ ज़्यादा ही मुँह फाड़ दिया मेरा.

सवी रूबी को गले लगा उसे चूमने लगी और बार बार माफी माँगने लगी.

रूबी : अतीत का दर्द पीछा नही छोड़ता कभी ना कभी चोट कर ही देता है.

सवी : भूल जा उसे बुरा सपना समझ अब तो तेरी नयी जिंदगी शुरू होनेवाली है, सुनील तुझे बहुत खुश रखेगा.

रूबी : इसी आस पे तो जिंदा हूँ, वरना कब का जिंदगी से दामन छुड़ा लिया होता.

सवी : ना मेरी जान ऐसा नही बोलते, मुस्कुरा दे अब, वरना मैं खुद को कभी माफ़ नही कर पाउन्गि.

रूबी हँसने की कोशिश करती है लेकिन उसकी रुलाई निकल पड़ती है.

वहाँ कमरे में बिस्तर पे लेटे सुनील को कुछ अजीब सा महसूस होता है, ऐसा लगता है जैसे कुछ ग़लत हुआ है. वो उठ के बैठ जाता है.

सोनल : क्या हुआ?

सुनील : ह्म्म कुछ नही , बस कुछ अजीब सा फील हुआ था.

सोनल : मैं कहने ही वाली थी, आप सवी के पास जाओ, इस वक़्त उसे आपकी ज़्यादा ज़रूरत है.

सूमी : हां ये ठीक कह रही है, बेचारी ने अभी कितना भुगता है, उसे इस वक़्त तुम्हारे साथ की सकत ज़रूरत है. बस एक बार रूबी की भी तुमसे शादी हो जाए तो फिर एक बड़ा ही कमरा बनवाएँगे जिसमे हम सब एक साथ सो सकें आराम से.

सुनील हैरानी से सूमी को देखने लगा.

सूमी : अरे हैरान होने की क्या बात है, सब बीवियाँ क्या एक कमरे में नही रह सकती.

सुनील : आराम से सोचना क्या कहा अभी तुमने, खुद ही माना कर दोगि.

सोनल : अभी तो आप जाइए इस विषय पे बाद में बात करेंगे.

सूमी : हां जी जाइए पर कल आप मेरे साथ रहेंगे रात को.

सुनील : एक ही कमरे में सो जाएँगे ना हॉल में बिस्तर लगवा लेंगे कोई परेशानी भी नही होगी

इतना कह सुनील मुस्काता हुआ कमरे से निकल सवी के कमरे की तरफ बढ़ गया, दरवाजा खुला ही था और उसे रूबी नज़र आ गयी जिसे सवी संतावना और प्यार देती हुई बार बार माफी माँग रही थी.

सुनील : क्या हुआ?

सवी : जी वो बस मैं ही पागल हूँ इसके जखम हारे कर दिए अंजाने में.



सुनील के मन में अब सारे सवाल जवाब ख़तम हो चुके थे. सवी के साथ जो हादसा हुआ जिसमे प्रोफ़ेसर. की जान तक चली गयी, उसने जिंदगी के मतलब ही बदल डाले थे. आज तक वो मर्यादा की दीवारों से लड़ता रहा था, पर आज एक सबक सीख गया था, किस्मत में जो होना है वो हो कर रहता है, इंसान चाहे कितनी कोशिश कर ले, वो होनी को नही टाल सकता, आज सुनील के दिमाग़ में वो दिन गूंजने लगे, जब पहली बार सवी ने एक साली होने के नाते - साली आधी घरवाली की बात करी थी, उसके दिमाग़ में रूबी का वो प्यार गूंजने लगा जिसने कभी कोई आशा नही करी बस दिल ही दिल में प्यार करती रही, जिसके लिए सवी की खुशी ज़्यादा ज़रूरी थी.

दिमाग़ की सभी परतें खुल चुकी थी, अब जिंदगी को आगे बढ़ाना था, जो होना है उससे क्या लड़ना.
सुनील ने आगे बाद दोनो को अपनी बाँहों में समेट लिया. ' बस अब तुम दोनो मेरी हो, मेरी ज़िम्मेदारी हो.'

दोनो सुनील से ऐसे चिपकी जैसे अभी उसके बदन में समा जाएँगी.

सुनील दोनो के गालों पे चुंबन बरसाने लगा जो एक मरहम की तरहा दोनो की रूह को सकुन पहुचाने लगी.

सवी ने इस बात की परवाह ना करते हुए कि रूबी साथ चिपकी पड़ी है अपने पलकें गिरा अपने होंठ सुनील के आगे कर दिए और सुनील ने भी उसकी इच्छा का मान करते हुए अपने होंठ सवी के होंठों से जोड़ दिए.
रूबी सुनील से चिपकी उसकी छाती पे हाथ फेरती हुई अपना चेहरा उसकी छाती से रगड़ने लगी.


कुछ देर बाद सुनील दोनो से अलग हुआ.

सुनील : पॅकिंग कर लो, शायद हम लोग कल ही शिफ्ट करें.

सवी : कहाँ शिफ्ट हो रहे हो.

सुनील : कुछ दिन तो मुंबई ही रहेंगे ताकि सुनेल और मिनी को देख सकें फिर जैसा तुम सब लोग फ़ैसला करो, अपना देश छोड़ के जाने का दिल नही करता सोच रहा हूँ या तो समुद्र की लहरों के पास या फिर पर्वतों की गोद में जहाँ सकुन हो दूर दूर तक प्रकृति की गोद हो.

सवी : कुछ समय तक तो थी है पर बच्चों की पढ़ाई भी तो देखनी है, कहीं इतनी दूर मत जाने का सोच लेना कि फिर से शिफ्ट करने की नौबत आए.

सब लफडों में सुनील ये तो भूल सा ही गया था, एक हुक सी उठ गयी बाप के दिल में, आँखें बंद कर सागर को याद करने लगा.

सवी उसकी परेशानी समझ गयी.

सवी : जैसा तुम चाहो, वक़्त सब ठीक कर देगा. ऐसा क्यूँ नही करते, छुट्टियाँ पहाड़ों पे और बाकी समय समुद्र के पास.

सुनील : सब मिल के डिसाइड कर लेंगे.

रूबी : मैं चलती हूँ.

सुनील ने रूबी को अपनी बाँहों में खींच लिया और उसके होंठों पे अपने होंठ चिपका दिए.

रूबी सुनील की बाँहों में कसमसाने लगी, सवी के सामने उसे शरम आ रही थी और सुनील उसकी यही शरम ख़तम करना चाहता था.

ज़्यादा देर नही लगी रूबी को सुनील की बाँहों में पिघलने में, जिस्म का तापमान बढ़ने लगा और वो सुनील से चिपकती चली गयी.
दोनो को देख सवी को कुछ अजीब लगा, उसकी बेटी उसके सामने ही चुंबन में खोई हुई थी, फिर सवी को झटका लगा सुनील तो दोनो का पति है.

क्या ये सही होगा माँ को बेटी के सामने और बेटी को माँ के सामने यूँ प्यार करना. सवी के दिमाग़ में उलझने शुरू हो गयी. क्या ये सही होगा कि माँ और बेटी एक ही इंसान को प्यार करें एक के साथ ही हमबिस्तर हो जाएँ.

सवी के अंदर बची मर्यादा अपना सर उठाने लगी.

सुनील सब देख रहा था, यही दीवार उसे ख़तम करनी थी, क्यूंकी कल उसकी चार बीवियाँ अगर अलग अलग वक़्त माँगने लग गयी तो उसका बॅंड बजना निश्चित था, वहीं दूसरी तरफ वो खुद सोच में पड़ गया था, क्या चार को वो संभाल पाएगा, कहीं वो को ग़लत रास्ता तो नही ले रहा, सूमी और सोनल तो मरते दम कुछ ग़लत नही करेंगी, पर सवी और रूबी, ये कहीं ग़लत रास्ते पे चल पड़ी तो, ये सोच के ही वो हिल गया और उसका और रूबी का चुंबन टूट गया.

सुनील के चेहरे के भाव बदल चुके थे, जिन्हें रूबी ने महसूस कर लिया, सवी तो अपने सवालों में उलझी हुई थी.

रूबी : क्या सोचने लगे आप, यही ना की 4 बीवियाँ आपस में लड़ पड़ी तो क्या होगा.

सुनील हैरानी से रूबी को देखने लगा, उसने ख्वाब में भी नही सोचा था कि रूबी ये सब सोचेगी.

रूबी : ऐसे क्या देख रहे हैं, जो मैने कहा सच है ना. क्या कभी सूमी और सोनल दी में झगड़ा हुआ? फिर आप ये कैसे सोचने लग गये कि हमारे साथ जुड़ने से झगड़े होंगे. नही कोई झगड़ा नही होगा और इसकी एक खांस वजह है. अगर हम 4 अलग अलग घराने से होती तो जाहिर था कि हर कोई अपना हक़ ज़्यादा जताता, लाज़िमी झगड़े होते. पर हम तो एक ही परिवार की कड़ियाँ हैं जो एक सुत्र में पिरोइ जा रही हैं, फिर झगड़ा कैसा. आप बेफिक्र रहिए, हम लोगो का प्यार आपस में और मजबूत होगा, झगड़े की तो कोई गुंजाइश ही नही.
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