Hindi Kamuk Kahani वो शाम कुछ अजीब थी
07-20-2019, 10:01 PM,
RE: Hindi Kamuk Kahani वो शाम कुछ अजीब थी
कमरा कहो या हॉल क्म जगह सीलन से भरी थी और बहुत तेज दुर्गंध आ रही थी जैसे सेकड़ों मन मास के लोतड़े जल रहे हों सड़ रहे हों. और उसी हॉल के एक कोने में एक पत्थर की टीला सी थी जिसपे हाथ पैर से बँधी सवी लेटी हुई थी. इस वक़्त वो बेहोश थी उसके जिस्म में कोई हरक़त नही हो रही थी.

वहीं पास एक लंगड़ी आकृति खड़ी थी जो बहुत ही नफ़रत से उसे देख रही थी.

'अब पता चलेगा तुझे, जिंदगी कितनी कड़वी हो सकती है, मुझे छोड़ उस कुत्ते के साथ चली गयी थी, मेरी जान को मुझ से दूर कर दिया था, कोई नही बचेगा अब और तेरे सामने अपनी जान को पा कर रहूँगा यहीं तेरे सामने ...हा हा हा हा और तू मेरे गुलाम की दासी बनेगी हा हा हा हा' कमरे में भयानक हँसी गूंजने लगी जिसे सुन वो आकृति भी घबराने लगी जो सवी को यहाँ तक लाने की ज़िम्मेदार थी.

इधर सुनेल (सुनील के जिस्म में) ध्यान लगा के शमशान घाट में बैठा था, उसका रबता उस आत्मा से हो गया जो प्रोफ़ेसर की मदद करती थी, काफ़ी देर दोनो की बात हुई और सुनेल ने मानसिक तरंगों से विजय को एक स्थान का पता दिया और जल्द वहाँ पहुँचने को को कहा, विजय ने तुरंत अपनी कार घुमाई और उस तरफ चल पड़ा.

आवेश में सुनेल ये भूल गया था कि सुनील की आत्मा वापस अपने जिस्म में आ चुकी है और उसी ने उसकी मदद करी थी.

वो आत्मा जो प्रोफ़ेसर की मदद करती थी वो भी सुनेल के जिस्म में समा गयी और कुछ ही पलों में सुनील (सुनेल) वहाँ पहुँच चुका था जिस बिल्डिंग की बेसमेंट में सवी क़ैद थी.

वहाँ पहुँच वो उस बॅग से कुछ समान निकाल बिल्डिंग के चारों तरफ रखने लगा, वो आत्मा अब सुनील के जिस्म से बाहर निकल गयी थी और बिल्डिंग में घुस्स चुकी थी.

वो आत्मा जैसे ही अंदर घुस्सी, कमरे में फैली दुर्गंध ख़तम हो गयी और एक मनमोहक महक फैल गयी .

'न्न् नणन्नाआआआआहहिईीईईईईईईईईईईईईईईईईईईई ' वो लंगड़ी दिखने वाली आत्मा चिल्ला उठी और और विकास की आत्मा को राहत मिली वो दौड़ के उस आत्मा के कदमों में बैठ गया...

खट खट खट दो जिस्मों की बेड़ियाँ खुल गयी. सवी की और एक और लड़की की जिसे क़ब्ज़े में कर वो लंगड़ी आत्मा ने विकास की आत्मा को क़ब्ज़े में ले लिया था.

ये कैसे हुआ था ये एक अलग ही कहानी है, उस पर ना जाते हुए हम सिर्फ़ उन वक्यात पे ध्यान देंगे जो इस कहानी के लिए ज़रूरी है. आत्म हत्या जैसी हरकतें अच्छी आत्माओं को भी कमजोर कर देती हैं इसलिए विकास की आत्मा उस लंगड़ी आत्मा के वश में आ गयी थी.

वो आत्मा जो प्रोफ़ेसर की मदद करती थी उसे हम अगी नाम देते हैं. अगी के इशारे पे विकास अपनी चेतन बहन को उस हाल से बाहर ले गया और उसे सही ठिकाने पे पहुँचा लुप्त हो गया, उसका गन्तव्य वो स्थान था जिसके बारे में अगी ने उसे कहा था. ये आत्माएँ आपस में कैसे बात करती हैं ये तो बस वो सबको बनानेवाला ही जानता है.

खैर इनकी बातों का सार कुछ इस प्रकार था :

अगी : समर आत्मिक योनि में लंगड़ा प्रतिरूप पा कर भी तुझे अकल नही आई, फिर लग गया उसी कामक्षुदा को शांत करने में जिसकी वजह से तूने अपना मनुश्य जीवन कलंकित कर लिया, अब तयार होज़ा दोझक में जाने के लिए तेरा खेल ख़तम.


समर : हाहाहा (बड़ी भयानक हँसी हंसा वो) मैं अपनी इच्छा पूरी करके रहूँगा तू मुझे नही रोक पाएगा. इसका मैं पति था इंसानी रूप में इस्पे तो मेरा हक़ है ही मुझे तो सूमी को यहाँ लाना था वो बेवकूफ़ अपने ही प्यार के चक्कर में इसे ले आया. ख़तम कर दूँगा सुनील और उसके जुड़वा को फिर सुमन मेरी . हा हा हा हा रोक सकता है तो रोक के दिखा.

तभी विजय और सुनील ( सुनेल) अंदर दाखिल हो गये. समर का ध्यान भटका और अगी सवी के अंदर समा गया.

आत्महत्या की वजह से श्रापित विकास एक कमजोर आत्मा बन गया था जिसे समर ने आसानी से अपने क़ब्ज़े में ले लिया था और फिर उसी से उसकी बहन को भी बंदी बनवा अपने क़ब्ज़े में ले लिया, जब विकास के उपर से समर का सम्मोहन उतरा तो बहुत देर हो चुकी थी. समर जो कहता गया, विकास गाँव के सीधे साधे लोगो को क़ब्ज़े में कर वो सब पूरा करता गया. तामसिक क्रियाओं से समर की शक्ति बढ़ती चली गयी, उस हॉल में एक ओर शैतान की मूर्ति थी जहाँ समर अपने कार्य कलाप करता था.

अगी सब भाँप चुका था वो उसका और समर का युद्ध कोई आसान नही था. इस सारे सिलसिले में सवी एक कमजोर कड़ी थी क्यूंकी वो ब्यहता का जोड़ा पहन चुकी थी पर अभी तक उसकी सुहाग रात नही हुई थी.

समर ने असल में विकास को सूमी को क़ब्ज़े में करने को कहा था लेकिन वहाँ सवी को दुल्हन बनता देख विकास खुद पे काबू ना रख सका और उसने सवी को क़ब्ज़े में कर लिया, उसने सोचा सवी के साथ समर के लिए सूमी भी मिल जाएगी, पर वो यहीं मात खा गया, सुनेल बीच में टपक पड़ा और विकास को आगे कुछ करने का मौका नही मिला. उसने समर को बहकाने की कोशिश करी जो क्रोध में ढंग से सोच भी ना पाया और इससे पहले समर कुछ और विकास को करने के लिए बोलता अगी ने पहुँच विकास को उसके चुंगल से मुक्त कर दिया.

विकास अपनी बहन को सुरक्षित पहुँचा फिर वहीं पहुँच गया, अब जो भी हो उस पे अगी का असर पड़ चुका था और ये समझने में उसे देर ना लगी एक तरफ़ा प्यार एक तरफ़ा ही रहता है और प्यार बलिदान माँगता नही देता है.

समर की तामसिक और अगी की सात्विक शक्तियों में युद्ध चल रहा था, अगी ने समर को उलझा रखा था, विकास सुनेल और विजय को सवी के साथ वहाँ एक दूसरे कमरे में ले गया जो सुहाग रात की तरहा सज़ा हुआ था.
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RE: Hindi Kamuk Kahani वो शाम कुछ अजीब थी - by sexstories - 07-20-2019, 10:01 PM

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