Antarvasna kahani वक्त का तमाशा
07-03-2019, 04:59 PM,
RE: Antarvasna kahani वक्त का तमाशा
"उम्म्म... हेवेन..." मैने कबाब ख़ाके ऋतु को तुरंत ही एसएमएस किया




"क्या हुआ बेटे, और घर पे सब ठीक है ना.." ऋतु ने एसएमएस का जवाब दिया




"आपके कबाब खाए, और घर पे सब ठीक है.. मैने कुछ नहीं कहा मोम डॅड को, प्रिंसी घर आया था इसलिए उन्हे सब पता चल गया"




"हम बात करें तुम्हारे मोम डॅड से.."




"अरे, अभी तो आप लोग सिखा रहे थे कि अपनी प्राब्लम से खुद लडो, और अभी यह.. नहीं, मैं खुद मॅनेज कर लूँगा"




"ओके लड़के.. चलो अब घर कब आओगे, जब आओ तो पहले बताना, तुम्हारे लिए स्वादिष्ट खाना तैयार करके रखूँगी.."




"ओके.. चलिए, बाइ"




ऋतु से बात करके काफ़ी अच्छा लगा, ऐसा लगा चलो कोई तो है जिसको मैं एसएमएस करूँ तो जवाब देता है.. डॅड की बातें दिमाग़ में फिर घूमने लगी, पढ़ाई छोड़ दी

तो क्या करूँगा, और अगर यहाँ रहा तो आज नहीं तो कल बोलेंगे उनके बिज़्नेस में जाय्न करूँ.. अब 21 साल की उमर में बिज़्नेस करूँगा क्या.. सवाल ही पैदा नहीं होता, लेकिन फिर क्या करूँ.. सोचते सोचते दिमाग़ खराब होने लगा, तभी दिमाग़ में एक आइडिया आया.. मैने अपना बॅक पॅक निकाला और उसमे 10 जोड़ी कपड़े ले लिए और साथ ही कुछ ज़रूरी समान और अपना गेमिंग कॉन्सोल.. चाहे कुछ भी हो, गेमिंग कॉन्सोल को नहीं छोड़ूँगा मैं, 21 का हूँ या 40 का, गेमिंग कॉन्सोल तो वर्ल्ड की बेस्ट चीज़ है ही.. सब समान पॅक करके मैं रात होने का वेट करने लगा.. रात के करीब 11 बजे जब कमरे के बाहर हल्के से झाँका तो कॉरिडर और लिविंग रूम में अंधेरा था. मैं चोरों की तरह हल्के कदमों से बाहर आया और लिविंग रूम में पहुँचा तो सोफा पे एक नोट रखा था




"वी आर गोयिंग आउट, आके बात क्लोज़ करेंगे..डॅड"




"आज मैं आपके लिए एक नोट छोड़ूँगा डॅड..." मैने खुद से कहा और उनके नोट को फाड़ के अपना लेटर रखा




"मोम डॅड तो हैं नहीं, फिर क्यूँ अंधेरा करूँ.." मैने खुद से कहा और लाइट्स जला के जूते पहने जो हाथों में लिए हुए थे और बॅक पॅक लेके जल्दी से नीचे चला गया.. लेटर के साथ मेरा डेबिट कार्ड, क्रेडिट कार्ड, मोबाइल, वॉलेट और कार की चाबी.. यह सब मैं घर पे ही रख आया था




जैसे ही नीचे आया तो देखा शंभू काका सो रहे थे, मैने सोचा अच्छा है चलो यह नहीं देखेंगे. बाहर आके इधर उधर थोड़ा नज़र घुमाई तो टॅक्सी मिल गयी




"ठककक ठकककककक.... ठककककक ठककक...." मैं तब तक दरवाज़े को ठोकता रहा जब तक दरवाज़ा खुला नहीं




"अरे क्या है भाई..." बाबा ने अंगड़ाई लेते हुए कहा और आँखें खोल फिर सामने देखा




"तू... यहाँ इतनी रात को.."




"टॅक्सी छुड़ा दो, 200 रुपीज़ दे दो इसे प्लीज़.." मैने बाबा से कहा और अंदर घुस गया




"अरे पर हुआ क्या वो तो बता.." बाबा ने फिर मुझसे कहा और पैसे देके अंदर आए




"बेटे इतनी रात को.. सब ख़ैरियत.." ऋतु ने जब मुझे देखा तो हैरान हो गयी




"यह तुम ग़लत कर रहे हो सन्नी. मैं तुम्हे ऐसा हरगिज़ नहीं करने दूँगी.." ऋतु और बाबा ने जब मेरी बात सुनी तो ऋतु के यह पहले शब्द थे




"प्लीज़ आप ऐसा मत बोलिए, अगर मुझे आपसे पूछे बिना कुछ करना होता तो मैं आप लोगों के पास नहीं आता.." मैने ऋतु से कहा




"अपने माँ बाप के बारे में सोचो सन्नी..." ऋतु ने फिर कहा




"मैं हमेशा उनके बारे में ही सोचता हूँ, आज अगर अपने बारे में सोचा है तो क्या ग़लत है उसमे, आप ही बताइए ना.." मैने फिर ऋतु से कहा




"मैं आपको एमोशनल नहीं करना चाहता, लेकिन आज तक आपको माँ नहीं कहा, लेकिन माँ मानता हूँ तभी तो आपके पास आया ना पूछने.." मैने ऋतु के हाथ को थामते हुए कहा. मेरी यह बात सुन ऋतु की आँखों से आँसू टपकने लगे लेकिन उन्हे सॉफ कर बोली




"ठीक है.. जैसे तू कहे, लेकिन रोज़ हमे फोन करेगा और इन्हे कर के नहीं, लेकिन रोज़ मुझे कम से कम तीन बार कॉल करेगा ना.." ऋतु ने मेरी बात का जवाब दिया और सेम माँ की तरह हिदायत देने लगी




"एक मिनिट रूको.. माँ बेटे, रुक जाओ..." बाबा ने कहा जो इतनी देर से खामोश था




"सन्नी, सबसे पहली बात , तू जाएगा कहाँ, और दूसरी बात, पैसे हैं तेरे पास.. टॅक्सी के लिए तो हैं नहीं, जाएगा कैसे, कहाँ रहेगा, कैसे सर्वाइव करेगा..कभी सोच भी लिया कर थोड़ा"




"वो सब मैने सोच लिया है, उसके लिए आपकी मदद चाहिए, और पैसों की बात तो ओके, वो मेरे पास आ जाएँगे.." मैने बाबा से कहा




"मदद कैसी.. और जाना कहाँ है.." बाबा ने पूछा और मैने उसे सब बताया




"इन सब कामो में कम से कम पंद्रह से बीस दिन लगेंगे...तब तक तेरे माँ बाप ने ढूँढ लिया तो.." बाबा ने यह कहा ही कि उनके पास एक फोन आया




"आन्सर कीजिए जल्दी, मेरे डॅड का है.." मैने स्क्रीन पे नंबर देख कहा




"तेरे डॅड का.." बाबा ने हैरानी से देखा और फिर आन्सर करके स्पीकर ऑन किया




"हेलो.." बाबा ने भारी आवाज़ में कहा




"अरे थोड़ा हल्के से बात करो ना, आप मेरे कॉलेज के दोस्त हो ऐसा कहा है, कॉलेज वाले क्या ऐसी आवाज़ में बात करते हैं" मैने बाबा से कान में कहा




"हेलो, ईज़ दिस समीर.." पापा ने सामने से पूछा
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