Antarvasna kahani वक्त का तमाशा
07-03-2019, 04:57 PM,
RE: Antarvasna kahani वक्त का तमाशा
"हमारी कोई औलाद नहीं है सन्नी..." बाबा ने कहना शुरू किया और मेरा ध्यान उसकी तरफ गया




"20 साल की शादी में हम ने काफ़ी इंतेज़ार किया, लेकिन आज तक हमारी अपनी कोई औलाद नहीं हुई है.." बाबा की नम आँखें देख मैं भी थोड़ा भावुक हुआ, लेकिन ऐसे मौकों पे क्या कहते हैं, इस बात से अंजान, इसलिए बस खामोशी से उन्हे सुनता ही रहा




"आपने कभी डॉक्टर को नहीं बताया.." मैने कुछ देर बाद उन्हे जवाब दिया




"नहीं, क्यूँ कि ऋतु और मैं नहीं चाहते कि डॉक्टर की रिपोर्ट का असर हमारे रिश्ते पे पड़े, अगर रिपोर्ट में पता चला कि ऋतु में कमी है तो शायद मेरे दिल में उसके लिए प्यार कम हो, या अगर ऋतु को पता चला कि मेरी कमी है तो सेम वो भी महसूस करेगी.. इसलिए हम ने फ़ैसला किया था कि डॉक्टर से कभी नहीं चेक करवाएँगे.. मॅटर ऑफ हार्ट्स लड़के.." बाबा ने फाइनली मुस्कुरा के कहा




"मैं रोज़ शाम को हाजी अली जाता हूँ, बच्चा माँगने नहीं, लेकिन यह दुआ करने के जिन जिन के पास भी अपनी औलाद है, वो सब हमेशा खुश रहें और अपने अपने बच्चों का अच्छे से ध्यान रख सकें.. उस दिन भी मैं वोही करने गया था, तेरा ध्यान शायद नहीं था, लेकिन तू अंदर आते हुए भी मुझसे टकराया था और बाहर निकलते वक़्त भी मुझसे टकराया था.. दोनो बार मैने तुझे चिल्ला के पुकारा भी, लेकिन तू कहीं खुद में ही खोया हुआ था.. अंदर आके मैने जब देखा तो तू बस आँखें खोल के सामने की तरफ कुछ देखे जा रहा था, और अगले ही पल वहाँ से गायब.. पता नहीं क्यूँ तेरे गायब होने से मेरे दिल की उत्सुकता बढ़ी और मैं तुझे ढूँढने लगा.. ढूँढते ढूँढते जब मैं पीछे आया तब भी मैने देखा तू कहीं खोया हुआ था और बस डूबते सूरज की तरफ देख रहा था.. पहले तो सोचा पकड़ के तुझे उठा लूँ और पूछूँ देख के नहीं चल सकता क्या, लेकिन जैसे ही तू चाचा की आवाज़ से पलटा तेरी आँखों में कुछ था, दुख नहीं कहूँगा, लेकिन आँखों में एक अजीब सी पुकार थी, ऐसा लग रहा था मानो सबसे कटा हुआ है तू, हाला कि मैं उस बारे में इतना यकीन से नहीं कह सकता था उस वक़्त, लेकिन फिर मैने सोचा छोड़ देता हूँ तुझे, पहले ही तकलीफ़ में है.. फिर तेरी गाड़ी से जब आक्सिडेंट हुआ तब मुझे यकीन हुआ, कि अब तुझे देखना ही पड़ेगा.. जानता है, जब मैं भी 25 साल का था, मेरा कोई नहीं था, मैं भी यूँ भुजा भुजा सा रहता था, ऋतु का प्यार साथ था, लेकिन समाज के डर से हम कुछ कर नहीं पा रहे थे.. मुझे आज भी याद है, वो जुम्मा ही था जब मेरा हाथ थामने सलीम भाई आए थे.. सलीम भाई ने मुझे अपने साथ रखा, एक बेटे की तरह मेरा ध्यान रखा और ऋतु से शादी करवाई, आज मैं जो भी हूँ सिर्फ़ सलीम भाई की वजह से हूँ.. तेरी तरह मैं भी डूबते हुए सूरज को देखता था, कोई घर वाला नहीं, किसी का साथ नहीं, सुबह को उठो, रात को सो जाओ, पूरे दिन बस यहाँ से वहाँ और कुछ नहीं.. सलीम भाई ने मुझे जीने का मकसद दिया, ऋतु के प्यार ने मुझे हिम्मत दी, और उस हिम्मत की वजह से मैं आज यहाँ खड़ा हूँ.. मेरे काम तुझे ग़लत लग सकते हैं, लेकिन मेरा एक उसूल है, मैं कभी किसी बंदे के साथ ग़लत नहीं करता.. सलीम भाई से हमेशा मुझे यह सीख मिली है, तुम अच्छा करोगे तो तुम्हारे साथ अच्छा होगा, और तुम्हारे साथ बुरा हुआ है, तो उसे भूल के आगे बढ़ो, दुनिया में नफ़रत बहुत भरी हुई है, प्यार की ज़रूरत है दुनिया को, किसी का दुख नहीं बाँट सकते तो कम से कम उसका सुख मत छीनो.. 25 साल और यह बात मैं आज तक नहीं भुला.. मैं जानता हूँ कि शायद मैं तेरे लिए इतनी मायने नहीं रखूँगा कभी भी, पर मैने जो भी किया है, जो भी कर रहा हूँ वो इसलिए ताकि तू अपने दुख बाँट सके और हँसना सीखे.." बाबा ने अपनी सिगरेट फूँकते हुए कहा और अपनी नज़रें समंदर की लहरों पे जमाए रखी




"पर मुझे यह सब बेट्टिंग सिखाने का क्या फ़ायदा, और वो 1 करोड़ वाली बात.." मैने उत्सुकता से पूछा, और बाबा के एमोशन्स पे ज़रा भी ध्यान नहीं दिया




"बेट्टिंग तो एक बहाना है, मैं तुझे ज़िंदगी के उसूल सिखाना चाहता हूँ... बेट्टिंग में हम रोज़ जीतेंगे, रोज़ हारेंगे, लेकिन हम रुकते कभी नहीं हैं, इस उम्मीद में कि आज नहीं तो कल जीत हमारी ही है.. ज़िंदगी भी ऐसी ही है लड़के, रोज़ हार, रोज़ जीत, लेकिन हम रोज़ उठते हैं और भागते हैं इस उम्मीद में कि जीत बस आज चाहिए ही.. और रही 1 करोड़ की बात, ऋतु एक डॉक्टर है, और मैं ... पर शादी से लेके आने वाले 10 साल तक हम ने पैसे जोड़े हमारे आने वाले बच्चे के लिए कि हम उसको यहाँ पढ़ाएँगे, यह करेंगे, वो करेंगे, और उसे अच्छी तरह ज़िंदगी जीना सिखाएँगे.. लेकिन किस्मत को यह मंज़ूर नहीं था.. ऋतु ने जब पहली बार मुझे तेरे साथ देखा तेरे जाने के बाद मैने उसे सब बातें बताई, तो उसी ने कहा के यह पैसे वैसे भी अब किसी काम के नहीं, मैं तुझे ज़िंदगी के मायने सिखाऊ, अगर तू बदल गया और जीने लगा, तो हमें ऐसा लगेगा कि पैसे कभी ज़ाया नहीं गये.." बाबा आज बहुत भावुक हो रहा था.. मैने उसकी बात का उस वक़्त कोई जवाब नहीं दिया, और बस खामोश खड़े रहे




"पहले तो यकीन नहीं हो रहा था बाबा की बातों पे, आइ मीन हां उनको कोई सलीम भाई ज़रूर मिले होंगे, लेकिन मेरे साथ यह सब, क्या इसकी कोई वजह है.. या यह बस ऐसे ही लाइन्स ठोक रहा था, घर आके मैने काफ़ी सोचा इस बारे में लेकिन कुछ जवाब नहीं मिला, मोबाइल पे मेसेज देखे तो काफ़ी मेसेज थे, कोर्स के, पेपर्स के, तब जाके याद आया के कल से एग्ज़ॅम्स हैं.. रात के 9 बजे काफ़ी दिनो बाद मम्मी पापा के साथ अच्छा सा डिन्नर किया, अच्छा मतलब अच्छा नहीं, अच्छा मतलब उन्होने झगड़ा नहीं किया आज कोई बात पे.. शांति से ख़ाके अपने रूम में आया ही था कि पंकज का फोन आया.. पहले तो दिल किया कि फोन नहीं उठाऊ, फिर सोचा देखूं क्या बोलता है




"हां भाई, बोलो.." मैने ग़मे टीवी पे कनेक्ट करके कहा




"कल से एग्ज़ॅम्स हैं, और तू आज गायब है, क्या हुआ है, कितने दिनो से कॉलेज भी नहीं आया.."




"इतने दिनो में तूने भी कहाँ फोन किया, खैर छोड़, मैं गेम खेल रहा हूँ, तू बता, क्या चल रहा है" मैने न्यू गेम ऑन की




"गेम.. पागल है, कल का पढ़ना नहीं है, और तेरे लिए एक न्यूज़ है.." पंकज ने खुशी से कहा




"पढ़ुंगा सुबह तक, रात के 2 से, अभी गेम खेलूँगा तो दिल खुश होगा, और खुशी की क्या बात है.."




"पेपर कल का लीक हुआ है, कॅंटीन वाला है ना, उसके पास है, चल लेके आते हैं, तू अच्छे नंबर से पास हो जाएगा.."




पेपर मेरे नाम से लेगा और भोसड़ी के खुद आइयीरॉक्स करवा के पास हो जाएगा, और खर्चा अपने बाप से करवाएगा.. साला मेरे पैसे क्या मुफ़त के हैं..




"भाई, जवाब दे, कहाँ मिल रहा है.." पंकज ने फिर कहा




"कहीं नहीं, चूतिया मत बना पंकज, पेपर के पैसे मुझसे निकलवाएगा और खुद आइयीरॉक्स ले लेगा.." मैने आज जवाब देने की सोची, शायद बाबा की बातों का असर था, कब तक साला दुखी रहूँगा, शुरुआत दोस्तों से करूँगा, मोम डॅड तक एंड में पहुँचुँगा..




"भाई क्या बोल रहा है, मैं तो तेरे लिए"




"चूतिया मत काट मेरा पंकज, तू अच्छे से जानता है जो मैने कहा सही कहा.. इतने दिन बेन्चोद ना फोन ना मेसेज, अजय का तो जानता ही हूँ, पर तू भी ऐसा करेगा क्या, और मेरे लिए इतनी चिंता है ना तो पेपर लेके भेज दे, आज तक इतना खर्चा किया तुम लोगों पे, तुम्हारी गर्ल फ्रेंड्स को मेरी गाड़ी में उतार चुके हो, आज पेपर ला दे , साबित कर तू खुद को मैं भी देखता हूँ.." दिल आज रुकने का नाम ही नहीं ले रहा था..




"ठीक है भाई, तू रात को सोना नहीं, मैं कभी भी कॉल करके पेपर दूँगा तुझे, देख लेना.." पंकज ने कहके फोन कट किया




"हट बेन्चोद, बहुत बड़ा दोस्त है, सोता तो मैं वैसे भी नहीं, देखता हूँ कब कॉल करेगा.." मैने खुद से कहा और गेम खेलने लगा.. रात के 2 बजे से लेके सुबह 7 तक जितना हुआ पढ़ाई की, वैसे मार्क्स कभी मेरा टारगेट नहीं रहे, 50 % वाला चूतिया नहीं होता, और 90% वाले होशयार नहीं होते, यह मेरा मानना था..




"भाई, तूने कल फोन नहीं किया रात को.." मैने पंकज को कहा जो क्लास में बैठ के नोट्स देख रहा था




"भाई आज करूँगा,कल ग़लत इन्फ़ॉर्मेशन थी.." पंकज का जवाब सुन मैं अपनी सीट पे आया और पेपर का वेट करने लगा.. 3 घंटे का एग्ज़ॅम शायद 2 घंटे में हो गया, नहीं, इतना होशयार नहीं था, लेकिन जितना आया उतना लिखा और क्लास में फेले हुए टेन्षन को महसूस करने लगा..




एग्ज़ॅम ओवर होते ही सोचा आज घर जाके आराम करते हैं और फिर पढ़ते हैं, बाबा से मैने कहा था कि सीधा वर्ल्ड कप के बाद मिलूँगा.. तब तक नो फोन, नो टॉक्स..




"हाई सन्नी.." श्वेता ने मेरे पास आके कहा और उसके साथ पंकज भी था




"हाई श्वेता, " मैने बस इतना ही कहा और उन दोनो को देखने लगा




जब दोनो में से कोई कुछ नहीं बोला तब मैं समझ गया कि कुछ काम है इन्हे




"बोलो भी, क्या चाहिए.. पैसा या गाड़ी..." मैने अपनी घड़ी देख कहा




"गाड़ी भाई, बस 2 घंटे, वो थोड़ा काम है, घर पे आके दे दूँगा तुझे, और हां, आज पेपर पक्का.." पंकज ने हँस के कहा




"बंद कर तेरी बकवास बेन्चोद.." मैने चिल्ला के पंकज से कहा तो वहाँ खड़ी श्वेता भी एक पल के लिए काँप उठी




"मैने कहा था ना कल रात को कि चूतिया मत बना, कोई गाड़ी नहीं देनी, और आगे से तुम लोग अपनी शकल मत दिखाना मुझे.. मुझे कोई ज़रूरत नहीं है तुम जैसे दोस्तों की, साले दोस्त दोस्त बोलते हो, कितनी बार जानने की कोशिश की कि पिछले 10 दिन मैं कहाँ था और कॉलेज क्यूँ नहीं आया था, और जब जब साथ होते भी, तब भी सिर्फ़ पार्टी, गाड़ी और पैसे.. इनके अलावा कोई बात भी की है, साले दोस्त बोलते हो.. अपनी शकल ना दिखाना मुझे कभी तुम लोग, नहीं तो एक हाथ पड़ेगा ना साले तो ज़िंदगी भर यहा मूह छुपा के घूमना पड़ेगा..." मैं इतनी तेज़ी से यह सब बोल रहा था कि बाकी सब लोग वहीं खड़े रहके तमाशा देखते रहे.. श्वेता को शायद इतनी बेज़्ज़ती झेलने की आदत नहीं थी, इसलिए पैर पटक के वो चली गयी और कुछ देर में पंकज भी उसके पीछे जाने लगा




"अबे आज के दिन तो उसकी गुलामी छोड़, कब तक यूही उसका कुत्ता बन के घूमेगा.. दोपहर को तुझसे काम करवाती है, और रात में मज़े किसी और को देती है.." मेरी यह बात सुन पंकज भी झुंझला उठा, लेकिन वो जानता था मैं सही कह रहा हूँ, इसलिए बिना कुछ आगे सुने वहाँ से जाने लगा..




"भाई, क्या हुआ अचानक आज.. ऐसे सीन मत बना यार, चल आजा मेरे साथ.." अजय ने मुझे यूँ देख कहा और सब को वहाँ से जाने को कहा




"तू कौन है बे.. हाँ, भाई है तू अपना भाई है तू अपना, भोसड़ी के इसके अलावा कभी और कुछ कहा, भाई कहाँ था 10 दिन तक, तूने सोचा, मेसेज किया क्या.. चुतियापने पे उतरो सब बस, वैसे तेरी रांड़ रिया कहाँ है, किसी और के साथ होगी बेन्चोद वो भी, जान गयी होगी तुझ में दम तो है नहीं.." मैने बस यह ही कह के एक करारा तमाचा अजय का मेरे गालों पे पड़ा..
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RE: Antarvasna kahani वक्त का तमाशा - by sexstories - 07-03-2019, 04:57 PM

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