Antarvasna kahani वक्त का तमाशा
07-03-2019, 04:15 PM,
RE: Antarvasna kahani वक्त का तमाशा
"यस शीना...." रिकी ने फोन उठाते हुए कहा



"भाई, कब निकल रहे हो महाबालेश्वर से.." शीना ने घड़ी देखी, अभी शाम के सिर्फ़ 4 ही बजे थे और सनडे भी था.. शीना काफ़ी एग्ज़ाइटेड थी रिकी से मिलने के लिए



"बस अभी गाड़ी में बैठा हूँ स्वीटहार्ट, ज्योति सेक्यूरिटी गार्ड्स को कुछ हिदायत दे रही है.. 10 मिनट में निकल जाएँगे.." रिकी ने अपने ग्लासस ठीक करते हुए कहा



"चलो जल्दी करो भाई, उसको छोड़ दो उधर ही...हेहहे... चलो एनीवेस, सी या सून... मिस्सिंग यू आ लॉट भाई..." शीना ने एक किस देके फोन कट कर दिया और इतने में ज्योति भी आके रिकी के पास बैठ गयी... ज्योति के आते ही रिकी ने गाड़ी महाबालेश्वर से मुंबई के लिए भगा दी.. काफ़ी देर तक दोनो ने एक दूसरे से बात तक नहीं की, रिकी अपनी नज़रें सड़क पे गाढ़े ध्यान से गाड़ी चला रहा था, वहीं ज्योति भी एक तक सामने ही देख रही थी, लेकिन उसके दिमाग़ में एक चीज़ काफ़ी देर से चल रही थी, लेकिन वो रिकी को कह नहीं पा रही थी.. बार बार उसके दिमाग़ में बस वो सीन याद आ जाता..




पिछली रात जब रिकी सो गया था, तब ज्योति ने चुपके से आके उसके हाथों को एक मोटी रस्सी से बाँध दिया था, ताकि वो उससे कुछ पूछ सके.. सुबह जब रिकी की नींद खुली तो वो खुद बेड पे बँधा हुआ था और सामने ज्योति गन लेके खड़ी थी..



"व्हाट दा हेल ईज़ दिस.." रिकी ने हाथों को ज़ोर देके रस्सी को खोलने की कोशिश की



"स्शह.... चिल मार स्वीटहार्ट..." ज्योति ने अपने होंठों पे उंगली रख के कहा और फिर अपने लिए एक सिगरेट जला के पास रखी कुर्सी पे बैठ गयी



"ह्म्म्म.... सो... टेल मी, हू आर यू..." ज्योति ने एक कश लेते हुए रिकी से पूछा



"व्हाट दा फक डू यू मीन बाइ हू आम आइ.. देखो ज्योति मैं मज़ाक के मूड में बिल्कुल नहीं हूँ.." रिकी ने एक बार फिर हाथों को ज़ोर देके कोशिश की लेकिन नाकाम रहा



"देखो, झूठ बोलने की कोई ज़रूरत नहीं है.. सीधे सीधे बताओ, तुम कौन हो.." ज्योति ने फिर एक कश लेते हुए कहा.. इससे पहले रिकी कुछ जवाब देता ज्योति का फोन बज उठा, ज्योति ने स्क्रीन पे देखा तो फिर प्राइवेट नंबर फ्लश हुआ...



"तुम्हे तो मैं बाद में देखूँगी, " कहके ज्योति जैसे ही बाहर निकलने को हुई रिकी ने उसे टोक दिया



"रूको, रूको.. फोन मेरे सामने उठा सकती हो,मेरी ही बात होनेवाली है वैसे भी.." रिकी ने एक शैतानी हँसी हँस के ज्योति को कहा



रिकी की बात सुन, ज्योति को कुछ समझ नहीं आया, इसलिए वो दरवाज़े पर ही रुक गयी और शॉक होके कभी अपने बजते हुए फोन को देखती तो कभी सामने . हुए रिकी को जो अभी भी वैसी ही हँसी हँस रहा था.. जब तक ज्योति को कुछ समझ आता, तब तक फोन कट हो गया.. ज्योति अभी झटके से बाहर निकली ही नहीं थी कि फिर उसका फोन बज उठा.. इस बार उसने एक ही रिंग में फोन उठा लिया



"हेल्लूओ..." ज्योति ने कांपति हुई आवाज़ से कहा



"मैने तुम्हे कहा अपनी चालाकी दिखाने को?.. " सामने से उसे सवाल मिला



"पर...." ज्योति ने सिर्फ़ इतना ही कहा कि सामने से फिर उसे आवाज़ आई



"यह जो भी कर रहा है मेरे कहने पे ही कर रहा है.. क्यूँ कर रहा है, कैसे कर रहा है और कब से कर रहा है.. यह तुम उससे पूछ लो, अगर तुम्हे वो बता दे तो ठीक है, नही तो इन सब के अंत में तुम्हे यह पता ही लग जाएगा... यह रिकी राइचंद ही है समझी"



"पर क्यूँ.." ज्योति को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या कहे



"ज्योति... इस खेल को तुम जितना सीधा समझ रही हो, उतना सीधा नहीं है.. इस खेल में राजा भी मैं हूँ, मोहरा भी मैं ही हूँ.. वज़ीर भी मैं ही हूँ.." सामने से फिर एक रिलॅक्स्ड टोन में उसे जवाब मिला



"मैं कुछ समझी नहीं" ज्योति को अभी भी कुछ समझ नहीं आ रहा था



"समझ समझ के समझ को समझो... समझ . भी एक समझ है.." इस बार सामने बेड पे लेटे हुए रिकी ने उसे जवाब दिया



"हाहहाहा... सुना ज्योति, उसने सही कहा बिल्कुल..." ज्योति ने पहले रिकी को देखा और फिर सामने बात सुन के फिर उसके दिमाग़ का फ्यूज़ उड़ गया था..



"हाहहहाहा.... हाहहहहहहहहा....." ज्योति फोन पे और सामने रिकी से यही हँसी की आवाज़ सुन रही थी.. ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो शैतानो के बीच वो अकेली इंसान हो..



"अब खोल दो मेरे हाथ, और फोन मुझे दो.." रिकी ने ज्योति से कहा



"चलो ज्योति, उसके हाथ खोल दो.. वैसे सिर्फ़ एक बात कहना चाहता हूँ तुम्हे, तुम इसके साथ जो करना चाहती हो वो अंत में कर लेना, इसे भी मारना ही है हाहहहहहा..." इतना कहके फिर से फोन कट हो गया.. फोन कट होते ही ज्योति को यकीन नहीं हो रहा था इन सब पे, वो फोन अपने कान के पास पकड़ के ही बैठी थी और कभी रिकी को तो कभी फोन को देखती... काँपते हाथों से ज्योति ने धीरे धीरे आगे बढ़ के रिकी की रस्सी खोली



"ओउच.... बड़ा कस्के बाँधती हो यार." रिकी ने अपने हाथों को स्ट्रेच करके कहा और इतने में फिर ज्योति का फोन बज उठा



"एक्सक्यूस मी.. यह मेरे लिए है..." रिकी ने ज्योति के हाथ से फोन लिया जो अभी भी शॉक में ही थी



"हेलो....ह्म्‍म्म्म, नहीं, बस यह चालाक लोमड़ी बैठी है मेरे सामने इसे ही.. पर समझ नही आया कैसे, जासूस है..हाहहाहा, हां.... सब ठीक है, डॉन'ट वरी.. रिज़ॉर्ट बढ़िया चल रहा है..ना ना, जल्द ही मिलेंगे भाई... बहुत जल्द....चल रखता हूँ, लोमड़ी घूर रही है...हाहः, बाइ.." रिकी ने बात करके फोन कट किया और ज्योति को थमा दिया..



"अब चलें... देर हो रही है, माइ लव विल बी वेटिंग फॉर मी.." रिकी ने ज्योति को देख कहा और वहाँ से निकल गया




"मैं यह सब क्यूँ कर रहा हूँ.. यह सबसे बड़ा सवाल तुम्हारे ज़हेन में है ज्योति..है ना.." रिकी ने गाड़ी चलाते हुए ज्योति से पूछा, यह सवाल सुन ज्योति का ध्यान टूटा और रिकी की तरफ देखने लगी, लेकिन उसने कोई जवाब नहीं दिया..



"हां बोलो, इतनी देर खामोश तो ऐसे ही नहीं बैठी थी तुम, तुम्हारा दिमाग़ कुछ ज़्यादा ही अब्ज़र्व करता है, और हां.. जो तुम्हे स्नेहा ने सिखाया है कि सब बातें एंड के लिए रखो, वो तुम्हारे काम आएँगी.. वो ग़लत है, स्नेहा नहीं जानती कि मैं भी राइचंद हूँ.. राइचंद हमेशा दो कदम आगे रहते हैं.." रिकी की यह बात सुन ज्योति के दिमाग़ के परखच्चे उड़ गये...



"देखो, यह सब मैं नहीं पूछूंगी अब..लेकिन मैं शीना के बारे में सोच रही हूँ...तुम उससे प्यार का नाटक.." ज्योति ने इतना ही कहा कि रिकी ने तेज़ी की ब्रेक मार के गाड़ी रोक दी... गाड़ी रोक के ज्योति को देखने लगा और धीरे से अपने ग्लासस उतारे..



"शीना को अंत तक कुछ नहीं होगा, अगर तुमने शीना को बताया कुछ तो तुम खुद ज़िंदा नहीं रहोगी... शीना के साथ मेरा प्यार झूठा नहीं है.." रिकी की आँखों में एक आग थी यह कहते समय



"तुम चाहे जो कर लो...मेरा कुछ नहीं कर सकते समझे. तुम सिर्फ़..." ज्योति ने सिर्फ़ इतना ही कहा के रिकी ने उसे फिर टोक दिया



"इस खेल में राजा भी मैं हूँ, मोहरा भी मैं ही हूँ.. वज़ीर भी मैं ही हूँ.... ऐसा ही जवाब मिला था ना तुम्हे थोड़ी देर पहले..." रिकी ने हंस के ज्योति को देखा जिसके नीचे से आज ज़मीन तक नहीं बची थी खिसकने के लिए



"अगर तुम्हे लगता है स्वीटहार्ट, कि तुम उसकी फेव हो.. तो भूल जाओ, मैं तुम्हे यहीं के यहीं गोली मार के फेंक सकता हूँ और वो मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकता.. देखना चाहोगी..." यह कहके ही रिकी ने अपने जूतों के साइड से बंदूक निकाली और ज्योति के सर पे तान दी.. यह सब देख ज्योति की हालत खराब होने लगी, उसके सर से लेके पेर तक पसीने से भीग चुका था, इतने में फिर उसका फोन बजा,



"ह्म्‍म्म..." रिकी ने आँख से ज्योति को उठाने के लिए कहा



"हह...ह... हेल्ल्लूओ..." ज्योति ने डरते हुए जवाब दिया



"मैं तुम्हे बताना भूल गया, वो कुछ भी कर सकता है तुम्हे, तुम्हे क्या, मुझे भी कर सकता है..बेहतर होगा उसके सामने इतराना बंद करो.. और वो जो चाहे वो करो.. बाइ.." इतने में ज्योति का फोन कट हो गया..



"खेल खेलना तो दूर की बात है ज्योति, खेल सीखना भी सीख जाओ तो वोही बहुत है तुम्हारे लिए.. और रही बात सोचने की, तो ज़्यादा ना सोचो, घुटनो में दर्द होगा... अब मेरी बात सुनो, अगर शीना को इस बात की भनक भी लगी, मेरा कुछ नहीं होगा, तुम मर जाओगी, लिटरली मार डालूँगा मैं तुम को... और तुम दोनो को अंत में कुछ नहीं होगा, तुम्हारा ध्यान तो वो रख ही रहा है, शीना का ध्यान मे रखूँगा.. बस वो करो जो मैं कह रहा हूँ.." रिकी ने बंदूक उसके सर से हटाते हुए कहा



"क्या करना है मुझे.." ज्योति के मूह से बड़ी मुश्किल से यह चन्द लफ्ज़ निकले..



"शीना से दोस्ती, और हर वक़्त उसका ध्यान रखो जब तुम घर पे हो... वैसे मैने मना किया था प्रॉजेक्ट तुम्हे ना मिले, लेकिन वो तुम्हारे मामले में पागल हो जाता है, इसके लिए तुम्हे प्रॉजेक्ट में लाना पड़ा मुझे.. " रिकी ने फिर गाड़ी स्टार्ट करके कहा



"इसका मतलब..." ज्योति ने चौंकते हुए कहा



"हां, शीना पे हमला होगा मैं जानता था.. मजबूरी थी मेरी , शीना को जितनी चोट लगी, उससे कहीं ज़्यादा दर्द मुझे महसूस होता है... पर यह काम मुझे पूरा करना है, तभी ऐसा होने दिया.. इसलिए तुम जब भी घर पे हो उसके साथ रहो.. उसके पास रहो, बहेन की तरह ध्यान रखो.. स्नेहा से भी मिलती रहो, वो क्या क्या कर रही है उसका ध्यान रखो.." रिकी की आवाज़ में एक दर्द के साथ एक मज़बूती भी थी.. दर्द था शीना के लिए..



"हां जानती हूँ, सब तुम्हे बताती रहूंगी..." ज्योति ने सीधी बैठ के कहा



"नही बताना, हमे सब पता लग रहा है वैसे भी... और कैसे, यह नही सोचो, फिर घुटनो का दर्द बढ़ जाएगा.." रिकी ने अपने ग्लासस पहने और फिर गाड़ी मुंबई की तरफ दौड़ा दी
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