Antarvasna kahani वक्त का तमाशा
07-03-2019, 03:55 PM,
#37
RE: Antarvasna kahani वक्त का तमाशा
जैसे ही सुहसनी और राजवीर ने ज्योति की आवाज़ सुनी, दोनो की हालत खराब हो गयी.. कहाँ तो राजवीर सुहसनी की चूत मसल रहा था, अब ज्योति के आने से उसका लोहे सा मज़बूत

लंड मुरझा गया था , सुहसनी ने जल्दी से अपने कपड़े लिए और बाथरूम में जाके छुप गयी.. राजवीर ने भी जल्दी से अपना हुलिया ठीक किया और दरवाज़ा खोलने बढ़ गया




"हां बेटी, बोलो.." राजवीर ने दरवाज़ा खोल के कहा, लेकिन ज्योति को अंदर आने के लिए जगह नहीं दी




"सॉरी पापा, पर मैं अंदर आउ इफ़ यू डोंट माइंड."




"अरे हां, सॉरी, आओ आओ..." कहके राजवीर ने ज्योति के अंदर आने के लिए जगह बनाई. राजवीर ने भी पीछे से दरवाज़ा बंद किया और अंदर जाने लगा... अंदर आके दोनो बाप

बेटी सोफा पे बैठ गये.. राजवीर ज्योति की तरफ देख रहा था कि अचानक ज्योति क्या बोलने आई है, और ज्योति राजवीर से आँख नहीं मिला पा रही थी इसलिए इधर उधर, कभी

नीचे देखती.. ज्योति को यूँ देख राजवीर को कुछ समझ नहीं आ रहा था, एक तो पहले से ही राजवीर डरा हुआ था, उपर से अब ज्योति का ऐसा रियेक्शन उसे और डरा रहा था...




"हां ज्योति, कहो...क्या बात है, इतनी टेन्षन में क्यूँ लग रही हो.." राजवीर ने अपने आप को नॉर्मल करते हुए कहा, लेकिन अंदर ही अंदर उसका दिल ऐसा धड़क रहा था जैसे कि

फुल स्पीड पे कहीं ड्रिल मशीन चल रही हो




"उः पापा, रात के लिए सॉरी... मुझे ऐसे आप के कमरे में नहीं आना चाहिए था.." ज्योति ने फाइनली राजवीर से आँखें मिलाकर कहा




ज्योति की बात सुनके पहले तो राजवीर को समझ नहीं आया के वो क्या जवाब दे, लेकिन फिर उसने खुद को संभाला, और ज्योतिसे कहा




"कोई बात नहीं बेटा, थ्ट्स ओके...मुझे भी संभालना चाहिए, ध्यान रखना चाहिए कि रूम में लॉक भी है.." राजवीर को समझ नहीं आया के वो और क्या कहे.. इसलिए फिर दोनो

को बीचे एक लंबी खामोशी छाई रही.. सुहसनी यह सब बाथरूम से देख रही थी और सुन रही थी, लेकिन वो समझ नहीं पा रही थी के ज्योति क्या कह रही है आख़िर.. ज्योति

वहाँ से उठ तो नहीं रही थी, और ना ही राजवीर उसे जाने को कह सकता था,



"बेटा, 1 मिनट हाँ... वॉशरूम से होके आया मैं.." कहके राजवीर वहाँ से उठा और वॉशरूम की तरफ गया.. वॉशरूम जाते ही, सुहसनी ने सबसे पहले उससे पूछा




"यह ज्योति किस बारे में बात कर रही है.." सुहानी ने फुसफुसा कर कहा




"अरे चुप रहो, इसके जाते ही सब बताता हूँ..." राजवीर ने उसे जवाब दिया




बाहर सोफे पे बैठी ज्योति इधर उधर रूम में देख रही थी के तभी उसकी नज़र सोफे के नीचे एक चमकीली चीज़ पे पड़ी.. वो नीचे झुकी और थोड़ा हाथ लंबा किया तो उसके

हाथ में एक अंगूठी आई.. अंगूठी उठा के उसने देखा तो उसपे 'एसए' लेटर बने हुए थे.... उसे समझते ज़्यादा देर ना लगी के वो अंगूठी किसकी हो सकती है, आख़िर उसने

मोबाइल में देख लिया था कि उसका बाप सुहसनी की फोटो देख मूठ मार रहा था.. एसए का मतलब सुहसनी और अमर ही हो सकता है, और ऐसी सेम अंगूठी उसने उमेर के पास भी

देखी थी.... ज्योति समझ गयी या तो सुहसनी यहाँ से होके गयी है, या तो वो यहीं पर है... जैसे ही उसे लगा राजवीर आ रहा है वापस अपनी जगह पे, ज्योति ने अंगूठी

छुपाई और फिर सीधी होकर बैठ गयी..




"हां बेटी, और बताओ, क्या चल रहा है.. स्टडीस का क्या हाल, क्या सोचा है तुमने.." राजवीर ने अपनी जगह पे बैठ के कहा



"सब ठीक है पापा, मुझे खुशी है कि आप भी यहीं रहेंगे अब हमेशा के लिए.. मैं अकेली नहीं रहूंगी" ज्योति ने ऐसे जवाब दिया जैसे वो आज यह बात ख़तम ही नहीं

करना चाहती थी



"हां बेटी, अब भाई साब ने इतनी ज़िद्द की तो मैं उन्हे मना ना कर पाया.." राजवीर का यह जवाब सुनते ही ज्योति अंदर ही अंदर हँसने लगी, मानो खुद से कह रही हो जानती हूँ

पापा क्यूँ रुके हो, ताऊ जी तो आपको हर बार कहते हैं लेकिन इस बार आपके रुकने की वजह मैं जानती हूँ...



"क्या हुआ, किस सोच में पड़ गयी.." राजवीर ने फिर ज्योति से कहा, जिसे सुन ज्योति अपने ख़यालों से बाहर आई



"कुछ नहीं पापा, प्लीज़ डोंट माइंड, क्या मैं आपका बाथरूम उसे कर सकती हूँ.." ज्योति चेक कर रही थी कि राजवीर का जवाब क्या होगा..



"हां बेटा शुवर, ठीक पीछे ही है.." राजवीर ने उसे इशारा करके कहा... राजवीर का जवाब सुनके ज्योति समझ गयी कि सुहसनी इधर से होके गयी है पर अब वो यहाँ नहीं है

वरना उसका बाप इतना कॉन्फिडेंट नहीं होता...



"ओके पापा, एनीवेस चलिए अब मैं जा रही हूँ अपने कमरे में ही.. सॉरी इतनी रात को आपको डिस्टर्ब किया.. गुड नाइट.."



"गुड नाइट बेटा, स्लीप वेल.." राजवीर ने भी उसे आराम से जवाब दिया



"उः पापा, एक बात कहनी थी आप से...एक आख़िरी बात.." ज्योति ने जाते जाते फिर रुक कर कहा.. राजवीर कुछ कहता इससे पहले फिर ज्योति बोल पड़ी



"पापा, शायद यह रिंग ताई जी की है... आपके सोफे के नीचे पड़ी थी.." ज्योति ने राजवीर को रिंग देते हुए कहा.. ज्योति के हाथ में रिंग देख राजवीर फिर पसीना पसीना होने

लगा, उसे समझ नहीं आ रहा था.. टेन्षन में आके उसने ज्योति के हाथ से रिंग तो ली, लेकिन उसकी नज़रें सीधा बाथरूम की तरफ गयी , जिसका पीछा ज्योति ने किया और वो

समझ गयी के सुहसनी अभी भी वहीं है.. ज्योति के हाथ से यह मौका चला गया सुहसनी और राजवीर को पकड़ने का..



"क्या हुआ पापा, बाथरूम की ओर क्यूँ देख रहे हैं..लीजिए अब, मैं जा रही हूँ अपने कमरे में.." कहके ज्योति ने राजवीर को सफाई देने का मौका भी नहीं दिया और रिंग उसके हाथ

में पकड़ के वहाँ से अपने कमरे में निकल गयी...शायद राजवीर को तो ऐसा ही लगा



ज्योति के जाते ही, सुहसनी बाथरूम के बाहर आई और आते ही कुछ कहने वाली थी कि राजवीर के हाथ में अपनी रिंग देख के वो बोली



"यह तुम्हारे पास कैसे आई, कल ही अमर ने गिफ्ट दी है, मैं तो सोच रही थी कहीं खो गयी.." सुहसनी ने राजवीर के हाथ से रिंग लेके कहा



"अगर संभाली नहीं जाती तो पहनती क्यूँ हो, " राजवीर ने झल्ला के सुहसनी से कहा, ऐसा रियेक्शन देख सुहसनी भी एक वक़्त के लिए अचंभित रह गयी



"इसमे गुस्सा करने वाली क्या बात है, कोई बड़ी बात नहीं है यह.. कल ही मिली है मुझे, उंगली में फिट नहीं आ रही है, इसलिए हर बार गिर जाती है जब भी हाथ झटकती हूँ तो.."



"यह अंगूठी ज्योति को मिली है. उसने मुझे दी, समझी तुम..." राजवीर के ऐसे चिल्लाने से सुहसनी काफ़ी डर गयी, लेकिन फिर ज्योति का नाम सुन के ही वो एक शॉक में चली गयी,

काफ़ी देर तक दोनो खामोश रहे और बस एक दूसरे को घूरते रहे... ध्यान उनका तब टूटा, जब राजवीर के दरवाज़े के खुलने की आवाज़ आई और जब उनकी नज़र वहाँ पड़ी तब ज्योति

उनके सामने ही खड़ी थी...



"ह्म्म्मह, अब कौन बताएगा मुझे सब बात.. वो भी सच सच.." ज्योति ने अंदर आते हुए कहा और उनके सामने वाली टेबल पे बैठ गयी






उधर मुंबई से दूर, पुणे हाइवे पे एक लॅंड क्रूज़र फुल स्पीड में कहीं जा रही थी, कि तभी कार ब्लास्ट हो गयी और उसके अंदर के सब लोग ऑन दा स्पॉट मर गये... सुबह

राइचंदस में बहुत खुशनुमा वातावरण था, उमेर और सुहसनी गार्डेन में रोज़ की तरह चाइ पी रहे थे और कुछ ही देर में ज्योति और राजवीर ने भी उन्हे जाय्न कर लिया...

चारो खुशी खुशी बातें कर रहे थे कि तभी रिकी और शीना ने भी उन्हे जाय्न किया




"कल कहाँ थी शीना, पूरा दिन कहीं दिखी ही नहीं..." अमर ने शीना को पेपर्स देते हुए कहा



"कल फरन्डस के साथ थी डॅड, बट यह पेपर्स कैसे.." शीना एक एक कर उन्हे चेक करने लगी



"अरे यह हमारे फार्महाउस के हैं, वो प्रॉपर्टी तुम्हारे नाम से है..इसका सौदा हो गया है, इसलिए इन पेपर्स पे साइन कर दो ताकि हम जल्द ही ओनरशिप ट्रान्स्फर कर दें
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RE: Antarvasna kahani वक्त का तमाशा - by sexstories - 07-03-2019, 03:55 PM

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