Maa Sex Kahani हाए मम्मी मेरी लुल्ली
06-26-2019, 02:54 PM,
#34
RE: Maa Sex Kahani हाए मम्मी मेरी लुल्ली
सड़क पर रश बढ़ता जा रहा था | "तुम अच्छे से सीधे होकर बैठो.... हम लोग अब मंडी में हैं" सलोनी राहुल को सीधे होकर बैठने के लिए कहती है और खुद भी सीधी होकर सामने देखती ध्यान से गाड़ी चलाने लगती है |

"माद्रचोद ......अपनी साली किस्मत ही खराब है" राहुल अपनी किस्मत को कोसता है | कार मंडी के सामने पहुँच चुकी थी और सलोनी उसे बिल्कुल कम स्पीड पर चलाती किसी सेफ पार्किंग को तलाश रही थी | कार पार्क करने के पशचात सलोनी अपना पर्स बाहर निकालती है और अपना दुपट्टा कार में ही छोड़ देती है | राहुल भी अपनी मम्मी के पीछे निकल पड़ता है | वो जैसे ही सलोनी के पीछे जाने लगता है, सलोनी उसे रोक देती है और उसे कार की कीस देती कहती है,

"इस तरह जाओगे मंडी में, हालत देखी है अपनी" राहुल अपनी मम्मी की बात समझ नही पाता और उसे स्वालिया नज़रों से देखता है | "अपनी पेंट में बने तंबू को तो देखो ....... लोग हँसेंगे तुम पर" राहुल मायूस सा होकर अपनी मम्मी के हाथ से चाभी ले लेता है और कार की तरफ मुड़ जाता है | वो खुद जानता था इस हालत में वो मंडी नही जा सकता |

"अब यह चेहरा मत लटकाओ .... जब यह शैतान बैठ जायेगा तो आ जाना" सलोनी की बात से राहुल को थोड़ी हिम्मत बंधती है | असल में सलोनी के दुपट्टा ना पहनने से वो थोड़ा सा परेशान हो उठा था | हालांकि सलोनी ने दुपट्टा नही पहना था और उसका कुर्ता भी थोड़ा ढीला सा था मगर सलोनी के मुम्मे इतने मोटे और तने हुए थे कि कुर्ते में से उनका रूप छलक रहा था | उसकी गोरी रंगत शाम की हल्की धूप में चमक रही थी और उपर से उसने बाल भी खुले रख छोड़े थे |

राहुल का परेशान होना बिल्कुल वाजिब था | जिसकी भी नज़र सलोनी पर पडती वो पहले उसके चेहरे और फिर उसके सिने को घूर कर देखता | सलोनी अपनी और घूरती निगाहों से बाखूवी वाकिफ़ थी, उसे इन निगाहों की कॉलेज के दिनों से आदत थी | वो एक एक दुकान पर जाकर सब्जियाँ खरीदने लगी | दुकान वाले सलोनी के रूप पर मोहित उसकी कामुक काया को अपनी आँखो से नंगी करके चोद रहे थे | जब भी वो झुकती उसकी गांड पर उसका कुर्ता उँचा हो जाता और टाइट जीन्स से छलक कर बाहर आने को बेताब उसके गोल मटोल नितंब देख लोगो की साँस रुक जाती | ऊपर से उसके दमकते चेहरे पर उसकी नाक की बाली उसकी देह की कामुकता को कई गुना बढ़ा रही थी | सलोनी के पास आठ दस बैग भर चुके थे, तभी उसे राहुल अपनी और आता दिखाई दिया | वो अपनी मम्मी पर पड़नी वाली नज़रों को देख रहा था | सलोनी अपने पर्स से पैसे निकाल रही थी और दुकान वाला उसे घूर रहा था | जब राहुल सलोनी के पास आ गया तो पहले तो दुकान वाले ने उसकी और कोई ध्यान नही दिया मगर जब सलोनी ने राहुल को "आ गये बेटा" कहकर बोला तो दुकान वाले ने उसकी और देखा | राहुल के गुस्से से जलती लाल आँखे देख कर दुकान वाले ने तुरन्त अपनी नज़रें फेर ली और फिर दोबारा सलोनी को घूर कर नही देखा | वो राहुल की आँखो से बरसते अंगारों से बाखूबी अंदाज़ा लगा सकता था कि वो छोकरा उसे क्यों घूर रहा था |

"राहुल तू जा, यह बैग गाड़ी में रख और मैं आती हूँ.... बस एक बैंगन रह गये हैं ... इधर नही मिले... किसी दूसरी दुकान पर देखती हूँ" सलोनी राहुल के हाथों में बैग थमाती बोलती है |

"नही मम्मी, आप बैंगन खरीद लीजिए, हम इकट्ठे चलते हैं" राहुल अपनी मम्मी को उन भूखे भेड़ियों के बीच छोड़ कर नही जाना चाहता था |

"अरे तो क्या इतना भार उठाए मेरे साथ घूमता रहेगा ... तू जा इसे गाड़ी में रख .... मैं अभी आती हूँ"

"रहने दीजिए मम्मी, छोड़िए बैंगन लेने को.... मुझे वैसे भी बैंगन की सब्ज़ी पसंद नही है" राहुल अपनी मम्मी को वहाँ हरगिज़ भी अकेला नही छोड़ना चाहता था |

"मगर मुझे बहुत पसंद है ...... और अब कोई स्वाल ज्वाब नही ........ अभी समान गाड़ी की डिक्की में रखो मैं आती हूँ" सलोनी राहुल को हुक्म देती है | राहुल के पास अब अपनी मम्मी की बात मानने के सिवा कोई और चारा नही था | वो तेज़ तेज़ कदमो से गाड़ी की और बढ़ता है जो कुछ दूरी पर खड़ी थी | राहुल गाड़ी की और जाता पीछे मुड़ मुड़ कर सलोनी की और देख रहा था | सलोनी कुछ देर एक जगह खड़ी दुकानों का जायजा लेती है और फिर उसे एक कोने में एक दुकान दिखाई देती है जो और दुकानों से थोड़ा सा हटकर थी | सलोनी उस दुकान की और बढ़ जाती है |

राहुल जब पीछे मुड़कर अपनी मम्मी को एक तरफ़ बढ़ते हुए देखता है तो वो चलना छोड़ भागना शुरू कर देता है | सब्जियों के बैग बहुत पतली प्लास्टिक के बने हुए थे जो उसके भागने और ज़्यादा वजन के कारण कभी भी फट सकते थे और सब्जियाँ बिखर सकती थी मगर इस बार राहुल की किस्मत ने उसे धोखा नही दिया और वो गाड़ी तक बिना कुछ गिराए पहुँच गया | राहुल कार की डिक्की खोल कर उसमें तेज़ी से सब्जियाँ डालने लगता है |

उधर सलोनी उस दुकान पर जाती है जो थोड़ा सा हट कर थी और उस पर कोई और ग्राहक भी नही था | दुकानदार कोई 40-45 साल का हट्टा कट्टा मर्द था | सलोनी को अपनी दुकान की और बढ़ता देख वो उठ कर खड़ा हो जाता है और सलोनी को आवाज़ देने लगता है |

"आइए बहनजी .... आइए.... बिल्कुल ताज़ी सब्जियाँ हैं.... देखिए पूरी मंडी में से आपको ऐसी सब्जियाँ नही मिलेंगी" | सलोनी जैसे जैसे सब्ज़ी वाले के पास पहुँच रही थी उसकी आँखो की चमक उतनी ही बढ़ती जा रही थी | जैसे जैसे सलोनी की मादक काया और उसके कामुक उभार और कटाव सब्ज़ीवाले की आँखो के पास आ रहे थे उसके चेहर की मुस्कान, आँखो की लाली बढ़ती जा रही थी |

"आइए बहनजी आइए.... क्या लेंगी केला, मूली, बैंगन.......या फिर लौकी" सलोनी के दुकान पर पहुँचते ही सब्ज़ी वाला उससे पूछता है | सलोनी सब्ज़ीवाले की आवाज़ में चिपकी कामुकता, उसकी नज़रों और उसके दोबारा इस्तेमाल की कुछ खास सब्ज़ियों के नाम से जान गयी थी कि यह कोई बहुत बिगड़ा हुआ बदतमीज़ था | कोई भी सब्ज़ीवाला ऐसे सीधे सीधे छेड़खानी करने की हिमाकत नही कर सकता था, लगता था वो कुछ ज़्यादा ही होशियार था या खुद को होशयार समझता था |

"भैया मुझे बैंगन लेने हैं ......... क्या भाव है" सलोनी उसे नज़र अंदाज़ करते हुए बोलती है | उसे दूर से राहुल अपनी और भागा भागा आता दिखाई देता है और उसके होंठो पर मुस्कान आ जाती है | सब्ज़ीवाला उसकी मुस्कान का ग़लत मतलब लगता है | उसे लगता है कि बड़े घर की वो इतनी सुंदर, सेक्सी औरत उसको लाइन दे रही है | वो बहुत खुश हो जाता है | उसकी लुंगी में उसके लिंग में तनाव आने लगता है |

"अरे बहन जी अब आपसे क्या पैसा लेना है ...... आपकी दुकान है ..... जो चाहिए ले जाइए ........ हर चीज़ का मोल भाव कोई पैसे से थोड़े ही किया जाता है"

"क्या मतलब?" सलोनी थोड़े तीखे अंदाज़ में पूछती है |

"अरे मेरा मतलब था कि अभी मैने आपको बहनजी बोला है और अपने मुझे भाई कहकर बुलाया था ना तो कोई भाई बहन से पैसा लेता अच्छा नही लगता है ना......." वो बहुत बड़ा चलाक था और जल्दी घबराने वाला भी नही था | सलोनी समझ गयी कि यह आदमी कुछ ज़्यादा ही कमीना है | तब तक राहुल भी वहाँ पहुँच चुका था | उसकी साँस फूली हुई थी | माथे पे पसीने की बूंदे चमक रही थी | सलोनी का ध्यान दुकान वाले की तरफ़ था | राहुल दुकान वाले को घूरता है जो उसकी और देखता भी नही | वो सीधा सीधा सलोनी के सीने की और देखकर अपने होंठो पर जीभ फेर रहा था और हंस रहा था | राहुल की नसें फड़कने लगती है |

"ठीक है, ठीक है.... ज़्यादा बातें मत बनायो.... एक किलो बैंगन तोल दो" सलोनी रूखेपन से दुकानवाले को बोलती है |

"अभी लीजिए बहनजी, जितना आपने कहा उतना ही ही डाल देता हूँ.... "

सलोनी दुकान वाले की तरफ़ कोई ध्यान नही देती और राहुल की और मुडती है |

"क्या ज़रूरत थी इतना भागने की, बोला था ना वहीं रुकने के लिए.... कितना पसीना पसीना हो गया है" सलोनी बेटे को डांटती है | दुकान वाला प्लास्टिक बैग में बैंगन डालता राहुल की और देखता है | राहुल का गुस्सा और भी भड़क उठता है | दुकानवाले की नज़र उपहास से भरी हुई थी, राहुल को लगता है जैसे वो दुकानवाला उसके उपर हंस रहा हो |
"यह लीजिए बहनजी आपके बैंगन.. जितना आपने कहा था बिल्कुल उतना ही डाला है मैने, अगर आपको और चाहिए तो बोलिए मैं और डाल देता हूँ.... अभी मेरे पास बहुत बाकी पड़ा है", दुकानवाला बिना सलोनी के चेहरे की और नज़र उठाए उसके मुम्मो को घूरता हुआ बोलता है | वो बिना किसी डर के उसके मुम्मो को घूर रहा था | उसकी इतनी हिम्मत देख सलोनी दंग रह गयी थी |

"ज़्यादा बकवास ना करो... पैसे काटो जल्दी से" सलोनी खीझ कर बोल उठती है | उसे राहुल को यह सब सुनाने पर दुख महसूस हो रहा था जिसकी मुट्ठियाँ भींच गयी थी और लगता था अगर वो कुछ देर वहीं खड़ा रहा तो दुकान वाले की खैर नही थी |

"अरे बहनजी पैसे तो मैने आपसे कहा था कि रहने देती.... अब आप जैसी बहन हो तो आदमी पैसा लेता अच्छा नही लगता.... खैर अब आप इतनी खुशी से दे रही हैं तो ले लेता हूँ" | दुकानवाला बहुत आराम आराम से पैसे पकड़ता है | फिर वो अपनी पॉकेट में इधर उधर कुछ ढूंढने लगता है |

"अब क्या बात है?" सलोनी गुस्से से तमतमा रही थी |

"अरे बहनजी मेरे पास छुट्टा नही है? अब पाँच रुपया काटना है और आपने इतना बड़ा नोट दे दिया है" वो पुन्य सलोनी के मुम्मो पर अपनी नज़र गढ़ा देता है |

"मेरे पास छुट्टा है तुम यह पाँच रुपये लो और वो नोट वापस करो" दुकान वाला बेशर्मी से हंसता हुआ सलोनी को पहले वाला नोट देता है और उससे छुट्टा ले लेता है | सलोनी छुट्टा लेकर राहुल को चलने के लिए कहती है जो उस दुकान वाले को जान से मार देना चाहता था |

"बहनजी आती जाती रहिएगा......आप ही की दुकान है....और हाँ देखना मेरे बैंगन का स्वाद आपको बहुत पसंद आएगा... मेरे बैंगन जितना लंबा मोटा बैंगन आपको इस बाज़ार से तो क्या और कहीं से नही मिलेगा" दुकानवाला पीछे से सलोनी की गांड को घूरता हुआ उसे बोलता है | सलोनी अभी मुश्किल से दो कदम चली थी जब उस दूकानवाले ने उसे पीछे से वो बात कही थी | सलोनी ठिठक पड़ती है | उसके कदम जहाँ के तहाँ रुक जाते हैं | राहुल भी रुक जाता है वो पीछे मूड कर दुकानवाले की और कदम बढ़ता है जो हंस रहा था | सलोनी राहुल का हाथ कस कर पकड़ लेती है और उसे रोक देती है | वो बैंगन का बैग राहुल को पकड़ा देती है और मुस्कराती हुई दुकानवाले की तरफ़ बढ़ती है | राहुल भी अपनी मम्मी के साथ आगे बढ़ता है |
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