RE: vasna story मजबूर (एक औरत की दास्तान)
रुखसाना बोली, "जी मैं रुखसाना बोल रही हूँ... सुनील हमारा किरायेदार है... क्या मैं कवीता जी से बात कर सकती हूँ!" उस आदमी ने रुखसाना को दो मिनट होल्ड करने को कहा और फिर उसे फोन पे उस आदमी की आवाज़ सुनायी दी कि, "कवीता दीदी आपका फ़ोन है..!" फिर थोड़ी देर बाद रुख़साना को एक औरत की आवाज़ सुनायी दी, "हेल्लो कौन..?"
रुखसाना: "जी मैं रुखसना बोल रही हूँ..!"
कवीता: "रुखसाना कौन... सॉरी मैंने आपको पहचना नहीं..!"
रुखसाना: "जी सुनील हमारे घर पर किराये पे रहता है...!"
कवीता: "ओह अच्छा-अच्छा... सॉरी मैं भूल गयी थी.... हाँ एक बार सुनील ने बताया था.... जी कहिये कुछ काम था क्या...!"
रुखसाना: "जी क्या आप यहाँ आ सकती हैं..!"
कवीता: "क्यों... क्या हुआ... सब ठीक है ना... सुनील तो ठीक है ना...!"
रुखसाना: "जी सुनील बिल्कुल ठीक है..!"
कवीता: "तो फिर बात क्या है...?"
रुखसाना: "जी बहोत जरूरी बात है... फ़ोन पर नहीं बता सकती... बस आप यही समझ लें कि मेरी बेटी की लाइफ का सवाल है..!"
कवीता: "क्या आपकी बेटी... ओके-ओके मैं कल सुबह-सुबह ही अकाल-तख्त एक्सप्रेस से निकलती हूँ यहाँ से और फिर पटना से लोकल ट्रेन या बस लेकर पर्सों तक पहुँच जाऊँगी...!"
रुखसाना: "कवीता जी... प्लीज़ सुनील को नहीं बताना कि मैंने आपको फ़ोन किया है... और आपको यहाँ बुलाया है..!"
कवीता: "ठीक है तुम चिंता ना करो... मैं पर्सों तक वहाँ पर पहुँच जाऊँगी...!"
फिर रुखसाना ने कवीता को अपना पूरा पता समझाया और फ़ोन रख दिया। उस दिन और अगले दिन भी घर में मातम जैसा माहौल बना रहा। सुनील ने भी दोनों रातें नफ़ीसा के घर पर गुज़ारीं... बस अगले दिन शाम को कपड़े बदलने के लिये आया लेकिन रुखसाना या सानिया से कोई बात नहीं की । रुखसाना ने सानिया को कॉलेज नहीं जाने दिया। रुखसाना कवीता के आने का इंतज़ार कर रही थी और दो दिन बाद शाम को चार बजे के करीब बजे कवीता उनके घर पहुँची। रुखसाना और सानिया ने कविता की मेहमान नवाज़ी की और फिर रुखसाना कवीता को लेकर अपने कमरे में आ गयी।
कवीता: "हाँ रुखसाना... अब कहो क्या बात है..?"
रुखसाना: "कवीता जी दर असल बात ये है कि... आपके बेटे ने मेरी बेटी के साथ..." और ये बोलते-बोलते रुखसाना चुप हो गयी।
कवीता: "तुम सच कह रही हो... और तुम्हें पूरा विश्वास है कि मेरे बेटे ने...!"
रुखसाना: "जी... सानिया को दूसरा महीना चल रहा है..!"
कवीता एक दम से चौंकते हुए बोली, "क्या.... हे भगवान... उस नालायक ने... उसने तो मुझे कहीं मुँह दिखाने लायक नहीं छोड़ा... पर आपकी बेटी भी तो समझदार है ना... उसने ये सब क्यों होने दिया...?"
रुखसाना: "जी मैं नहीं जानती.... पर दोनों ही बच्चे हैं अभी..!"
कवीता: "देखो मैं अभी कुछ नहीं कह सकती... और मेरा बेटा मुझसे कभी झूठ नहीं बोलता... तुम सानिया को यहाँ बुला कर लाओ...!"
रुखसाना ने सानिया को आवाज़ दी तो सानिया कमरे में आ गयी। "तुम मेरे बेटे से प्यार करती हो?" कवीता ने पूछा पर सानिया सहमी सी कभी रुखसाना की तरफ़ देखती तो कभी जमीन की तरफ़। "घबराओ नहीं.... जो सच है बताओ...!"
सानिया हाँ में सिर हिलाते हुए बोली, "जी..!"
कवीता: "और ये बच्चा..?"
सानिया: "जी..!"
कवीता: "हे भगवान... ये आज कल के बच्चे... माँ-बाप के लिये कहीं ना कहीं कोई ना कोई मुसीबत खड़ी कर ही देते हैं आने दो उस नालायक को..!"
अभी वो बात ही कर रहे थे कि बाहर डोर-बेल बजी। "सुनो अगर सुनील होगा तो उसे यहीं बुला लाना और सानिया तुम अपने कमरे में जाओ...!" कवीता की बात सुन कर रुखसाना ने हाँ में सिर हिलाया और बाहर आकर दरवाजा खोला तो देखा सामने सुनील ही खड़ा था। उसके अंदर आने के बाद रुखसाना ने डोर लॉक किया और सुनील के पीछे चलने लगी। जैसे ही सुनील ऊपर जाने लगा तो रुखसाना ने उसे रोक लिया, "तुम्हारी मम्मी आयी हैं... अंदर बेडरूम में बैठी हैं!"
सुनील ने रुखसाना की तरफ़ देखा। उसके चेहरे का रंग उड़ चुका था। वो तेजी से कमरे में गया और रुखसाना भी उसके पीछे रूम में चली गयी। सानिया पहले ही अपने कमरे में जा चुकी थी। सुनील ने जाते ही अपनी मम्मी के पैर छुये, "मम्मी आप यहाँ अचानक से...?"
कवीता: "जब बच्चे अपने आप को इतना बड़ा समझने लगें कि उनको किसी और की परवाह ना रहे तो माँ बाप को ही देखना पड़ता है... क्या इसलिये तुझे पढ़ा लिखा कर बड़ा किया था... इसलिये तुझे अपने से इतनी दूर भेजा था कि तुम बाहर जाकर अपने परिवार का नाम मिट्टी में मिलाओ... सुनील जो कुछ भी रुखसाना ने मुझे बताया है क्या वो सच है...?"
सुनील ने सिर झुका कर बोला, "जी!"
कवीता: "और जो बच्चा सानिया के पेट में है वो तेरा है... उसके साथ तूने गलत किया?"
सुनील: "जी..!"
कवीता: "शादी भी करना चाहता होगा तू अब उससे..?"
सुनील: "जी.. जी नहीं..!"
ये सुनकर कविता उठकर खड़ी हुई और एक ज़ोरदार थप्पड़ सुनील के गाल पर जमाते हुए बोली, "नालायक ये सब करने से पहले नहीं सोचा तूने... किसने हक दिया तुझे किसी की ज़िंदगी को बर्बाद करने का... हाँ बोल अब बुत्त बन कर क्यों खड़ा है..?"
सुनील: "मम्मी मुझसे बहुत बड़ी भूल हो गयी... मुझे माफ़ कर दो भले ही मुझे जो मर्ज़ी सजा दो!"
कवीता: "गल्ती तो तूने की है... और गल्ती स्वीकार भी की है... अगर तेरी बहन होती और अगर सानिया के जगह तेरी बहन के साथ ऐसा होता... तो तुझ पर क्या बीतती... कभी सोचा भी है कि किसी की ज़िंदगी से ऐसे खिलवाड़ करने से पहले?"
फिर कवीता रुखसाना से बोली, "देखो रुखसाना बच्चों ने जो गल्ती करनी थी कर दी... पर अब हमें इनकी गल्ती को सुधाराना है... अगर तुम्हें और तुम्हारे हस्बैंड को स्वीकार हो तो मैं अभी इसके मामा जी को फ़ोन करके बुलाती हूँ... और जल्द से जल्द... इसी हफ़्ते दोनों की शादी करवा देते हैं... और सुनील तुझे भी कोई प्रॉब्लम तो नहीं है..!" कवीता ने बड़े कड़क लहजे में सुनील को कहा।
रुखसाना: "कवीता जी... मुझे क्या ऐतराज़ हो सकता है... बल्कि मैं तो आपका ये एहसान ज़िंदगी भर नहीं भूलुँगी और मेरे हस्बैंड भी राज़ी हो जायेंगे!"
उसके बाद सानिया और सुनील के शादी हो गयी। फ़ारूक़ ने पहले थोड़ा बवाल किया लेकिन उसके पास भी अपनी इज़्ज़त बचाने के लिये कोई और रास्ता नहीं था। शादी के बाद सानिया और सुनील दोनों उसी घर में रुखसाना और फ़ारूक़ के साथ रहते हैं। । सुनील अपनी बीवी सानिया के साथ-साथ अपनी सास रुखसाना की चूत और गाँड का भी पूरा ख्याल रखता है। दर असल रुखसाना और सुनील ने सानिया को समझा-बुझा कर अपने नाजायज़ रिश्ते से वाक़िफ़ करवा दिया और सानिया ने भी पहले-पहले थोड़ी नाराज़गी के बाद अपनी अम्मी को अपनी सौतन बनाना मंज़ूर कर लिया और अब तो तीनों अक्सर ठ्रीसम चुदाई का रात-रात भर मज़ा लेते हैं। रुखसाना की ज़िंदगी अब बेहद खुशगवार है क्योंकि अब उसे कभी ज़िंदगी में पहले की तरह अपनी जिस्मानी ख्वाहिशों का गला घोंट कर जीने के लिये मजबूर नहीं होना पड़ेगा।
समाप्त
दोस्तो ये कहानी कंप्लीट कर दी है मज़े लीजिए
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