vasna story मजबूर (एक औरत की दास्तान)
06-24-2019, 12:21 PM,
#54
RE: vasna story मजबूर (एक औरत की दास्तान)
रुखसाना किसी चुदैल राँड की तरह होती जा रही थी जिसे हर वक़्त अपनी चूत में लौड़ा लेने की मचमचाहट रहने लगी। शराब पी कर साथ में ब्लू फ़िल्में देखते हुए इस दौरान रुखसाना और नज़ीला के बीच इस क़दर नज़दीकियाँ बढ़ गयी कि दोनों लेस्बियन सैक्स करने लगी। दोनों ब्लू-फ़िल्में देखते हुए घंटों आपस में लिपट कर एक दूसरे के जिस्म सहलाती... चूत और गाँड चाटती। पर लंड तो लंड ही होता है और नज़ीला भी सुनील से चुदवाने के मौके की ताक में थी। एक दिन जब नज़ीला के घर रुखसाना और नज़ीला नंगी होकर लेस्बियन चुदाई का मज़ा ले रही थीं तो नज़ीला ने रुखसाना को बताया कि उसका शौहर अगले दिन टूर पर जा रहा है एक रात के लिये। "यार... रुखसाना कल रात मैं यहाँ अकेली रहुँगी... यार अच्छा मौका है... तू सुनील को कल रात यहाँ बुला ले... हम दोनों खूब मस्ती करेंगे...!" नज़ीला की बात सुन कर रुखसाना एक दम चौंकते हुए बोली, "क्या क्या कहा आपने भाभी...?"

नज़ीला बोली, "वही जो तूने सुना... देख यार मैं तेरी इतनी मदद करती हूँ ताकि तू उसके साथ मौज कर सके... तो बदले में मुझे भी तो कुछ मिलना चाहिये... और वैसे भी तेरा कौन सा उसके साथ कोई रिश्ता है... वो आज यहाँ तो कल कहीं और चला जायेगा...! रुखसना नज़ीला की बात सुन कर सोच मैं पड़ गयी कि क्या करूँ... इतने दिनों बाद ऐसा मौका हाथ आया था... रुखसाना उसे हाथ से जाने नहीं देना चाहती थी, "ठीक है भाभी मैं आपको आज शाम तक सोच कर बता दूँगी कि क्या करना है!" नज़ीला बोली कि, "चल सोच ले... रोज़-रोज़ ऐसे मौके नहीं आयेंगे!" उसके बाद रुखसाना अपने घर आ गयी। दिल और दिमाग दोनों में जंग चल रही थी। रुखसाना सोचने लगी कि नज़ीला भाभी कह तो ठीक रही हैं... जवान लड़का है.... क्या भरोसा वो कल कहाँ हो... कल को अगर उसका तबादला हो गया तो... ये दिन बार-बार नहीं आयेंगे... इन दिनों को जी भर कर के जी लेना चाहिये! शाम को जब सुनील वापस आया तो रुखसाना ने उसे सारी बात बतायी। रुखसाना के सामने सुनील शरीफ़ बनते हुए बोला कि वो ये काम किसी और के साथ नहीं करेगा पर रुखसाना के एक दो बार कहने पर ही वो मान गया। रुकसाना ने नज़ीला को फ़ोन करके खुशखबरी दे दी।

फ़ारूक ने उसी रात को रुखसाना को बताया कि उसके मामा की मौत हो गयी है और अगले दिन सुबह उन दोनों को उनके गाँव जाना है और शाम को चार-पाँच बजे तक वापस आ जायेंगे। एक पल के लिये रुखसाना को नज़ीला के साथ बनाया प्रोग्राम बेकार होता नज़र आया पर ये सोच कर दिल को तसल्ली मिली कि शाम को तो वो वापस आ ही जायेंगे। अब प्लैन के मुताबिक सुनील को सानिया और फ़ारूक के सामने नाइट-ड्यूटी का बहाना बनाना था और नज़ीला को रुखसाना को अपने घर सोने के लिये फ़ारूक को कहना था। अगले दिन सुबह की ट्रेन से फ़ारूख और रुखसाना उसके मामा के गाँव के लिये निकल गये। सुनील भी उनके साथ ही घर से निकल गया था स्टेशन जाने के लिये।

रुखसाना और फ़ारूक करीब ग्यारह बजे उसके मामा के घर पहुँचे पर उन्हें वहाँ देर हो गयी और और उनकी आखिरी ट्रेन छूट गयी। रुखसाना ने नज़ीला के साथ जो भी प्लैन बनाया था वो सब उसे मिट्टी में मिलता हुआ नज़र आ रहा था। उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वो क्या करे। उधर सानिया घर पर अकेली थी। उन्होंने सानिया को कभी रात भर के लिये अकेला नहीं छोड़ा था। रुखसाना को उसकी चिंता सताने लगी थी। उसने फ़ारूक से कहा कि वो सानिया को घर पर फ़ोन करके उसे बता दें कि वो आज रात नहीं आ पायेंगे और कल सुबह आयेंगे और इसलिये वो नज़ीला भाभी के यहाँ सो जाये। रुखसाना के ज़हन में अजीब सा डर था... सुनील को लेकर... कहीं वो सानिया के साथ कुछ गलत ना कर दे। रुखसाना इस बात से अंजान थी कि सुनील और सानिया इतने करीब आ चुके हैं कि वो चुदाई भी कर चुके हैं।

उसके बाद रुखसाना ने नज़ीला को भी फ़ोन करके सारी बात बता दी और उसे कहा कि सानिया को आज रात अपने घर सुला ले और सुनील के आने पर उसे घर की चाबी देदे। नज़ीला ने उसे बेफ़िक्र रहने के लिये कहा तो रुखसा ना को राहत महसूस हुई कि चलो नज़ीला की वजह से उसे सानिया की फ़िक्र नहीं करनी पड़ेगी। पर जो वो सोच रही थी शायद उससे भी बदतर होने वाला था।

शाम के पाँच बजे के करीब नज़ीला जब सानिया को अपने घर ले आने के लिये अपने घर से बाहर निकली ही थी कि उसे बाइक पर सुनील आता हुआ नज़र आया। नज़ीला ने देखा कि सुनील ने बाइक गेट के अंदर कर दी और फिर उसने घंटी बजायी तो सानिया ने दरवाजा खोला और सुनील अंदर चला गया। अब नज़ीला तो थी है ऐसी जो हर बात में कुछ ना कुछ उल्टा जरूर सोचती थी। वो तेजी से चलते हुए रुकसाना के घर आयी और गेट खोलकर जैसे ही वो डोर-बेल बजाने वाली थी कि उसे हॉल की खिड़की से कुछ आवाज़ें सुनायी दीं। उसने देखा कि खिड़की खुली हुई थी लेकिन उसपे पर्दा पड़ा हुआ था। नज़ीला थोड़ा सा आगे होकर पर्दे के किनारे से अंदर झाँकने लगी। अंदर का नज़ारा देख कर नज़ीला के होंठों पर एक कमीनी मुस्कान फ़ैल गयी। अंदर सुनील ने सानिया को हॉल में ही अपनी बाहों में भरा हुआ था। सानिया और सुनील एक दूसरे के होंठों को चूस रहे थे। सानिया ने हाई-हील के सैंडल पहने होन के बावजूद अपनी ऐड़ियाँ और ज्यादा उठायी हुई थीं और सुनील से किसी बेल की तरह लिपटी हुई अपने होंठ चुसवा रही थी। सुनील का एक हाथ सानिया की सलवार के अंदर था और वो उसकी चूत को मसल रहा था।

सानिया: "ओहहहह सुनील... ये तुमने मुझे क्या कर दिया है!"

सुनील: "ऊँहह सानिया मेरी जान... बहुत दिनों बाद आज तुम मेरे हाथ आयी हो..!"

सानिया: "लेकिन सुनील... नज़ीला आँटी आने वाली होंगी.. अम्मी ने नज़ीला आँटी को फ़ोन करके कहा है कि वो मुझे अपने साथ अपने घर सुला लें!"

सुनील: "ओह ये क्या बात है... साला आज इतना अच्छा मौका था..!"

सानिया: "अब मैं क्या कर सकती हूँ... मैं तो खुद तुमसे मिलने के लिये तड़प रही थी...!"

तभी नज़ीला ने डोर-बेल बजा दी तो सुनील और सानिया दोनों हड़बड़ा गये। सुनील जल्दी से ऊपर चला गया। सानिया ने खुद को ठीक किया और दरवाजा खोला तो सामने नज़ीला खड़ी थी, "सानिया क्या कर रही थी?"

सानिया: "कुछ नहीं आँटी... पढ़ रही थी.!"

नज़ीला: "अच्छा वो लड़का जो ऊपर किराये पे रहता है आ गया क्या?"

सानिया: "हाँ आँटी!"

नज़ीला: कहाँ है वो?

सानिया: "ऊपर है... अपने कमरे में!"

नज़ीला: "अच्छा एक काम कर तू जल्दी से उसके लिये चाय बना दे... मैं उसे चाय दे आती हूँ... और उसे बता दूँगी कि आज तेरी अम्मी और अब्बू नहीं आयेंगे और तू मेरे साथ मेरे घर पर सोने जा रही है... खाना वो बाहर होटल में खा लेगा..!"

सानिया: "ठीक है आँटी!"

उसके बाद सानिया ने चाय बनायी और नज़ीला सुनील को चाय देने ऊपर चली गयी। सुनील अपने बेड पर बैठा कुछ सोच रहा था। नज़ीला ने उसकी तरफ़ देख कर मुस्कुराते हुए कहा, "चाय रखी है तुम्हारे लिये... पी लेना... वो आज रुखसाना और फ़ारूक भाई नहीं आ पायेंगे... इसलिये सानिया को मैं अपने साथ अपने घर ले जा रही हूँ... किसी चीज़ के जरूरत हो तो बे-तकल्लुफ़ बता दो...!"

सुनील: "जी कोई बात नहीं मैं मैनेज कर लुँगा..!"

नज़ीला पलट कर जाने लगी लेकिन फिर वो रुकी और सुनील की तरफ़ पलटी। "वैसे सुनील... रुखसाना ने जो आज प्लैन बनाया था... वो तो हाथ से गया... पर अगर तुम चाहो तो रात को नौ बजे आ सकते हो... मैं नौ बजे तक इंतज़ार करुँगी...!" नज़ीला ने कातिल मुस्कान के साथ सुनील की तरफ़ देखते हुए कहा।

सुनील: "पर सानिया... वो तो आपके घर ही जा रही है!"

नज़ीला: "तुम उसकी फ़िक्र ना करो... तुम ठीक नौ बजे मेरे घर आ जाना... गेट के बिल्कुल सामने मेरा पार्लर है... मैं उसका दरवाजा अंदर से खुला छोड़ दूँगी... पार्लर में आने के बाद अंदर से दरवाजा लॉक कर लेना और वहीं बैठे रहना... जब सानिया सो जायेगी तो मैं वहाँ आ जाऊँगी... और हाँ... तुम्हें कुछ लाने की जरूरत नहीं.... शराब और शबाब का सारा इंतज़ाम मैंने कर रखा है!"

उसके बाद नज़ीला सानिया को साथ लेकर अपने घर चली गयी। सानिया और नज़ीला और सलील रूम में बैठे थे। शाम के करीब साढ़े-छः बज चुके थे। "सानिया चल तेरा फेशियल और पेडिक्योर कर देती हूँ...!" नज़ीला ने सानिया को कहा। फिर सानिया और नज़ीला पार्लर में आ गये। सानिया ने अपनी सैंडल उतार दी और नज़ीला उसका पेडिक्योर करने लगी। "सानिया एक बात पूछूँ...?" नज़ीला ने सानिया की तरफ़ देखते हुए कहा।

सानिया: "हाँ आँटी.. पूछें!"

नज़ीला: "तुझे सुनील कैसा लगता है...!"

नज़ीला की बात सुन कर घबराते हुए सानिया बोली, "पर आँटी आप ये क्यों पूछ रही हो?"

नज़ीला: "चल अब नाटक करने से क्या फ़ायदा... मैं तुझे बता ही देती हूँ... जब मैं तेरे घर आयी थी... तब मैंने खिड़की सब देख लिया था... तू कैसे उससे अपने होंठ चुसवा रही थी... और वो तेरी फुद्दी को सलवार के अंदर हाथ डाल कर सहला रहा था...!"
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