vasna story मजबूर (एक औरत की दास्तान)
06-24-2019, 12:20 PM,
#52
RE: vasna story मजबूर (एक औरत की दास्तान)
"आफ़्ताब मेरे सिसकने की आवाज़ सुन कर एक दम चौंक गया। उसने मेरे निप्पल को मुँह से बाहर निकला जो उसके चूसने से एक दम तन कर फूला हुआ था... और मेरी हवस से भरी आँखों में देखते हुए बोला कि खाला क्या हुआ। मैं उसकी बात सुन कर एक पल के लिये होश में आयी कि मैं ये क्या कर रही हूँ अपने जिस्म की आग को ठंडा करने के लिये मैं अपनी ही कच्ची उम्र के भांजे के साथ ये काम कर रही हूँ... लेकिन मैं हवस की आग में अंधी हो चुकी थी कि मैंने उसका चेहरा अपने चूँची पे दबाते हुए उसे चूसते रहने को कहा। उसने फिर से मेरे निप्पल को मुँह में भर लिया और इस बार उसने मेरी चूंची के काफ़ी हिस्से को मुँह में भर लिया और मेरी चूंची को चूसते हुए बाहर की तरफ़ खींचने लगा। मेरा पूरा जिस्म थरथरा गया और मुँह से एक बार फिर से आआआहहह निकल गयी। इस बार उसने फिर से चूंची को मुँह से बाहर निकला और बोला कि बोलो ना खाला क्या हुआ तो मैंने काँपती हुई आवाज़ में सिसकते हुए उसे जवाब दिया कि कुछ नहीं आफ़्ताब... जल्दी कर मेरा बहुत बुरा हाल है! अचानक से मुझे उसका लंड शॉर्ट्स के ऊपर से अपनी नाफ़ में चुभता हुआ महसूस हुआ। तब तक वो फिर से मेरी चूंची को मुँह में भर कर चूसना शुरू कर चुका था। मैं इस क़दर मदहोश हो गये कि मुझे कुछ होश ना था। मैंने अपनी टाँगों को फैलाते हुए अपनी सलवार और पैंटी रानों पे खिसका कर आफ़्ताब का एक हाथ पकड़ के नीचे लेजाकर अपनी चूत पर रख दिया जो एक दम भीगी हुई थी। आफ़्ताब मेरी समझ से कहीं ज्यादा तेज था... जैसे ही मैंने उसका हाथ अपनी चूत के ऊपर रखा तो उसने मेरी चूत के फ़ाँकों के बीच अपनी उंगलियों को घुमाते हुए रगड़ना शुरू कर दिया। मेरा पूरा जिस्म एक दम से ऐंठ गया। फिर उसने धीरे-धीरे से अपनी एक उंगली मेरी चूत में घुसा दी और अंदर-बाहर करने लगा। मैं एक दम से मदहोश होती चली गयी। वो मेरी चूत में उंगली अंदर-बाहर करते हुए मेरे चूंची को चूस रहा था और वो धीरे-धीरे मेरे ऊपर आ चुका था।"

"तभी मेरा ध्यान सलील की तरफ़ गया कि वो भी मेरी बगल में सो रहा है। मैंने आफ़्ताब के सिर को दोनों हाथों से पकड़ कर पीछे की तरफ़ ढकेला तो मेरी चूंची उसके मुँह से बाहर आ गयी। मैंने आफ़्ताब को सलील की मौजूदगी की याद दिलायी तो आफ़्ताब ने सलील की तरफ़ देखा जो गहरी नींद में था और फिर मेरी तरफ़ देखने लगा। उसकी उंगली अभी भी मेरी चूत में थी। मैं नहीं चाहती थी कि सलील उठ जाये और हमें इस हालत में देख ले। इसलिये मैंने आफ़्ताब को धीरे से कहा कि वो दूसरे बेडरूम में जाये जहाँ वो रोज़ रात को सोता है और वहाँ कूलर ऑन कर ले... मैं अभी थोड़ी देर में आती हूँ...!

मेरी बात सुन कर आफ़्ताब खड़ा हुआ और अपने बेडरूम की तरफ़ चला गया। मैं धीरे से बेड से नीचे उतरी और अपनी सलवार का नाड़ा बाँधा और अपनी कमीज़ उतार दी । सिर्फ़ सलवार और खुली हुई ब्रा पहने मैं हाइ हील वाली चप्पल में गाँड मटकाती हुई अपने बेडरूम से निकल कर आफ़्ताब के बेडरूम की तरफ़ चली गयी। जैसे ही मैं दूसरे बेडरूम में पहुँची तो देखा के आफ़्ताब ने कूलर चालू कर दिया था और बेड पर पैर लटकाये मेरा इंतज़ार कर रहा था। मैंने अंदर आकर दरवाजा बंद किया तो इतने में आफ़्ताब खड़ा होकर मुझसे लिपट गया और पीछे दीवार के साथ सटा दिया। उसने मेरी ब्रा के बाहर झाँक रही चूचियों को हाथों में पकड़ कर मसलना शुरू कर दिया और फिर मेरी एक चूंची को मुँह में भर कर चूसने लगा। मैं मस्ती में सिसकने लगी कि ओहहहह आफ़्ताब हाँआआआ चूऊऊस ले अपनी खाला के मम्मों को... चूस ले मेरे बच्चे.... मैंने अपनी सलवार का नाड़ा खोल दिया और सलवार मेरे पैरों में गिर पड़ी। मैं आफ़्ताब का हाथ पकड़ कर फिर से अपनी चूत पर रखते हुए बोली कि... ओहहह आफ़्ताब देख ना मेरा कितना बुरा हाल है! आफ़्ताब ने मेरी चूत को मसलते हुए अपने मुँह से चूंची को बाहर निकाला और अपना निक्कर नीचे घुटनों तक सरका दिया और फिर मेरा हाथ पकड़ कर अपने तने हुए छ इंच के लंड पर रखते हुए बोला कि... खाला देखो ना मेरा भी बुरा हाल है...!"

"जैसे ही मेरे हाथ में जवान तना हुआ लंड आया तो मैं सब कुछ भूल गयी और फिर मैं नीचे झुकते हुए घुटनों के बल बैठी और आफ़्ताब के लंड को हाथ से पकड़ कर हिलाने लगी। उसके लंड का टोपा लाल होकर दहक रहा था। फिर मैंने आफ़्ताब का हाथ पकड़ कर उसे खींचते हुए पीछे बिस्तर पर लेटना शुरू कर दिया और आफ़्ताब को अपने ऊपर गिरा लिया। मैंने अपनी टाँगों को नीचे से पूरा फैला लिया और आफ़्ताब अब मेरी टाँगों के बीच में था। मैंने उसका लंड पकड़ कर अपनी दहकती हुई चूत के छेद पर लगा दिया और मस्ती में सिसकते हुए बोली कि ओहहहह आफ़्ताब अपनी खाला की फुद्दी मार कर इसकी आग को ठंडा कर दे मेरे बच्चे... और फिर उसका लंड अपनी चूत पर सटाये हुए ही अपनी टाँगों को उसकी कमर पर लपेट लिया। आफ़्ताब ने मेरे कहने पर धीरे-धीरे अपना लंड मेरी चूत के छेद पर दबाना शुरू कर दिया। बरसों की प्यासी चूत जो एक जवान और तने हुए लंड के लिये तरस रही थी... आफ़्ताब के तने हुए लंड की गरमी को महसूस करके कुलबुलाने लगी। मैंने अपनी गाँड को पूरी ताकत से ऊपर की ओर उछाला तो आफ़्ताब का लंड मेरी चूत की गहराइयों में उतरता चला गया। फिर तो आफ़्ताब ने भी बेकरारी में पुरजोश अपनी गाँड उठा-उठा कर मेरी चूत के अंदर अपने लंड को पेलना शुरू कर दिया। वो किसी जवान मर्द की तरह मेरे मम्मों को मसलते हुए अपने लंड को मेरे चूत के अंदर बाहर कर रहा था और फिर उसने मेरे होंठों पर अपने होंठ रख दिये। चूत की दीवारों पर उसके लंड की रगड़ मदहोश कर देने वाली थी और मस्ती में मुझे कच्ची उम्र के अपने भांजे से अपने होंठ चुसवाने में ज़रा भी शरम नहीं आयी। बिल्कुल बेहयाई से मैंने उसका साथ देना शुरू कर दिया और अपनी गाँड ऊपर उछाल-उछाल कर उसके लंड को अपनी चूत की गहराइयों में लेने लगी। उसके पाँच मिनट के धक्कों ने ही मेरी चूत को पानी-पानी कर दिया... मैं झड़ कर एक दम बेहाल हो गयी थी... थोड़ी देर बाद उसने भी अपना सारा पानी मेरी चूत के अंदर उड़ेल दिया... रुखसाना अब मैंने तुझे सारी बात तफ़सील से बता दी है... प्लीज़ ये सब किसी से नहीं कहना और हाँ तुझे ज़िंदगी में कभी मेरी जरूरत पड़े तो मैं तेरे साथ हूँ... मुझसे एक बार कह कर देखना... मैं तेरे लिये कुछ भी कर सकती हूँ...!"

उसके बाद नज़ीला रुखसाना को अपनी चुदाई की दस्तान सुना कर चली तो गयी लेकिन जितनी तफ़सील और खुल्लेपन से उसने अपनी दास्तान सुनायी थी उससे नज़ीला रुखसाना की चूत में आग और ज्यादा भड़का गयी थी। पिछले कुछ महीनों में जिस रफ़्तार से उसकी ज़िंदगी में फ़ेरबदल हो रहे थे वो रुखसाना ने अपनी पूरी ज़िंदगी में कभी नहीं देखे थे। सुनील का उसके घर किरायेदार के तौर पे आना और फिर उसे अज़रा के साथ सैक्स करते देखना... और फिर खुद उससे नाजायज़ रिश्ता बनाना और उसके लंड की लत्त लगा कर उसकी गुलाम बन कर रह जाना और फिर नज़ीला का ये किस्सा। रुखसाना की ज़िंदगी में इतना सब कुछ चंद महीनों के अंदर हो चुका था और यही सब सोचती हुई वो ये अंदाज़ा लगाने की कोशिश कर रही थी कि आगे आने वाले दिनों में पता नहीं और क्या-क्या होगा...!

उस दिन के दो दिन बाद की बात है। सानिया सुबह कॉलेज चली गयी थी और फ़ारूक भी उस दिन घर से थोड़ा जल्दी निकल चुका था और सुनील भी काम पर जाने के लिये तैयार था। जैसे ही वो नीचे आया तो उसने रुकसाना से फ़ारूक के बारे में पूछा तो रुखसाना ने उसे बताया कि वो थोड़ी देर पहले ही निकल गया है। जैसे ही सुनील को पता चला कि फ़ारूक और सानिया घर पर नहीं है तो उसने हाल में ही उसे बाहों में भर लिया और उसके होंठों को चूसने लगा और साथ-साथ उसके चूतड़ों को सलवार के ऊपर से मसलने लगा। रुख्साना तो सुनील की बाहों में जाते ही पिघलने लगी और मस्ती में सिसकते हुए बोली, "ओहहह सुनील... मुझे कहीं भगा कर ले चल.... मुझे अब तुझसे एक पल भी दूर नहीं रहा जाता..!" सुनील ने उसकी आँखों में देखा और मुस्कुराते हुए बोला, "मेरी भाभी जान... चाहता तो मैं भी यही हूँ... पर मैं नहीं चाहता कि मेरे वजह से आपका घर बर्बाद हो... थोड़ा सब्र रखो... हमें जल्द ही मौका मिलेगा...!" ये कहते हुए उसने एक बार फिर से रुखसाना के होंठों को चूसते हुए उसकी चूत को सलवार के ऊपर से मसलने लगा। रुखसाना भी सुनील की पैंट के ऊपर से अपने दिलबर यानि सुनील के लंड को मसल रही थी। पाँच-छः मिनट दोनों सब भूल कर एक दूसरे के होंठ चूसते हुए ये सब करते रहे और फिर सुनील काम पे चला गया। रुखसाना ने दरवाजा बंद किया और घर के काम निपटाने लगी।

दो दिन से नज़ीला से उसकी बात नहीं हुई थी और उस दिन आई-ब्राऊ और फेशियल करवाना भी रह गया था... इसलिये रुखसाना अपने काम निपटा कर नज़ीला के घर जाने के लिये निकली। आज भी नज़ीला गेट खोल कर अंदर गयी तो मेन-डोर तो बंद था लेकिन ब्यूटी पार्लर का दरवाजा खुला हुआ था। वो पार्लर के अंदर गयी तो पार्लर के पीछे से घर के अंदर जाने का दरवाजा आज भी खुला हुआ था। रुखसाना ने इस दफ़ा वो दरवाजा खटखटाना ही ठीक समझा। रुख्साना ने दरवाजा नॉक किया तो नज़ीला ने आकर जब रुखसाना को पार्लर में खड़े देखा तो वो बोली, "अरे रुखसाना... तू वहाँ क्यों खड़ी है... अंदर आ जा ना!" नज़ीला घर के अंदर आ गयी तो नज़ीला ने उसे हाल में सोफ़े पर बिठाते हुआ पूछा, "रुखसाना आज क्या बात है... आज नॉक क्यों कर रही थी... सीधी अंदर आ जाती... तेरा ही घर है!" रुखसाना ने मुस्कुराते हुए नज़ीला की ओर देखते हुए कहा, "भाभी वो मैंने इस लिये दरवाजे पे नॉक किया था कि क्या मलूम आप किसी और ही काम में मसरूफ़ ना हों!"

नज़ीला भी उसकी बात सुन कर मुस्कुराने लगी और उसके पास आकर बैठते हुए बोली, "रुखसाना... आफ़्ताब तो उसी दिन चला गया था... मैं आज घर पर अकेली हूँ... वैसे तूने सही किया कि दरवाजे पे नॉक कर दिया... हमें दूसरों के घर में जाने से पहले डोर पे नॉक कर ही लेना चाहिये... पता नहीं अंदर क्या देखने को मिल जाये... और हमें भी ऐसे काम डोर बंद करके ही करने चाहिये... पर शायद तू आज हाल का दरवाजा बंद करना भूल गयी थी..!" रुखसाना थोड़ा सा हैरान होते हुए बोली, "क्यों क्या हुआ नजिला भाभी...?"

नज़ीला बोली, "अब इसमें मेरी कोई गल्ती नहीं है... देख मैं तेरे घर आयी थी सुबह... तब तू उस लड़के के आगोश में लिपटी हुई उससे अपनी गाँड मसलवा रही थी... तू तो बड़ी तेज निकाली रुखसाना... घर में ही इंतज़ाम कर लिया है!" नज़ीला की बात सुन कर रुखसाना का केलजा मुँह को आ गया। वो फटी आँखों से नज़ीला के चेहरे को देखने लगी जिसपे एक अजीब सी मुस्कान छायी हुई थी। "अरे रुखसाना घबराने की कोई बात नहीं है... अगर मुझे तेरे राज़ का पता चल गया तो क्या.. तुझे भी तो मेरे बारे में सब मालूम है... देख रुखसाना मैं सब जानती हूँ कि तूने ज़िंदगी में कभी खुशी नहीं देखी... तुझे अपने शौहर के साथ सैक्स लाइफ़ का लुत्फ़ शायद कभी नसीब नहीं हुआ और तुझे अपनी ज़िंदगी जीने का पूरा हक़ है... तू घबरा नहीं... हम दोनों एक दूसरे को कितने सालों से जानती हैं... हम दोनों ने एक दूसरे का अच्छे-बुरे वक़्त में साथ दिया है... और मैं यकीन से कहती हूँ कि हम दोनों के ये राज हम दोनों के बीच में ही रहेंगे... पर ये बाता कि तूने उस हैंडसम लड़के को पटाया कैसे..!"

रुखसाना: "अब मैं आपको कैसे बताऊँ भाभी... बस ऐसे ही एक दिन अचानक से सब कुछ हो गया!"

नज़ीला: "अरे बता ना कैसे हुआ... जैसे मैंने तुझे अपने और आफ़्ताब के बारे में बताया था... देख मैंने अपनी कोई बात नहीं छुपायी तुझसे... अब तू भी मुझे सब बता दे...!" फिर नज़ीला ने तब तक रुखसाना की जान नहीं छोड़ी जब तक रुखसाना ने उसे सब कुछ तफ़सील में नहीं बता दिया। रुखसाना ने भी काफ़ी तफ़सील से अपनी रंग रलियों की हर एक बात नज़िला को बतायी। रुखसाना की दास्तान सुनकर नज़ीला की हवस भी भड़क गयी। उसे रुखसाना की किस्मत पे रश्क़ होने लगा। "वाह रुखसाना... तू तो बड़ी किस्मत वाली है... वो लड़का अपनी ज़ुबान से तेरे पैर और सैंडल तक चाटता है... माशाल्लाह... और तू शराब भी पीती है उसके साथ...!" नज़ीला ने ताज्जुब जताते हुए कहा।

"पर नज़ीला भाभी... फ़ारूक से ज्यादा सानिया खासतौर पे हमेशा उस वक़्त घर पे होती है जब सुनील घर पर होता है... भाभी दो-दो तीन-तीन दिन निकल जाते हैं और मैं तड़पती रह जाती हूँ... समझ में नहीं आ रहा क्या करूँ!"

नज़ीला: "तो मैं किस रोज़ काम आऊँगी... तू ये बता कि वो घर वापस कब आता है...!"
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