RE: Desi Porn Kahani संगसार
इधर वह गहरी नींद में डूब गया. उधर शहला और सादिया नाकाम लौटीं. अपने प्रभाव, जाना-पहान और रिश्वत की पेश्कश के बावजूद वे इस हकीकत से बुरी तह टकाई कि एक ही समाज में दो मापदंड हैं. मर्द के लिए क्षमा और औरत के लिए कड़ा दंडा सबके सिर झुक गए. आसिया कोतवाली से जेल पहुंचा दी गई थी. मामला अब संगीन हो चुका था.
ये सारे लोग समाज के उस वर्ग से हैं जो पढ़ा-लाइ प्रगतिशील कहलाता है. इनके सामने आज इतने गूढ़ सवाल आ खड़े हुए हैं कि उनसे बचकर भाग नहीं सकते हैं. ये डॉक्टर, इंजीनियर, वकील, लेखक, अध्यापक, पत्रकार अपने पेशे के बाद का वक्त समाज को गलत सियासत और धर्म के शिकंजे से निकालने में खर्च करते हैं ताकि आनेवाले दिनों में इनसान सेहतमंत जिंदगी जी सके.
बुद्धिजीवियों की चीखा-पुकार से सोये लोग जागने लगे. उनके सामने प्रश्न था कि यह कैसे मुमकिन है कि मर्द औरत के आकर्षण को नजरांदाज कर सारे दिन आमने-सामने बैठे सिर्र्फ कुअन की तलवत किया करें? इस रस्साकशी में संगसार की तारीख आगे बढ़ गई संसद में, समाचारा-पत्रों में, धार्मिक स्थानों में जमकर बहस शुरू हो गई मोलवियों के बीच गरम और नरम दिल बन गए. गम दल का पलड़ा भारी था क्योंकि सत्ता उनके हाथ में थी. नरम दलवालों के साथ पढ़ा-लिखा वर्ग और जनता का एक बहुत बड़ा हिस्सा था, इसलिए गरम दलवालों की दाल नहीं गल पा रही थी. लोगों में अजीब तनतनाहट थी. जैसे वे पूछना चाह रहे हों कि वे आगे जा रहे हैं या पीछे लौट रहे हैं?
जेल की कोठरी में बैठी आसिया दिन गिनना भूल गई है. शहतूत के ढेरों पेड़ उसकी कोठरी के पस हैं. इसलिए अकसर जेल की कर्मचारी औरतें और लड़कियाँ वहीं शहतूत बीनने पहुंच जाती हैं कभी-कभी कोई लड़की हाथ सलाखों में डाल उसकी तरफ शहतूत से भरी मुट्ठी बढ़ाती है. कभीआसिया शहतूत का एक दाना मुंह में डाल लेती है, कभी इंकार कर देती है.
"हरजाई है?" लड़कियाँ आपस में फुसफुसातीं.
"नहीं, फाहिशा है!" शंका भरी अधेड़ आवाजें टकातीं.
"नहीं, वह भी नहीं, यह तो आयश है." बूढ़ी औरतें फैसला सुनातीं.
"आयशा, आयश, आयशा???"
पेड़ों पर चहचहाती चिड़िया उड़ जाती है. पके शहतूत डालों से झर जाते हैं और सन्नाटे में बैठी वह दिला-ही-दिल में उन हैरतजदा आवाजों को अपने से दूर जाता सुनती है.
"क्या मैं आसिया नहीं आयशा हूं? अगर सचमुच आयशा होती तो मेरा अंजाम यह होता?"
आसमान का रंग लाल हो जात, आसिया की आँखें अंगारे बन जातीं और रात की सियाही फैलते ही अंगारे धीरे-धीरे करके राख में बदल जाते.
सारी दौड़ा-धूप के बावजूद कोर्ट ने अपना फैसला सुना दिया. मां और आसमा की तरफ से रहम की अपील हुई सासा-ससुर ने इस सजा को आरोप मानकर उसके खिलाफ अपील दायर की. नरम दिलवाले मौलवियों ने शरीयत की सारी किताबें चाट डालीं. सबूत पेश किए गए कि संगसार का जिक्र कहीं नहीं है मगर कोर्ट ने अपना जल्दबाजी में लिया फैसला वापस नहीं लिया. उन्हें डर था कि इस तरह उनके हर कदम पर रोक लग जाएगी और हरकत पर सवाल उठेंगे. उनकी सत्ता की बुनियाद जिस खौफ और दशहत पर टिकी हएअइ वह खत्म हो जाएगी. इसलिए बिना किसी झिझक के एलान हुआ कि मौका-ए-वारदात पर आसिया के पकडे जाने की वजह से उसे कल संसार कर दिया जाएगा. उसका साथी फरार है और लाख कोशिशों के बावजूद भी अब तक पकड़ा नहीं जा सका है. मगर उसनकी तलाश जारी है.
कागज तैयार थे. देर करने की गुंजाइश नहीं थी. वरना बगावत अपने डैने फैला लेती. इसलिए उसी रोज, जब दिन शाम से गले मिलने के लिए आतुर था, कब्र में पैर लटकाए एक बुजुर्ग कोर्ट में आखिरी खानापूरी के लिए जेल पहुंचे.
"अपना गुनाह कबूल करो." काले जूते एकाएक आसिया के पास आकर ठहर गए और भारी आवाज की चोट ने खामोशी तोडत्री.
आसैय ने चौंककर नजरें उठाई और लरजती-सी उठ खड़ी हुई. सामने खड़े बुजुर्ग ने अपनी सफेद दाढ़ी पर हाथ फेरा और दाहिने हाथ में पकड़ी तस्वीह घुमाई उनकी आँखों में आश्चर्या-भरा कुतुहल कौंधा, जैसे वे अपने को यकीन दिलाना चाह रहे हों कि सामने खड़ी कुंवारी मरियम मां जैसी पाका-मासूम चेहरेवाली यह कमसिन लड़की भी गुनाहगार हो सकती है जिसको खुदा ने सब कुछ दिया है?
"तुम्हें शैतान ने बहकाया है, और तुमने खुदा का रास्ता छोड़कर शैतान के कामों में हाथ बंटाया, खुदा का कहर तुम पर है, बेहतर है कि तुम खुद गुनाह का एतराफ कर लो."नसीहत में डूबी उनकी आवाज उभरी और बुजुर्गों ने आँखें बंद कर लीं.
आसिया के माथे और होठों के उपर पसीने की बूंदें छलकीं और फिर वह पूरी की पूरी पसीने में नहा गई बचपन का खौफ उसके सामने खड़ा था, मगर उसकी आँखें अब भी बुजुर्ग के चेहरे को ताक रही थी, जैसे उनकी कही बातों का सिरा-पैर उसकी समझ में न आ रहा हो.
आसिया के मासूम चेहरे पर फैली भोली आँखों को बुजुर्ग ने एक बार नजर भरकर देखा, मगर जल्दी ही नजरें हटा लीं. यह वजूद आखिर किस जज्बे से सरशार है? उनके अंदर से सवाल उभरा, मगर अपनी कही बात का जवाब न मिलने को वे अपनी तौहीन समझ ज्यादा देर ठहर न सके और मुड़ गए. साथ आए लोग भी लौट गए. उनका फर्ज पूरा हो गया.
आसिया घुटनों पर सिर रखकर बैठ गई जैसे सिजदे में माथा टेका हो. अगर यह गुनाह था तो फिर उपरवाले ने इस बदन में यह प्यास भरी क्यों? शाम को धुंधलका बड़े मैदान में दौड़ने लगा, शहतूत के पेड़ों ने अपनी डालियाँ झुका दीं और आसिया के चारों तरफ रात पसरक बैठ गई
बंद आँखों के सामने उसका चेहरा उभरा, आसिया के पपड़ी पड़े होठों पर मुसकान फैल गई फिर आसमा की आँसू-भरी आँखें, मां का छाती पीटते हुए बैन करना, सासा-ससुर का बेकरारी से रोना, अफ़ज़ल का हैरत से उसको ताकना, बचपन, जवानी - सारी जिदंगी रील की तरह खुलकर सामने आ खड़ी हुई आँखों में कुछ गरमा-गरम बहकर घुटनों के कपड़ों में जज्ब हुआ.
पौ फट गई कोठरी के बाहर शहतूत की नंगी डालियाँ हवा में लहराई और आसिया ने अपनी आँखें उठाक उस सवाल पूछनेवाले को ताज्जुब से देखा. पतझड़ की हवा सूखे पत्तों को उड़ाती गुजर गई
"कोई आखरी ख्वाहिशा"?
सुनकर हँस पड़ी आसिया और हँसती ही चली गई जब जीना चाहती थी तब सबने तन पर सौ-सौ पहरे लगाए, किसी ने पूछा कि औरत तेरी ख्वाहिश क्या है? और आज जब मौत सिरहाने खड़ी है तो उससे पूछा जा रहा है कि बता तेरी आखिरी तमन्ना क्या है?
"आखिरी इच्छा, किसी को देखना, मिलना, कुछ कहना, जो चाहो बिना झिण्झक कहो." सवाल फिर दोहराया गया.
"हाँ." एकाएक हँसते-हँसते आसिया रूक गई चेहरे पर गंभीरता फैल गई आँखों में जिंदगी की चमक लौट आईसलाखों पर कसी मुट्ठी ढीली पड़ी और आरजू की गहरी घुलाहट में दिल की अवाज, आखिरी ख्वाहिश में महक उठी.
"मेरी जन्नत, एक पल के लिए ही मुझे वापस कर दो."
......
उस रात औरतों ने चूल्हे नहीं जलाए, मर्दों ने खाना नहीं
खाया, सब एक दूसरे से आँखें चुराते रहे. यदि आसिया गुनहगार थी तो फिर उसके संगसार होने पर यह दर्द, यह कसक उनके दिलों को क्यों मथ रही थी.
samaapt
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