non veg kahani दोस्त की शादीशुदा बहन
06-06-2019, 02:15 PM,
RE: non veg kahani दोस्त की शादीशुदा बहन
भादरू- वाह भाभीजी वाह... मेरी बीवी आपके पति के लण्ड से चुदवाए और हम दोनों कीर्तन करें। मैं पागल हूँ। क्या? मैं आपकी बुर में लण्ड घुसेड़-घुसेड़कर उछल-उछलकर चोदूंगा। मैं भी अपना पानी आपकी बुर में उड़ेलूंगा।
दूसरे दिन सुबह सुबह पाँच बजे।
रात भर चुदवाकर कमलावती थक चुकी थी। भादरू ने उसकी नई फुद्दी को चार बार चोदा। और कमाल ये था। की कमलावती को दर्द की जगह मजा आने के कारण थकी हुई सी थी। पर रोज सुबह उठने की आदत के कारण उसकी नींद खुल गई। उसने देखा की वो नंगी ही भादरू के साथ लिपटी पड़ी है, और उसका हाथ भादरू के लण्ड को थामे हुए था। भादरू के हाथ उसकी चूचियों के ऊपर थे। वो धीमे से उठी और बाथरूम में फ्रेश होने को गई। जब वो बाथरूम से निकली तो कमरे का दरवाजा उसी समय खुला और सामने उन्नींदी सी उसकी सहेली खड़ी
थी।
सहेली ने कमलावती को देखा। कमलावती ने सहेली को देखा और दोनों एक-दूसरे से लिपट गई।
सहेली- मुझे माफ कर देना कमलावती। मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई।
कमलावती- माफी तो मुझे तुझसे माँगनी है सहेली। तूने एक सच्ची सहेली का धर्म निभाया। मेरी फुद्दी का भुर्ता बनने से बचा लिया। रात भर खुद चुदवा लिया और मुझे चुदने से बचा लिया।
सहेली- और तुम... तुम मेरे पति से चुदवाई की नहीं?
कमलावती- नहीं रे... मैं तो घोड़े बेच के सोई थी। और तुमरे पति तो अभी तक घोड़े बेच करके सोए हैं।
सहेली- पर वो तो नंगे ही सोए हैं... और उनके हाथ में रात का तुम्हारा पहना हुआ साया ब्लाउज़ है।
इतने में भादरू नींद में बोल उठा- “अरी साली... इससे पहले की सुबह हो जाए और मेरी बीवी आ जाए... चलो एक और राउंड की चुदाई हो जाए..." भादरू नींद में बड़बड़ाते हुए सो गया।
सहेली- अच्छा मेरी रानी। तू घोड़े बेच करके सोई थी।
बिस्तर पर सात सलवटें करती हैं इशारे, हम उनसे चुदवा बैठे, जो पति हैं तुम्हारे।
कमलावती- सच सहेली, मुझे तू माफ कर दे।
सहेली- पर तुझे ज्यादा दर्द तो नहीं हो रहा है?
कमलावती- अरे, नहीं रे... जीजू के लण्ड का साइज थोड़ा सा छोटा था ना तो मुझे तो बहुत मजा आया। पता है। पूरे चार बार चुदवाई हूँ जीजू से।।
सहेली- अच्छा जी... वही मैं सोचूं की तेरे चेहरे पर चमक कैसी है?
* * * * * * * * * *सुबह आठ बजे चारों जने कामरू के कमरे में इकट्ठे थे। दोनों सहेलियां तो एक-दूसरे के साथ हँसी मजाक करके बातें करने लगी थीं। पर दोनों दोस्त एक-दूसरे से नजर नहीं मला पा रहे थे।
सहेली- अरे, आप दोनों को क्या हो गया? बात क्यों नहीं कर रहे हो? किसी बात पे झगड़ा हो गया है क्या?
भादरू- नहीं नहीं... ऐसी कोई बात नहीं है। हाँ तो यार कामरू, रात को तो मैं घोड़े बेच करके सोया। और तुम?
कामरू- हाँ... यार तू सही कह रहा है। मैं भी रात को तो नहीं हाँ सुबह-सुबह चार बजे से घोड़े क्या हाथी बेच कर सोया। हाँ, पर रात से सुबह चार बजे तक तेरी बीवी यानी मेरी प्यारी-प्यारी साली साहिबा की सफाचट चूत को चाटते हुए, उसे अपना मस्ताना लण्ड चुसवाते हुए, उसकी फुद्दी को जमकर चोदा। लेकिन तू... तू साले.. तू तो घोड़े बेचकर सो रहा था।
भादरू- तू क्या सोच रहा है। मैं सारी रात घोड़े बेचकरके सोया हुआ था? नहीं मेरे दोस्त... मैं भी भाभी की झांटदार चूत में रात भर अपना मस्ताना लण्ड पेलते रहा था। तू क्या सोच रहा है कि मैं सारी रात भाभी की झांटदार चूत की पूजाकरते रहा हूँ? अरे यार, मेरे पास भी जवान लण्ड है... मेरा लण्ड भी खड़ा होता है। हाँ.. मैं ये मानता हूँ की मेरा लण्ड तेरे जितना मोटा और लंबा भी नहीं है। पर सच कहता हूँ। मैंने तेरे से ज्यादा भाभीजी को खुश किया है। क्यों भाभीजी?
कमलावती- हाँ जी... बहुत ही मजा आया जीजू से चुदवाकर... और इतना दर्द भी नहीं हुआ।
कामरू- अरे... दर्द नहीं हुआ? अरे कमलावती, मेरा मोटा और लंबा लण्ड घुसवाने वाली, तेरी चूत को तो महसूस भी नहीं हुआ होगा की कुछ घुसा भी है तेरी चूत के अंदर।
भादरू- अरे, इतना छोटा भी नहीं है मेरा लौड़ा। जब तेरी गाण्ड में घुसा था तो कितना चिल्लाया था की मर गया... निकालो... लण्ड निकालो।
कमलावती- क्या? क्या कहा जीजू आपने? आपने इनकी गाण्ड मारी है?
कामरू- अरे, वो तो इसकी मम्मी को चोदते हुए इसने पकड़ लिया, और किसी को ना कहने के बदले में इससे अपनी गाण्ड मरवानी पड़ी थी। पर साले, तू तो मुझसे सुपाड़ा घुसवाते ही रोने लगा था?
भादरू- और नहीं तो क्या? तेरे इस गधे जैसे लण्ड को अपनी गाण्ड में घुसवाके गाण्ड फड़वानी थी क्या?
सहेली- चलो, रात को मेरी गलती से जो हुआ सो हुआ। पर सब लोग सच-सच बताओ... मजा आया की नहीं?
कमलावती- मुझे तो बहुत मजा आया सहेली, तेरे पति से चुदवाकर।
कामरू- अच्छा... मुझे भी मजा आया तेरी सहेली की सफाचट बुर को चोदकर।
सहेली- तो आज रात का क्या बिचार है?
कमलावती- बिचार क्या? आज फिर दिखा देना अपनी गोली का चमत्कार।
सहेली- अरे, गोली की कौनो दरकार नहीं है। जब पूरे पत्ते खुल चुके हैं.. तो पर्दे की क्या जरूरत है?
कामरू- वो तो खैर रात की बात है। अब नाश्ते के पहले का क्या इरादा है?
सहेली- इरादा तो हमरा साफ... एकदम साफ है।
खूब आएगा मजा... जब मिल बैठेंगे चार यार... आप... जीजू... सहेली... और मैं। और चारों फिर से उस खेल में शामिल हो गये।
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