RE: Free Sex Kahani चमकता सितारा
तभी मैंने अपना चैक निकाल बीच में रख दिया और कहा- ‘ये है वो बात…’
पायल चैक उठा कर बड़े गौर से देखने लगी। साथ ही ललिता और कोमल भी देख रही थीं।
अब मैं इंतज़ार कर रहा था.. क्या होगा उनके चेहरे का एक्सप्रेशन।
तभी कोमल और ललिता मेरे पैर पकड़ कर वहीं बैठ गईं और पायल मुझे चम्पी देने लग गई।
कोमल ने पुराने फिल्मों की हिरोइन की तरह- मेरे प्राणनाथ.. कृपया हमें अपनी चरणों में थोड़ी जगह दे दें। हमारी तो तकदीर ही संवर जाएगी।
ललिता ने उसी अंदाज़ में- मैं हर रोज़ आपके पैर दबा दिया करूँगी।
पायल- और जब आप थक कर घर आयेंगे.. तब मैं यूँ ही आपके सर की चम्पी कर दिया करूँगी।
मैं ने उन्हीं के अंदाज़ में- आपका इतना प्यार देख कर तो मेरी आँखों में आंसू गए।
‘चलो अब अपनी जगह पर बैठो।’
सब अपनी जगह पर बैठ गईं।
ललिता- तुम्हें एक्टिंग भी आती है? और तुमने कभी हमें बताया तक नहीं।
मैं- सच कहूँ तो मुझे अब तक नहीं मालूम कि एक्टिंग कहते किसे हैं। लोगों से सुना था कि अगर आप किसी से बड़ी ही सफाई से झूठ कह सकते हो तो आप उतने ही अच्छे एक्टर बन सकते हो.. पर तुम सब तो जानती हो मुझे झूठ कहना तक नहीं आता। मैं कैसे एक्टिंग कर सकता हूँ।
कोमल- तो तुमने ऑडिशन दिया कैसे?
मैं- वो मेरे एक्सप्रेशन्स देखना चाहते थे। हंसी, मस्ती, डर, दर्द… इन सब के एक्सप्रेशन मैं कैसे देता हूँ।
मैंने अपनी आँखें बंद की और मैंने हर शब्द के साथ याद किया उन शब्दों से जुड़े हुए अपने बीते लम्हों को और मेरे चेहरे के भाव उसी हिसाब से खुद ब खुद बदलते चले गए.. पर अब तो मुझे एक नई कहानी दी जाएगी और उस झूठी कहानी में भी मुझे ऐसी जान डालनी होगी कि दर्शकों को यकीन हो जाए कि ये बिल्कुल सच है। मैं ये सब कैसे कर पाऊँगा।
कोमल- तुम यहाँ क्यूँ आए थे।
मैं- मैं तो अपने आप से भाग रहा था.. मैं अपने दर्द से पीछा छुड़ा रहा था।
कोमल- क्या आज भी तुम डॉली को याद करते हो?
मैं- यह कैसा सवाल है..? अगर याद ना आती तो हर बार इस नाम के साथ मेरी आँखें नम कैसे हो जातीं?
कोमल- और अगर मैं कहूँ कि तुम्हारे दर्द का इलाज़ एक्टिंग ही है तो?
मैं- वो कैसे?
कोमल- जैसे आज तुमने आँखें बंद करके उन लम्हों को जीना शुरू किया। वैसे ही हर दिन जब तुम्हें कोई स्क्रिप्ट मिले तो भूल जाना कि तुम विजय हो। निर्देशक के ‘एक्शन’ कहने के साथ ही तुम उस स्क्रिप्ट के किरदार हो यही याद रखना और जब वो पैकअप कहे.. तब तुम वापस आ जाना।
मैं- और मैं वापस आना ही ना चाहूँ तो?
कोमल- मतलब?
मैं- जब मेरे दर्द का इलाज़ खुद को भूलना ही है.. तो मैं भला कुछ पलों के लिए खुद को क्यूँ भूलूं। मैं तो हमेशा के लिए भूल सकता हूँ।
कोमल- ऐसे में खुद की तकलीफ तो कम कर लोगे.. पर जो लोग तुम्हें जानते हैं उन्हें दर्द दे जाओगे।
मैं- अब जो भी हो.. मैं ऐसे घुट-घुट कर नहीं जी सकता।
पायल- अरे क्यूँ तुम लोग इतने सीरियस हो रहे हो। इतना ख़ुशी का मौका है और तुम लोग अपनी ही बातें लेकर बैठे हो। आज तो पूरी रात हंगामा होगा..
फिर वो अपने फ़ोन को स्पीकर से जोड़ कर तेज़ आवाज़ में गाने बजाने लगी।
फिर क्या था, हम सब गाने की धुन पर नाच रहे थे। उछल-उछल कर हम सब ने कमरे की हालत खराब कर दी। उस पूरी रात किसी ने मुझे सोने नहीं दिया। रात भर मुझे बीच में बिठा नॉन स्टॉप बातें करती रहीं। सुबह के साढ़े पांच बजे मुझे छोड़ कर सब अपने कमरे में गईं.. तब जाकर मैं सो पाया।
नौ बजे ललिता की आवाज़ से मेरी आँख खुली।
ललिता- उठो.. स्टूडियो नहीं जाना है क्या?
मैंने अंगड़ाई लेते हुए कहा- कम से कम नींद तो पूरी होने दे।
ललिता- अरे मेरे सुपरस्टार.. अब से कम सोने की आदत डाल लो.. अब सोने का वक़्त गया।
मैंने घड़ी की तरफ देखा तो टाइम हो चुका था और आज मैं लेट नहीं होना चाहता था। सो मैं फ्रेश होने चला गया, नहा कर कपड़े बदले जो ऑनलाइन शॉपिंग से जो हमने कपड़े खरीदे थे वो पार्सल कल शाम ही आ गया था।
आज मैं एक नई जिंदगी की शुरुआत करने जा रहा था या दूसरे लफ्जों में अपने आप को इस दुनिया में खोने जा रहा था।
आज मुझे कहानी सुनाने को बुलाया गया था। मैंने टैक्सी की और पहुँच गया स्टूडियो।
आज वहीं गेट कीपर जो मुझे कल अन्दर आने से रोक रहा था, आज मुझे सलाम कर रहा था। मैं अन्दर पहुँच गया। चेतन जी मेरा ही इंतज़ार कर रहे थे। मैं उनके साथ एक अलग कमरे में चला गया।
चेतन जी- चाय कॉफ़ी कुछ लेंगे आप?
मैं- जी नहीं। फिलहाल तो कहानी पर ही ध्यान दे दूँ। बाद में हम साथ में लंच कर लेंगे।
चेतन जी- जैसी आपकी मर्ज़ी।
उन्होंने कहानी सुनाना शुरू कर दिया।
‘ये कहानी है एक लड़के की.. जिसके माँ-बाप का देहाँत बचपन में ही हो गया था। उसे बचपन से ही अपना ख्याल रखने की आदत थी.. उसके पास इतनी दौलत थी कि उसकी खुद की जिंदगी तो आराम से गुज़र सकती थी.. पर उसे अगर कुछ कमी थी तो बस प्यार की। बचपन में जब से एक्सीडेंट में उसके परिवार वाले चले गए थे.. तब से ही वो हर माँ-बाप में खुद के माँ-बाप को देखता। बिना प्यार की परवरिश से उसे एक मानसिक बीमारी हो जाती है ‘स्विच पर्सनालिटी डिसऑर्डर।’ ये एक ऐसी बीमारी है.. जिसमें एक ही इंसान अपने जीवन में दो अलग-अलग किरदार निभाता है। जिसका एक पहलू तो प्यार की तलाश में तड़फता रहता है.. पर वहीं दूसरा पहलू हर दिन गर्लफ्रेंड बदलता है।
कहानी में ट्विस्ट तब आता है जब उस लड़के को एक ही परिवार की दो बहनों से प्यार हो जाता है।’
मैं उन्हें रोकता हुआ बोलने लगा- दो लड़कियों से एक साथ सच्चा प्यार..!
चेतन जी- यही तो ट्विस्ट है। उस लड़के को तो पता भी नहीं है कि उसके जिंदगी में दो किरदार हैं.. और इसी वजह से वो एक साथ दो लड़कियों से प्यार कर बैठता है। वो भी दोनों सगी बहनें।
उसके सच्चे प्यार की वजह से दोनों लड़कियाँ भी उसे अपना दिल दे बैठती हैं.. पर कहानी के आखिर-आखिर तक दोनों लड़कियाँ को इस सच्चाई का पता नहीं चल पाता है कि दोनों एक ही इंसान के प्यार में हैं।
कहानी के क्लाइमेक्स में दोनों लड़कियों को उसके बाप का दुश्मन उठा ले जाता है और जब वो दोनों को उस गुंडे से बचाता है.. तब जाके लड़कियों को उसकी असलियत का पता चलता है और इसके साथ ही वो लड़का भी अपनी बीमारी के बारे में जान जाता है।
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