RE: Free Sex Kahani चमकता सितारा
कोमल- यह सफ़र हम सबके लिए नया है। पहली बार हम अपने-अपने घर से इतनी दूर अपनी पहचान बनाने के लिए निकले हैं। मैं तो बस दोस्त बनाने की कोशिश कर रही हूँ। आपको बुरा लगा हो तो आप मुझे माफ़ कर देना।
मैं- किसी के ज़ख्म कुरेद कर दोस्ती करने का अंदाज़ पहली बार देखा है।
कोमल- ज़ख्म कुरेद कर.. मैं बस ये देख रही थी कि तुममे अब भी जान बाकी है या नहीं।
उसके बोलने का अंदाज़ बिल्कुल डॉली जैसा था.. या मैं हर आवाज़ में डॉली को ही ढूंढने की कोशिश करने लगा था।
मैं- क्या दिखा तुम्हें?
कोमल ने मुस्कुराते हुए- ज़िंदा हो और दोस्ती कर सकते हो..
और फिर से उसने अपना हाथ बढ़ा दिया।
मैं हाथ मिलाते हुए- विजय…
बाकी दोनों ने भी अपने हाथ बढ़ाए.. एक का नाम पायल था और दूसरी का ललिता।
पायल- कहाँ जा रहे हो?
मैं- नहीं जानता।
ललिता- किस लिए?
मैं- नहीं जानता।
पायल- कहाँ रहोगे वहाँ?
मैं- नहीं जानता।
पायल ललिता से- मैंने कहा था न ! पक्का वही केस है।
फिर मेरी तरफ देखते हुए- तुम किसी बड़ी कंपनी के मालिक के बेटे हो क्या?
‘क्या?’ चिढ़ते हुए मैंने कहा।
पायल- नहीं ‘जब वी मेट’ में हीरो की यही तो कहानी थी।
मैं- कभी फिल्मों की दुनिया से बाहर भी आओ। यहाँ किसी की जिंदगी स्क्रिप्ट के हिसाब से नहीं चलती।
कोमल- क्या डायलॉग बोलते हो यार। हैंडसम हो और आवाज़ भी जबरदस्त है, फिल्मों में कोशिश क्यूँ नहीं करते।
मैं- मैं अपने आप से भाग रहा हूँ और ये रास्ते किस मंजिल पे मुझे ले जायेंगे मुझे नहीं पता..
कोमल- मैं तो बस दरवाज़ा खटखटाने को कह रही हूँ। क्या पता तुम्हारी मंजिल भी वहीं हो.. जहाँ हम जा रहे हैं।
मुझमें अभी कुछ भी फैसला लेने की हिम्मत नहीं थी। मैं तो बस अपने दर्द से भागने की कोशिश कर रहा था।
तभी पैंट्री वाला आया और सस्ती व्हिस्की की एक बोतल और कुछ स्नैक्स दे गया।
बाकी तीनों मेरी शकल ही देखती जा रही थीं।
मैंने कोमल को देखा और पूछा- गिलास है?
कोमल ने बिना कुछ कहे चार गिलास निकाले और मेरे बगल में रख दिया उसने।
मैं- चार गिलास क्यूँ?
कोमल- दारू और दर्द जितना बांटोगे उतना ही खुश रहोगे।
मैं- मैं तो अपने दर्द को भूलने के लिए पी रहा हूँ। तुम सब क्यूँ पी रही हो?
कोमल- मुस्कुराते हुए चेहरे ही सबसे ज्यादा ग़मों को समेटे होते हैं। दो पैग अन्दर जाने दे.. फिर जान जाओगे हमारे राज़।
मैंने बोतल उसके हाथों में दे दी और कहा- लो मेरे लिए भी बना देना।
मैंने गिलास उठाया और खिड़की से बाहर देखने लगा।
बाहर खेतों की हरियाली.. पहाड़ों की घाटियाँ और भी न जाने कितने ही जन्नत सरीखे रास्ते से हो कर हमारी ट्रेन गुज़र रही थी। पर आज मुझे ये खूबसूरत नज़ारे भी काट रहे थे जैसे। मैं अपने ही ख्यालों में खोया था कि तभी पायल की आवाज़ से मैं अपने ख्यालों से बाहर आया।
पायल- चलो अब बताओ अपने बारे में.. अब हम दोस्त हैं और दोस्तों से कुछ भी छुपाना नहीं चाहिए।
मैं- मुझसे नहीं कहा जाएगा..
और फिर जैसे मेरी आँखें डबडबाने लगीं।
कोमल- ठीक है.. पहले हम बताते हैं अपने बारे में.. शायद तुममें थोड़ी हिम्मत आ जाए।
कोमल ने अपनी कहानी बतानी शुरू की.. वो शराब के असर से थोड़ा रुक-रुक कर कह रही थी।
‘मैं कोलकाता में ही पैदा हुई थी। मेरा बचपन अब तक की मेरी सबसे हसीन यादों में से एक है। मैं, मम्मी-पापा और दादा- दादी हम सब एक खुशहाल परिवार की तरह रहते थे। मेरे पापा का कोलकाता में ही गारमेंट्स का बिज़नेस था। हमारे पास पैसों की कभी भी कमी नहीं थी।
बचपन में दादी अक्सर मुझे परियों की कहानियाँ सुनाया करती थीं और मैं हर बार उन परियों की कहानी में खुद को ही देखा करती थी..
पर कहते हैं न.. जीवन में अगर अच्छे दिन आते हैं.. तो कुछ बुरे दिन भी होते हैं।
जब मैं आठ साल की थी.. तब मेरे पापा को उनके बिज़नेस में जबरदस्त घाटा लगा। वे अपने बिज़नेस को जितना बचाने की कोशिश करते.. उतना ही वो कर्जे में डूबते चले गए।उसके लगभग एक साल बाद दादा और दादी का भी देहाँत हो गया।
मुझे आज भी याद है… वो दिन जब हर रोज़ कोई ना कोई लेनदार हमारे दरवाज़े पर खड़ा रहता। पापा रात को नशे में धुत घर में आते और मुझ पर और माँ पर अपनी नाकामयाबी का गुस्सा निकालते।
एक दिन मैं अपने स्कूल से आई तो मेरे घर पर भीड़ लगी थी। मम्मी उसी कॉलोनी के अंकल के साथ भाग गई थीं और पापा मेरी मम्मी की चिट्ठी हाथ में लिए ज़मीन पर पड़े थे।
मैंने पास जाकर देखा तो उनकी साँसें नहीं चल रही थीं। मैं एक पल में ही अनाथ हो चुकी थी। पापा के बीमा से जो पैसे मिले.. उनसे मैंने कर्जे चुका दिए और बाकी पैसे अपनी पढ़ाई के लिए रख लिए। दस साल की उम्र से मैंने खुद को संभालना सीख लिया।
पिछले महीने मैंने एक डॉक्यूमेंट्री बनाई थी और वो बॉम्बे में एक डायरेक्टर को पसंद आ गई.. सो अब मैं मुंबई जा रही हूँ.. एक कामयाब डायरेक्टर बनने..’
फिर पायल ने खुद के बारे में बताना शुरू किया। अब उसकी आवाज़ में कुछ ज्यादा ही भारीपन था।
‘एहें एहें..’ उसने अपना गला ठीक करते हुए बताना शुरू किया- कहाँ से शुरू करूँ.. समझ नहीं आ रहा मुझे.. वैसे मुझे तो याद भी नहीं कि मेरे माँ-बाप कौन हैं।
उन्होंने बचपन में ही सिलीगुड़ी के एक गाँव में बने देवी मंदिर में मुझे दान कर दिया था, शायद बेटी बोझ थी उनके लिए..
मुझे वहीं के पुजारी परिवार ने पाला। जब मैं शायद तीन साल की थी.. तब उन्होंने पूरे गाँव में एलान करवा दिया कि मैं किसी देवी का अवतार हूँ और इन अफवाहों ने मंदिर की कमाई बहुत बढ़ा दी। पांच साल की उम्र में मैं हर रोज़ छह घंटे रामायण पाठ करती और उसके बाद कीर्तन में हारमोनियम, तबले बजाने वालों के साथ थोड़ा रियाज़ भी करती थी।
बीस साल की उम्र तक पहुँचते-पहुँचते मैं शास्त्रीय संगीत में माहिर हो चुकी थी। अब तो मैंने टीवी पर आने वाले गाने भी गुनगुनाने शुरू कर दिए थे।
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