RE: Free Sex Kahani चमकता सितारा
मैंने ये लाईनें ख़त्म की और हम दोनों ही ज़मीन पर बैठ कर हंसने लगे।
डॉली- मेरी बात और थी.. पर अगर किसी और को ऐसे प्रपोज करोगे तो चप्पल खोल कर मारेगी। ऐसे करता है कोई प्रपोज..?
मैं- वही तो कह रहा हूँ.. नहीं आता है मुझे किसी को अपने दिल की बात बताना.. पर तुम तो हर बात बिना बताए समझती हो न.. मेरे साथ भाग चलो न..!
तभी आवाज़ आई ‘डॉली’ और डॉली की माँ लगभग चिल्लाते हुए कमरे में आ गई।
आंटी ने मेरी ओर देखते हुए कहा- जाओ यहाँ से.. तुम्हारा यहाँ कोई काम नहीं है।
मैं- आज नहीं जाऊँगा.. आप मेरी बात सुन लो.. तब मैं चला जाऊँगा।
आंटी- ठीक है.. कहो.. क्या कहना है तुम्हें?
मैं- माना कि हमसे गलती हुई.. हमें हमारे रिश्ते के बारे में आपको बता देना चाहिए था.. हम तो छोटे थे.. नासमझ थे.. हमसे गलती हो गई। पर आपसे गलती कैसे हुई। आप तो समझदार थे.. अपने ही हाथों अपनी बेटी का गला घोंट दिया। कहते हैं कि एक माँ अपने बच्चे को सबसे अच्छी तरह जानती है। एक बार बस अपनी बेटी को देख कर आप कह दें कि वो खुश है। मैं कुछ नहीं कहूँगा और चुपचाप चला जाऊँगा..
आंटी चुप थीं।
मैंने कहा- आपकी खामोशी ने सब कह दिया मुझसे.. जाता हूँ मैं.. और मैं इस बात के लिए आपको कभी माफ़ नहीं करूँगा।
मैंने आंटी के सामने ही डॉली को गले लगाया और उसे चुम्बन किया।
‘जा रहा हूँ.. अपना ख्याल रखना।
डॉली मुझे रोकने को हाथ बढ़ा रही थी.. पर तब तक मैं जा चुका था।
मैं बाहर गया.. बाहर पापा खड़े थे।
पापा- क्या हुआ बेटा.. उदास दिख रहे हो?
मैं- कुछ ख़ास नहीं.. आपकी होने वाली बहू की शादी किसी और से हो रही है।
पापा- तुमने मुझे बताया क्यूँ नहीं.. तभी इतने दिनों से तुम परेशान थे। मैं डॉली के पापा से बात करता।
मैंने पापा की बात काटते हुए कहा- मैं डॉली के बारे में कहाँ कह रहा था.. मैं तो मज़ाक कर रहा था। मैं आता हूँ बारात में डांस करके।
मैं जल्दी से वहाँ से निकल आया.. कहीं पापा मेरी आँखों में आँसू न देख लें।
अब मैं पास के ही हाईवे पर था। शराब की दुकान खुली थी और लगभग बाकी सारी दुकानें बंद थीं।
शादियों के मौसम में यही दुकान तो देर तक चलती है। मैं दुकान में गया और स्कॉच की हाफ-बोतल ले आया।
पास में ही एक बंद दुकान की सीढ़ियों पर बैठ गया। थोड़ी देर में वहाँ जो बची-खुची दुकानें थीं.. वो भी बंद हो गईं।
अब तो वहाँ बिल्कुल अकेला सा लग रहा था। आसमान में दिवाली सा पटाखों का शोर.. दूर-दूर से आता बारात के गानों का शोर और मेरे मन के ख्यालों का शोर.. मैं वहाँ पर अकेला होता हुआ भी अकेला नहीं था।
यहीं बैठे-बैठे अब तक चार बारात मैं देख चुका था.. ना जाने कितने ही आशिकों के दिल वीरान होंगे आज की रात..
अभी मैं सोच ही रहा था कि एक और बारात गुजरने लगी। उसी में से एक उम्र में मुझसे थोड़ा बड़ा लड़का मेरे पास आया।
‘भाई यहाँ दारू की दुकान है क्या आसपास?’
मैं- नहीं भाई…
अपनी आधी बची बोतल आगे बढ़ाते हुए मैंने कहा- यही ले लो।
वो साथ में ही बैठ गया। बोतल लेने के साथ ही पूछा- पानी और चखना कहाँ है?
मैंने इशारे में ही कहा- नहीं है।
उसने पूछा- क्यूँ भाई आशिक हो क्या?
मैंने कहा- नहीं.. दीवाना हूँ।
वो हंसने लग गया। हाथ बढ़ाते हुए बोला- हैलो मैं रवि..
मैंने भी उससे हाथ मिलाया।
‘मैं विजय।’
रवि- चलो मेरे साथ.. ये बारात भी दीवानों की ही है।
वैसे भी मैं क्या करता, मुझमें इतनी हिम्मत नहीं थी कि मैं डॉली की शादी होता देख सकता। मैं रवि के साथ ही चल पड़ा।
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