RE: Free Sex Kahani चमकता सितारा
मैं अब अपने कमरे में था। बस एक ही बात जो मुझे खाए जा रही थी कि उसने ऐसा फैसला क्यूँ लिया और जब किसी और के साथ जिन्दगी बिताने का फैसला ले लिया है.. तो अब मुझे ऐसे क्यूँ जता रही है.. मानो मैं अब भी उसके लिए सब कुछ हूँ। मैं तो ये सब सोच-सोच कर पागल सा हुआ जा रहा था।
एक बार तो मन किया कि सब छोड़-छाड़ कर भाग जाऊँ कहीं.. कैसे देख पाऊँगा उसे मैं.. किसी और की होते हुए.. जिसे मैं हमेशा के लिए अपना मान चुका था।
पर अपने दिल को दिलासा भी दिया.. आखिर जब उसने ही इन सब रिश्तों का मज़ाक बनाया हुआ है.. जब उसे ही कोई फर्क नहीं पड़ता तो मैं क्यूँ नींद खराब करूँ।
उसके वादे के मुताबिक़ मुझे हर रोज़ उसे मिलना था, सो मैं छत पर ठीक शाम के 8 बजे आ जाता था। हमेशा यही कोशिश करता कि उससे मेरी नज़रें ना मिलें.. हमेशा एक दूरी सी बना कर रखता था.. पर डॉली को समझना अब भी मेरी समझ से परे था।
जब-जब मैं उससे दूर जाता.. वो मुझसे जबरदस्ती आ कर लिपट जाती।
ना जाने कितना कुछ ही कहा था मैंने उसे.. पर मेरी हर बात का जैसे उसे कोई असर ही ना होता हो।
ऐसे ही कुछ 15 दिन बीत गए।
आज रविवार था और शाम के 6 बजे थे.. तभी मेरे घर के दरवाज़े की घंटी बजी।
मम्मी- जाओ बेटा.. देखो तो कौन आया है..?
मैं- ठीक है माँ।
मैंने दरवाज़ा खोला.. सामने डॉली के मम्मी-पापा थे।
आंटी- बेटा जी.. मम्मी-पापा हैं घर पर?
आज उनकी आवाज़ में अपनापन कम और तंज़ कसने वाला अंदाज़ ज्यादा था।
मैं- हाँ अन्दर आईए न..
मैंने मम्मी को आवाज लगाई- मम्मी.. डॉली के मम्मी-पापा आए हैं।
मम्मी- अरे आईए.. आप तो आजकल इधर का रस्ता ही भूल गए हैं।
उन्होंने उन दोनों हॉल में बिठाया और मेरी बहन को चाय- नाश्ते का कह कर मेरे मम्मी-पापा उनके साथ बैठ गए।
मैं अब अपने कमरे में आ चुका था.. पर मेरा ध्यान तो अब भी उन्हीं की बातों में लगा हुआ था।
अंकल ने मेरे पापा से कहा- और बताएँ क्या हाल हैं आपके..? कैसा चल रहा है काम-धाम?
पापा ने हंसते हुए कहा- सब ठीक है.. वहाँ ऑफिस में.. हमारी सुबह से शाम सरकार की नौकरी में गुजरती है और शाम से फिर अगली सुबह तक बीवी की सेवा में गुज़र जाती है। आप कहें कैसे आना हुआ आज?
आंटी (डॉली की मम्मी)- जी.. एक खुशखबरी देनी थी.. हमने हमारी बेटी की शादी तय कर दी है और लड़का भी डॉली को बहुत पसंद है।
इस बार आंटी आवाज़ थोड़ा ऊँचा करती हुई बोलीं ताकि मेरे कान तक उनकी ये बात पहुँच जाए।
मैं तो जैसे सुन्न हो गया था। मैंने लाख रोकना चाहा.. पर मेरी आँखों में आंसुओं का सैलाब सा उमड़ आया हो।
मम्मी- ये तो बहुत ही अच्छी बात है.. पर अब तो बस मिठाई से काम नहीं चलने वाला है भाई साहब..
मेरी मम्मी डॉली के पापा को ‘भाई-साहब’ कह कर ही बुलाती थीं।
‘अब तो हमें अच्छी सी पार्टी चाहिए।’
आंटी- अरे इसके लिए भी कहना होगा क्या.. अगले रविवार को हम सब कहीं बाहर चलते हैं।
पापा- अगले रविवार तक हमसे इंतज़ार नहीं होने वाला है.. आज हम सब हैं हीं.. तो घर पर ही पार्टी मना लेते हैं।
फिर उन्होंने मुझे आवाज़ दी। मैं तो समझ ही गया था कि पापा की पार्टी का मतलब क्या लाना है।
मैं- आता हूँ।
फिर पापा ने पैसे दिए और मैं चला गया वाइन लाने।
मैं बाइक स्टार्ट करके बाहर मुख्य सड़क तक पहुँचा। सड़क पर ढेरों गाड़ियों का शोर था.. पर मुझे तो जैसे कुछ शोर सुनाई दे ही नहीं रहा था.. बस कानों में डॉली की एक ही बात गूंज रही थी- ‘मैं तुम्हारी थी.. तुम्हारी हूँ और तुम्हारी ही रहूँगी।’
मैं बेहद बेपरवाह सा सड़क पर आगे बढ़ा जा रहा था। गाड़ियों की चमकती हेडलाइट में भी मुझे डॉली ही नज़र आ रही थी। एक बार तो मैं अपनी गाड़ी सामने वाली ट्रक के एकदम सामने ही ले आया.. पर वो बगल से गुज़र गया।
शायद ड्राईवर मुझे गालियाँ देते आगे बढ़ गया था।
मैं तो जैसे अब तक सपने में ही था। ऐसा लग रहा था.. मानो उस दूर होती लाइट के साथ मेरा प्यार भी मुझसे दूर होता जा रहा था।
फिर मैंने खुद को संभाला और वाइन लेकर वापिस आया। इस बार मैं एक छोटी बोतल ज्यादा ले आया था.. कभी पी तो नहीं थी.. पर इतना सुना था कि इसे पीने के बाद दर्द कम हो जाता है।
रास्ते में किसी गाड़ी में एक गाना बज रहा था, ‘मेरी किस्मत में तू नहीं शायद.. क्यों तेरा इंतज़ार करता हूँ। मैं तुझे कल भी प्यार करता था.. मैं तुम्हें अब भी प्यार करता हूँ।’
सच कहते हैं लोग.. जब दिल दर्द से भरा हो तो ऐसा लगता है.. मानो सारे दर्द भरे गीत आपके लिए ही लिखे गए हों।
अब मैं अपने घर के दरवाज़े तक पहुँच चुका था। तभी घर के अन्दर से एक हंसी की आवाज़ सुनाई दी.. मैं वहीं रुक गया.. डॉली मेरे घर में आई हुई थी।
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