RE: Free Sex Kahani चमकता सितारा
हम दोनों फिर जल्दी-जल्दी कपड़े पहने और मैं जाने को हुआ.. तभी डॉली ने मुझे अपनी ओर खींच बिस्तर पर लिटा दिया और मेरे होंठों को अपने होंठों का जाम पिलाने लग गई।
तभी दरवाज़े की दस्तक ने हमें चौंका दिया।
‘हे भगवान्.. तुझे सारे सैलाब आज ही लाने थे मेरी जिंदगी में… बेहद गुस्से में डॉली की माँ दरवाज़े पे खड़ी थी।’
आंटी ने मेरी ओर देखते हुए कहा- तुम अपने घर जाओ।
मैं- आंटी मैं डॉली से शादी करना चाहता हूँ.. प्लीज हमें गलत मत समझिए।
आंटी ने इस बार लगभग चिल्लाते हुए कहा- मैंने कहा न तुमसे.. अपने घर जाओ… मतलब जाओ यहाँ से..
मैं बात ज्यादा बढ़ाना नहीं चाहता था। मैं बाहर दरवाज़े तक पहुँचा ही था कि किसी सामान के गिरने की आवाज़ आई, मैंने पलट कर देखा तो डॉली के दरवाज़े के बाहर डॉली के सेल फ़ोन के टुकड़े छिटक कर आए थे।
मतलब आंटी ने सबसे पहले उसका फ़ोन तोड़ दिया था। मैं अब दरवाज़े के बाहर आ चुका था।
ये बर्थ-डे तो मैं जिंदगी में कभी भूलने वाला नहीं था।
मैं यूँ तो डॉली के घर अक्सर जाया करता था। आज से लगभग दो साल पहले मैंने उसे प्रपोज किया था। तब से मैं अक्सर किसी न किसी बहाने से उसके घर आया जाया करता था। कभी भी किसी को हमारे बारे में शक़ तक नहीं होने दिया था।
आज तो दिन ही खराब था.. ऐसा लग रहा था कि जैसे हिरोशिमा और नागाशाकी वाले विस्फ़ोट आज मुझ पर ही कर दिया गया हो। पता नहीं डॉली को क्या-क्या झेलना पड़ रहा होगा.. वो भी मेरी वजह से..
एक बार तो मन कर रहा था कि अभी उसके घर जाऊँ और उसका हाथ पकड़ कर अपने साथ कहीं दूर ले जाऊँ.. पर मुझे पता था कि अभी सही वक़्त नहीं है। मेरे किसी भी कदम से दोनों परिवारों में तूफ़ान सा आ सकता था।
डॉली भी अपने माँ-बाप की अकेली बेटी ही थी। मेरे ऐसे किसी भी कदम से उसके मम्मी-पापा का खुद को संभालना मुश्किल हो जाता।
मैं वापिस अपने घर आ गया।
मम्मी- आ गए.. खाना खा लो, आज तुम्हारी पसंद के समोसे भी बनाए हैं।
मैं मम्मी के पास गया और उनके गले से लग गया।
कहते हैं न कि माँ को अपने बच्चे के दर्द का एहसास उससे पहले हो जाता है।
मम्मी- क्या हुआ..? परेशान से लग रहे हो?
मैं- वो ग्रेजुएशन में एक पेपर में फेल हो गया हूँ।
मैं तो डॉली वाली बात बताना चाह रहा था.. पर नहीं बोल पाया।
माँ- अगली बार ठीक से पढ़ाई कर के एग्जाम देना और ज्यादा परेशान मत हो.. खाना खा लो और आराम करो।
मुझे वैसे भी कुछ बोलने का मन नहीं कर रहा था। जैसे-तैसे खाना खा कर मैं अपने कमरे में आ गया।
अभी भी मैं डॉली को ही कॉल करने की कोशिश कर रहा था.. पर उसके सारे नंबर ऑफ आ रहे थे।
मन में एक साथ कितने ही सारे ख़याल आने लगे। ये सोचते हुए कब नींद आ गई.. मुझे पता ही नहीं चला।
अब 6 बज गए थे और पापा की आवाज़ से मेरी नींद खुली।
पापा- कितनी देर तक सोते रहोगे? जल्दी आओ.. केक आ गया है.. नहीं आए.. तो हम सब तुम्हारे बिना ही केक ख़त्म कर देंगे।
मैं ऊँघता हुआ उठा और चेहरे को धो कर हॉल में आ गया। मेरा सबसे पसंदीदा केक (चोकलेट केक) था। उस पर लिखा था ‘ हैप्पी बर्थ-डे टू माय लविंग सन..’
मेरे घर में हम किसी का जन्मदिन ऐसे ही मनाते थे। दिन में पूजा कर सभी रिश्तेदारों को मिठाई दे देता था और रात में बस हम घर के चारों लोग केक काटते.. गाने गाते और खूब डांस करते।
पापा का फेवरेट गाना बजा, ‘जुम्मा चुम्मा दे दे…’ और फिर वो शुरू हो गए और मम्मी ने पापा को डांटना शुरू कर दिया, ‘बच्चे बड़े हो गए हैं.. कुछ तो शर्म करो..’
मम्मी जितना गुस्सा होतीं.. पापा और एक्सप्रेशन देने लग जाते।
कुछ पलों के लिए तो मैं अपने सारे दर्द भूल ही गया था।
खैर.. सबसे आखिर में हमने डिनर किया.. वो भी एक-दूसरे की प्लेट से खाना लूट-लूट कर और फिर हम सोने चले गए।
अगले तीन दिनों तक मैंने बहुत कोशिश की.. पर डॉली की कोई खबर नहीं मिल पा रही थी।
जब से डॉली से दूर हुआ था.. किसी काम में मन ही नहीं लगता था। बस उसी की यादों में खोया-खोया सा रहता था।
बस.. हर वक़्त उसी की यादें.. वो कैसे हम छुपते-छिपाते मिलते थे। हमने एक साथ ना जाने कितने ही लम्हे गुज़ारे थे। हमारे घरों की छत एक साथ लगी हुई थीं.. सो मैं अक्सर मेन गेट से जाने के बजाए छत से कूद कर चला जाता था।
जब से डॉली की माँ ने हमें पकड़ लिया था.. तब से ज्यादातर छत पर.. दरवाज़े में ताला लगा रहता था।
डॉली के पापा शहर के जाने-माने वकील थे और उस काण्ड के बाद जब भी मुझे देखते तो ऐसे घूरते मानो बिना एफ आई आर के ही उम्र कैद दे देंगे।
आज उस बात को एक लंबा अरसा बीत चुका था.. मैं डॉली की हालत जानने के लिए हर तरीका अपना चुका था।
उसके घर जिनका आना-जाना लगा रहता था.. हर किसी से पूछ कर थक चुका था।
सब यही कहते कि अभी डॉली घर पर नहीं थी।
मेरा मन किसी अनजान आशंका से घिर गया था। पता नहीं.. डॉली के साथ कुछ अनहोनी तो नहीं हो गई..
मैं उसी शाम को छत पर गया.. ये डॉली के यहाँ काम करने वाली के आने का वक़्त था। ठीक समय पर वो छत पर आई.. छत का दरवाज़ा खोल कर कपड़े समेटने लग गई।
मेरे लिए यही सही वक़्त था। मैं उनकी नज़रों से बचता हुआ धीरे-धीरे दरवाज़े तक पहुँचा और सीढ़ियों से होता हुआ नीचे डॉली के कमरे के बाहर आ गया।
उसके कमरे का दरवाज़ा अन्दर से बंद किया हुआ था।
मेरे दिल की धड़कन अब आसमान पर पहुँच चुकी थी। उसके घर में तीन बेडरूम थे.. तीनों हॉल से जुड़े थे। मैं जहाँ खड़ा था.. वहाँ पर बाथरूम था और मेरे ठीक सामने डॉली की माँ सोफे पर बैठ टीवी देख रही थीं। मैं हल्की सी आवाज़ भी नहीं कर सकता था.. और उधर कामवाली कभी भी सीढ़ियों से नीचे आ सकती थी।
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