RE: Adult Kahani समलिंगी कहानियाँ
"रोती क्यों है बहू, तेरा पति है, तेरे जवान शरीर को मसलेगा ही. और पिटाई भी करेगा! हमारे यहां बहुओं की कस कर पिटाई होती है. इसलिये जो भी तुझसे कहा जाये, तुरंत किया कर. हम सब भी तेरे शरीर को मन चाहे वैसे भोगेंगे. हमारा हक है. और जब रतन का लौड़ा लेगी तो क्या करेगी? मर ही जायेगी! बड़ी नाजुक बहू है रे रतन." अम्मा बोलीं.
"ऐसी ही चाहिये थी अम्मा, सही है. जरा रोयेगी धोएगी तो चोदने में मजा आयेगा. मैं तो अम्मा रुला रुला कर चोदूंगा इसको!" रतन अपना लंड सहलाता हुआ बोला.
खाना खाने के बाद अम्मा बोलीं. "चलो अब देर न करो. बहू को उठा कर ले चलो. वो बेचारी कब से तड़प रही है। तुझसे चुदने को!"
मैं सिहर उठा. मेरी सुहागरात शुरू होने वाले थी!
रतन मुझे उठा कर चूमता हुआ पलंग पर ले गया. मां और हेमन्त भी पीछे थे. मुझे पलंग पर पटक कर रतन मुझपर चढ़ गया और जोर जोर से मुझे चूमने लगा. उसके हाथ मेरी चूचियां और नितंब दबा रहे थे. मुझे बहुत अच्छा लगा. आखिर वह मेरा पति था और अब मेरे शरीर को भोगने वाला था. आंखें बंद करके मैं उसकी वासना भरी हरकतों का आनंद लेने लगा.
"बहू को नंगा करो रतन. बहुत लाड़ हो गया. अपना काम शुरू करो. और अपने अपने कपड़े भी उतारो" अम्माजी ने हुक्म दिया.
सब फ़टाफ़ट नंगे हो गये. हेमन्त को तो मैंने बहुत बार देखा था. अम्माजी का नग्न शरीर भी आज नहाते समय देख किया था. पर रतन को मैं पहली बार देख रहा था. उसके हट्टे कट्टे पहलवान जैसे शरीर को देखकर मैं वासना से सिहर उठा. क्या तराशा हुआ चिकना मांस पेशियों से भरा हुआ बदन था! चूतड़ बड़े बड़े और गठे हुए थे. मैं सोचने
लगा कि अपने पति की गांड मारने मिले तो मैं तो खुशी से पागल हो जाऊंगा.
पर रतन का लंड देखकर मैं घबरा गया. मन में कामना के साथ एक भयानक डर की भावना मन में भर गयी. रतन का लंड आदमी का नहीं, घोड़े का लंड लगता था एक फुट नहीं तो कम से कम दस ग्यारह इंच लंबा और ढाई-तीन इंच मोटा होगा!. सुपाड़ा तो पाव भर के आलू जैसा फूला हुआ था! और नसें ऐसी कि जैसे पहलवान के हाथ पर होती हैं। घबरा कर मैं थरथर कांपने लगा.
मेरी घबराहट देख कर सब हंसने लगे. हेमन्त तुरंत मेरी ओर बढ़ा. उसकी आंखों में भी मेरे प्रति प्यार और वासना उमड़ आयी थी. "अरे घबरा गयी अनू भाभी? मैंने पहले ही कहा था कि रतन का लंड झेलना आसान काम नहीं है.
आ तेरे कपड़े उतार दें! भैया, कहो तो मैं चोद लू भाभी को?"
"तू नहीं रे छोटे, तूने बहुत मजा ली है. अब रतन पहले इसे चोदेगा. फ़िर हम चखेंगे बहू का स्वाद. रतन बेटे, इसके
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सब कपड़े निकाल दे, सिर्फ ब्रा और पैंटी रहने दे. पैंटी में पीछे से छेद है, तू आराम से उसमें से इसे चोद सकेगा. देख अधनंगी बहू क्या जुल्म ढाती है." मांजी बोलीं.
रतन ने फ़टाफ़ट मेरी साड़ी और चोली उतार दी. काली रबड़ की ब्रा और पैंटी में सजा मेरा गोरा दुबला पतला शरीर देखकर सब "आः, उफ़, मार डाला" कहने लगे. रतन तो पागल सा हो गया. मुझे पटककर मेरे ऊपर चढ़ गया और
अपना लंड मेरे गुदा पर रख कर पेलने लगा.
अम्माजी हंसने लगी. "देखो कैसा उतावला हो गया है, अरे पहले जरा बहू के शरीर को मसलना कुचलना था. खैर, तेरी बेताबी मैं समझ सकती हूं. मार ले उसकी, अपनी आग शांत कर ले, फ़िर मिलकर आराम से खेलेंगे इस गुड़िया
रतन के पेलने के बावजूद उसका लंड मेरी गांड में नहीं घुस रहा था. उधर में दर्द से बिलबिलाता हुआ तड़प रहा था क्योंकि गांड में बहुत दर्द हो रहा था. हेमन्त बोला. "भैया, ये ऐसे नहीं जायेगा. महने भर से मैने भाभी को नहीं चोदा है. आराम से अब उसकी गांड फ़िर टाइट हो गयी है. मख्खन लगा लो नहीं तो अनू मर जायेगी."
वह जाकर मख्खन ले आया. अम्माजी ने मेरे गुदा में और हेमन्त ने अपने भाई के लंड में मख्खन लगाया. मख्खन लगाते हुए रतन के लंड को चूम कर हेमन्त बोला. "आज तो यह गजब ढा रहा है यार! सुहागरात न होती तो मैं कहता कि मेरी ही मार लो प्लीज़! ।
अव रतन ने बेरहमी से मेरी गांड में सुपाड़ा उतार दिया. पक्क की आवाज के साथ मेरा छल्ला चौड़ा हुआ और मुझे इतना दर्द हुआ कि मैं रो पड़ा और हाथ पैर फ़कते हुए चीखने लगा. "आखिर सील टूटी साली की, हेमन्त इधर आ
और हाथ पकड़ो हरामजादी के, बहुत छटपटा रही है" रतन मस्त होकर बोला.
अम्माजी ने मेरे पैर पकड़ लिये और हेमन्त ने हाथ. हेमन्त ने पूछा "मुंह बंद कर दें भाभी का?"
मांजी बोलीं. "अरे नही, चिल्लाने दे, मजा आयेगा. सुहागरात में बहू रोये तो मजा आता है. इससे पता चलता है कि असल में चुदी या नहीं? मैं इसकी दर्द भरी चीख सुनना चाहती हूं जब मेरे बेटे का लौड़ा इसकी गांड चौड़ी करेगा. वैसे फ़ाड़ तो नहीं देगा रे रतन बहू की गांड नहीं तो कल ही टांके लगवाने पड़ेंगे. आगे ढीली ढाली गांड मारने में
क्या मजा अयेगा?"
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