RE: Porn Kahani हसीन गुनाह की लज्जत
आपने पढ़ा कि यौन पूर्व काम क्रीड़ा के चलते उसकी कामवासना पूरे चरम पर थी.अब आगे:
यह सही था कि अब प्रिया अक्षत-योनि नहीं थी क्योंकि पिछले साल मैंने ही तो प्रिया को सुहागिन बनाया था तदापि सवा साल पहले के किये गए एक बार के मैथुन का असर तो कब का योनि पर से विदा हो चुका था. प्रिया की योनि के पद्म दल फिर से सिकुड़ कर योनि की गुफा को फिर से अत्यंत संकरा बना चुके थे, इसी कारण मेरी उंगली प्रिया की योनि के जरा सी अंदर जाने से प्रिया के मुंह से दर्द भरी सिसकारी निकली थी.
लेकिन इस बार मैं काम-क्रीड़ा से पहले अपनी उंगलियों से योनि के छेद को ख़ुला करने के मूड में हरगिज़ भी नहीं था. आज लिंग का काम लिंग ही करने वाला था. प्रिया की योनि से काम-रस बेतहाशा बह रहा था. मैंने प्रिय के बाएं निप्पल को मुंह में ले कर चुमलाया, तत्काल प्रिया मेरे लिंग को अपनी योनि की ओर खींचने लगी.
एक बार फिर से आजमायश की घड़ी आ रही थी लेकिन मुझे खुद पर, अपने कौशल पर, अपने प्यार पर और सब से बढ़ कर अपनी जान प्रिया पर भरोसा था कि सब ठीक हो जाएगा. प्यार हो रहा था… कोई लड़ाई नहीं जिस में किसी के जीवन-मृत्यु का सवाल हो!
“आओ न…!” प्रिया कसमसाई और उस ने बिस्तर पर अपनी टाँगे खोल दी.मैं थोड़ा अचकचाया.“आप को मेरी कसम… अब के जो तरसाया तो…!” प्रिया के लफ़्ज़ों में मनुहार के साथ साथ आदेशात्मक गूंज थी.
अब न कहनी मुश्किल थी; मैं प्रिया की खुली टांगों के बीच में आया. चाहे कामऱज़ की वजह से प्रिया की योनि पहले से ही खूब चिकनी हो रही थी, तदापि चित टांगों के साथ योनि भेदन में प्रिया को बहुत दर्द होना था तो मैंने प्रिया के दोनों पैर मोड़ कर प्रिया के नितंबों से करीब एक फुट की दूरी पर रख दिए; इससे प्रिया की योनि की मांसपेशियाँ थोड़ी सी ढीली हो गयीं जिस से मुझे प्रिया की योनि में अपना लिंग प्रवेश करवाने में थोड़ी सुविधा होने वाली थी.
मैंने अपना लिंग अपने दायें हाथ में ले कर शिश्न-मुंड प्रिया की ऱज़ से सराबोर प्रिया की योनि पर नीचे से ऊपर भगनासा तक और फिर भगनासा से नीचे की ओर, और फिर नीचे से ऊपर भगनासा तक घिसाना-रगड़ना शुरू किया.अचानक मेरा लिंग प्रिया की योनि की दरार पर घिसाते-घिसाते, योनि की दरार के बीच में जरा सा नीचे की और किसी नीची जगह पर अटक सा गया. उत्तेजना के मारे प्रिया के मुंह से व्यर्थ से, आधे-अधूरे ऐसे लफ़्ज़ निकल रहे थे, जिन का कोई अर्थ नहीं था.
“आह… मर गयी… तरसा दिया मुझे… ओ पतिदेव… आप ने… ओ गॉड!… आई..ई… मेरे अंदर समा जाओ… मार डालो मुझे… आह..ह..ह..ह.. सी… ई… ई..ई..ई..ई..!!!” इत्यादि!
बेखुदी के इस आलम में भी प्रिया मुझे अपना पति ही तस्सवुर कर रही थी. इधर कितनी ही रातों का भटका हुआ और प्यासा मुसाफिर आखिरकार अपनी मंज़िल-ऐ-मक़्सूद के मयख़ाने के दरवाज़े पर दस्तक़ दे रहा था. मैं अपने लिंग-मुंड को वहीं अटका छोड़ कर प्रिया के ऊपर लम्बा लेट गया. आने वाले क्षणों में मिलने वाले आनन्द का तस्सवुर कर के प्रिया ने भी आँखें बंद कर के मुझे ज़ोर से अपने आलिंगन में ले लिया.
मैंने प्रिया के होंठों के कई चुम्बन लिए और कहा- प्रिया!“हुँ..!”“आँखें खोलो!”“मैं नहीं… आप करो.”“अरे! खोलो तो…!”
प्रिया ने अपनी आँखें खोली. मेरी आँखें ठीक उस की आँखों से तीन इंच ऊपर थी. मोटी-मोटी काली आँखें जिन में प्यार और काम अपनी सम्पूर्णता के साथ झलक रहे थे. प्रिया ने झट से मेरे होंठों पर एक चुम्बन जड़ा और अपने दोनों पैरों से मेरी कमर पर कैंची सी मार ली और लगी मेरी कमर अपनी ओर खींचने.
“नहीं प्रिया, ऐसे नहीं… आराम से! ऐसे तुम्हें दर्द होगा.”“मुझे परवाह नहीं!”“लेकिन मुझे है.”
प्रिया ने मुदित आँखों से मुझे देखा, मुस्कुरायी और फिर प्यार से मेरे होंठों को चूम लिया. मैंने वापिस प्रिया के दोनों पैर मोड़ कर प्रिया के नितंबों से करीब रख दिए और मैंने अपना लिंग थोड़ा सा पीछे को खींचा और जरा से और ज़ोर से आगे को धकेला.“सी… ई… ई..ई..ई..ई..!!!” एक लम्बी सिसकी प्रिया के मुंह से निकल गयी लेकिन हर चीज़ अभी कंट्रोल में ही थी, मैंने थोड़ा सा ज़ोर और लगाया, अब लिंग-मुंड प्रिया की जलती धधकती योनि के अंदर था.
प्रिया के दोनों हाथ मेरी पीठ पर कस कर जमे थे; प्रिया की योनि के अंदर का उत्ताप मेरे लिंग को जलाने पर उतारू था जैसे. लेकिन पीछे हटने का तो सवाल ही नहीं था. इसी पल का पूर्ण समग्रता से सामना कर के बिस्तर पर अपना विजय अभियान सार्थक करने वाला ही सही मायने में मर्द कहलाता है और मुझे तो कुछ नया साबित भी नहीं करना था, सिर्फ अपने सामर्थ्य के पिछले कृत्य को एक नया मोड़ दे कर दोहराना भर था.
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